बुधवार, 7 सितंबर 2011

बेवकूफ जनता चालाक मीडिया

फिर से धमाका कई लोगों की मौत,कई लोग घायल,जन जीवन अस्तब्यस्त,लाल बत्ती गाड़ियों की कतार,उनको सही स्थान पर रखने के लिए पुलिस की तत्परता,नेताओं का भीड़ उनकी सुरक्ष्या के लिए तैनात अंग रक्ष्यक, उनका मार्ग दर्शन के लिए प्रसासनिक अधिकारिओं का भीड़,उस हादसा को देखने के लिए लोगों का भीड़,उस भीड़ भरी दृश्य को लोगों तक पहुँचाने के लिए हाथों में कैमरा और माइक लिए संवाददाताओं का भीड़ कि कहीं कोई बाईट छुट न जाये.खास करके मीडिया वालों का हरकत उस वक्त देखने लायक होता है.इधर दौड़ना उधर भागना कोई नेता आ गया उसके पीछे भागो,कोई पुलिस अधिकारी पहुँच गया उसकी तरफ दौड़ो,किसीकी परिवार से कोई पहुंचा उसके पास भागो कोई प्रतक्ष्यदर्शी है उसके पीछे लग जाओ.इधर उधर का बे मतलब का सवाल,जो सवाल का इसी घटना से कोई लेना देना नहीं होता वैसे बेकार सवाल, जो लोग मारेगये उनकी परिजनों का रो रो कर बुरा हाल फिर भी संवाददाता पूछ रहे हैं आप को अभी कैसा लग रहा है ? इस मौजूदा हालत पर आप क्या कहना चाहते हैं ?आप यहाँ क्यूँ आये थे ? इस स्थिति में आप सरकार से क्या कहना चाहते हैं ? आप आतंकवादिओं को क्या सन्देश देना चाहते हैं ? इनकी सवालों का जवाब देते देते रोने वाले सगा सम्बन्धी रोना भूल जाते है .
                                फिर लग जाता है होड़ कि किस चानेल ने क्या दिखाया ?किस चानेल किस खवर को पहले लोगों तक पहुँचाया ? किसी चानेल नेताओं को बुलाकर लढ़वाएंगे तो और किसी चानेल प्रशासनिक अधिकारिओं को.एक होड़ सी लग जाता है पहले हम पहले हम का.एक दिन दो दिन उसी बात को दोहराएंगे फिर भूल जायेंगे   और अगले ब्लास्ट का इन्तजार करेंगे.
                               भैये नेताओं को जैसी अपनी राजनीति की रोटी सेंकने की होड़ वैसे इन मीडिया वालों को भी अपने आप को सबसे तेज दिखाने की होड़.

 हाय रे बेवकूफ जनता चालाक मीडिया.

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