अन्ना & टीम को एक बार सत्ता का बागडोर सम्हालने के लिए मौका देना चाहिए ,क्यूँ कि जो लोग व्यवस्था परिवर्तन कि बात करते हैं उनके दिमाग में भी तो कुछ प्लान रहा होगा जिसकी वजह से वे ये बात कहते हैं . जैसे कहते हैं कि रसगुल्ले को खाने से ही पता चलेगा कि उसकी स्वाद कैसी है ,तालाब या नदी के किनारे बैठ कर जैसे उसकी गहराई को नापा नहीं जा सकता उसके लिए पानी में उतरना पड़ता है .वैसे ही राजनीति की स्वाद या गहराई को जानने के लिए उसको खाना पड़ेगा और पानी में भी उतरना पड़ेगा .जैसे रास्ते में किच्च्ड भरा हो अगर उस किच्च्ड को साफ़ करना है तो किच्च्ड में उतरना पड़ेगा ही , बिना उतरे किच्च्ड साफ़ नहीं किया जा सकता . दूसरों को रसगुल्ला खिला कर या खुद किनारे पर बैठ कर दूसरों को पानी में उतारकर या खुद सूखे जमीन पर खड़े होकर दूसरों को किच्च्ड में उतार कर काम कराने से काम सही ढंग से नहीं हो पायेगा . जैसे हमें खुद मरने से ही स्वर्ग प्राप्त होता है , दूसरों को मरवा कर हम स्वर्ग प्राप्त नहीं कर पाएंगे . इसीलिए अन्ना और सहयोगिओं को राजनीति की मैदान में उतरना चाहिए.
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