बुधवार, 28 सितंबर 2011

क्या भाई क्यूँ हटेगा ये भ्रष्टाचार ,

अगर देश से भ्रष्टाचार हटाना है तो मूलरूप से लोगों के मानसिकता में परिवर्तन लाना जरुरी है,अगर लोगों के मानसिकता में परिवर्तन लाना है तो शिक्ष्या का मूलभूत परिवर्तन अत्यंत आवश्यक है | आज की शिक्ष्या नीति हमें जो सिखा रहा है उसे पढ़कर कोई साधुता या सच्चोटता की बात करेगा ये असंभव है |
कोई बात नहीं
देश ऐसे ही चलता रहेगा,
हम सोते रहेंगे और देश हमारा लूटता रहेगा.
कारवां आते रहेंगे,
हमें लूटते रहेंगे.
जब हम नींद से जगेंगे,
तब हम सड़क पर भीख मांग रहे होंगे.
भीख मांगने में नंबर १ है हम,
दुनिया से भीख मांग कर चलाते हैं देश हम.
स्वार्थपरता में नंबर १ है हम,
भ्रष्टाचारिता में भी हम नहीं कुछ कम.
देश के पैसे को हम अपना समझते,
इसीलिए उसको अपनी तिजोरी में भरते.
सेवा के नाम पर मेवा खाते हैं हम,
भ्रष्टाचार हटाने की नारा लगाते हैं हम.
क्या भाई क्यूँ हटेगा ये भ्रष्टाचार ,
जब कि हमें विरासत में मिली है ये अचार.

रविवार, 25 सितंबर 2011


गायन्ति देवा किला गीतकानि..........
          यह भारत भूमि इतनी पवित्र और महान है कि इसके बारे में कवियों ने लिखा है -
गायन्ति देबाः किल गीतकानि,धन्यास्तु ते भारत भूमि भागे |
स्वर्गापवर्गास्पद मार्ग भूते,भाबंती भूयः पुरुषाः सुरस्थात ||
     इतने बड़े भाग्य है हमारे कि ऐसी महान पवित्र भूमि में हम पैदा हुए हैं |हमें गौरव है कि हम भारतीय हैं | हमारा इतिहास इस बात का साक्षी है कि इस भारत भूमि के अन्दर महान-महान हस्तियाँ पैदा हुए हैं , इसके अन्दर भगबान राम,कृष्ण,बुद्ध,गुरु नानक,महावीर स्वामी,रामकृष्ण परमहंस,कवीर,स्वामी विवेकानंद अदि अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया है |यह वीरों,ऋषियों और संतों की भूमि रही है |

भरत और भारत
हरिद्वार से चंडी घाट की ओर आप ऊपर जायें तो वहां पर एक आश्रम है जिसे किरण आश्रम कहते हैं-वही,वह स्थान है जहाँ शकुंतला का वीर पुत्र जन्मा था,जहाँ उसने बाल क्रीडा की थी और वह बालक शेरों के साथ खेलता था तथा खेलते खेलते वह शेरों का मुह खोलकर दांत गिनने लगता था-ऐसे शुर वीर वह बालक था | उस शुरवीर योद्धा बालक का नाम था ' भरत ' और उसी के नाम पर हमारा यह मातृभूमि का नाम ' भारत ' पड़ा |

भारत सोने का देश था
यह भारत भूमि एक ज़माने में सोने की चिड़िया कहलाती थी, इसकी इतनी प्रसिद्धि थी कि यहाँ पर पहुँचने के लिए अन्य देशों के लोग लालायित रहते थे,वास्कोडिगामा कितना अथक परिश्रम करके इसे खोजता हुआ यहाँ तक पहुंचा |यह भारत देश उस जमाने में विश्व का सरताज कहलाता था, विश्व के सरे देश इसे गुरु देश मानते थे |यहाँ के नालंदा जैसी शिक्ष्या केंद्र विश्व में प्रसिद्ध था,सरे संसार से लोग उसमें शिक्ष्या प्राप्त करने आते थे - ऐसा महान भारत देश था,सोने का देश था |

विदेशों में भारत के प्रति हीन धारणाएं  
परन्तु आज भी उसी भारत देश को विश्व के सरे देश निर्धन देश मानते हैं,अनपढ़ और गवांर देश मानते हैं,पिछड़ा हुआ देश मानते हैं | अनेक प्रकार की अनर्गल बातें आज हमारे इस देश के सन्दर्भ में फैली हुई है,विदेश के लोग इसे हीन दृष्टि से,तिरष्कार की दृष्टि से देखते हैं | विदेशों के अन्दर हमारे इस महान भारत भूमि के प्रति ऊटपटांग और हीन धारणाएं बनी हुई है,हमारे नेता लोग विदेशों में जाकर कर्ज मांगते हैं, अपनी झोली फैलाते हैं और विदेशी सरकारें हमें दया की दृष्टि से देखते हुए कर्ज देते हैं,जिसके फलस्वरुप आज देश रुणग्रस्त बना हुआ है और हमारा देश में इतना घाटा होता जा रहा है कि देश दिवालियापन की स्थिति तक पहुँच गयी है | 
ये धारणाएं बनेगा भी क्यूँ नहीं,जबकि हमारे द्वारा चुने गए नेता लोग भारत के दुखी जनता को और भी दुखी करते हुए एक के बाद एक घोटाला करते हुए लाखों करोड़ों रूपया कमा कर खुद की तिजोरी में भरते हैं,लेकिन गरीब असहाय लोग निर्धन लोग गरीबी का मार सहते सहते खाने की एक एक दाने के लिए मोहताज़ हो जाते हैं, रहने के लिए सर पर छत नहीं,पहनने के लिए कपडा नहीं, देश में चारों तरफ बदहाली फैली हुई है,भ्रष्टाचार की बोलबाला है, अत्याचार अनाचार से लोग त्रस्त है,माँ बहनों का घर से बाहार निकलना दूभर हो गया है | हमारा यह भारत,जो किसी ज़माने में सोने का भारत था, सत्ययुगी भारत था आज वही भारत दरिद्र भारत बन गया है,कलयुगी भारत बन गया है |

कलियुग का स्वरुप 
भगवान श्रीकृष्ण ने कलिकाल के स्वरुप के बारे में अर्जुन को समझाते हुए कहा था कि, कलिकाल में ऐसे पाखंडी गुरुओं की,विद्वानों की संख्या अत्यधिक होगी जो बात तो करेंगे धर्म की,ज्ञान की पर होंगे दुराचारी तथा चरित्रहीन और ऐसे ही लोगों के कारण धर्म बदनाम हो जाएगा | भारत में प्रतिदिन कितने ही मंदिर बन रहे हैं फिर भी भारत की जनता के चरित्र में,स्वाभाव में, तथा यहाँ के गुरुओं के चरित्र ह्रास होते जा रहा है,दिनोंदिन गिराबट आती जा रही है,सब दुराचारी होते जा रहे हैं | सचमुच में इस घोर कलिकाल में ये सब घटित हो रही है | आज हमारे भारत में जो व्यक्ति कालाधन रखता है,चोरबाजारी करता है वही इस देश का इज्जतदार और प्रमुख लोगों की मुखिया बन जाता है, जो शराब पिता है जुआ खेलता है ,दुराचार करता है वही भगवान् का बड़ा भक्त और धार्मिक कहलाता है | धर्म को हमने विकृत कर दिया, उसे तोड़ मोरोड़ कर हमने अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करने लगे हैं, और इसीका यह परिणाम है कि धर्म का जो वास्तविक रूप था और प्रभाब था समाज के ऊपर वह समाप्त हो गया है,धर्म सारहीन हो गया है |
वास्तव में देखा जाय तो गरीब लोग जो मेहनत की कमाई खाते हैं,वे पाप कम ही करते हैं फिर भी पाप से डरते हैं,पर बड़े बड़े लोग जो हर एक मिनट में पाप कर रहे हैं, उन्हें पाप का भय ही नहीं है | वह गरीब जिसने कुछ किया  ही नहीं वह तो भयभीत हो रहा है और जिसे भयभीत होना चाहिए वो छाती फाड़े,निडर होकर घूम रहा है और कह रहा है कि कुछ नहीं होगा, अगर यमराज भी आएगा तो उसे भी रिश्वत दे कर खरीद लेंगे | रिश्वत का ज़माना जो है-आज हर चीज रिश्वत से प्राप्त कि जा सकती है | 
   


बाहों में चली आआआआआआ



बाहों में चली आआआआआआ 

मम्मी में अभी भी इतालियन स्टाइल है !!!!!!!!!!!!!!!



मम्मी में अभी भी इतालियन स्टाइल है !!!!!!!!!!!!!!!

बेचारी दलितों की नेत्री !!!!!!!!

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बेचारी दलितों की नेत्री !!!!!!!!

लाठी योग

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                                   लाठी योग



झेल रहा हूँ इस मुसीबत को...................

                                                   झेल रहा हूँ इस मुसीबत को...................

चोरी चोरी क्या हुआ किसीने न जाना .....................

                                                  चोरी चोरी क्या हुआ किसीने न जाना .....................

मुंडा बदनाम हुआ मुन्नी तेरे लिए

                                                   मुंडा बदनाम हुआ मुन्नी तेरे लिए 

shot dead




Sometimes a cunning argument outwits normal intelligence
Once there lived a foolish donkey in a town. The town was situated near a forest. There, in the forest lived king lion and his minister, a cunning fox. Once, king lion was badly wounded in a fierce fighting with an elephant. He became unable to hunt for his prey. So he asked his minister, the cunning fox to bring some good meal for him. As the fox used to share the prey, which king lion hunted for his meals, he at once, set out to search for food.

While wandering here and there, the fox met a donkey. The donkey looked foolish, nervous and hungry. The fox asked him, "Hello! you seem to be new to this forest. Where do you actually come from?"

"I come from the nearby town", said the donkey. "My master, the dhobi makes me work all day, but doesn't feed me properly. So I've left my home to find a better place to live in and eat properly."

"I see", said the fox. "Don't worry. I'm a senior minister in this forest kingdom. Come with me to the king's palace. Our king needs a bodyguard, who has the experience of town life. You will live in the palace and eat a lot of green grass growing around it ' "

The donkey was very happy to listen to all this from the minister fox of the forest kingdom. He proceeded with him to the royal palace.

Seeing a,donkey before him the king lion became highly impatient and pounced upon him immediately. But on account of constant hunger, the king lion had gone weak. He couldn't overpower the donkey. The donkey freed himself and ran for his life.

"Your Majesty," said the fox to king lion, "you shouldn't have acted in such a haste. You have scared your prey."

"I'm sorry," said king lion. "Try to bring him here once again."

The hungry fox went again to the donkey and said to him, "What a funny fellow you are. Why did you run away like that?"

"Why shouldn't IT' asked the donkey.

"My dear," said the fox, "you were being tested for your alertness as a royal bodyguard of the king. Thank god, you showed a quick reflex, otherwise, you would have been rejected for the job."

The donkey believed what the fox said and accompanied him once again to the palace. There at the palace the king lion was hiding behind the thick bushes. As soon as the donkey passed by the bushes, the lion pounced upon him and killed him instantly.

Just when the lion was about to begin eating the donkey, the fox said, "Your Majesty, you're going to have your meals after quite a few days. It's better you first take a bath and offer prayers."

"Hmm!" the king lion roared and said to the fox, "Stay here. I'll be back right now."

The lion went to take bath and offer his prayers. In the meantime, the fox ate the donkey's brain. When the king lion came back to eat his prey, he was surprised to see that the donkey's brain was missing.

"Where is this donkey's brain?" The king lion roared in great anger.

"The donkey's brain!" the fox expressed his surprise. "Your Majesty, you're fully aware that donkeys don't have a brain. Had that donkey ever had a brain, he would never have come with me to this palace for the second time."

"Yes," agreed king lion, "that's the point."

