उसीको मैं महात्मा मानता हूँ , जिसका ह्रदय गरीवों के लिए द्रवीभूत होता है , अन्यथा वह दुरात्मा है।
जव तक करोड़ों भूखे और अशिक्षित रहेंगे, तव तक मैं प्रत्येक उस आदमी को विश्वासघातक समझूंगा, जो उनके खर्च पर शिक्षित हुआ है , परन्तु जो उनपर तनिक भी ध्यान नहीं देता।
( विवेकानंद साहित्य, ३.३४५ )
स्त्रियों की अवस्था को बिना सुधारे जगत कल्याण की कोई सम्भावना नहीं है।
पक्षी के लिए एक पंख से उड़ना संभव नहीं है।
( विवेकानंद साहित्य, ४. ३१७ )
आज से एक साल पहले जो स्थिति देश में देश्द्रोहिओं का था आज भी है और आगे भी रहेगा
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