धर्म रक्षति रक्षितः
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्म भयावह |
सम्पूर्ण क्रांति = संक्रांति
अध्यात्मिक क्रांति ही सम्पूर्ण क्रांति है |
याद रखिये ! जो बाहरी क्रांतियाँ होती है, अध्यात्म्यशुन्य क्रांतियाँ होती है वे केवल मनुष्य के शरीर और मस्तिष्क तक ही सीमित रहती है, वे मानव की चेतना को नहीं छु पाती और यही कारण है कि वे क्रांतियाँ अधूरी होती है, उन क्रांतियों से मानव का सर्वांगीन विकास नहीं हो पाता है | परन्तु जो हमारी संतों के क्रांति थी और है जो कि वास्तव में एक सम्पूर्ण क्रांति (Total revolution) है जिसमें मानव का सर्वांगीन होता है | इस क्रांति को समाज में लाने के लिए उन्होंने मानव कि चेतना को विकसित किया और जब मानव की चेतना विकसित होती है तो वह सूर्य की भांति चमकने लगता है तथा सारे संसार को प्रेम से सरोवार कर देता है, वह फिर अपने जीवन को बदलता है | परन्तु जो अध्यात्मशुन्य क्रांतियाँ होती है, वे अधूरी होती है, वे मानव को, समाज को सम्पूर्ण रूप से नहीं बदल पाती है |
आज जिस विकट परिस्थिति से हमारा देश गुजर रहा है, राजनीति इसका समाधान नहीं कर सकती, केवल अध्यात्म से ही यह बच सकता है, यही इसका रक्षक है | हमारे देश का इतिहास बताता है कि जब-जब इस देश के ऊपर संकट आया, मानव पथभ्रष्ट हुआ तब- तब ज्ञानी महापुरुषों ने आत्मज्ञान के जरिये अध्यात्म के जरिये ही जनमानस को रह दिखाई | आज जो स्थिति पैदा हो गई है, इसमें भी अध्यात्म को अपनाकर ही हम हमारे समाज में धर्म और मर्यादा का जो पतन हो गया है उसे फिर से समाज में आरूढ़ कर कर सकते हैं |
अतः हमारे देश में अध्यात्म क्रांति की आवश्यकता है, न कि भौतिक क्रांति की |
इसीलिए अध्यात्मिक क्रांति ही सम्पूर्ण क्रांति है |
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