प्रत्येक की ललक माँ की गोद में जा आनन्द से बैठ किलकने की है। माँ समर्थवान और सुख देने वाली हो तो फिर इस ललक की तृप्ति को कहना ही क्या। भारत माँ केवल भारत के लाडले सुतों को ही प्यार नहीं लुटाती वह तो विश्व को प्यार में बाँध लेती है। ऐसी प्यार लूटाने वाली माँ को पाकर कौन धन्य नहीं होगा। मनुष्य की तो बात छोड़े देवता भी इस माँ की गोद में बैठने के लिए बेचैन मिलते हैं। एक क्षण भी इस धरती पर बिता दिया तो बर्षों का पुण्य मिल जाता है। नर से नारायण बनाने वाली यह धरती भारत है।
इसकी वन्दना हमें सुख देती है। इसकी अर्चना हमें शक्ति देती है। इसका पल पल स्मरण हमें एक शक्ति में बाँध विराट रूप में खडा रखता है। " माता भूमि पुत्रॊहम् पृथिव्या ' कह इसीलिए हम सदैव से स्मरण करते आए हैं, पूजते आए हैं। इसकी प्रशंसा में गीत गाए हैं आचरण में इसे समाए हैं। जब भूले तो गहरे गर्त में खो गए। माँ को बिस्मरण कर देना पुत्र को कब फलेगा ! दासता के कालखण्ड में हमारी दुर्गति हुई, इसीलिए कि हम माँ को भूल बैठे। असहनीय पीड़ा से, जन-जन की बेदना से,आतंक और अत्याचार के कोड़ों से बहे रचा के दर्द से, जो माँ के लिए पुकार उठी, वह"वन्दे मातरम" बन सामने आई। यह पुकार गीत नहीं संगीत बन गई। राष्ट्र आन्दोलन बन गई। फांसी के फंदे से लेकर सिने पर गोली तक, जिसने पुत्रों को साहस से डिगने न दिया, चूम लिया हँसते-हँसते फांसी का फंदा और बोले " वन्दे मातरम ", ली सिने पर गोली और पुकार उठे " वन्दे मातरम "
"वन्दे मातरम् " मन्त्र है और इसका स्तवन है, गान और "सुजलां शुफलां " शव्दों में बंधा गीत का रूप। अपने में समर्थ और पूर्ण है। आज भी इस मन्त्र की वही शक्ति है, जो इसके जन्म के समय थी। भारत की एकता और भारत की अखण्डता का एक मात्र सूत्र है " वन्दे मातरम् " भारत को विश्व शक्ति में बदल, विश्व को सुख, सम्पन्नता और शक्ति का रास्ता है "वन्दे मातरम" प्राण है हमारा और शक्ति है हमारी। इसके लिए बहा रक्त, इसकी शक्ति का प्रमाण है और आज भी मचलती आतुरता इसके आकर्षण का प्रभाव है।
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हम इसे गाएँ ही नहीं, स्वर - स्वर में समा लें । भारत निकल पड़े, इस गीत के स्वरों के साथ। धो डालें कलंक, जो इसे छांट कर हमने लगाया। प्रायश्चित कर डालें अपने अतीत के दुष्कर्मों का, जो हमने इसे भुलाया। राष्ट्र गान का सहज रूप बन, गाँव - गाँव -गली गली गूँज उठे और भारत अखण्ड बने। यह होगा, नियति है। " वन्दे मातरम "