चीन के पास आई तबाही की चाभी
पहले चारों तरफ से भारत को घेरने की कोशिश, पड़ोसियों के साथ मिलकर हमें तबाह करने की साजिश और अब पानी को बनाया गया हमारे खिलाफ हथियार. जी हां, एक ऐसा हथियार, जिससे न तो धमाके होंगे, न ही इसकी आहट किसी को सुनाई देगी. बस एक चाभी घुमाने भर की देर है, हम तड़पने लगेंगे. यानी हमारी जान बसी है उसी चाभी में और वो चाभी है चीन के पास.

काफी दिनों से चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने में लगा था. मंशा इसके पानी को मोड़ने के अलावा और भी है. बांध बनकर तैयार है और अब हमारे पूरे नॉर्थ-ईस्ट में चीन जब चाहेगा, तब सूखा ला सकता है. साथ ही जब उसका मन हुआ, तो भयानक बाढ़ लाना भी उसके लिए चुटकी बजाने भर का खेल होगा. यानी दोनों ही हालत में तबाही ही तबाही. इसके लिए उसे करना कुछ भी नहीं है. बांध बनाकर चीन ने पूरा कंट्रोल अपने हाथ में ले लिया है.
जैसे ही बांध बनने की सेटेलाइट तस्वीर सामने आई, भारत ने जोरदार विरोध किया. इस मसले पर चीन के साथ कई दौर की बातचीत भी हुई. चीन के इस आश्वासन पर कि वह पानी के बहाव को नहीं रोकेगा, भारत मान गया. लेकिन क्या चीन इतना भरोसा किए जाने के लायक है? जो उसकी हरकतें हैं, उसे देखकर तो कतई नहीं. ये न सिर्फ सरकार, बल्कि हर भारतीय बखूबी जानता-समझता है. इसके बावजूद भारत सरकार ने चीन की बातों पर इतनी आसानी से यकीन कैसे कर लिया? विरोध के साथ-साथ इसे रोकने के लिए चीन पर दबाव क्यों नहीं बनाया गया? एक तरफ हम बातचीत करते रहे और दूसरी तरफ हमें बातों में उलझाकर चीन अपना काम करता रहा.
एक चीज हम भूल गए हैं कि बातचीत महज एक जरिया हो सकती है, हथियार नहीं. वह भी उस हालत में तो बातचीत का कोई मतलब ही नहीं बनता, जब सामने वाला हर मसले का हल जोर-जबरदस्ती अपने तरीके से चाहता हो. चलिए कुछ पल के लिए मान लेते हैं कि चीन पानी के बहाव को नहीं रोकेगा, लेकिन कब तक? तभी तक न, जब दोनों देशों के बीच संबंध अच्छे रहेंगे. लेकिन संबंधों में खटास पड़ते ही कोई हमारी फिक्र क्यों करेगा? अगर जंग जैसे हालात पैदा होते हैं या जंग छिड़ती है, तो फिर किसी बातचीत या आश्वासन की गुंजाइश कहां बचती है. ऐसे में भारत क्या करेगा? बस मूक बनकर तबाही देखेगा? सरकार जो भी कहे, लेकिन मेरी राय में तो ये चाभी एक न एक दिन विनाश लाएगी ही.