मंगलवार, 26 जुलाई 2011

गणपति

गणपति 
हिन्दू समाज में अनंत देवी देवताओं की उपासना प्रचलित है. गणेशजी की उपासना करने वालों का गणपत्य सम्प्रदाय है. गणेशजी का पूजन करने बाले हिन्दू सभी सम्प्रदाय में पाए जाते हैं.हिन्दुओं के धार्मिक कार्यों का प्रारम्भ गणेश-पूजन के द्वारा ही किया जाता है, क्यूँकी गणेशजी मंगलमूर्ति है, वे विघ्नविनाशक है.उनकी पूजन न करने वाला हिन्दू ढूंढे से भी मिलना कठिन है.विशाल हिन्दू समाज के भिन्न भिन्न मतावलम्बियों में बिभाजित होते हुए भी उसको एकत्व में बांधकर रखने वाले जो कोई  सामर्थ्यशाली सूत्र है,उनमे गणेश पूजा भी एक प्रधान सूत्र है. गणेशजी को यह स्थान कैसे प्राप्त हुआ ? इसके भीतर कौनसा रहस्य छिपा हुआ ? इन्ही वातों का हम थोडा विचार करेंगे.फलतः हमें गणेशजी की जन्म और कुछ नामों के अर्थ पर विचार करना होगा.
शिव-पार्वती और उनके पुत्र  
गजमुख गणेश और षडानन कार्तिकेय, ये दोनों शिव-पार्वती के पुत्र है. शिव का अर्थ है कल्याण और पार्वती मूर्तिमती ज्ञान-लालसा है.अपने प्राचीन संस्कृत साहित्य में कितनी ही विद्याओं का और शास्त्रों का विवेचन शिव-पार्वती के संवादों के माध्यम से हुआ है.पार्वती प्रश्न करती है और शिव उसका उत्तर देते हैं.
शिवजी का जीवन तपस्यामय है. भूतमात्र की कल्याण - कामना से वे सर्वदा ताप में लीं रहते हैं. बाह्वा वेष की और उनका तनिक भी ध्यान नहीं है. अहर्निश कर्मरत रहने के कारण उनके पास सब प्रकार के ज्ञान का भण्डार है. परन्तु उनका वैराग्य इतना उत्कट है कि उनको अपना बृद्ध ज्ञान का भी पता नहीं. वे बहुत भोले है. ठन्डे दिमाग से सोचकर काम करना और सतर्कता से काम लेना वे जानते ही नहीं. उसी प्रकार हर बात में मर्यादापालन एबं तारतम्य के महत्व की वे तनिक भी चिंता नहीं करते. इसीलिए कपटी शत्रुओं का वंदोवस्त वे कभी नहीं कर पाते. उसी प्रकार वे कोई बार अंतर्गत विकारों के अधीन भी हो जाते हैं.फिर भी उनके वैराग्य तथा ज्ञान पर मुग्ध होकर पार्वती उनको पाने के लिए तरसती है और उनको पाकर अपने को धन्य समझती  है. उनकी भक्ति से संतुष्ट होकर शिवजी उनकी सब शंकाओं का समाधान करते है.
उपरोक्त विवेचन के आधार पर हम कह सकते हैं कि शिव तत्व है और पार्वती व्यवहार. इस शिव पार्वती मिलन का ही परिणाम है षडानन कार्तिकेय और गजानन गणेशजी का जन्म.
कार्तिकेय अपनी सतर्कता के कारण  देवताओं के सबसे श्रेष्ठ सेनापति हुए हैं.गणना पूर्वक व्यवस्थित कार्य करना गणेशजी का सहज स्वभाव है.किन्तु शिवजी को वह पसंद नहीं. ध्येय सिद्धि के लिए काम करने कि शीघ्रता में व्यवस्थित काम करने के लिए सोचने और लोगों को अनुशासन सिखाने में समय बिताना वे आवश्यक तथा इष्ट नहीं समझते. अंततोगत्वा उस पद्धति से अधिक कार्य हो सकेगा, इस वात पर उनकी श्रद्धा ही नहीं है.परन्तु पार्वतीजी गणेशजी का पक्ष्य लेकर उनको बचाती है.फलतः गणेशजी अपने मार्ग पर आगे बढ़ पाते हैं.गणेशजी के कारण अंतर्गत परिस्थिति काबू में की जाती है और कार्तिकेय द्वारा कपटी शत्रुओं का वंदोवस्त किया जाता है.उनके वाहन मयूर और मूषक उसका प्रमाण है.    

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