भारतवर्ष के प्राचीन इतिहास का अगर हम अबलोकन करें तो यह पता लगता है की हमारा भारत विश्व भर में महानतम देश था, शिक्ष्या,पराक्रम,धर्म,भौतिक संपदा आदि प्रत्येक क्षेत्र में सर्वाधिक संपन्न देश था और विश्वगुरु की उपाधि में बिभुषित था | बाद में इसमें जाति,धर्म अदि के नाम पर फूट का बीज पनपने लगा जिससे राष्ट्रीय एकता समाप्त हो गयी और धीरे धीरे इसके टुकड़े हो गए,यह छोटे छोटे राज्य में विभक्त हो गया | तब हमपर जब विदेशी आक्रमण हुए तो आपसी फुट के कारण हम एक होकर उन आक्रमणों का प्रतिरोध नहीं कर सके,उल्टा हम में से कुछ स्वार्थी लोगों ने ,देश द्रोहिओं ने दुश्मनों का साथ दिया जिसके फलस्वरुप यह पवित्र भारत देश पराधीन हो गया और सैकड़ों वर्षों तक भारतवासी गुलामी की जिंदगी को जीता रहा |
उस पराधीनता के बावजूद भी,हमारे पूर्वजों की,हमारे रुषिओं की जो अमूल्य धरोहर थी,जो आध्यात्मिक संपदा थी हमारे देश में वह समाप्त नहीं हुई |महर्षि अरविंद,महर्षि दयानंद,वंकिम चन्द्र चटर्जी,स्वामी विवेकानंद,लोकमान्य तिलक,महात्मा गाँधी,सुभाष चन्द्र बोसे अदि अनेक अध्यात्मिक शक्ति संपन्न लोग भारतवर्ष की मानस पटल पर उदित हुए और उन्होंने भारत की सोयी हुई जनता को जगाया,उश्मे आत्मिक क्रान्ति की ऐसी फूंक मारी कि भारतवासी जागकर खड़ा हो गया | इस अध्यात्मिक जागरण के फलस्वरूप,२०विन शताव्दी के प्रारंभ में भारत माता 'देवी माँ' के रूप में प्रगट हुई जिसे प्रत्येक भारतवासी अपनी श्रद्धा,भक्ति और क़ुरबानी के सुमन चढाने को लालायत हो उठा | भारत माता के प्रति यही श्रद्धा कि भावना देश-प्रेम के रूप में जन-जन में प्रस्फुटित हुई और इस प्रकार जब जनता कि जागरूक शक्ति एक हुई तो भारत देश पुनः एक स्वाधीन राष्ट्र के रूप में प्रकट हुआ; १५ अगस्त १९४७ को 'एक राष्ट्र,एक ध्वज और एक आत्मा' की शक्ति से एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में विश्व की मानचित्र पर उभरा,हमारे महान नेताओं के स्वप्न साकार हुए तथा शहीदों की कुर्बानियां सफल हुई |
भौतिक रूप में स्वाधीन होने के बाद भी हम मानसिक रूप से स्वाधीन नहीं हो सके,जो गुलामी की,हीनता की भावनाएं हमारे मस्तिस्क में घुस चुकी थी उन्हें हम नहीं निकल पाये | जिस आध्यात्मिक संपदा की बदौलत हमने गुलामी की जंजीरों को तोडा,उस महान भारतीय संस्कृति को तिलांजलि देकर,विदेशी संस्कृति की ओर उन्कुख होकर, हम पूर्णतया भौतिकवादी बनगए जिससे हमारे भारत की आत्मा पुनः निर्वल और सुषुप्त हो गयी, जिसका परिणाम क्या हुआ-फुट,स्वार्थपरायणता,भ्रष्टाचार,अनाचार,अत्याचार अदि बुरी प्रब्रुतियाँ हमारे देश में प्रखर रूप में फैलने लगी; हम धर्म,जाति,सम्प्रदाय,भाषा अदि के नाम पर बिभाजित होकर आपस में ही लढने लगे और हमारे देश में अनेकों ऐसे मीर जाफर और जयचंद पैदा हो गये जिन्होंने भारत देश को आर्थिक रूप में बेच डाला,आर्थिक दृष्टिकोण से हमें विदेशो का गुलाम बना दिया,मोहताज बना दिया | विदेशी सभ्यता को अपनाने का यह भुत हमारे भारतवासिओं पर इस कदर सबार हुआ कि हमारे बड़े बड़े नेता लोग विदेशी संस्कृति के पिट्ठू बन गए,यहाँ तक कि हमारे गुरुजन जिन्हें हम भारतीय संस्कृति के रक्ष्यक और पोषक मानते थे वे भी विदेशी कार और विदेशी नारी के पीछे भागने लगे,विदेशी सभ्यता के दीवाने हो गए |
