बुधवार, 24 अप्रैल 2013



 पाकिस्तान में पाणिनि की जयंती हर साल मनाई जाती है । कारण क्या
जो भूभाग "पाकिस्तान " नाम से पहचाना जाता है, वहां पाणिनि का जन्म हुआ था । यदि  पाकिस्तानी लोग 
"पाणिनि हमारे श्रेष्ठ पूर्वजों में से एक है" ऐसा गर्व के साथ कहते हैं, तो फिर भारत के अपने " मुसलमान" बंधू भी पाणिनि,व्यास,वाल्मीकि,राम और कृष्ण सब अपने ही श्रेष्ठ पूर्वज है ऐसा अभिमान पूर्वक क्यूँ नहीं कहते ???   हिन्दुओं में भी ऐसे अनेक लोग हैं जो कि राम,कृष्ण,आदि को इश्वर का अवतार नहीं मानते । किन्तु वे भी उनको श्रेष्ठ पुरुष मानते हैं । इसीलिए मुसलमानों ने उनको "अवतारी पुरुष"नहीं माना तो भी कुछ बिगड़ता नहीं है । किन्तु क्या मुसलामानों ने उनको अपना  राष्ट्र-पुरुष भी नहीं  मानना चाहिए ? हमारे धर्म और तत्वज्ञान की शिक्षा के अनुसार हिन्दू और मुसलमान दोनों समान ही है । ईश्वरीय सत्य का साक्षात्कार केवल हिन्दू ही कर सकते है,ऐसा नहीं है । अपने-अपने धर्ममत के अनुसार आचरण करते हुए कोई भी साक्षात्कार प्राप्त कर सकता है । हम सबका भारतीयकरण करण होना चाहिए । 
हिन्दुओं और मुसलमानों ने परस्पर के त्योहारों में भाग क्यूँ नहीं लेना चाहिए ? समाज के सभी स्तरों के लोगों को अतीव उल्लास के वायुमंडल में एकत्रित लाने वाला होलिकोत्सव है । मानो,इस होलिकोत्सव में एकाध मुस्लिम बंधू के बदन पर किसी ने थोडा रंग उड़ाया तो क्या उतने से ही कुरान की सब आज्ञाओं  का  उल्लंघन हो जाता है ? इस बात की ओर उन्होंने एक सामाजिक व्यवहार इस नाते देखना चाहिए । आप मेरे ऊपर रंग डालिए,मैं आपके ऊपर रंग डालता हूँ । हमारे लोग तो कई वर्षों से मोहर्रम के सभी कार्यक्रमों तथा जुल्सों में सहभागी होते आए हैं । इतना ही नहीं,  अजमेर उर्स जैसे अन्य त्योहारों में भी मुसलमानों की बराबरी से हमारे लोग भी उत्साह में भाग लेते हैं । किन्तु यदि कल हमने कुछ मुस्लिम  बन्धुओ को हमारी सत्य-नारायण पूजा में भाग लेने के लिए निमंत्रण किया, तो क्या होगा ?
भारतीयकरण का मतलब सभी को हिन्दू बनाना नहीं है । हम सब इस भूमि की संतान है, यह सत्य हम सभी ने समझ लेना चाहिए और इस सत्य पर अविचल निष्ठा रखना चाहिए । हम सब एक ही मानव समूह के हैं,हम सबके पूर्वज एक ही थे और इस कारण हम सब की आकांक्षाएं भी एक ही है,  यह हमने समझ लेना चाहिए । यही भारतीयकरण का सही सही अर्थ है । 
भारतीयकरण का अर्थ यह नहीं है कि किसी ने अपनी पूजा-पद्धति का त्याग करना चाहिए । हिन्दू धर्म शास्त्र कभी ऐसा कहेगा भी नहीं । हमारी श्रद्धा है कि एक ही उपासना पद्धति सम्पूर्ण मानवजाती के लिए सुविधाजनक भी नहीं है ।  




"INTELLECTUAL" एक नयी जाती




हमारे देश में हजारों जातियां है | इन दिनों उनमें और एक नयी जाती की बृद्धि हुई है | यह नयी जाती है बुद्धिजीविओं ( INTELLECTUALS ) की | इन लोगों को बुद्धिजीवी (INTELLECTUAL) होने का प्रमाण पत्र किसने दिया, देश की सम्पूर्ण बौद्धिकता का एकाधिकार इन्हें किस प्रक्रिया से प्राप्त हुआ इसकी जानकारी किसीको नहीं है | किन्तु यह सच है कि इन बुद्धिजीविओं ( INTELLECTUAL ) ने यह मान लिया है कि देश में उपलब्ध बुद्धिमानी पर पूरी तरह से इनकी जाती का ही स्वामित्व और इस जाती के बाहर विद्वता का अकाल   व्याप्त है |
इस जाती में कुछ लोग ऐसे भी है जो प्रामाणिक है | जिनका प्रयास सत्य की खोज करने का ही रहता है और अन्वेषण के पश्चात उनको यदि प्रतीत हुआ कि नए तथ्य के प्रकाश में उनकी कुछ धारणाये गलत है तो उस बात को मान लेने, अपनी गलत धारणाओं का त्याग करने और नयी धारणाओं को स्वीकार करने में उन्हें  संकोच नहीं होता | क्यूंकि वे    सत्य के पुजारी होते हैं, अतएव पूर्वग्रहदोष से मुक्त हुआ करते हैं | किन्तु ऐसे प्रामाणिक विचार वालों को अधिक प्रसिद्धि नहीं मिलती  | इसका कारण यह है कि प्रचार के माध्यम जिनके नियंत्रण में है, प्रसिद्धि प्राप्त करने के लिए उनके निहित स्वार्थ से मेल खाने वाले निष्कर्ष प्रकाशित करने की  चतुराई इन प्रामाणिक विचारवानो के पास नहीं है | बुद्धिजीविओं की इस नयी जाती में अधिकतर संख्या चतुर लोगों की है ।  उनकी रूचि वास्तविक सत्य में नहीं है । चतुर होने के कारण वे पहले ही भांप लेते हैं कि प्रचार -माध्यमो के मालिकों के निहित स्वार्थों के साथ मेल खाने वाला निष्कर्ष निकालने तथा प्रकाशित करने से अपना व्यक्तिगत निहित स्वार्थ भी सिद्ध हो सकता है | इन अप्रमाणिक विचारवानों के पास इसकी ठीक जानकारी रहती है कि रोटी की किस तरफ मक्खन लगा हुआ है और यह बात वे पहले से ही तय करके रखते हैं कि तदनुसार निष्कर्ष ही निकालना है | अब प्रश्न इतना ही रहता है कि इस तरह के उपलव्ध तथ्यों की रचना किस तरह की जाए कि निष्कर्ष वे ही निकल सकें | इस कला में ये विचारवंत लोग निष्णांत बन चुके हैं | क्यूंकि यह कला ही उनका पेशा, उनकी उपजीविका का साधन तथा प्रसिद्धि एवं प्रतिष्ठा का आधार है | इस तरह की विचार-प्रक्रिया को अंग्रेजी में HYPOTHETICAL (हाइपोथेटिकल ) संज्ञा प्रदान की गई है |
व्यवहार चतुर लोगों के बिषय में कहा गया है कि- " अर्थातुरानां न पिता न बन्धु"
उपरिनिर्दिष्ट अप्रमाणिक विचारवंत लोग इस श्रेणी में आते हैं |  

शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

जय जय श्री राम .............

         महापावन पर्व श्री राम नवमी का शुभ अभिनन्दन स्वीकार करें ................जय जय श्री राम

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