| इदं राष्ट्राय इदन्न मम ||
राष्ट्रधर्म
योगाभ्यास के साथ-साथ प्रतिदिन 5 से 10 मिनट राष्ट्र-शक्ति व हमारे राष्ट्रधर्म के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें लोगों को बताना तथा लोगों को समझाना कि हम देश के लिए क्या कर सकते हैं। इन बिन्दुओं को पहले संक्षिप् त रूप में तथा बाद में विस्तारपूर्वक प्रत्येक ग्रामवासी व राष्ट्रवासी को समझायें।
- राष्ट्र की शक्ति : - हमारे देश भारत में 89 प्रकार की भूसम्पदाएं हैं-लोहा, कोयला, ताम्बा, सोना, चांदी, हीरा, एल्यूमिनियम आदि धतुएँ तथा गैस व पेट्रोल से लेकर बहुत से मिनरल्स हैं इन सबके ज्ञात भण्डार (रिजर्वस) का यदि आर्थिक मूल्यांकन किया जाए तो यह करीब 10 हजार लाख करोड़ रुपये होते है। इसमें अकेला कोयला ही (केवल ज्ञात भण्डार) 276.81 बिलियन टन है जिसका मूल्य लगभग 950 लाख करोड़ है तथा लोहे के ज्ञात भण्डार लगभग 15.15 बिलियन टन है। ऐसी ही अन्य बहुत सी बेशकीमती चीजें भारत माता के गर्भ में छिपी हैं। यदि हमने इन बेईमान लोगों को नही हटाया तो ये सब देश की सभी सम्पदाओं को लूट लेंगे। भूसम्पदाओं के अतिरिक्त जल, जंगल, जमीन, जड़ी-बूटी व अन्य राष्ट्रीय सम्पदाओं के साथ-साथ बौद्धिक, आर्थिक, चारित्रकि व आध्यात्मिक दृष्टि से भी भारत दुनियाँ का सबसे बलवान व धनवान देश है।
- महाशक्ति भारत - हमारे देश में जर्मनी, जापान और प्रफांस जैसे देशों से कम से कम 50 गुणा अधिक शक्तिशाली है। जिस दिन भ्रष्टाचार मिट जायेगा उस दिन भारत विश्व की आर्थिक महाशक्ति बन जायेगा। दुनियाँ की पाँच बड़ी संस्थाएं आई.एम.एफ., वर्ल्ड बैंक, डब्लू.एच.ओ., यू.एन.ओ., डब्लू. टी.ओ., सब यहींं से हम संचालित कर सकेंगे। हम वल्र्ड सुपर पॉवर होंगे, हम दुनियाँ की सबसे बड़ी आर्थिक, राजनैतिक व आध्यात्मिक महाशक्ति होंगे और यह सब हमारे लिए बड़े गर्व की बात होगी।
- क्या देश स्वतन्त्र है - 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो गया, यह देश के इतिहास में पढ़ाया जाता है तथा नेताओं द्वारा बताया जाता है कि हम आज स्वतन्त्र हैं लेकिन हकीकत कुछ और ही है। दुर्भाग्य से 14 अगस्त 1947 को तत्कालीन प्रधनमंत्री तथा अंग्रेज सरकार के प्रतिनिधि माउंटबेटन ने एक बहुत बड़ा शर्मसार समझौता कर लिया और उसका नाम है ट्रांसफर ऑफ पॉवर एग्रीमेंट (सत्ता के हस्तांतरण का समझौता)। इस एग्रीमेंट के तहत आज भी स्वतन्त्र भारत में विदेशी तंत्र चलता है। न तो हम भाषा की दृष्टि से आजाद हो पाये हैं और न ही व्यवस्थाओं की दृष्टि से, जैसे अंग्रेज सरकार भारत को चलाती थी, ठीक वैसे ही भारत सरकार भारत को चलाती है। टी.बी. मैकाले की अंग्रेजी शिक्षा-व्यवस्था, जिसमें संस्कार व आध्यात्मिक मूल्यों को पूरी तरह निकाल दिया गया है; अंग्रेजी चिकित्सा-व्यवस्था जिसमें भारतीय चिकित्सा-व्यवस्था-योग, आयुर्वेद व प्राकृतिक-चिकित्सा आदि को हाशिये पर रख दिया है; अंग्रेजी कानून-व्यवस्था, जिसमें 34735 कानून जो अंग्रेजों ने भारत को लूटने के लिए बनाए थे, वह आज भी लागू हैं। अंग्रेजी अर्थव्यवस्था, जिसमें पूँजी का विकेन्द्रीकरण न होकर गाँव, गरीब व भारत का शोषण हो रहा है। इसी तरह आज आजादी के नाम पर हम अंग्रेजी गुलामी में जी रहे हैं। महात्मा गाँधी व सभी क्रान्तिकारियों का निविदमववादित रूप से स्पष्ट मानना था कि भारत आजाद होते ही सभी अंग्रेजी व्यवस्थाओं का हमें स्वदेशीकरण करना होगा, जो दुर्भाग्य से नहीं हुआ। अब इस आधी अधूरी आजादी के स्थान पर हमें पूरी आजादी लानी है। आज हम अन्याय के खिलाफ बोल सकते हैं तथा सरकार बदल