इसी भौतिक लिप्तता का,विदेशी संस्कृति में लवलीन होने का ही यह दुष्परिणाम है कि आज हमारा भारत देश हर प्रकार से शक्तिहीन बन गया है;जाति,धर्म,भाषा अदि के नाम पर हर रोज लड़ाईयां हो रही है,देश को टुकड़े करने कि साजिशें हो रही है | बिघटनवादी विदेशी शक्तियों के एजेंट भारत में पूरी तरह सक्रिय है |बौद्धिक,सामाजिक,आर्थिक,राजनैतिक आदि हर क्षेत्र में भारत को शक्तिहीन करने के,छिन्न-भिन्न करने के कुचक्र चल रहे हैं,आसुरी शक्तियां हमारे देश में प्रबल हो गयी है,स्वार्थी,बदमाश और बदचलन लोगों का समाज पर आधिपत्य हो गया है | जो थोड़े बहुत देवता स्वरुप लोग,सत्य न्याय के मार्ग पर चलनेवाले लोग है,जिनके अन्दर देशभक्ति की त्याग और बलिदान की भावना है, वे आज अपने आपको असहाय एबं अकेला महसूस कर रहे हैं,शक्तिहीन होकर बैठे हुए हैं |आज तो स्थिति यह है कि अगर सत्य के,न्याय के पक्ष्य में एक आवाज उठती है,अगर एक सर उठता है असहाय और abalaa कि रक्ष्या के लिए तो उस आवाज को दवाने के लिए,उस सर को कुचलने के लिए हजारों राक्ष्यसी,दमनकरी शक्तियां हर समय तत्पर रहती है | कहीं भारत कि जनता जागरूक होकर एक न हो जय,कहीं हमारी धोखेबाजी कि,स्वार्थपरायणता कि,अन्याय अत्याचार और अनाचार कि दुकानदारी समाप्त न हो जाय-इसके लिए वे आसुरी प्रबृत्ति के लोग फुट डालो और राज करो कि दुर्नीति को अपनाते हुए,समाज के अन्दर,किसी न किसी बहाने,फुट के बीज का आरोपण करते रहते हैं | चुनाव के समय तो जाती,धर्म और सम्प्रदाय के नाम पर जनता में ऐसी भयानक फूट दाल दी जाती है कि उस समय सैकड़ो हजारों लोगों कि सर फूटते हैं,लोग अपने ही भाईओं का खून कर डालते हैं और इसी महाभयंकर फूत्रुपी बीज का यह दुष्परिणाम है कि आज देश में जगह जगह लडाइयां हो रही है,दंगे हो रहे हैं }यहाँ तक कि धर्म का जो रचनात्मक गुण था समाज में बुरी प्रबृत्ति को समाप्त कर अच्छी प्रबृत्ति को बढ़ाना,प्रेम, शांति और एकता को स्थापित करना,आज उसी धर्म के नाम पर लडाइयां हो रही है,धर्म के नाम पर समाज में फुट डाली जा रही है |धर्म का स्वरुप विकृत हो गया है | धर्म स्वार्थी और दुष्ट लोगों का पोसक बन चूका है,धर्म के नाम पर वैमनष्यता फैला कर मारो और काटो कि शिक्ष्या दी जा रही है,धर्म के आड़ में अनाचार और अत्याचार पल बढ़ रहा है |
स्थिति इतनी बदतर हो गई है कि किसी कि माँ-बहन सड़क पर सुरक्षित नहीं है,खुले आम माँ-बहनों के साथ जुल्म किया जा रहा है,उनकी इज्जत लूट ली जाती है और उन अत्याचारिओं का प्रतिरोध करने का कोई साहस नहीं कर पा रहा है | देहज कि वेदी पर नारी को जिन्दा जलाया जा रहा है, गौमाता को समाप्त किया जा रहा है,गरीब भ्रस्ताचार और अत्याचार कि चक्की में दिन रत पिसता चला जा रहा है, मिलाबटखोर गाय और सूअर की चर्बी को वनास्वती घी में मिलकर लोगों का धर्म भ्रष्ट कर रहे हैं,और भारत का नागरिक मौन होकर कायरों की तरह इन तमाशों को देख रहा है |
आज समय आ गया है अध्यात्मिक जागरण का, भारत को पुनः महँ बनाने का,धर्म के अन्दर जो बिकृत्ति आ गई है उसे समाप्त कर धर्म के शुद्ध,सनातन स्वरुप को समझाने के लिए भारत की जनता को एकजूट होकर आगे बढ़ना है,एक नया सवेरा लाना है |