And he started eating happily the rest of the flesh of the dead donkey.
Pranab Mukherjee and Manmohan Singh
वाशिंगटन। 2जी स्‍पेक्‍ट्रम घोटाले की तरंगें यूपीए सरकार की दिल की धड़कनों को मुश्किल में डाल रही हैं। इस घोटाले का बुरा साया प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक पहुंच गया है। यूएन की महासभा में हिस्‍सा लेने के लिए न्‍यूयॉर्क गए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का सारा ध्‍यान इसी मामले में अटका हुआ है। यूपीए में नंबर 2 यानिकि वित्‍तमंत्री प्रणव मुखर्जी भी इस समय अमेरिका में ही हैं। 2जी स्‍पेक्‍ट्रम का फंदा कसता देख प्रणव अपने दौरे का दायरा घटाकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिलने जा रहे हैं। जहां प्रधानमंत्री से मिलकर वे सरकार को इस संकट से निकालने की रणनीति बनाएंगे।

प्रणव मुखर्जी अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्रा कोष की सालाना बैठक में हिस्‍सा लेने के लिए अमेरिका गए थे। वे इस समय वॉशिंगटन में थे। पीएम से मिलने के लिए वे रविवार को न्‍यूयॉर्क पहुंचेंगे। खबर यह भी आ रही है कि कांग्रेस में इस समय आपसी विवाद पैदा हो रहे हैं। वित्‍तमंत्री की पीएमओ की चिट्ठी को नजरअंदाज करते हुए पी चिदंबरम पर भरोसा जताया था। जिसके बाद कांग्रेस भी चिदंबरम के बचाव में आ गई थी। साथ ही पीएम ने प्रणव मुखर्जी से इस मामले में चुप्‍पी साधने के लिए कहा था। प्रणव मुखर्जी इस मामले पर काफी खफा चल रहे हैं। जिसके बाद पीएम ने मुलाकात के लिए उन्‍हें बुलाया है।

2जी स्‍पेक्‍ट्रम में सरकार की फजीहत कराने की शुरुआत खुद प्रणव मुखर्जी की पीएमओ को लिखी चिट्ठी से हुई। जिसमें वित्‍त मंत्रालय ने 2008 में 2जी स्‍पेक्‍ट्रम घोटाले के समय वित्‍तमंत्री पी चिदंबरम की भूमिका पर सवाल उठाए गए हैं। चिट्ठी में लिखा गया है कि अगर चिदंबरम चाहते तो इस घोटाले को रोक सकते थे। अपने ही सरकार के मंत्री द्वारा आरोप लगोन के बाद चिदंबरम ने पीएम को फोन कर इस्‍तीफे की पेशकश कर दी थी। प्रधानमंत्री ने चिदंबरम से उनके वतन वापस न आने तक कोई भी बयान और निर्णय ने लेने को कहा है।
                                                  भगवान् इसके आत्मा को शांति दें  ?????????
                                                             दाह संस्कार आज २५-०९-२०११.

शनिवार, 24 सितंबर 2011

ओडिशा ,आज ता.२४-०५-२०११ उमरकोट बी जे डी विधायक जगबंधु माझी की अज्ञात बन्धुक धारीओं द्वारा निर्मम हत्या 

शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

धरती माँ के रुण को चुकाएं

भारतवर्ष के प्राचीन इतिहास का अगर हम अबलोकन करें तो यह पता लगता है की हमारा भारत विश्व भर में महानतम देश था, शिक्ष्या,पराक्रम,धर्म,भौतिक संपदा आदि प्रत्येक क्षेत्र में सर्वाधिक संपन्न देश था और विश्वगुरु की उपाधि में बिभुषित था | बाद में इसमें जाति,धर्म अदि के नाम पर फूट का बीज पनपने लगा जिससे राष्ट्रीय एकता समाप्त हो गयी और धीरे धीरे इसके टुकड़े हो गए,यह छोटे छोटे राज्य में विभक्त हो गया | तब हमपर जब विदेशी आक्रमण हुए तो आपसी फुट के कारण हम एक होकर उन आक्रमणों का प्रतिरोध नहीं कर सके,उल्टा हम में से कुछ स्वार्थी लोगों ने ,देश द्रोहिओं ने दुश्मनों का साथ दिया जिसके फलस्वरुप यह पवित्र भारत देश पराधीन हो गया और सैकड़ों वर्षों तक भारतवासी गुलामी की जिंदगी को जीता रहा |
        उस पराधीनता के बावजूद भी,हमारे पूर्वजों की,हमारे रुषिओं की जो अमूल्य धरोहर थी,जो आध्यात्मिक संपदा थी हमारे देश में वह समाप्त नहीं हुई |महर्षि अरविंद,महर्षि दयानंद,वंकिम चन्द्र चटर्जी,स्वामी विवेकानंद,लोकमान्य तिलक,महात्मा गाँधी,सुभाष चन्द्र बोसे अदि अनेक अध्यात्मिक शक्ति संपन्न लोग  भारतवर्ष की मानस पटल पर उदित हुए और उन्होंने भारत की सोयी हुई जनता को जगाया,उश्मे आत्मिक क्रान्ति की ऐसी फूंक मारी कि भारतवासी जागकर खड़ा हो गया | इस अध्यात्मिक जागरण के फलस्वरूप,२०विन शताव्दी के प्रारंभ में भारत माता 'देवी माँ' के रूप में प्रगट हुई जिसे प्रत्येक भारतवासी अपनी श्रद्धा,भक्ति और क़ुरबानी के सुमन चढाने को लालायत हो उठा | भारत माता के प्रति यही श्रद्धा कि भावना देश-प्रेम के रूप में जन-जन में प्रस्फुटित हुई और इस प्रकार जब जनता कि जागरूक शक्ति एक हुई तो भारत देश पुनः एक स्वाधीन राष्ट्र के रूप में प्रकट हुआ; १५ अगस्त १९४७ को 'एक राष्ट्र,एक ध्वज और एक आत्मा' की शक्ति से एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में विश्व की मानचित्र पर उभरा,हमारे महान नेताओं के स्वप्न साकार हुए तथा शहीदों की कुर्बानियां सफल हुई |

भौतिक रूप में स्वाधीन होने के बाद भी हम मानसिक रूप से स्वाधीन नहीं हो सके,जो गुलामी की,हीनता की भावनाएं हमारे मस्तिस्क में घुस चुकी थी उन्हें हम नहीं निकल पाये | जिस आध्यात्मिक संपदा की बदौलत हमने गुलामी की जंजीरों को तोडा,उस महान भारतीय संस्कृति को तिलांजलि देकर,विदेशी संस्कृति की ओर उन्कुख होकर, हम पूर्णतया भौतिकवादी बनगए जिससे हमारे भारत की आत्मा पुनः निर्वल और सुषुप्त हो गयी, जिसका परिणाम क्या हुआ-फुट,स्वार्थपरायणता,भ्रष्टाचार,अनाचार,अत्याचार अदि बुरी प्रब्रुतियाँ हमारे देश में प्रखर रूप में फैलने लगी; हम धर्म,जाति,सम्प्रदाय,भाषा अदि के नाम पर बिभाजित होकर आपस में ही लढने लगे और हमारे देश में अनेकों ऐसे मीर जाफर और जयचंद पैदा हो गये जिन्होंने भारत देश को आर्थिक रूप में बेच डाला,आर्थिक दृष्टिकोण से हमें विदेशो का गुलाम बना दिया,मोहताज बना दिया | विदेशी सभ्यता को अपनाने का यह भुत हमारे भारतवासिओं पर इस कदर सबार हुआ कि हमारे बड़े बड़े नेता लोग विदेशी संस्कृति के पिट्ठू बन गए,यहाँ तक कि हमारे गुरुजन जिन्हें हम भारतीय संस्कृति के रक्ष्यक और पोषक मानते थे वे भी विदेशी कार और विदेशी नारी के पीछे भागने लगे,विदेशी सभ्यता के दीवाने हो गए |
इसी भौतिक लिप्तता का,विदेशी संस्कृति में लवलीन होने का ही यह दुष्परिणाम है कि आज हमारा भारत देश हर प्रकार से शक्तिहीन बन गया है;जाति,धर्म,भाषा अदि के नाम पर हर रोज लड़ाईयां हो रही है,देश को टुकड़े करने कि साजिशें हो रही है | बिघटनवादी विदेशी शक्तियों के एजेंट भारत में पूरी तरह सक्रिय है |बौद्धिक,सामाजिक,आर्थिक,राजनैतिक आदि हर क्षेत्र में भारत को शक्तिहीन करने के,छिन्न-भिन्न करने के कुचक्र चल रहे हैं,आसुरी शक्तियां हमारे देश में प्रबल  हो गयी है,स्वार्थी,बदमाश और बदचलन लोगों का समाज पर आधिपत्य हो गया है | जो थोड़े बहुत देवता स्वरुप लोग,सत्य न्याय के मार्ग पर चलनेवाले लोग है,जिनके अन्दर देशभक्ति की त्याग और बलिदान की भावना है, वे आज अपने आपको असहाय एबं अकेला महसूस कर रहे हैं,शक्तिहीन होकर बैठे हुए हैं |आज तो स्थिति यह है कि अगर सत्य के,न्याय के पक्ष्य में एक आवाज  उठती है,अगर एक सर उठता है असहाय और abalaa कि रक्ष्या के लिए तो उस आवाज को दवाने के लिए,उस सर को कुचलने के लिए हजारों राक्ष्यसी,दमनकरी शक्तियां हर समय तत्पर रहती है | कहीं भारत कि जनता जागरूक होकर एक न हो जय,कहीं हमारी धोखेबाजी कि,स्वार्थपरायणता कि,अन्याय अत्याचार और अनाचार कि दुकानदारी समाप्त न हो जाय-इसके लिए वे आसुरी प्रबृत्ति के लोग फुट डालो और राज करो कि दुर्नीति को अपनाते हुए,समाज के अन्दर,किसी न किसी बहाने,फुट के बीज का आरोपण करते रहते हैं | चुनाव के समय तो जाती,धर्म और सम्प्रदाय के नाम पर जनता में ऐसी भयानक फूट दाल दी जाती है कि उस समय सैकड़ो हजारों लोगों कि सर फूटते हैं,लोग अपने ही भाईओं का खून कर डालते हैं और इसी महाभयंकर फूत्रुपी बीज का यह दुष्परिणाम है कि आज देश में जगह जगह लडाइयां हो रही है,दंगे हो रहे हैं }यहाँ तक कि धर्म का जो रचनात्मक गुण था समाज में बुरी प्रबृत्ति को समाप्त कर अच्छी प्रबृत्ति को बढ़ाना,प्रेम, शांति और एकता को स्थापित करना,आज उसी धर्म के नाम पर लडाइयां हो रही है,धर्म के नाम पर समाज में फुट डाली जा रही है |धर्म का स्वरुप विकृत हो गया है | धर्म स्वार्थी और दुष्ट लोगों का पोसक बन चूका है,धर्म के नाम पर वैमनष्यता फैला कर मारो और काटो कि शिक्ष्या दी जा रही है,धर्म के आड़ में अनाचार और अत्याचार पल बढ़ रहा है |
         स्थिति इतनी बदतर हो गई है कि किसी कि माँ-बहन सड़क पर सुरक्षित नहीं है,खुले आम माँ-बहनों के साथ जुल्म किया जा रहा है,उनकी इज्जत लूट ली जाती है और उन अत्याचारिओं का प्रतिरोध करने का कोई साहस नहीं कर पा रहा है | देहज कि वेदी पर नारी को जिन्दा जलाया जा रहा है, गौमाता को समाप्त किया जा रहा है,गरीब भ्रस्ताचार और अत्याचार कि चक्की में दिन रत पिसता चला जा रहा है, मिलाबटखोर गाय और सूअर की चर्बी को वनास्वती घी में मिलकर लोगों का धर्म भ्रष्ट कर रहे हैं,और भारत का नागरिक मौन होकर कायरों की तरह इन तमाशों को देख रहा है |
आज समय आ गया है अध्यात्मिक जागरण का, भारत को पुनः महँ बनाने का,धर्म के अन्दर जो बिकृत्ति आ गई है उसे समाप्त कर धर्म के शुद्ध,सनातन स्वरुप को समझाने के लिए भारत की जनता को एकजूट होकर आगे बढ़ना है,एक नया सवेरा लाना है |
वैसे तो इतिहास यह बताता है कि जब भी संतों का,महँ पुरुषों का आगमन इस धरातल पर हुआ, तब बहुत ही कम लोगों ने उन्हें माना और उनका अनुसरण किया,अधिकांश ने तो आलोचना ही कि है,हाँ जाने के बाद जरुर उनकी मान्यता हुई | भगबान राम को एक धोबी ने भी व्यंग कसा,श्रीकृष्ण महाराज को शिशुपाल,जरासंध,कंस और दुर्याधन अदि के द्वारा नाना प्रकार के पमन और कष्ट सहने पड़े,महतम बुद्ध को अनेक प्रकार से कलंकित करने के प्रयास हुए,गुरु नानक को जेल के अन्दर चक्की चलानी पड़ी,महम्मद पैगम्बर को मक्का छोड़ कर मदीना भागना पड़ा,ईशा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया,सुकरात को जहर पिलाया गया,संत कबीर को पकड़ कर हठी के सामने लिटाया गया,तुलसीदश जी के नाक में दम कर दिया उस समय के बिद्वानो ने -इस प्रकार सभी महापुरुषों के साथ दुर्व्यवहार हुआ है | कहा भी है-
               जीते जी जग को संतों से होती है सच्ची प्रीति नहीं |
               जाने पर ही पूजा करते, जग कि है उलटी रीति यही ||  




आज भारत माँ हम सबको पुकार रही है,यह आह्वान कर रही है कि आगे बढ़ो और मेरी अखंडता,पवित्रता और म्हणता की रक्ष्या करो |यह जो रक्ष्या का महान कार्य है इसके लिए बलिदान,त्याग और तपस्या की भावना की आवश्यक है |इसीलिए हम सब उठे ,जागें और आध्यात्मिक क्रांति रुपी इस महायज्ञ में अपने महान जीवन की आहुति dekar इस पवित्र धरती माँ के रुण को चुकाएं | 
          

















          

