शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

" वन्दे मातरम "

     

 प्रत्येक की ललक माँ की गोद में जा आनन्द से बैठ किलकने की है। माँ  समर्थवान और सुख देने वाली  हो तो फिर इस ललक की तृप्ति को कहना ही क्या। भारत माँ केवल भारत के लाडले सुतों को ही प्यार नहीं लुटाती वह तो विश्व को प्यार में बाँध लेती है।  ऐसी प्यार लूटाने वाली माँ को पाकर कौन धन्य नहीं होगा।  मनुष्य की तो बात छोड़े देवता भी इस माँ की गोद में बैठने के लिए बेचैन मिलते हैं।  एक क्षण भी इस धरती पर  बिता दिया तो बर्षों का पुण्य मिल जाता है। नर से नारायण बनाने वाली यह धरती भारत है।
   
       इसकी वन्दना हमें सुख देती है। इसकी अर्चना हमें शक्ति देती है। इसका पल पल स्मरण हमें एक शक्ति में बाँध विराट रूप में खडा रखता है।  " माता भूमि पुत्रॊहम् पृथिव्या ' कह इसीलिए हम सदैव से स्मरण करते आए हैं, पूजते आए हैं। इसकी प्रशंसा में गीत गाए हैं आचरण में इसे समाए हैं। जब भूले तो गहरे गर्त में खो गए। माँ को बिस्मरण कर देना पुत्र को कब फलेगा ! दासता के कालखण्ड में हमारी दुर्गति हुई, इसीलिए कि हम माँ को भूल बैठे।  असहनीय पीड़ा से, जन-जन की बेदना से,आतंक और  अत्याचार के कोड़ों से बहे रचा के दर्द से, जो माँ के लिए पुकार उठी, वह"वन्दे मातरम" बन सामने आई। यह पुकार गीत नहीं संगीत बन गई। राष्ट्र  आन्दोलन बन गई। फांसी के फंदे से लेकर सिने पर गोली तक, जिसने पुत्रों को साहस से डिगने न दिया, चूम लिया हँसते-हँसते फांसी का फंदा और बोले " वन्दे मातरम ", ली सिने पर गोली और पुकार उठे             " वन्दे मातरम "

          "वन्दे मातरम् "  मन्त्र   है और इसका  स्तवन है, गान और "सुजलां  शुफलां " शव्दों में बंधा गीत का रूप। अपने में समर्थ और पूर्ण है। आज भी इस मन्त्र की वही शक्ति है, जो इसके जन्म के समय थी। भारत की एकता और भारत की अखण्डता का एक मात्र  सूत्र है " वन्दे मातरम् " भारत को विश्व शक्ति में बदल, विश्व को सुख, सम्पन्नता और शक्ति का रास्ता है "वन्दे मातरम" प्राण है हमारा और शक्ति है हमारी। इसके लिए बहा रक्त, इसकी शक्ति का प्रमाण है और आज भी मचलती आतुरता इसके आकर्षण का प्रभाव है।   
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      हम इसे गाएँ ही नहीं, स्वर - स्वर में समा लें । भारत निकल पड़े, इस गीत के स्वरों के साथ।  धो डालें कलंक, जो इसे छांट कर हमने लगाया। प्रायश्चित कर डालें अपने अतीत के दुष्कर्मों का, जो हमने इसे  भुलाया। राष्ट्र गान का सहज रूप बन, गाँव - गाँव -गली गली गूँज उठे और भारत अखण्ड  बने।  यह होगा, नियति है।    " वन्दे मातरम "