सकते हैं। इसका हमें पूरा लाभ उठाना है। आज जब किसी भी स्वतंत्र राष्ट्र में विदेशी तंत्र व विदेशी भाषा नहीं चलती, तब स्वतन्त्र होते हुए भी विदेशी तन्त्र व विदेशी भाषा को ढोना यह हमारे लिए कितने शर्म व अपमान की बात है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा एवं विदेशी नीति - जिस तरह से चीन ने पूर्वोत्तर से लेकर जम्मू-कश्मीर तक सड़कों व रेल आदि का जाल बिछा दिया है तथा अपनी लगभग 31 लाख सेना का अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्र प्रोद्यौगिकी के साथ तीव्र गति से आधुनिकीकरण कर रहा है और साथ ही चीन सरकार के नियन्त्रण में चलने वाले प्रचार-प्रसारों के माध्यम से भारत को 20-30 भागों में विखंडित करने की जो बात कही जा रही है, यह बहुत ही चिन्ताजनक है। अत: हमें अपनी सेनाओं के तीव्र गति से आधुनिकीकरण एवं अन्य ढांचागत सुविधओं के लिए तुरन्त प्रभावी कदम उठाने चाहिए तथा अपनी विदेश-नीति में भी हमको व्यापकता, दूरदर्शिता एवं रहस्यमय कूटनीति को अपनाना पड़ेगा। हमें वैश्विक स्तर पर भारत को मजबूत स्थिति में लाना पड़ेगा। चीन के साथ-साथ पाकिस्तान के नापाक इरादों व बंग्लादेशी घुसपैठ को भी प्रभावी तरीके से रोकने की आवश्यकता है। भारत-हित को सर्वोपरि रखकर हमें अन्य देशों के साथ अपनी व्यापार-नीति व विदेश-नीति बनानी होगी। हमें उदारीकरण, वैश्वीकरण व डब्लू.टी.ओ. की नीतियों, सन्धियों व कानूनों का देश को आर्थिक दृष्टि से कमजोर करने में उपयोग नहीं होने देना, अपितु अपने उत्पादन एवं निर्यात को बढ़ाकर राष्ट्र को शक्तिशाली बनाने में उपयोग करना है। राष्ट्रीय सुरक्षा (बाह्य सुरक्षा) के साथ-साथ हमारी आन्तरिक सुरक्षा-व्यवस्था में भी नक्सलवाद, माओवाद व अन्य घरेलू हिंसा भी बहुत बड़ी चुनौतियाँ हैं। इनके भी निर्णायक समाधन के लिए हमें स्पष्ट रणनीति बनानी होगी।
- विदेशी हस्तक्षेप - हमारे देश में, हमारे देश के नीति-निर्धरण से लेकर प्रधनमंत्री, वित्तमंत्री, विदेशमंत्री व रक्षामंत्री आदि महत्वपूर्ण पदों पर कौन व्यक्ति होने चाहिए, इसमें विदेशी सरकारों, उनकी अगेंसियों व विदेशी कम्पनियों का बहुत बड़ा हस्तक्षेप रहता है। इसके लिए मीडिया मेनेजमेन्ट और सम्बन्धित व्यक्तियों के महिमा मण्डन से लेकर सम्बन्ध पार्टी या सम्बन्धित व्यक्ति के लिए फुन्डिंग (Funding-धन) भी विदेशी सरकारें, एजेसियाँ व कम्पनियाँ करवाती है तथा कई बार तो सीधे तौर पर ही विदेशी सरकारों या एजेंसियों के एम.एल.ए., एम.पी. चुनाव लड़कर विधनसभा एवं लोकसभा तक पहुँचते हैं। विदेशी हस्तक्षेप द्वारा परोक्ष रूप से देश की सरकारें विदेशी ताकतों से संचालित होती हैं। यह देश के लिए बहुत खतरनाक है। राजनैतिक हस्तक्षेप के अलावा सामाजिक, धमिर्क, आर्थिक, चारित्रकि व सांस्कृतिक क्षेत्र में भी विदेशी हस्तक्षेप बहुत बड़ी चिन्ता का विषय है।
- गरीब का अपमान क्यों - हम यह भूल जाते हैं कि जिन मकानों में हम रहते हैं, जिन मन्दिरों में पूजा करते हैं, जिन अस्पतालों में हम इलाज करवाते हैं, जिन विद्यालयों में हमारे बच्चे पढ़ते हैं तथा जिन सड़कों पर हम अपनी गाड़ियाँ चलाते हैं। देश का ये सारा निर्माण देश के गरीब-मजदूर व कारीगरों ने किया है। मजदूर व कारीगर तथा 120 करोड़ लोगों का अन्नदाता किसान, इन दोनों का ही सत्ता व कुछ समर्थ लोगों द्वारा अपमान हो रहा है। देश के निर्माता व अन्नदाता का यह अपमान तुरन्त बन्द होना चाहिए। उनके श्रम का पूरा मूल्यांकन होना चाहिए और सत्ता व सब समर्थ लोगों को भी इनका सम्मान करना चाहिए। विलासिता की चीजें उपलब्ध करवाने वालों का तो सम्मान हो रहा है तथा जो मूलभूत विकास करने वाले मजदूर-कारीगर और जीवनदाता व अन्नदाता है उनका अपमान हो रहा है।