भारत में भ्रष्टाचार



सभी लक्जरी या तो नैतिकता या राज्य भ्रष्ट.
- Joubert
अति प्राचीन काल से भारतीय समाज में भ्रष्टाचार एक फार्म या अन्य में प्रबल है. भ्रष्टाचार के मूल स्थापना हमारे अवसरवादी नेता हैं जो पहले से ही हमारे राष्ट्र के लिए अधिक से अधिक नुकसान किया है के साथ शुरू कर दिया. जो लोग सही सिद्धांतों पर काम अपरिचित हैं और आधुनिक समाज में मूर्ख माना जाता हैं. भारत में भ्रष्टाचार नौकरशाहों, नेताओं और अपराधियों के बीच संबंध का एक परिणाम है. इससे पहले गलत बातें किया हो रही करने के लिए रिश्वत का भुगतान किया गया, लेकिन अब रिश्वत सही समय पर सही किया चीजें प्राप्त करने के लिए भुगतान किया जाता है. इसके अलावा, भ्रष्टाचार भारत में सम्मानजनक कुछ बन गया है, क्योंकि सम्मानजनक लोगों में शामिल हैं. उत्पादों, मिलावट के खाद्य मदों में कम वजन, और विभिन्न प्रकार की रिश्वत की तरह सामाजिक भ्रष्टाचार लगातार समाज में प्रबल है.
आज के परिदृश्य में, यदि एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी करना चाहता है वह उच्च अधिकारियों को लाखों रुपए सभी पात्रता मानदंड को संतोषजनक के बिना भुगतान करना पड़ता है है. हर एक कार्यालय में या तो संबंधित कर्मचारी को पैसे देने के लिए या कुछ सूत्रों के लिए व्यवस्था करने के लिए काम किया है. वहाँ मिलावट है और उत्पादों के वजन और बेईमान कार्यकर्ताओं ने लोगों के स्वास्थ्य और जीवन के साथ खेल के द्वारा उपभोक्ताओं को धोखा द्वारा खाद्य और नागरिक आपूर्ति विभाग में डुप्लिकेट.संपत्ति कर का आकलन में अधिकारियों पैसे चार्ज भी अगर घर ठीक से सरकारी नियमों और विनियमों के अनुसार बनाया गया है.
राजनीतिक भ्रष्टाचार भारत में सबसे खराब है. चिंता का प्रमुख कारण है कि भ्रष्टाचार राजनीतिक शरीर कमजोर है और समाज के कानून के शासन के सर्वोच्च महत्व को नुकसान पहुँचाए. आजकल राजनीति अपराधियों के लिए ही है और अपराधियों को राजनीति में होना चाहिए. देश के कई हिस्सों में चुनाव आपराधिक गतिविधियों का एक मेजबान के साथ जुड़े बन गए हैं.मतदाता एक विशेष उम्मीदवार के लिए वोट करने के लिए या शारीरिक रूप में मतदान बूथ पर जाने से मतदाताओं को रोकने की धमकी दे - विशेष रूप से आदिवासियों की तरह समाज के कमजोर वर्गों, दलितों और ग्रामीण महिला देश के कई भागों में अक्सर होता है. हाल ही में, सरकार से Rs.16, 000 सांसदों के वेतन में वृद्धि हुई है 50 रुपए, 000, कि मौजूदा वेतन के 300% वृद्धि हुई है. लेकिन उनमें से कई वृद्धि और सरकार ने एक बहुत अधिक हद तक वेतन वृद्धि के लिए करना चाहते हैं से नाखुश हैं. यह स्पष्ट रूप से दिखाता है कि कैसे नेताओं मौद्रिक लाभ के लिए निरंतर प्यास में कर रहे हैं और लोगों के कल्याण के बारे में परवाह नहीं है. टैक्स चोरी भ्रष्टाचार का सबसे लोकप्रिय रूपों में से एक है. यह ज्यादातर सरकारी अधिकारियों और राजनेताओं जो जो बारी में लोगों के नैतिक लूट काले धन का संचय करने के लिए नेतृत्व द्वारा अभ्यास है.

मेजर भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार कारक:

  1. सबसे महत्वपूर्ण कारक मनुष्य की प्रकृति है. सामान्य में लोगों, विलासिता और आराम के लिए एक महान प्यास है और एक परिणाम के रूप में जिसमें से वे खुद को सभी अनैतिक गतिविधियों में शामिल है कि मौद्रिक या सामग्री लाभ में परिणाम.
  2. नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों शिक्षा प्रणाली है, जो उच्च समाज की गिरावट के लिए जिम्मेदार है में अत्यंत महत्व नहीं दिया जाता है.
  3. कर्मचारियों को वेतन जिसके परिणामस्वरूप वे अवैध तरीके से पैसे कमाने के लिए मजबूर कर रहे हैं के रूप में बहुत कम है और है.
  4. अपराधियों पर लगाए गए दंड अपर्याप्त हैं.
    1. राजनीतिक नेताओं समाज पूरी तरह से खराब कर दिया है. वे एक विलासितापूर्ण जीवन का नेतृत्व और समाज के बारे में भी परवाह नहीं.
    2. भारत के लोग जग गया और प्रबुद्ध नहीं हैं. वे असामाजिक तत्वों के खिलाफ समाज में प्रचलित अपनी आवाज उठाने डर लगता है.

भ्रष्टाचार नियंत्रण के उपाय:

बढ़ती भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने के लिए कुछ विशेष उपाय कर रहे हैं.
  1. सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआई) के लिए अधिकार सरकार अपने कर भुगतान के साथ कर रही है जैसे एक सरकार के बारे में सभी आवश्यक जानकारी देता है. इस अधिनियम के तहत, एक किसी भी समस्या है जो एक चेहरे पर सरकार को पूछने का अधिकार है. वहाँ एक सार्वजनिक सूचना अधिकारी (पीआईओ) प्रत्येक सरकारी विभाग है, जो नागरिकों द्वारा जानकारी एकत्रित चाहता था और पीआईओ के लिए एक मामूली शुल्क के भुगतान पर प्रासंगिक जानकारी के साथ उन्हें प्रदान के लिए जिम्मेदार है में नियुक्त है. यदि पीआईओ के लिए आवेदन स्वीकार करने के लिए मना कर दिया या यदि आवेदक को समय पर आवश्यक जानकारी प्राप्त नहीं करता है तो आवेदक को एक शिकायत संबंधित जानकारी आयोग है, जो शक्ति है 25 के लिए एक दंड थोपने 000 कर सकते हैं पीआईओ गुमराह.
  2. भ्रष्टाचार पर एक अन्य शक्तिशाली जांच केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) है. यह सरकार द्वारा सेटअप करने के लिए सलाह और सतर्कता के क्षेत्रों में केन्द्रीय सरकारी एजेंसियों गाइड किया गया था.अगर वहाँ भ्रष्टाचार या उसके किसी शिकायतों के किसी भी मामले हैं, तो है कि सीवीसी के लिए रिपोर्ट किया जा सकता है. सीवीसी भी देने और रिश्वत और भ्रष्टाचार के लेने के परिणाम के बारे में लोगों के बीच और अधिक जागरूकता पैदा करने की जिम्मेदारी कंधे.
  3. त्वरित न्याय के लिए विशेष अदालतों की स्थापना एक बहुत बड़ा सकारात्मक पहलू हो सकता है. एक मामले के पंजीकरण और न्याय की डिलीवरी के बीच बहुत समय नहीं बीतना चाहिए.
  4. मजबूत और कड़े कानून अधिनियमित किया जो भागने दोषी के लिए कोई जगह नहीं देता है की जरूरत है.
  5. कई मामलों में, कर्मचारियों को भ्रष्ट के लिए चुनते हैं और चुनाव से नहीं मजबूरी के बाहर का मतलब है. कुछ लोगों की राय के हैं कि मजदूरी का भुगतान करने के लिए उनके परिवारों फ़ीड करने के लिए अपर्याप्त हैं. यदि वे बेहतर भुगतान कर रहे हैं, वे रिश्वत स्वीकार करने के लिए मजबूर नहीं होगा.
एक बात यह है कि करने के लिए सुनिश्चित किया जाना चाहिए, निष्पक्ष, उचित और निष्पक्ष विभिन्न विरोधी सामाजिक नियमों के उपयोग अपराधियों के खिलाफ मजबूत, निवारक, और समय पर कानूनी कार्रवाई ले, अपने राजनीतिक प्रभाव या पैसे की शक्ति के बिना है. फर्म और मजबूत कदम को बुराई पर अंकुश लगाने की जरूरत है और एक माहौल बनाया जहां अच्छा है, देशभक्ति, बुद्धिजीवियों को आगे आने के लिए गर्व, पुण्य, और भारत के लोगों के कल्याण के लिए ईमानदारी के साथ देश की सेवा है

Corruption In India



All luxury corrupts either the morals or the state.
- Joubert
Corruption in the Indian society has prevailed from time immemorial in one form or the other. The basic inception of corruption started with our opportunistic leaders who have already done greater damage to our nation. People who work on right principles are unrecognized and considered to be foolish in the modern society. Corruption in India is a result of the connection between bureaucrats, politicians and criminals. Earlier, bribes were paid for getting wrong things done, but now bribe is paid for getting right things done at right time. Further, corruption has become something respectable in India, because respectable people are involved in it. Social corruption like less weighing of products, adulteration in edible items, and bribery of various kind have incessantly prevailed in the society.
In today’s scenario, if a person wants a government job he has to pay lakhs of rupees to the higher officials irrespective of satisfying all the eligibility criteria. In every office one has either to give money to the employee concerned or arrange for some sources to get work done. There is adulteration and duplicate weighing of products in food and civil supplies department by unscrupulous workers who cheat the consumers by playing with the health and lives of the people. In the assessment of property tax the officers charge money even if the house is built properly according to the Government rules and regulations.
Political corruption is worst in India. The major cause of concern is that corruption is weakening the political body and damaging the supreme importance of the law governing the society. Nowadays politics is only for criminals and criminals are meant to be in politics. Elections in many parts of the country have become associated with a host of criminal activities. Threatening voters to vote for a particular candidate or physically prevent voters from going in to the polling booth – especially weaker sections of the society like tribals, dalits and rural woman occurs frequently in several parts of the country. Recently, the Government increased the salary of the M.P.’s from Rs.16, 000 to Rs.50, 000, that is 300% increase to the existing salary. But many of them are unhappy with rise and want the Government to increase the salary to a much more extent. This clearly shows how the politicians are in constant thirst for monetary benefits and not caring about the welfare of the people. Tax evasion is one of the most popular forms of corruption. It is mostly practiced by Government officials and politicians who lead to the accumulation of black money which in turn spoils the moral of the people.

Major Factors Responsible For Corruption:

  1. The most important factor is the nature of the human being. People in general, have a great thirst for luxuries and comforts and as a result of which they get themselves involved in all unscrupulous activities that result in monetary or material benefits.
  2. Moral and spiritual values are not given utmost importance in educational system, which is highly responsible for the deterioration of the society.
  3. The salary paid to employees is very less and as a result of which they are forced to earn money by illegal ways.
  4. The punishments imposed on the criminals are inadequate.
    1. The political leaders have spoiled the society completely. They lead a luxurious life and do not even care about the society.
    2. People of India are not awakened and enlightened. They fear to raise their voice against anti-social elements prevailing in the society.

Measures To Control Corruption:

There are some specific measures to control increasing corruption.
  1. The Right to Information Act (RTI) gives one all the required information about the Government, such as what the Government is doing with our tax payments. Under this act, one has the right to ask the Government on any problem which one faces. There is a Public Information Officer (PIO) appointed in every Government department, who is responsible for collecting information wanted by the citizens and providing them with the relevant information on payment of a nominal fee to the PIO. If the PIO refuses to accept the application or if the applicant does not receive the required information on time then the applicant can make a complaint to the respective information commission, which has the power to impose a penalty up to Rs.25, 000 on the errant PIO.
  2. Another potent check on corruption is Central Vigilance Commission (CVC). It was setup by the Government to advise and guide Central Government agencies in the areas of vigilance. If there are any cases of corruption or any complaints thereof, then that can be reported to the CVC. CVC also shoulders the responsibility of creating more awareness among people regarding the consequences of giving and taking of bribes and corruption.
  3. Establishment of special courts for speedy justice can be a huge positive aspect. Much time should not elapse between the registration of a case and the delivery of judgment.
  4. Strong and stringent laws need to be enacted which gives no room for the guilty to escape.
  5. In many cases, the employees opt for corrupt means out of compulsion and not by choice. Some people are of the opinion that the wages paid are insufficient to feed their families. If they are paid better, they would not be forced to accept bribe.
The one thing that needs to be ensured is proper, impartial, and unbiased use of various anti-social regulations to take strong, deterrent, and timely legal action against the offenders, irrespective of their political influences or money power. Firm and strong steps are needed to curb the menace and an atmosphere has to created where the good, patriotic, intellectuals come forward to serve the country with pride, virtue, and honesty for the welfare of the people of India.




