शनिवार, 23 जून 2012

      गणेशाय  नम:


          जो आदमी सब कुछ स्वीकार कर सके , वही समझदार है जो 'यह स्वीकार, यह अस्वीकार ' का भाव रखता है वह निश्चित ही नासमझ है
वह काल और होनी को नहीं समझता है
काल और होनी को समझने वाले राम ने कैकेयी का कभी बुरा नहीं माना
काल और होनी यदि प्रवल  नहीं होते तो कैकेयी का हमेशा का वात्सल्य भरा ह्रदय क्यूँ एक दिन  इतना  कुटिल और कठोर हो जाता 
समझदार व्यक्ति काल के इस कुचक्र को देख कर, उदासीनता का लावादा ओढने में ही अपनी भलाई और सुरक्षा महसूस करता है तथा  इस जीवन यात्रा में धीर गति से चल पाता है 
उदासीनता का यह नरम लावादा उनके लिए अभेद्य कवच का सा काम करता है
ऐसा आदि गुरु ने भी स्पस्ट कहा है | 

       दुःख आने पर दुःख के साथ ज्यादा लड़ाई नहीं करनी चाहिए
धर्य अपनाना चाहिए
दुःख अपने समय से ही  जाएगा
सूर्योदय तो अपने समय से ही होता है
जैसे कि रात को हम सो जाते हैं उसी प्रकार उसी प्रकार धैर्य की चादर ओढ़ कर  आये हुए दुःख को और उदासीनता से उन्मुख होना चाहिए
      शिकायत का भाव तो रखना ही नहीं चाहिए न परिस्थिति से न लोगों से  और न अपने आप से
परिस्थिति से शिकायत करने वाले का विधाता से द्रोह हो जाता है लोगों से शिकायत रखने वाला लोगों में अप्रिय हो जाता है
और अपने आप से शिकायत रखने वाला आत्मघाती हो जाता है शिकायत रूपी राक्षस उसकी साडी मानसिक शक्ति चट कर जाता है शिकायत करने वाला आदमी इस्वर और दुनिया के दरवार में द्रोही तथा अपने मन के दरवार में आत्मघाती साबित होता है |


   देनदार प्रारव्ध है
वह जो देता है उसीसे संतोष मान कर चल
तेरे से जो बन पड़े तू जरुर करता चल
ज्यादा दे तो त्याग कर
कम दे तो तपस्या कर
दुनिया उसकी चाकर है, वह कुछ नहीं दे सकती
भोजन का हर निवाला वह दे रहा है
जो प्रारव्ध दे उसीसे संतोष कर
कर कर कर मेरे भाई
संतोष का पाठ सबसे बड़ा है |

      कल क्या हो जायेगा
कल के लिए किसकी प्रतीक्षा कर रहे हो
कल आकर कौन सहारा देगा
आज यदि हम अपने पुरुषार्थ से अपनी बुद्धि को सबल तथा शरीर को कष्ट उठाने की आदी नहीं बनाते हैं
तो कल हमें घोर कष्ट उठाना ही पड़ेगा
इस जंगल में कोई भी सहारा देने वाला नहीं है
कष्ट के मौके पर सब असहाय नजर आयेंगे
कष्ट तो अकेले ही उठाना पड़ेगा ।





इन्द्रिय सुख और ध्यान सुख
दोनों एक साथ नहीं मिल-सकते
एक  को छोड़ोगे  तो दूसरा मिलेगा
एक मृत्यु के दरवाज़े तक पहुंचाता है
तो दूसरा अमरता के द्वार तक पहुंचाता है ।।


मुंह के अन्दर जो डालते हो
तथा मुंह से बाहर जो निकालते हो
दोनों में बहुत ध्यान देने की दरकार है ।।


जव संदेह का सांप सिर उठाता है
तो अमृत भी जहर लगता है
जव श्रद्धा जागता है
तो पत्थर भी भगवान् हो जाते हैं ।।


काल तुम्हें धीरे-धीरे चिता की
लकडियों की ओर खींचे लिए जा रहा है
यदि शरीर को कष्ट की आदत नहीं होगी
तो वे लकड़ियाँ तुम्हें बहुत गड़ेंगी