वैसे तो इतिहास यह बताता है कि जब भी संतों का,महँ पुरुषों का आगमन इस धरातल पर हुआ, तब बहुत ही कम लोगों ने उन्हें माना और उनका अनुसरण किया,अधिकांश ने तो आलोचना ही कि है,हाँ जाने के बाद जरुर उनकी मान्यता हुई | भगबान राम को एक धोबी ने भी व्यंग कसा,श्रीकृष्ण महाराज को शिशुपाल,जरासंध,कंस और दुर्याधन अदि के द्वारा नाना प्रकार के पमन और कष्ट सहने पड़े,महतम बुद्ध को अनेक प्रकार से कलंकित करने के प्रयास हुए,गुरु नानक को जेल के अन्दर चक्की चलानी पड़ी,महम्मद पैगम्बर को मक्का छोड़ कर मदीना भागना पड़ा,ईशा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया,सुकरात को जहर पिलाया गया,संत कबीर को पकड़ कर हठी के सामने लिटाया गया,तुलसीदश जी के नाक में दम कर दिया उस समय के बिद्वानो ने -इस प्रकार सभी महापुरुषों के साथ दुर्व्यवहार हुआ है | कहा भी है-
जीते जी जग को संतों से होती है सच्ची प्रीति नहीं |
जाने पर ही पूजा करते, जग कि है उलटी रीति यही ||
आज भारत माँ हम सबको पुकार रही है,यह आह्वान कर रही है कि आगे बढ़ो और मेरी अखंडता,पवित्रता और म्हणता की रक्ष्या करो |यह जो रक्ष्या का महान कार्य है इसके लिए बलिदान,त्याग और तपस्या की भावना की आवश्यक है |इसीलिए हम सब उठे ,जागें और आध्यात्मिक क्रांति रुपी इस महायज्ञ में अपने महान जीवन की आहुति dekar इस पवित्र धरती माँ के रुण को चुकाएं |
स्थिति इतनी बदतर हो गई है कि किसी कि माँ-बहन सड़क पर सुरक्षित नहीं है,खुले आम माँ-बहनों के साथ जुल्म किया जा रहा है,उनकी इज्जत लूट ली जाती है और उन अत्याचारिओं का प्रतिरोध करने का कोई साहस नहीं कर पा रहा है | देहज कि वेदी पर नारी को जिन्दा जलाया जा रहा है, गौमाता को समाप्त किया जा रहा है,गरीब भ्रस्ताचार और अत्याचार कि चक्की में दिन रत पिसता चला जा रहा है, मिलाबटखोर गाय और सूअर की चर्बी को वनास्वती घी में मिलकर लोगों का धर्म भ्रष्ट कर रहे हैं,और भारत का नागरिक मौन होकर कायरों की तरह इन तमाशों को देख रहा है |
आज समय आ गया है अध्यात्मिक जागरण का, भारत को पुनः महँ बनाने का,धर्म के अन्दर जो बिकृत्ति आ गई है उसे समाप्त कर धर्म के शुद्ध,सनातन स्वरुप को समझाने के लिए भारत की जनता को एकजूट होकर आगे बढ़ना है,एक नया सवेरा लाना है |
वैसे तो इतिहास यह बताता है कि जब भी संतों का,महँ पुरुषों का आगमन इस धरातल पर हुआ, तब बहुत ही कम लोगों ने उन्हें माना और उनका अनुसरण किया,अधिकांश ने तो आलोचना ही कि है,हाँ जाने के बाद जरुर उनकी मान्यता हुई | भगबान राम को एक धोबी ने भी व्यंग कसा,श्रीकृष्ण महाराज को शिशुपाल,जरासंध,कंस और दुर्याधन अदि के द्वारा नाना प्रकार के पमन और कष्ट सहने पड़े,महतम बुद्ध को अनेक प्रकार से कलंकित करने के प्रयास हुए,गुरु नानक को जेल के अन्दर चक्की चलानी पड़ी,महम्मद पैगम्बर को मक्का छोड़ कर मदीना भागना पड़ा,ईशा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया,सुकरात को जहर पिलाया गया,संत कबीर को पकड़ कर हठी के सामने लिटाया गया,तुलसीदश जी के नाक में दम कर दिया उस समय के बिद्वानो ने -इस प्रकार सभी महापुरुषों के साथ दुर्व्यवहार हुआ है | कहा भी है-
जीते जी जग को संतों से होती है सच्ची प्रीति नहीं |
जाने पर ही पूजा करते, जग कि है उलटी रीति यही ||
आज भारत माँ हम सबको पुकार रही है,यह आह्वान कर रही है कि आगे बढ़ो और मेरी अखंडता,पवित्रता और म्हणता की रक्ष्या करो |यह जो रक्ष्या का महान कार्य है इसके लिए बलिदान,त्याग और तपस्या की भावना की आवश्यक है |इसीलिए हम सब उठे ,जागें और आध्यात्मिक क्रांति रुपी इस महायज्ञ में अपने महान जीवन की आहुति dekar इस पवित्र धरती माँ के रुण को चुकाएं |
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