अमेरिकी राजनीति में बढ़ रहा है भारतीयों का दखल: कृष्णमूर्ति


अमेरिकी राजनीति में बढ़ रहा है भारतीयों का दखल: कृष्णमूर्ति



अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के सलाहकार रह चुके भारतीय मूल के डेमोक्रेट नेता राजा कृष्णमूर्ति ने कहा है कि अमेरिकी राजनीति में भारतीय समुदाय का दखल बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि भारतीयों का प्रतिनिधित्व और बढ़ना चाहिए।
38 साल के कृष्णमूर्ति अगले साल इलिनॉय से अमेरिकी कांग्रेस का चुनाव लड़ने वाले हैं। हाल ही में प्रांतीय परिषद की ओर से उनका नाम आगे किया गया है। उन्हें खुद के निर्वाचित होने की पूरी उम्मीद है।
प्राथमिक चुनाव 20 मार्च, 2012 को होगा। कृष्णमूर्ति का मुकाबला थाईलैंड मूल के टैमी डकवर्थ से होगा। हार्वर्ड लॉ स्कूल से पढ़ाई करने वाले कृष्णमूर्ति ने कहा कि इस वक्त अमेरिकी कांग्रेस में भारतीय मूल का कोई एक व्यक्ति नहीं है। मेरा मानना है कि अमेरिकी कांग्रेस में भारतीय मूल के अमेरिकी और एशिया मूल के लोगों को भी होना चाहिए, क्योंकि उनके पास आव्रजन और लघु कारोबारों के बारे में अगल तरह के विचार होते हैं। उन्होंने कहा कि एशिया और भारत के संदर्भ में अमेरिकी विदेश नीति पर भी विचार करना चाहिए। ऐसे में इन लोगों के विचार के लिए यहां उनका प्रतिनिधित्व भी होना महत्वपूर्ण है।

जागो हिन्दू जागो

मेलबर्न । हिंदू समुदाय ने उस ऑस्ट्रेलियाई नाटक का कड़ा विरोध किया है जिसमें भगवान गणेश को नाजी गुप्तचर सेवा की ओर से प्रताड़ित होते दिखाया गया है। हिंदू समुदाय ने इसका यह कहते हुए विरोध किया है कि भगवान को मंच पर हंसी का पात्र नहीं बनाया जाना चाहिए।
ऑस्ट्रेलिया के ‘ बैक टू बैक थिएटर ‘ के नाटक ‘ द गणेश वर्सेज द थर्ड राइक ‘ का मेलबर्न महोत्सव में 29 सितम्बर को वर्ल्ड प्रीमियर होने वाला है। अमेरिका के हिंदू कार्यकर्ता रंजन जेड ने कहा कि नाटक में अप्रासंगिक कल्पना प्रस्तुत की गई है। जैसे उसमें दिखाया गया है कि हिटलर की नाजी गुप्तचर सेवा भगवान गणेश को प्रताडि़त करती और उनसे पूछताछ करती है।
उन्होंने कहा, ‘ भगवान गणेश की मंदिरों और घरों में पूजा की जाती है। उन्हें नाटक के मंच पर उपहास का पात्र नहीं बनाया जा सकता। ‘
हालांकि थिएटर समूह के कार्यकारी निर्माता एलिस नैश ने कहा कि इसमें हिंदुओं के नाराज होने वाली कोई बात नहीं थी। उन्होंने कहा, ‘ निश्चित रूप से उनका उद्देश्य ऐसी कोई प्रस्तुति करना नहीं था जो किसी के लिए असम्मान का भाव पैदा करे। हमने इस बारे में सावधानीपूर्वक विचार किया था कि उन्हें मंच पर किस तरह से पेश किया जा रहा है और क्या कहा जा रहा है। ‘
हाल में सिडनी में आयोजित एक फैशन कार्यक्रम के दौरान पेश स्विमसूट पर मां लक्ष्मी की तस्वीर दिखाने का पूरे विश्व में विरोध हुआ था। बाद में ऑस्ट्रेलियाई स्विमसूट कंपनी को इसके लिए माफी मांगनी पड़ी थी।

जागो हिन्दू जागो

गुरुवार, 22 सितंबर 2011

आपने जो १०० रूपया का नोट दिया है उसमे ही कम हुआ है

मैं आज सुबह सबेरे मेरे बाइक में पेट्रोल डालने पेट्रोल पाम्प पहुंचा, तेल डालने वाले लड़के से कहा भाई १०० रूपया का तेल डाल दो और बातों बातों में उससे पूछा तुम्हारा पेट्रोल का क्वालिटी खारव है क्या दो दिन पहले १०० रूपया का तेल डाला था ज्यादा दूर कहीं गया भी नहीं तेल कैसे ख़तम हो गया जो आज डालना पड रहा है,या मेरे गाड़ी का माइलेज कम हो गया ? यह सुन कर वो लड़का मुस्कुराने लगा, उसकी मुस्कराहट देख कर मैं बोला क्यूँ भाई इसमें मुस्कुराने की बात क्या है ? तो उसने एक छोटा सा उत्तर दिया जो मेरे दिमाग में आया ही नहीं था लेकिन वो कम पढ़ा लिखा लड़के का दिमाग में था,उसने कहा बाबूजी न आपकी गाड़ी की माइलेज कम हुआ न तेल की क्वालिटी में कमी है, आपने जो १०० रूपया का नोट दिया है उसमे ही कम हुआ है. मेरा दिमाग चकरा गया उस  लड़के की बात सुन कर की इतनी सी साधारण ज्ञान मुझमे नहीं है. 
मैं सोचने लगा इसे मेरे ज्ञान की कमी कहूँ या पैसे की मूल्य की कमी जो हम लोगों को धीरे धीरे गरीब से और गरीबी की तरफ लिए जा रही है. जैसे कि  तम्बाखू या सिगरेट खाने वालों को या शराब पीने बालों को पता नहीं चलता कि वो मौत की तरफ धीरे धीरे बढ़ रहा है, वैसे ही पैसे की जो अवमूल्यन हो रहा है उसका भी पता नहीं चल पा रहा है कि वो कब घटा.हम सम्पूर्ण रूप से कंगाल होने के बाद ही पता चलता है की हम क्या थे और क्या हो गए.

‘छत्तीसगढ़ फतह’ के बाद स्वामी अग्निवेश जैसे पेशेवर मध्यस्तों का अगला निशाना बना है ओडिशा

बाजारवाद का एक कुत्सित लेकिन कामयाब फार्मूला यह है कि पहले ‘दर्द’ तैयार करो फ़िर उसकी दवा बेचने भी निकल पडो. बात चाहे चिकित्सा के क्षेत्र की हो या कंप्यूटर तकनीक का, पहले वायरस फैलाओ फ़िर एंटी वायरस का पैकेज खरीदने को मजबूर करो. नक्सल परिप्रेक्ष्य में लोगों का अपहरण किये जाने और फ़िर उनकी रिहाई के लिए उनके बिचौलियों द्वारा मोल-तोल किया जाने को भी इसी सन्दर्भ में देखे जाने की ज़रूरत है.
अपने पांच जवानों की रिहाई के बाद छत्तीसगढ़ अभी ज़रूर फौरी तौर पर कुछ राहत महसूस कर रहा हो लेकिन प्रदेश, देश और लोकतंत्र के लिए नक्सल मुक्ति की राहें अभी काफी लंबी है. इस लंबी दूरी को तय करने में, लोकतंत्र के परिंदे को निर्बाध उड़ने में अभी काफी तन्मयता से वक्त लगाने की दरकार कायम है. इस मामले में ‘छत्तीसगढ़ फतह’ के बाद स्वामी अग्निवेश जैसे पेशेवर मध्यस्तों का अगला निशाना बना है ओडिशा. जहां के मलकानगिरी के जिलाधिकारी आर. वी. कृष्णा के अगवा किये जाने के बाद अब वहां भी इनकी पूछ-परख बढ़ गयी है. विगत 25 जनवरी को नक्सलियों ने नारायणपुर से छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल (सीएएफ) के सदस्य रघुनंदन ध्रुव, रामाधार पटेल, टी.एक्का, रंजन दुबे एवं मणिशंकर को अगवा कर लिया था. काफी जद्दोजहद के बाद अंततः इन जवानों को वापस घर तक पहुचाने में राज्य शासन को सफलता मिली. पूरे अठारह दिन तक चले इस प्रकरण में जवानों के परिवार वाले किस स्थिति से गुजरे होंगे यह कल्पना की जा सकती है. खैर.
तो इस रिहाई के बाद जहां स्वामी अग्निवेश समेत सभी समर्थकों द्वारा नक्सलियों के ‘दरियादिली’ की जम कर तारीफ की गयी वही इस प्रायोजित मौके का लाभ उठाकर ऐसा प्रचारित किया गया कि नक्सली तो सहृदय हैं, शायद शासन ही उनकी कथित सहृदयता का लाभ नहीं उठा पा रहा है. आप कल्पना करें कि कोई व्यक्ति या संगठन अगर किसी का अपहरण कर ले और काफी दिनों के बाद उसे छोड़ भी दे तो क्या इससे वह सहृदय हो जाता है? क्या रिहा करने के बाद उसका अपराध खत्म हो जाता है. कोई सहृदय ज़मात क्या इस तरह लोगों के परिवार को सांसत में रखता है?
निश्चित ही जिनके भी प्रयासों से उन जवानों की रिहाई हुई हो वे सभी साधुवाद के पात्र हैं. लेकिन अगर मध्यस्थों तक पल-पल की खबर पहुच रही थी. काफी दूर रहते हुए भी अगर उनका संपर्क जीवंत था और एक लंबे जद्दोजहद के बाद अगर जवानों को छोड़ा गया और जैसा कि पुराना भी अनुभव रहा है उसके आधार पर अग्निवेश समेत सभी मध्यस्थों को पाक-साफ़ तो नहीं ठहराया जा सकता. रिहाई के बाद के कथित सद्भावनापूर्ण माहौल के अगले ही दिन जहां प्रदेश के दुसरे इलाके अम्बिकापुर में नक्सलियों द्वारा जमकर उत्पात मचा, मारपीट करते हुए दर्ज़नो मशीनों को आग लगा कर राख कर दिया गया वहीं इस इस अपहरण के प्रकरण के दौरान ही ओडिशा-झारखण्ड सीमा पर एक आत्मसमर्पित महिला नक्सली होमगार्ड की उसके तीन साल की बेटे ‘शिव’ समेत बेदर्दी से गला रेत कर क्रूरता पूर्वक ह्त्या कर दी. दोष उनका महज़ इतना कि उन्होंने नक्सली समूहों से आजिज आकार ‘लोकतंत्र’ का दामन थाम्ह लिया था. इन कथित सहृदय तत्वों का दिल कुछ साल पहले दंतेवाडा के एर्राबोर मे डेढ़ साल की बच्ची ‘ज्योति कुटट्टयम्’ को ज़िंदा जलाते हुए भी नहीं पसीजा था. इस तरह के वारदात की लंबी सूची रहते कोई पूर्वाग्रही ही नक्सलियों को सहृदय कह सकता है.
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नक्सलियों से संवाद के पक्षधर और उनके पैरोकार अग्निवेश जैसे लोग जब यह तर्क देते हैं कि जब हर तरह के आतंकी समूहों को बातचीत के टेबल तक लाया जा सकता है तो आखिर नक्सलियों को क्यू नहीं? तो उनसे यह दो टूक पूछे जाने की ज़रूरत है कि वे केवल यह बता दें कि आखिर नक्सलियों की मांग क्या है? आखिर उनका सीधा मकसद क्या है? आप जिस भी आतंकी समूह को देखें उन सभी का कुछ मकसद होता है. लेकिन लाख सर खपा देने के बावजूद आप इस सीधे सवाल का जबाब नहीं पा सकते हैं कि माओवादी क्यू गरीब आदिवासियों के बीच कहर बरपा रहे हैं? कुछ साल पहले छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक और नक्सली प्रवक्ता के बीच एक अखबार के माध्यम से लंबा विमर्श चला था. हर तरह की विद्वता के प्रदर्शन के बाद भी इस छोटे से सवालों का जबाब नहीं तलाशा गया कि छत्तीसगढ़ समेत देश के अन्य हिस्सों के नक्सल आंदोलन का आखिर लक्ष्य क्या है?
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जहां तक शासन का सवाल है तो ज़ाहिर है कि किसी भी राज्य के लिए अपने नागरिकों की प्राण रक्षा से बढ़ कोई प्राथमिकता नहीं हो सकता. उसके जीवन की रक्षा के निमित्त तात्कालिक या दीर्घकालिक जो भी निर्णय लेने पड़े वह स्वागतेय होना चाहिए. ज़रूरत पड़ने पर लचीला रुख अपनाना भी उसके लिए उचित है. लेकिन रिहाई होने के बाद इसे बातचीत के लिए उपयुक्त अवसर के रूप में देखना सरासर माओवादियों के बिछाये जाल में फंसना साबित होगा. मध्यस्थों के बातचीत पर जोर देने का मतलब भी यही समझा जाना चाहिए कि दबाव बनाने की रणनीति के तहत ही अपहरण के कारवाई को अंजाम दिया जाता है. ज़ाहिर है सरकार के चौतरफा दबाव के कारण नक्सली बस्तर के इलाकों में कमज़ोर पड़े हैं. विशेषज्ञ यह बेहतर जानते हैं और खासकर उनके नीतिगत दस्तावेजों मे भी यह दर्ज है कि जब भी वे कमज़ोर पड़ते हैं तो ये बातचीत या युद्धविराम की पेशकश, खुद को ताकतवर बनाने और ‘दुश्मन’ को असावधान करने के लिए करते हैं.
हालांकि एक लोकतान्त्रिक समाज में किसी भी स्तर पर बातचीत से किसी भी सरकार या संस्था को क्या आपत्ति हो सकती है? लेकिन रणनीति के तहत इस तरह का पेशकश करने वाले समूहों की गतिविधियों पर पैनी नज़र सतत बनाकर रखने, इनके जाल में किसी भी तरह से नहीं फंसने, सतत सावधान रहने की ज़रूरत तो है ही. क्रूरतम वारदातों को अंजाम देते हुए, गुरिल्ला वार को अपनी सबसे बड़ी ताकत मानने वाले समूहों ने अगर सीधे तौर पर अपने ह्रदय परिवर्तन का सन्देश देना चाहा है तो आंख मूंद कर इनपर बिलकुल ही भरोसा नहीं किया जा सकता है.
आप कभी इनके दस्तावेजों पर गौर करेंगे तो कुछ अमूर्त सी चीज़ों से आपका साबका पडेगा. जैसे शोषण विरुद्ध समाज, जनताना सरकार की स्थापना, वर्ग संघर्ष, संसदीय प्रणाली के प्रति अनास्था आदि-आदि. तो अगर बात केवल छत्तीसगढ़ या किसी सूबाई सरकार की करें तो क्या यह किसी मुख्यमंत्री के अधिकार क्षेत्र में है कि राज्य में संसदीय प्रणाली रहे या नहीं इसपर बातचीत करे? यूं तो देश में लोकतंत्र के औचित्य पर विमर्श करना किसी के भी अधिकार क्षेत्र में नहीं है फ़िर भी चुकि केन्द्र ने भी माओवादी गतिविधियों को देश की आंतरिक सुरक्षा पर पैदा हुए सबसे बड़े चुनौती के रूप में देखा है तो किसी भी तरह की बातचीत या उसके लिए माहौल तैयार करने की पहल केन्द्र के द्वारा ही किये जाने की ज़रूरत है.
छत्तीसगढ़ के अपहरण प्रकरण के दौरान बातचीत के अलावा हालिया दोषी साबित हुए बिनायक प्रकरण पर भी बिना नाम लिए काफी बातें हुई. ऐसा सन्देश देने की बेजा कोशिश की गयी कि शायद सरकार उस मुकदमें पर भी फ़िर से विचार करेगी. तो इस संबंध में भी तथ्य यही है कि निचली अदालत से दोष सिद्ध होने पर न्यायलय के अलावा किसी भी संस्था खास कर राज्य को उसमें हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं रह जाता. सूचीबद्ध एवं दोषसिद्ध हुए आरोपों पर फैसला करने का अधिकार केवल ऊपरी अदालत का ही रह जाता है जिसने इस मामले में देश के बड़े वकीलों द्वारा बचाव मे रखे गए पक्ष के बावजूद भी फिलहाल ज़मानत देना मुनासिब नहीं समझा है. तथ्य तो यह है कि अभियोजन पक्ष द्वारा चाहकर किसी मामले को वापस नहीं लिया जा सकता. यह तथ्य हाल ही में ‘आरुषी मामले’ में पुनः साबित हुआ है जब सीबीआई द्वारा पेश ‘क्लोजर रिपोर्ट’ भी न्यायालय ने मानने से सीधा इनकार करते हुए मुकदमें को चलाये रखने का आदेश दिया है.
तो उपरोक्त तथ्यों के आलोक में यह संदेह पैदा होने के तमाम कारण है कि हाल में कुछ कानूनी और ज़मीनी मात खाने के बाद नक्सली समूह और उनको वैचारिक आधार प्रदान करने वाले तत्वों द्वारा इस तरह की कारवाई हर स्तर पर बेजा दबाव बनाने की रणनीति के तहत ही की जा रही है. बात चाहे अपहरण कांड का हो या सारी दुनिया में देश की न्याय प्रणाली को ही कठघरे मे खडा करने की. हर स्तर पर छुपे हुए नक्सली जी-जान से आदिवासी क्षेत्रों को शतरंज की बिसात बना शह और मात का खेल जारी रखे हुए हैं. लेकिन दृढ इच्छा शक्ति के साथ हर तरह के दबाव से मुक्त होकर शासन अगर न्यायिक से लेकर ज़मीनी स्तर तक अपने सभी प्रयासों को कायम रखे तब ही निकट भविष्य में इस समस्या से पार पाया जा सकता है.
प्रदेश के मुख्यमंत्री के लिए यह सबसे बड़े फैसले की घड़ी है. नियति ने उनके समक्ष स्थायी शान्ति और सौहार्द कायम रखने की विषद जिम्मेदारी उपस्थित किया है. हर तरह के बेज़ा दबावों से मुक्त होकर, सभी संबंधित एजेंसियों को अपना काम सही तरीके से करने देकर ही देश इस भयंकर समस्या से पार पा कर इतिहास रच सकता है. देश यह समझ रहा है कि यहां ‘लोकतंत्र’ ही सबसे बड़ा मानवाधिकार है और केवल इसी तंत्र में अन्य तमाम मानव अधिकारों के रक्षा की जिम्मेदारी और ताकत भी निहित है.
— पंकज झा