गुरुवार, 22 अगस्त 2013

तुलनात्मक सामाजिक रचनाएं - दृष्टिकोण के अंतर

आज  की परिस्थिति मे  विचारो की समग्रता का अभाव कितना विनाशकारी हो सक्ता है यह  समझ्ना कठिन नही है .पश्चिम से प्रभावित होकर हम अपने निजी दर्शन को भूल गये . वास्तव मे आज पश्चिम के विचारक मार्गदर्शन के लिए भारत की  ओर देख रहे हैं और हम पश्चिम का अंधानुकरण करने के प्रयास में हैं .कैप्रा के सामान कई विचारको को लग रहा है कि " नक्षत्रों की तरह चलायमान वर्त्तमान व्यवस्था के रूप में  हम परावर्तन के बिंदु पर पहुँच गए हैं. वर्तमान संकट रोम की पुराणी राजतंत्री संस्कृति से आधुनिक युग में प्रवेश की संक्रमण अवस्था के कारण है ". इस मोड़ पर पश्चिम को सही दिशा दिखाने की क्षमता सनातन धर्म तथा उनके युगानुकुल आविष्कार के रूप में एकात्म मानव दर्शन में ही है . इस दर्शन को ठीक ढंग से समझ लिया तो राष्ट्र का सम्पूर्ण स्वरुप कैसे रहे, यह ध्यान में आ सकता है . 
इस दृष्टि से केवल संकेत के नाते कुछ प्रमुख बातें निम्न तालिका में बताई गई है अर्थात यह केवल दिशा-दर्शन है . किन्तु इसके आधार पर आगे की कल्पना कोई भी विचारक कर सकता है .   

                                  तुलनात्मक सामाजिक रचनाएं - दृष्टिकोण के अंतर 


पक्ष                                   पूंजीवाद                साम्यवादी                                              हिन्दू चिंतन 
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दर्शन                                भौतिकवाद            भौतिकवाद                                          एकात्ममानव दर्शन 
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मनुष्य का रूप                आर्थिक प्राणी         आर्थिक प्राणी                                     देह,मन,बुद्धि, आत्मा 
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लक्ष             व्यक्ति की भौतिक सम्पन्नता,   राज्य की भौतिक सम्पन्नता,   व्यक्ति का धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष
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नमूना          क्लव जीवन                               मशीनी जीवन                                       मानव शारीर 
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अनुशासन   व्यक्ति को उछ्रुन्खला की सीमा-  शासकीय अनुशासन,                     उच्छ्रुन्खलता रहित                                                          व                     तक छुट                               अनुशासन,                                       स्वतन्त्रता तथा वैचारिक                                        स्वतन्त्रता                                               से वैचारिक आबंधता                         आबद्धता रहित अनुशासन 
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संपत्ति का        अनियंत्रित                       कोई अधिकार नहीं                      आवश्यकता पर आधारित न्यूनतम    
अधिकार                                                                                                                    यावाद्भ्रियेत जठरं )   
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कार्य पद्धति         शोषण                         शासन द्वारा शनै शनै जव्ती                        यज्ञ,दान 
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प्रमुख भाव        व्यक्तिवाद                      राज्य सत्तावाद                                       अन्गांगीभाव
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प्रक्रिया            स्पर्धा की भावना                   जबरदस्ती                                               सहयोग 
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ढांचा                बहुदलीय जनतंत्र             एकदलीय तानाशाही                                     धर्मराज्य 
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श्रम के अधिक    मालिक                         राज्य                                                              समाज                   
मुल्य का 
मालिक कौन  
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रोजगार व्यवस्था    रिक्त स्थानानुसार       राज्य निर्देशित                                         प्रबृत्ति अनुसार  
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विचार प्रक्रिया         खंडात्मक                      खंडात्मक                                                समग्र  
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बुधवार, 21 अगस्त 2013

वेद क्या हैं?

















वेद मानव सभ्यता के लगभग सबसे पुराने लिखित दस्तावेज हैं! वेद ही हिन्दू धर्म के सर्वोच्च और सर्वोपरि धर्मग्रन्थ हैं!  सामान्य भाषा में वेद का अर्थ है "ज्ञान" ! वस्तुत: ज्ञान वह प्रकाश है जो मनुष्य-मन के अज्ञान-रूपी अन्धकार को नष्ट कर देता है ! वेदों को इतिहास का ऐसा स्रोत कहा गया है जो पोराणिक ज्ञान-विज्ञानं का अथाह भंडार है ! वेद शब्द संस्कृत के विद शब्द से निर्मित है अर्थात इस एक मात्र शब्द में ही सभी प्रकार का ज्ञान समाहित है ! प्राचीन भारतीय ऋषि जिन्हें मंत्रद्रिष्ट कहा गया है, उन्हें मंत्रो के गूढ़ रहस्यों को ज्ञान कर, समझ कर, मनन कर उनकी अनुभूति कर उस ज्ञान को जिन ग्रंथो में संकलित कर संसार के समक्ष प्रस्तुत किया वो प्राचीन ग्रन्थ "वेद" कहलाये ! एक ऐसी भी मान्यता है कि इनके मन्त्रों को परमेश्वर ने प्राचीन ऋषियों को अप्रत्यक्ष रूप से सुनाया था! इसलिए वेदों को श्रुति भी कहा जाता है । 
           इस जगत, इस जीवन एवं परमपिता परमेशवर; इन सभी का वास्तविक ज्ञान "वेद" है!