- कितना दुर्भाग्य - चीन, जापान, अमेरिका व प्रफांस आदि देशों में देशभक्ति की बात करना स्वाभिमान, सम्मान, गौरव की बात मानी जाती है लेकिन हिन्दुस्तान में जो लोग देशभक्ति की बात करते हैं, देश के लिए काम करते हैं, भ्रष्टाचार, कालेधन, भ्रष्ट-व्यवस्था का विरोध करते हैं तो उनको गुनाहगार, अपराधी की तरह देखा जाता है यह कितनी शर्म की बात है।
- जनसंख्या - वर्तमान में देश में 120 करोड़ लोग हैं उनको भी आज तक सरकारें न्याय नहीं दे पाई हैं। प्रतिवर्ष 2 करोड़, 38 लाख, 39 हजार, 945 नये बच्चों का पैदा होना बहुत बड़ी चिन्ता का विषय है तथा अभी तक तीन से चार करोड़ अवैध रूप से बंग्लादेशी घुसपैठिये घुस चुकें हैं तथा प्रतिदिन लाखों घुसपैठियों का घुसना हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा खतरा है।
- सामाजिक न्याय - आज आजादी के 64 वर्षों बाद भी 3 करोड़ 33 लाख 5 हजार 845 मामले देश की विभिन्न अदालतों में लम्बित हैं। सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड चीफ जस्टिस जे.एस. वर्मा के अनुसार इन लम्बित मामलों को निपटाने में लगभग 350 वर्ष लगेंगे। यह न्याय के नाम पर कितना बड़ा अन्याय है और हमारे ईमानदार जज भी कई बार अंग्रेजों द्वारा बनाये गये गलत कानूनों के कारण न्याय की अपेक्षा मात्र फैसला ही दे पाते हैं। भोपाल गैस काण्ड इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। हमें न्याय-व्यवस्था की सत्य के आधर पर पुन: रचना करनी होगी। जिससे न्यायालयों में फैसले नहीं बल्कि न्याय मिल सके। नये न्यायालयों, फास्ट ट्रैक कोर्ट व नये जजों की नियुक्ति करनी होगी।
- देश की आर्थिक लूट के दो बड़े स्रोत - देश का धन देश से बाहर जाए तो देश शक्तिहीन होता है। अत: जो विदेशी कम्पनियाँ व्यापार करके देश का धन लूट रही हैं तथा भ्रष्ट लोग भ्रष्टाचार करके देश को लूट रहे हैं, अब हमें स्वदेशी को अपनाकर तथा विदेशी व्यापार व भ्रष्टाचार को मिटाकर देश को बचाना है। विदेशी-व्यापार व भ्रष्टाचार दोनों ही देश के सबसे बड़े शत्रु हैं, अधिकांश लोग अन्जाने में ही विदेशी वस्तुओं का प्रयोग करके राष्ट्रीय पाप के भागीदार बन रहे हैं और इससे बहुत बड़ा देशाघात हो रहा है।
- 64 वर्षों में कितना विकास या कितनी लूट व विनाश - सत्ताओं पर आसीन सरकारों ने विकास के रूप में अब तक जो बजट बनाया उसका लगभग 80 से 90 प्रतिशत भ्रष्टाचार करके लूट लिया तथा मात्र 10 से 20 प्रतिशत ही धन देश के विकास में लगा है। इसके अलावा अवैध-खनन, रिश्वतखोरी व टैक्स इत्यादि चोरी करके जो देश लूटा है। वह देश के साथ बहुत बड़ा अन्याय व धोखा हुआ है। जब केन्द्र-सरकार व अन्य सरकारें विकास का श्रेय (क्रेडिट) लेती है तो उनके शासनकाल में भ्रष्टाचार के रूप में हुये 80 से 90 प्रतिशत विनाश की जिम्मेदारी (रेस्पोंसिबिलिटी) भी उनको लेनी पड़ेगी। हकीकत यह है कि देश का विकास देश के लोगों की मेहनत से हुआ है तथा सरकारें भी जिस विकास का श्रेय लेती हैं उसके लिये भी धन देश के मेहनत करने वाले लोगों ने टैक्स के रूप में दिया है अत: अब तक की अधिकांश सरकारों ने इस देश को विकास के नाम पर लूटा है तथा इस देश में जो कुछ भी विकास हुआ है अथवा अच्छा नजर आ रहा है, वह सच्चे, अच्छे व ईमानदार नागरिकों, गाँव के किसानों, गरीबों व मजदूरों की मेहनत का परिणाम है।
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