छत्तीसगढ़: नक्सलियों की रईसी का राज खुला, उद्योगपतियों और ठेकेदारों के गठजोड़

बस्तर में नक्सलियों के साथ उद्योगपतियों और ठेकेदारों के गठजोड़ और जबरिया वसूली के माओवादियों का व्यापक तंत्र पहली बार बेपर्दा हुआ है. और विडंबना यह कि यह काम नक्सल पीड़ित बस्तर इलाके में खुफिया एजेंसियों ने नहीं, बल्कि दुनिया भर में बड़े-बड़ों की पोलपट्टी खोलने वाले विकीलिक्स ने किया.
इस वेबसाइट ने खुलासा किया था कि बस्तर की बैलाडीला खदानों से लौह अयस्क ले रही बहुराष्ट्रीय कंपनी एस्सार अपनी सुरक्षा के लिए नक्सलियों को बड़ी रकम दे रही है. इससे चौकस हुई पुलिस ने हफ्ते भर के भीतर एस्सार के एक स्थानीय ठेकेदार बी.के. लाला को दो नक्सल समर्थकों को पैसा देते हुए रंगे हाथों पकड़ लिया.
9 सितंबर की दोपहर दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय से 35 किमी दूर पालनार के साप्ताहिक बाजार में बाजार पहुंचा लाला नक्सल समर्थक लिंगाराम कोड़ोपी को 15 लाख रु. से भरा बैग थमा रहा था कि पुलिस ने उन्हें दबोच लिया. लाला ने किरंदुल के स्टेट बैंक से 7 सितंबर को ही यह रकम निकाली थी. एक आदिवासी आश्रम की अधीक्षिका सोढ़ी सोनी भी लिंगाराम के साथ थी लेकिन वह भीड़ में गायब हो गई. लाला ने माना कि पैसे एस्सार के थे और उसे नक्सलियों तक पहुंचाना था.
दंतेवाड़ा के एसपी अंकित गर्ग ने इंडिया टुडे को बताया, ''ठेकेदार ने बयान दिया है कि एस्सार के कहने पर वह 15 लाख रु. पहुंचाने बाजार गया था. लिंगाराम और सोनी रकम दरभा डिविजनल कमेटी के नक्सली विनोद और रधु तक पहुंचाते जो पास के जंगल में छिपे थे.'' दोनों पर राष्ट्रद्रोह और जनसुरक्षा अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर लिया गया. पुलिस ने एस्सार की किरंदुल इकाई के महाप्रबंधक डी.वीसी.एस. वर्मा समेत दूसरे अधिकारियों से पूछताछ करने के बाद वर्मा के खिलाफ भी मामला दर्ज कर लिया.
मामला सामने आने के बाद मुंबई से कंपनी के वाइस प्रेसिडेंट कारपोरेट कम्युनिकेशंस बी. गणेश और डिप्टी जनरल मैनेजर रबिन घोष 14 सितंबर को रायपुर पहुंचे. इंडिया टुडे से बातचीत में गणेश ने माना कि लाला उनकी कंपनी में ठेकेदारी करता है मगर कंपनी के नक्सलियों को रु. देने के आरोप को उन्होंने निराधार करार दिया. गणेश कहते हैं, ''एस्सार नियम-कायदों से चलने वाली कंपनी है. वह ऐसे काम में भरोसा नहीं रखती.''
एस्सार राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी) की बैलाडीला खदानों से 1995-96 से लौह अयस्क ले रही है. लौह अयस्क की खुदाई के बाद इसकी धुलाई से निकलने वाली लौह चूर्ण की गाद इलाके के पर्यावरण के लिए बड़ी समस्या बन रही थी. एस्सार ने लौह चूर्ण, जिसे ब्लू डस्ट कहा जाता है, को लेने के लिए एनएमडीसी से लंबी अवधि का करार कर लिया. ब्लू डस्ट को पानी के दबाव के जरिए भेजने के लिए कंपनी ने किरंदुल से ओडीशा होते हुए आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम तक 267 किमी लंबी पाइपलाइन बिछाई है.
बस्तर में इस पाइपलाइन की लंबाई करीब 90 किमी है. यह पाइप लाइन माओवादियों के प्रभाव वाले क्षेत्र से गुजरती है और 2005 में इसका बेधड़क समय सीमा में बिछ जाना भी चर्चा का विषय रहा है. पिछले चार साल में नक्सलियों ने एस्सार की पाइप लाइन में तोड़फोड़ कर करोड़ों रु. की चपत लगाई थी. धुर नक्सली इलाका होने की वजह से दो-दो बार टेंडर निकालने के बाद भी कोई ठेकेदार काम करने के लिए तैयार नहीं हुआ. इसके बाद लाला ने ठेका लिया और बिना किसी बाधा के काम पूरा कर लिया. तभी पुलिस को उस पर शक हुआ था.
गौरतलब है कि माओवादियों के बंद के दौरान जब सड़क और रव्ल यातायात ठप हो जाता है, एस्सार पाइप लाइन का काम निर्बाध चलता रहा. दंतेवाड़ा के विधायक भीमा मंडावी, जो इस मामले के काफी पहले से ही एस्सार की माओवादियों से सांठगांठ का आरोप लगा चुके हैं, कहते हैं, ''कंपनी के पूरे क्रियाकलापों की जांच होनी चाहिए.''
लाला और लिंगराम ने इस मामले में कुछ प्रभावशाली लोगों के नाम बताए हैं. लिंगाराम को पिछले साल पुलिस ने नक्सलियों का समर्थक होने के आरोप में गिरफ्तार किया था और बिलासपुर हाईकोर्ट के दखल के बाद उसकी रिहाई हुई थी.
दंतेवाड़ा में कांग्रेस नेता अवधेश गौतम के घर हुए नक्सली हमले में लिंगाराम का नाम आया तो स्वामी अग्निवेश और सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण ने उसे निर्दोष बताते हुए पुलिस पर उसे प्रताड़ित करने का आरोप लगाया था. इस बार भी प्रशांत भूषण और अरुंधति राय उसे पत्रकार निरूपित कर बेकसूर बता रहे हैं. हालांकि दंतेवाड़ा के एसपी कहते हैं कि लिंगाराम ने शुरूआती पूछताछ में अग्निवेश का नाम लिया है.
पुलिस महानिदेशक अनिल नवानी का कहना है, ''एसपी जांच कर रहे हैं, जो भी तथ्य आएंगे, उस हिसाब से कार्रवाई की जाएगी.'' प्रमुख सचिव, गृह, एन.के. असवाल मानते हैं, ''मामला गंभीर है और दोषी कोई भी हो, उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.'' दरअसल, इस मामले ने नक्सलियों की बड़े पैमाने पर जबरिया वसूली को बेपर्दा कर दिया है. पुलिस को माओवादियों की वसूली के कई अहम सुराग हाथ लगे हैं.
नक्सली कई तरह से वसूली करते हैं. मसलन, वे अपने संगठन को राजनैतिक दल बताकर बड़े स्तर पर चंदा लेते हैं; इलाके में काम करने वाले ठेकेदारों से कमीशन लेते हैं, बिना कमीशन दिए कोई ठेकेदार काम शुरू नहीं कर सकता, यहां तक कि ठेका या सप्लाई का टेंडर भरने से पहले भी नक्सलियों से हरी झंडी लेनी पड़ती है.
जनप्रतिनिधियों को भी राजनीति करने के लिए पैसे देने पड़ते हैं. बस्तर में 12 विधानसभा क्षेत्र हैं. इनमें से 10 इलाके ऐसे हैं, जहां नक्सलियों के इशारे के बिना पत्ता भी नहीं हिलता. नक्सली इलाके में किसी भी तरह की कमाई में हिस्सा लेते हैं, समर्थक लोगों से दान वसूलते हैं, अपने लड़ाकों के मासिक मेहनताने में से एक दिन की रकम संगठन में योगदान के नाम पर लेते हैं और अपने संपूर्ण प्रभुत्व वाले इलाकों से सरकार की तरह टैक्स वसूलते हैं.
बस्तर में पदस्थ रहे एक पुलिस महानिरीक्षक की मानें तो रकम जुटाने का नक्सलियों का तगड़ा नेटवर्क है. छत्तीसगढ़, ओडीशा, झारखंड और बिहार में सर्वाधिक वसूली होती है. इनमें छत्तीसगढ़ सबसे ऊपर है. पहले आंध्रप्रदेश में सबसे अधिक वसूली होती थी. मगर वहां से नक्सलियों के पैर उखड़ गए हैं. अंदाज है कि नक्सली छत्तीसगढ़ से हर साल 300 करोड़ रु. से अधिक की वसूली करते हैं. मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने नक्सलियों पर तेंदूपत्ता ठेकेदारों से ही 60 करोड़ रु. उगाही करने के आरोप लगाए थे.
बस्तर के अंदरूनी इलाकों में, जहां पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों के जवान नहीं जा पाते, वहां से हर साल बिना किसी बाधा के तेंदूपत्ता की तोड़ाई हो जाती है. बताते हैं, एक-एक ठेकेदार से नक्सली 5-6 लाख रु. वसूलते हैं. बस्तर से करोड़ों रु. की वनोपज यूं ही बाजार में नहीं पहुंच जाती है. लकड़ी ठेकेदार, वन विभाग के अधिकारी, एनजीओ सभी को करार के हिसाब से नक्सलियों को महीने या साल में सिक्यूरिटी मनी देनी पड़ती है.
अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक, नक्सल ऑपरेशन रामनिवास कहते हैं, ''नक्सलियों की बड़े पैमाने पर उगाही की खबर पुलिस को है. उन्होंने कहां से, कितनी राशि वसूली है, इसकी जानकारी लेने की कोशिश की जा रही है.'' खुफिया अधिकारियों की मानें तो नक्सलियों को जनप्रतिनिधियों से भी हर साल करोड़ों रु. मिलते हैं. बस्तर की 90 फीसदी ग्राम पंचायतें नक्सल इलाके में हैं. विकास कार्यो के लिए पंचायतों में हर साल लाखों रु. आते हैं. पुलिस को मालूम है कि नक्सली जिसे चाहते हैं, वही ग्राम पंचायत का प्रमुख बनता है.
यही नहीं, बस्तर में मलाईदार पदों पर तैनात अधिकारियों को भी नक्सलियों को कमीशन देना पड़ता है. कांकव्र में पदस्थ पीडब्लूडी के एक इंजीनियर इस मामले में पकड़े भी जा चुके हैं. कांकव्र में काम कर चुके एक अधिकारी बताते हैं, ''नक्सलियों को हिस्सा पहुंचाने के बाद काम करने की पूरी आजादी मिल जाती है. बस्तर के अंदरूनी इलाके में चल रही योजनाओं के भौतिक सत्यापन का सवाल ही नहीं उठता. सो, कागजों में करोड़ों रु. के काम हो जाते हैं.'' यही वजह है, पुलिस को छोड़, बस्तर में पदस्थ दीगर विभाग के अधिकांश अधिकारी वहां से लौटना नहीं चाहते.
नक्सली गांजे की तस्करी के साथ ही बड़े पैमाने पर बस्तर में अफीम की खेती भी कर रहे हैं. दंतेवाड़ा, बीजापुर और नारायणपुर का दूरस्थ और पहुंचविहीन इलाका उनके लिए मुफीद साबित हो रहा है.
दंतेवाड़ा के तत्कालीन डीआइजी एस.आर.पी. कल्लूरी ने पिछले साल बीजापुर में नक्सलियों की अफीम की खेती पकड़ी थी. कल्लूरी कहते हैं, ''गांजा और अफीम की खेती से भी नक्सली खासा धन जमा कर लेते हैं.'' अलग-अलग खुफिया रिपोर्टों से खुलासा हुआ है कि नक्सल प्रभावित पांच राज्‍यों में नक्सली 1443 हेक्टेयर जमीन पर अफीम की खेती कर रहे हैं. दंतेवाड़ा में तैनात रहे एक पुलिस अधीक्षक को नक्सलियों की एक खुफिया रिपोर्ट हाथ लगी थी, जिसमें इस बात का जिक्र था कि वसूली की पूरी जानकारी केंद्रीय कमान को देनी पड़ती है.
लेवी का आधा से अधिक हिस्सा मिलिट्री कमांड को जाता है. उससे हथियार खरीदे जाते हैं. सुरक्षा बलों का कहना है कि 2007 में नक्सलियों ने 17.5 करोड़ रुपए खर्च कर एके-47 और राकेट लांचर खरीदे थे. इसी तरह दिसंबर 2008 में 200 एके-47 राइफलें खरीदीं. पुलिस कहती है कि एस्सार मामले में कुछ और भी लोगों के नाम सामने आ रहे हैं, जिनके खिलाफ पुख्ता सबूत जुटाकर जल्द कार्रवाई की जाएगी. छत्तीसगढ़ के लोगों को उसका इंतजार है.
हर साल 300 करोड़ रु. की वसूली 
बस्तर के एक पूर्व पुलिस महानिरीक्षक की मानें तो यहां पर नक्सलियों का फंडिंग का तगड़ा नेटवर्क है. 
*छत्तीसगढ़, ओडीशा, झारखंड और बिहार में वसूली, सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़ में. खुद को राजनैतिक दल बताकर मोटा चंदा लेते हैं नक्सली. 
*बस्तर में, तेंदूपत्ता के ठेकेदारों से 5-6 लाख रु. वसूलते हैं. लकड़ी ठेकेदारों, वन अधिकारी आदि को भी सिक्यूरिटी मनी या कमीशन देना होता है. ठेका या सप्लाई टेंडर भरने से पहले ठेकेदारों को नक्सलियों से इजाजत लेनी होती है. 
*मलाईदार पदों पर तैनात अधिकारियों को भी कमीशन देना पड़ता है. कांकेर में पदस्थ पीडब्लूडी के एक इंजीनियर इस मामले में पकड़े जा चुके हैं. 
*जनप्रतिनिधियों से भी हर साल करोड़ों रु. लिए जाते हैं. बस्तर के 12 विधानसभा क्षेत्रों में से 10 इलाकों में नक्सलियों के इशारे के बिना पत्ता भी नहीं हिलता. 
*जिन इलाके में नक्सलियों का प्रभुत्व है, वहां वे सरकार की तरह टैक्स वसूलते हैं. इलाके से गुजरने वाली गाड़ियों से भी टैक्स लेते हैं. 
*पुलिस का अनुमान है कि नक्सली छत्तीसगढ़ से हर साल 300 करोड़ रु. तक की वसूली करते हैं, इस लिहाज से पिछले दस सालों में नक्सलियों ने 3,000 करोड़ रु. तक की वसूली कर ली है. -