वेद क्या हैं?

            वेद भारतीय संस्कृति के वे ग्रन्थ हैं, जिनमे ज्योतिष, गणित, विज्ञानं, धर्म, ओषधि, प्रकृति, खगोल शास्त्र आदि लगभग सभी विषयों से सम्बंधित ज्ञान का भंडार भरा पड़ा है ! वेद हमारी भारतीय संस्कृति की रीढ़ हैं ! इनमे अनिष्ट से सम्बंधित उपाय तथा जो इच्छा हो उसके अनुसार उसे प्राप्त करने के उपाय संग्रहीत हैं ! लेकिन जिस प्रकार किसी भी कार्य में महनत लगती है, उसी प्रकार इन रत्न रूपी वेदों का श्रमपूर्वक अध्यन करके ही इनमे संकलित ज्ञान को मनुष्य प्राप्त कर सकता है !

वेद मंत्रो का संकलन और वेदों की संख्या 
            ऐसी मान्यता है की वेद प्रारंभ में एक ही था और उसे पढने के लिए सुविधानुसार चार भागो में विभग्त कर दिया गया ! ऐसा श्रीमदभागवत में उल्लेखित एक श्लोक द्वारा ही स्पष्ट होता है ! इन वेदों में हजारों मन्त्र और रचनाएँ हैं जो एक ही समय में संभवत: नहीं रची गयी होंगी और न ही एक ऋषि द्वारा ! इनकी रचना समय-समय पर ऋषियों द्वारा होती रही और वे एकत्रित होते गए !
           शतपथ ब्राह्मण के श्लोक के अनुसार अग्नि, वायु और सूर्य ने तपस्या की और ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद को प्राप्त किया !
प्रथम तीन वेदों को अग्नि, वायु और सूर्य से जोड़ा गया है ! इन तीनो नामों के ऋषियों से इनका सम्बन्ध बताया गया है, क्योंकि इसका कारण यह है की अग्नि उस अंधकार को समाप्त करती है जो अज्ञान का अँधेरा है ! इस कारण यह ज्ञान का प्रतीक मन गया है ! वायु प्राय: चलायमान है ! उसका कम चलना (बहना) है ! इसका तात्पर्य है की कर्म अथवा कार्य करते रहना ! इसलिए यह कर्म से सम्बंधित है ! सूर्य सबसे तेजयुक्त है जिसे सभी प्रणाम करते हैं ! नतमस्तक होकर उसे पूजते हैं ! इसलिए कहा गया है की वह पूजनीय अर्थात उपासना के योग्य है ! एक ग्रन्थ के अनुसार ब्रम्हाजी के चार मुखो से चारो वेदों की उत्पत्ति हुई !

१. ऋग्वेद 
ऋग्वेद सबसे पहला वेद है। इसमें धरती की भौगोलिक स्थिति, देवताओं के आवाहन के मंत्र हैं। इस वेद में 1028 ऋचाएँ (मंत्र) और 10 मंडल (अध्याय) हैं। ऋग्वेद की ऋचाओं में देवताओं की प्रार्थना, स्तुतियाँ और देवलोक में उनकी स्थिति का वर्णन है।
२. यजुर्वेद 
यजुर्वेद में यज्ञ की विधियाँ और यज्ञों में प्रयोग किए जाने वाले मंत्र हैं। यज्ञ के अलावा तत्वज्ञान का वर्णन है। इस वेद की दो शाखाएँ हैं शुक्ल और कृष्ण। 40 अध्यायों में 1975 मंत्र हैं।
३. सामवेद 
साम अर्थात रूपांतरण और संगीत। सौम्यता और उपासना। इस वेद में ऋग्वेद की ऋचाओं (मंत्रों) का संगीतमय रूप है। इसमें मूलत: संगीत की उपासना है। इसमें 1875 मंत्र हैं
४. अथर्ववेद 
इस वेद में रहस्यमय विद्याओं के मंत्र हैं, जैसे जादू, चमत्कार, आयुर्वेद आदि। यह वेद सबसे बड़ा है, इसमें 20 अध्यायों में 5687 मंत्र हैं।