मंगलवार, 20 सितंबर 2011

हाय रे धर्म निर्पेक्ष्यता के नमूना !!!!!!


गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के सदभावना मिशन के तहत जारी उपवास की समाप्ति पर आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित विभिन्न सम्प्रदायो के धर्म गुरुओं के बीच निकवर्ती गांव पिराना की दरगाह सं आये मौलाना सैयद इमाम शाही ने जब नरेन्द्र मोदी के सिर टोपी पहनानी चाही तो उसे मोदी ने नम्रता सहित इमाम शाही को वापस लौटा दी तथा उनके द्वारा लाये शॉल को आदर सहित ओढ़ लिया।

बस यहीं से  राजनीतिक गलियारों में सियासत की कहानी शुरू हो गई। इस हालात ने सूफी परम्परा व इस्लाम का अपमान तक कह डाला तो किसी ने इसे मोदी के असली चेहरा सामने आने की बात कह डाली। अभी तो ये कहानी शुरू हुई है जहां शाही इमाम की टोपी सियासत के बीच पूरी तरह से उलझती नजर अने लगी है। इस टोपी को हवा में और उछालने की कोशिश जारी रहेगी जहां मुद्दों से जुड़ी राजनीतिक परिस्थितियां गरमाई जा सके एवं समय आने पर इसे भुनाया जा सके। नरेन्द्र मोदी ने जाने में या अनजाने में इमाम की टोपी पहनने से इंकार कर फिलहाल इस तरह के परिवेश अपने विरुद्ध खड़ा तो कर ही लिया है जहां उनके शुभचिंतक मोदी में देश के भावी प्रधानमंत्री का सपना देखने लगे थे। आने वाले समय में इमाम की टोपी इस तरह के हालात को कौन सा रंग दे पायेगी यह तो भावी इतिहास के पन्नों में कैद होगा, परन्तु सफाई देने के वावयुद भी मोदी के मार्ग में रोड़े जरूर अटकेंगे जिसे इंकार नहीं किया जा सकता।
जब कि सदभावना मिशन उपवास उपरान्त नरेन्द्र मोदी ने सभी धर्मो के धर्मगुरूओं से निंबू पानी पीकर उपवास तोड़ा तथा इमाम की शॉल ओढ़कर सदभावना की मिशाल कायम करने की पूरी कोशिश की । पर इमाम की टोपी न पहनने के पीछे मोदी के मन में क्या भवना रही होगी , ये तो अच्छी तरह से मोदी ही जानते होंगे। शायद टोपी पहनने के बाद  ऊ. प्र. के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम की तरह इनपर भी मुल्ला होने का आरोप न लग जाय जो भविष्य में मोदी के भावी राजनीति को प्रभावित करे, ऐसा मन में कहीं भय हो। पर टोपी न पहनकर भी आरोप के घेरे से वे बच नहीं सके तथा इमाम को नराजगी का अवसर देकर विरोधियों को बोलने एवं लाभ उठाने का पूरा मौका दे डाला।
वैसे नरेन्द्र मोदी कुशल एवं प्रबुद्ध राजनीतिज्ञ है। जो आज अपने बलबूते पर दल के भीतर विरोधाभास होने के उपरान्त भी विकास के आधार पर गुजरात में एकछत्र राज कायम रखने में सफल हुए है। जिसके आधार पर देश के भावी प्रधानमंत्री के रुप में उनकी गणना होने लगी है। आज देश भर में मोदी के प्रशंसकों की संख्या में निरन्तर वृद्धि दिखाई दे रही है । इस तरह के लोग कभी ये नहीं चाहते कि विकास पुरुष के रूप में ख्याति पा चुके मोदी  इमाम की टोपी से उभरते प्रतिकूल परिवेश का शिकार हो। इस संदर्भ में बचाने की पूरी कोशिश भी जारी है। कुछ लोगों की राय यह भी है कि सदभावना मिशन के तहत मोदी को सीधे तौर पर इमाम की टोपी पहनने से इंकार नहीं करना चाहिए, बल्कि एक बार सिर पर टोपी रख आदर सहित अपने पास रख लेना चाहिए। कुछ लोगों की यह भी राय है कि मोदी भले टोपी नहीं पहनते, लौटाने के वजाय अपने पास ही रख लेते तो ज्यादा बेहतर होता। इस तरह की राय देने वालें भी कहीं न कहीं मोदी के शुभचिंतकों में शामिल हैं। जब तीर कमान से निकल चुका हो तो इस तरह की राय का कोई फायदा नही। जो हालात उभरेंगे, मोदी के भविष्य को तय करेंगे।
जब जब भी देश में इस तरह के हालात उभरे है, सियासती गलियारों में चर्चा का महौल गर्म रहा है। मुद्दों की राजनीति होती रही है। अब देश की जनता को तय करना है कि इस तरह के सियासती हवाओं को कौन सा रूख दें जो राष्ट्रहित में लाभकारी हो सकें एवं देश को कमजोर बनाने वाली ताकतों को नकाम साबित कर सकें।
-भरत मिश्र प्राची



नरेन्द्र मोदीजी ने मौलाना साब के हाथों से टोपी न पहनने से खुद को धर्मनिरपेक्ष्य कहलाने वाले छद्मधर्मनिरापेक्ष्य वादिओं को मौका मिलगया कहने को. ये अवसरवादी नेता अवसर खोजते रहते हैं कि कब मौका मिल जाये धर्मनिरपेक्ष्यता की प्रमाण देने को. टोपी पहनने से कोई धर्म निरपेक्ष्य नहीं बन जाता.कार्य शैली से खुद की धर्म निरपेक्ष्यता की प्रमाण मिलता है न कि टोपी पहेनने से.इन धर्म निरपेक्ष्य वादिओं से एक सवाल, क्या उनकी अपनी किसी कार्यक्रम में राम नाम लिखा हुआ या गायत्री मन्त्र लिखा हुआ शाल या तुलसी कि माला किसी मुल्ला या मौलवी साब के गले में डाल सकते हैं ? अगर ये छद्म धर्मनिरपेक्ष्य वादी असली बाप का बेटा है तो ये काम करके दिखाएँ तब मैं इनका जूता साफ़ करूँगा.    हाय रे धर्म निर्पेक्ष्यता के नमूना !!!!

सोमवार, 19 सितंबर 2011

Fight against corruption and crime: Indian National Congress Scams in India

Fight against corruption and crime: Indian National Congress Scams in India: Scams during Congress governance http://www.ekakizunj.com/Indian_National_Congress We will analyse the scams during tenure of various Con...

Scams during Congress governance

Scams during Congress governance

http://www.ekakizunj.com/Indian_National_Congress

We will analyse the scams during tenure of various Congress Prime ministers
Jawaharlal Nehru 1947–1964

* LIC scam

The LIC funds were used to buy fictitious shares thereby causing loss of 1.2 crores. The Finance Minister T. T. Krishnamachari, in his testimony tried to distance himself from the LIC decision, implying that it may have been taken by the Finance Secretary, but Justice Chagla held that the Minister is constitutionally responsible for the action taken by his secretary and he disown his actions. Eventually, Krishanamachari had to resign. The Nehru government suffered considerable loss of prestige in the incident. It turned out that Mundhra’s manipulations were not restricted to LIC. The income tax department had curiously withdrawn certain notices pending against him having entered into "some understanding" about the payment of arrears

* Jeep scam

The jeep scandal in 1948 that began independent India's tryst with corruption. V.K. Krishna Menon, the then Indian high commissioner to UK, ignored norms to sign a Rs 80 lakh contract for the purchase of army jeeps

* Mudgal case

H.G. Mudgal, the CONGRESS MP who was forced to resign from the Provisional Parliament on September 24, 1951, for tabling questions for a remuneration obtained from an association of business persons. Mudgal was almost expelled from Parliament after he was found guilty by a Parliament Committee.

* Malaviya sirajuddin Oil scam

Minister of Mines and Fuel, K.D. Malaviya in Nehru Cabinet charged for his dubious involvement in the 1956 Sirajuddin affair.

* Partap Singh Kairon

CONGRESS Chief Minister of Punjab from 1956 to 1964. While he is credited for much of the developments the state achieved, the controversy about his corrupt actions in promoting the economic interests of his sons, relatives and cohorts forced him to resign after being indicted by the S.R Das Commission.

Lal Bahadur Shastri 1964-1966

* Orissa CONGRESS Chief Minister Biju Patnaik [1965] was forced to resign after the charges of corruption against him were investigated by HR Khanna Commission. He was indicted for awarding government contract to his privately held companies Kalinga Tube.

Indira Gandhi 1966-1977

* Nagarwala financial scam in 1971

* Maruti Scandal, 1974

Well before the company was set up, former prime minister Indira Gandhi's name came up in the first Maruti scandal, where her son Sanjay Gandhi was favoured with a licence to make passenger cars.

* Kuo Oil deal scam, 1976

The Indian Oil Corporation signed a Rs 2.2-crore oil contract with a non-existent firm in Hong Kong and a kickback was given. The petroleum and chemicals minister was directed to make the purchase.
[edit] Indira Gandhi 1980-1984

* Antulay trust scam Congress CM Maharashtra, A.R. Antulay, was collecting bribe for granting licensed cement and industrial alcohol. He resigned following adverse court verdict.. Antulay had garnered Rs 30 crore from businesses dependent on state resources like cement and kept the money in a private trust.

* Lakhubhai Pathak cheating scam, 1983

England-based NRI pickle king Lakhubhai Pathak, alleged that ‘godman’ Chandraswami and K N Aggarwal alias Mamaji, cheated him of $100,000 in 1983, promising they would get him a paper pulp supply contract. He accused P V Narsimha Rao, then minister in the Congress government.

* Churhat lottery scam [ Congress minister – Arjun singh]

Rajiv Gandhi 1984-1989

* Westland helicopter scam, 1986

The Prime Minister Rajiv gandhi forced the public sector Pawan Hans Corporation to buy 21 helicopters from a British company that was shutting down. A series of technical faults and crashes followed. The helicopters were eventually discarded as junk and lined up at an unused airport in Mumbai.

* HDW Submarine, 1987

The German submarine maker was blacklisted after allegations that commissions worth Rs 420 crore had been paid .

* Bofors scam, 1987

Involvement of family friend of Sonia Gandhi Ottrovio Quattrochi and allegations of kickbacks received by Rajiv Gandhi

* Rs.2500 crore -Airbus A-320 deal with France involving kickback

In the 1984 Airbus A-320 deal congress collected money. The CBI filed FIR charging senior officials of Civil aviation Ministry and IA with corruption in hasty negotiation to purchases amounting to Rs.2,500 crore. The case not yet solved.

PV Narasimha Rao 1991-1996

* Harshad Mehta security scam, 1992

Harshad Mehta allegedly gave Narasimha Rao Rs 1 crore as bribe

* Gold Star Steel and Alloys controversy, 1992

* JMM bribery case, 1993

In July 1993, when Narasimha Rao’s government was facing a no-confidence motion, it was alleged that his representative offered big money to Jharkhand Mukti Morcha (JMM) members, and possibly a breakaway faction of the Janata Dal, to vote for him. In 2000, a special court convicted Rao and colleague, Buta Singh. The same Buta singh was made Bihar governor by MMS & Sonia Gandhi.

* Enron – Dabhol power project Maharashtra

Involved 1993-95 CONGRESS CM Sharad Pawar

* Sugar Import, 1994

As CONGRESS food minister, Kalpnath Rai presided over the import of sugar at a price higher than that of the market, causing a loss of Rs 650 crore to the exchequer. He resigned following the allegations.

* Urea scam, 1996

Advance payment of Rs.133 crore to a little known Turkish firm, Korsan Ltd., for import of urea which was never delivered.

* Congress minister Sukhram in 1996

Rs. 3.6 crores in cash concealed in bags and suitcases from his official residence. The cash was allegedly collected by him committing irregularities in awarding a telecom contract . He was convicted and sentenced to three years’ rigorous imprisonment by a Delhi court in 2002.

Manmohan Singh 2004- present

* Telgi stamp scam [ Maharashtra – congress/NCP govt]

* NREGA Corruption

Its complicated, see for yourself at [1]

* Oil for Food United Nations scam, 2005

Both former Foreign Minister Mr Natwar Singh and Sonia Gandhi led Congress party were named as beneficiaries in Iraqi Oil-For-Food programme corruption in Volker report . Pending investigation Mr Natwar Singh has resigned. But who was responsible for money being paid to Congress? Obviously its president – Sonia Gandhi

* Madhu Koda corruption [ congress supported his govt in Jharkhand] [2009]

* Mhada flats in Mumbai

Congress government constructed posh flats using public money and gave away flats to its members flouting rules.

* 2G scam

* Commonwealth games scam

* Adarsh society scam

* Antrix Devas scam

मोदी बनाम राहुल : पटेल चले गांधी की राह — वेद प्रताप वैदिक

नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी, दोनों को अमेरिकी विशेषज्ञ एक ही डंडे से हांक रहे हैं| दोनों में जमीन-आसमान का अंतर है| दोनों को वे अभी से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर रहे हैं| मानो कि जैसे यह चुनाव अमेरिका के राष्ट्रपति का हो, न कि भारत के प्रधानमंत्री का| वे भूल तो नहीं गए कि भारत में प्रधानमंत्री का प्राय: चुनाव नहीं होता, नामजदगी होती है| संसद के चुनाव में जीती हुई पार्टी अपने नेता के नाम की घोषणा कर देती है| राष्ट्रपति उसे ही प्रधानमंत्री पद की शपथ दिला देता है|

प्रधानमंत्र्ी का चुनाव होता है लेकिन कभी-कभी, जैसा कि इंदिरा गांधी और मोरारजी देसाई के बीच हुआ था या विश्वनाथप्रताप सिंह और चंद्रशेखर के बीच होना था| वह भी पार्टी का अंदरूनी मामला होता है| अटलबिहारी वाजपेयी या मनमोहन सिंह के खिलाफ उनकी संसदीय पार्टी में क्या कोई उम्मीदवार खड़ा हुआ था? जाहिर है कि कांग्रेस पार्टी में आज राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने की हिम्मत किसी में नहीं है| किसी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में चेयरमेन या उसके बेटे के खिलाफ मुंह खोलने की इज़ाजत किसी को होती है क्या? अभी आम चुनाव तो बहुत दूर हैं, यदि राहुल कल प्रधानमंत्री बनना चाहें तो उन्हें कौन रोक सकता है?

कांग्रेस-जैसी लौह-अनुशासनवाली पार्टी दुनिया में कोई नहीं है| उसके पास विनम्र और आज्ञाकारी नेताओं और कार्यकर्त्ताओं की जैसी फौज है, वैसी तो हिटलर और मुसोलिनी के पास भी नहीं थी| आज्ञापालन और समर्पण में कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता सोवियत संघ और चीन को भी मात करते हैं| इन दोनों देशों की कम्युनिस्ट पार्टियों में भी सत्तारूढ़ गिरोहों के विरूद्घ समय-समय पर प्रश्न-चिन्ह लगते रहे और बगावतें होती रहीं लेकिन कांग्रेस में ऐसा तभी होता है, जब नेता धराशायी हो जाए, जैसे कि 1977 में हुआ था| इटली, जर्मनी, सोवियत और चीन की इन पार्टियों में तानाशाही जरूर चली लेकिन मुसोलिनी, हिटलर, स्तालिन और माओ की ऐसी हिम्मत कभी नहीं हुई कि वे अपनी पत्नी, बेटी या बेटे को पार्टी पर थोप दें| इसीलिए यह प्रश्न निरर्थक है कि कांग्रेस का प्रधानमंत्र्ी का अगला उम्मीदवार कौन होगा ? कौन होगा, यह सबको पता है| हॉं, यह प्रश्न जरूर सार्थक है कि संसद के अगले चुनाव में कांग्रेस पार्टी जीत पाएगी या नहीं?

कांग्रेस की जो हालत आज है, यदि अगले दो-ढाई वर्ष वही बनी रही तो राहुल की उम्मीदवारी अपने आप खटाई में पड़ सकती है| पिछले छह माह में भारतीयों के दिलों पर राज करने के अनंत अवसर आए लेकिन राहुल ने एक के बाद एक सभी गवां दिए| अण्णा के अनशन तोड़ने के दिन राहुल ने संसद में जो लिखा हुआ भाषण पढ़ा, उसने उनकी रही-सही छवि को भी शीर्षासन करवा दिया| लोग समझ गए है कि राहुल नेता नहीं, सिर्फ अभिनेता हैं, वह भी कच्चे-पक्के! अब तक वे जो लोक-लुभावन करतब दिखाते रहे, वे दूसरों के इशारे पर की गई नौटंकियां भर थी| यह देश इतना बुद्घू नहीं है कि वह ऐसे लोगों के हाथ में अपनी लगाम थमा दे|  कांग्रेस और देश इस समय सचमुच एक प्रधानमंत्री की तलाश में हैं लेकिन राहुल ने अपने आचरण से सिद्घ कर दिया कि कांग्रेस और देश दोनों को ही फिलहाल मनमोहनसिंह को बर्दाश्त करना पड़ेगा| राहुल के उम्मीदवार बनने का सवाल तो तब उठेगा, जब कांग्रेस जीतेगी| जीती तो वह पिछले चुनाव में भी नहीं थी| केवल सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी| इस बार इस संभावना पर भी लगातार बादल छाते जा रहे हैं|

जहॉं तक नरेंद्र मोदी का सवाल है, वे किस्मत के धनी हैं| 2002 के गुजरात के रक्त-स्नान के बावजूद कोई मुख्यमंत्री इतने प्रचंड बहुमत से जीत सकता है, इसकी कल्पना स्वयं नरेंद्र मोदी को भी नहीं रही होगी| जिस गुजरात पर राजधर्म के उल्लंघन का आरोप स्वयं प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी लगा रहे हों ओर सारे देश के सेक्युलर तत्व मोदी की जान पर आए हुए हों, उस गुजरात ने बता दिया कि उसकी खिचड़ी अलग पकेगी| मोदी-विरोधी अभियान को गुजरात की जनता ने अभी तक छुआ भी नहीं है| गुजरात के मुसलमान भी अब इस अभियान में ज्यादा मुखर नहीं हैं, सकि्रय नहीं हैं| वे लगभग उसी लकीर पर चल रहे हैं, जिसके कारण मौलाना गुलाम मुहम्मद वस्तानवी को देवबंद से इस्तीफा देना पड़ा था| सिर्फ हिंदू सेक्यूलरवादी गड़े मुर्दे उखाड़ने पर तुले हुए हैं| कई बार उनकी भी पोल खुल चुकी है लेकिन ऐसा लगता है कि भारत के मीडिया में अभी भी उनका कुछ असर बाकी है|

यदि गुजरात की जनता पर उनका कुछ असर होता तो वह दूसरी बार मोदी को नहीं चुनती लेकिन 2002 के बाद मोदी ने कुछ अजूबा ही किया| मुसलमानों के नर-संहार के कारण मोदी के विरूद्घ जो लकीर गुजरात में खिंच गई थी, मोदी ने उस लकीर के मुकाबले एक इतनी बड़ी लकीर खींच दी कि वह सारे भारत में चमचमाने लगी| जो काम एक अर्थशास्त्री, पीएचडी प्रधानमंत्री नहीं कर सका, वह काम संघ के एक साधारण स्वयंसेवक ने कर दिखाया| वाम-दक्ष करनेवाले चड्डी-टोपी के स्वयंसेवक से क्या आशा की जा सकती थी? प्रधानमंत्री 9-10 प्रतिशत आर्थिक उन्नति के सपने देखते रहे और इस मुख्यमंत्री ने गुजरात को 11 प्रतिशत से भी आगे बढ़ा दिया| अब तक मोदी की ईमानदारी और निजी चरित्र् के बारे में वैसी ही प्रमाणिकता है, जैसे मनमोहन सिंह की है| यदि मोदी की लकीर सचमुच मनमोहनसिंह से ज्यादा लंबी नहीं होती तो अमिताभ बच्चन, मुकेश अंबानी, टाटा और दुनिया की कई प्रसिद्घ कंपनियों के कर्ता-धर्ता अहमदाबाद को अपना गंतव्य क्यों बनाते?

उच्चतम न्यायालय के निर्णय ने मोदी को बरी नहीं किया है लेकिन उनकी उस लंबी लकीर पर कई नए दीप-स्तंभ खड़े कर दिए हैं| निचली अदालत मोदी के बारे में क्या फैसला करेगी, कुछ पता नहीं लेकिन कोई भी फैसला मोदी की लकीर को अब छोटा नहीं कर पाएगी, क्योंकि लोकतंत्र् में अंतिम फैसला तो जनता ही करती है| राज्यपाल कमला बेनीवाल ने मोदी पर लोकायुक्त थोपकर अपनी और लोकायुक्त, दोनों की छवि गिराई| मोदी का कद बढ़ाया| मोदी ने तीन दिन के उपवास की घोषणा क्या की, वे अब सीधे जनता के अखाड़े में पहुंच गए हैं मोदी के इस काम से भाजपा के सजावटी नेताओं में तो हड़कंप मचेगा ही, बेचारे सेक्यूलरवादी भी पसोपेश में पड़ जाएंगें| वे इसे प्रायश्चित-उपवास बता रहे हैं| लेकिन सरदार पटेल बने मोदी को अब गांधी बनने की राह पर चलने से कौन रोक सकता है?

इसका अर्थ यह नहीं कि वे भाजपा के राहुल गांधी बन जाएंगें| भाजपा अभी भी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी नहीं बनी है| भाजपा में प्रधानमंत्र्ी पद के लगभग आधा दर्जन उम्मीदवार हैं| वे एक दम हतोत्साहित होनेवाले नहीं हैं| वे चाहेंगे कि गुजरात का जिन्न गुजरात की बोतल में ही बंद रहे लेकिन यह उपवास उस बोतल के ढक्कन को उड़ा देगा| सारे देश का ध्यान इस उपवास पर जाएगा| यह अगर प्रायश्चित भी समझा गया तो इसका फायदा नरेंद्र मोदी को ही मिलेगा| मोदी के उपवास के मुकाबले अब शंकरसिंह वाघेला उपवास करेंगे याने उपवास का उपहास करेंगे| ऐसा करके वे खुद को और कांग्रेस को भी उपहास का पात्र् बना लेंगे|

नरेंद्र मोदी हर अवसर का लाभ उठा रहे हैं और राहुल गांधी हर अवसर खोते जा रहे हैं| दोनों की तुलना कैसे हो सकती है? यदि मोदी गैर-भाजपा नेताओं को स्वीकार्य नहीं हैं याने गुजरात के बाहर वोटखेंचू नहीं हैं तो राहुल गांधी या सोनिया गांधी कौनसे वोटखेंचू हैं? एक विश्लेषक ने आंकड़ों के आधार पर सिद्घ किया था कि पिछले चुनाव में मॉं-बेटे जहां-जहां गए, वहां-वहां उद्वार कम, बंटाधार ज्यादा हुआ| इसके अलावा 10 साल की हुकूमत के अनुभव और नौटंकियों में क्या कोई अंतर नहीं है? प्रधानमंत्री के उम्मीदवार तो दोनों बन सकते हैं लेकिन असली सवाल यह है कि वास्तव में बनेगा कौन और जो बनेगा, वह उस पद के योग्य भी होगा या नहीं ?

रविवार, 18 सितंबर 2011

उधार की औकात पर लोकतंत्र से लड़ाई, कुल मिलाकर दो बार - निरंजन परिहार


कुल मिलाकर दो बार। पहली बार एक लाख बहत्तर हजार डॉलर। और दूसरी बार एक लाख सत्तानवे हजार डॉलर। दोनों को जोड़कर देखें तो कुल मिलाकर तीन लाख उनहत्तर हजार डॉलर। एक डॉलर यानी आज की तारीख में हमारे हिंदुस्तान के 46 रुपए। 3 लाख 69 हजार डॉलर को भारतीय मुद्रा में आज के हिसाब से तब्दील करके देखें तो कुल एक करोड़ 69 लाख 74 हजार रुपए। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को चुनौती देनेवाले आंदोलन के बाद, आपकी जानकारी के लिए, कम से कम अब तो यह बताना जरूरी हो गया है कि ईमानदारी की प्रतिमा और आंदोलन के प्रज्ञापुरुष के रूप में अचानक उभर कर सामने आए अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया को ये करीब पौने चार लाख डॉलर तो अमरीका से ही सहायता के रूप में हासिल हुए हैं।
यह तो हुई अधिकारिक रूप से विदेशी सहायता की बात। पता नहीं, कहां कहां से कितना क्या क्या अनधिकृत रूप से मिला भी या नहीं मिला, यह अपन नहीं जानते। मगर इतना जरूर जानते हैं कि हमारे देश की बहुत सारी सच में सामाजिक काम करनेवाली संस्थाओं को भी अपने ही देश में सहायता जुटाने में हजार किस्म की तकलीफें आती हैं। पर, ये दोनों पट्ठे ठेट अमरीका से भी इतना सारा माल निकाल ले आते हैं, यह अपने आप में बहुत बड़ी बात आपको भी जरूर लगती होगी। मामला आईने की तरह साफ है कि इन दोनों को वे सारे रास्ते पता है कि कहां से घुसकर क्या क्या करके कितना माल बटोरा जा सकता है।

पौने चार लाख डॉलर कोई छोटी रकम नहीं होती। हमारे देश में करोड़ों लोग ऐसे हैं, जिनको अगर आप एक करोड़ का आंकड़ा लिखने को कहेंगे, तो उनको बहुत दिक्कत आएंगी। लिखने के पहले कई कई बार उंगलियों के पोर पर इकाई दहाई सैकड़ा हजार की गिनती करेंगे। फिर कहीं जाकर लिख पाएंगे। और इस सवाल का जवाब तो आप और हम भी एक झटके में शायद ही दे पाएं कि एक करोड़ में कितने शून्य लगते हैं। इससे भी आगे जाकर कुछ ज्यादा ही सुनना हो तो जरा यह सत्य भी सुन लीजिए कि हमारे देश की कुल एक सौ पच्चीस करोड़ प्रजा में से एक सौ चौबीस करोड़ पचास लाख से भी ज्यादा लोग ऐसे हैं, जिनने एक साथ इतने सारे रुपए इस जनम में तो कमसे कम कभी नहीं देखे होंगे। लेकिन केजरीवाल और सिसोदिया इतने सारे रुपयों के मालिक होकर भी रेल्वे स्टेशनों के प्लेटफार्म पर सो कर आप और हम जैसों की बराबरी में खड़ा होने का स्वांग रचकर सभी को सहजता से स्तब्ध कर लेते हैं। इन दोनों की ‘कबीर’ नाम की एक संस्था है। बहुत सारे लोग तो शायद पहली बार ‘कबीर’ का नाम भी सुन रहे होंगे। वैसे, कुछ दिन पहले तक ‘कबीर’ को खैर, कोई जानता भी नहीं था। केजरीवाल और सिसोदिया की यह ‘कबीर’ हमारे देश के भूखे नंगों के कल्याण का स्वांग करती है और उसके ये दोनों कर्ताधर्ता अमरीका से सहायता ले आते हैं।
अमरीका दुनिया का सेठ है। और इतना तो आप भी समझते ही है कि हर कोई गरीब पर दया देख कर उसकी सहायता करता है, अमीर की नहीं। इसी से समझ जाइए कि सिसोदिया और केजरीवाल हमारे महान भारत का कौनसा चेहरा अमरीका के सामने पेश करते होंगे। फोर्ड फाउंडेशन के भारतीय प्रतिनिधि स्टीवेन सोलनिक ने भी कहा है कि  सिसोदिया और केजरीवाल के एनजीओ ‘कबीर’ को उनकी पहली सहयोग राशि 2005 में 1,72,000 डॉलर की थी। जबकि दूसरी बार 2008 में 1,97,000 डॉलर दिए गए। जिसकी आखिरी किस्त 2010 में जारी की गई थी। अपने कबीर तो एक महान फकीर थे। पर उस पहुंचे हुए फकीर ने नाम पर अपनी गरीबी मिटाने का कमाल सिसोदिया और केजरीवाल ही कर सकते थे, और किया भी खूब।

यह वही अमरीका जो हमारे देश की संस्थाओं को सहायता देता है, और पाकिस्तान को भी पैसे ठेलकर हमारे खिलाफ जंग के लिए रह रहकर भड़काता रहा है। इसी अमरीका की आर्थिक सहायता पाकर पाकिस्तान हमारे बहादुर और देशभक्त सैनिकों को अकसर गोलियों का निशाना भी बनाता रहा है। कोई आपके खिलाफ हमले करने के लिए आपके दुश्मन को गोला बारूद मुहैया कराए और दूसरी तरफ आपको भी रोटी के दो टुकड़े ड़ालकर जिंदा रखने की नौटंकी करती रहे, ऐसे किसी भी दोगले शख्स से आप कोई सहायता लेंगे, इसके लिए किसी भी सामान्य आदमी का भी दिल कभी गवाही नहीं देगा, यह आप भी जानते हैं। लेकिन केजरीवाल और सिसोदिया यह सब जानने के बावजूद अमरीका के सामने रोनी सूरत बनाकर अपने कटोरे में भीख भर ले आते हैं, यह गर्व करने लायक बात है या शर्म से डूब मरने लायक, यह आप तय कीजिए।

और जरा इस सत्य को भी जान लीजिए। गांधी और जेपी की बराबरी में पिछले दिनों अचानक प्रयासपूर्वक और योजनाबद्ध तरीके से खड़े कर दिए गए अन्ना हजारे की तेरह दिन की भूख के सहारे देश के आकाश में अचानक चमत्कार की तरह प्रकट हुए इन दो सितारों की चमक अमरीका से आई दया की भीख का कमाल है, यह किसी को पता नहीं था। सिर्फ सरकार को चुनौती दी होती तो समझ में भी आता। लेकिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और उसकी समूची लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर ही सवाल खड़ा कर देने वाले इन सितारों की सच्चाई जैसे जैसे सामने आ रही है, देश के लाखों युवाओं का उन पर से विश्वास उठता नजर आ रहा है। इस विश्वास भंग की अवस्था की सबसे बड़ी असलियत यह है कि हमारे हिंदुस्तान में घर में किन्नर बिठाने की परंपरा नहीं है। किन्नरों की सबसे बड़ी कमजोरी यही होती है कि वे उधार की ताकत पर अपना तामझाम खड़ा करते हैं। क्योंकि उनकी अपनी कोई निजी ताकत नहीं होती।
केजरीवाल और सिसोदिया की जेब में धन भी अमरीका की उधारी का और आंदोलन में नेतृत्व करने के लिए अन्ना भी उधार के। अपना यह कहा किसी को बुरा लगा हो तो अपनी बला से। लेकिन बुरा लगाने से पहले अपनी एक विनम्र प्रार्थना यह भी है कि अन्ना को अपना जमूरा बनानेवाले इन दोनों मदारियों की इस असलियत पर भी आप जरा ईमानदारी से गौर फरमाइए कि अन्ना को धार पर लगाकर ही केजरीवाल और सिसोदिया ने खुद को समूचे देश में हीरो बनाने की कोशिश नहीं की। यह बात भी जिस किसी को गलत लगे, वे जरा इस तर्कपूर्ण तथ्य और सनसनाते सत्य पर भी जरूर ध्यान दें कि अन्ना का आंदोलन नहीं होता, तो इस देश में कितने लोग थे, जो इन दोनों मदारियों को जानते थे। और दिल पर हाथ रखकर जरा खुद से भी पूछ लीजिए कि क्या आप भी इन दोनों को इतना ज्यादा जानते थे ?

निरंजन परिहार (लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)