सोमवार, 28 नवंबर 2011

कुछ लेख 2


जब जब इस देश में साधू संतों पर हमला हुआ
वो कृत्य जिसने भी किया वो बर्वाद हुआ ||


कभी कभार अधेड़ अवस्था में या बुढ़ापे में बच्चों जैसी हरकतें हो ही जाती है तो क्या उसे बचपन कहोगे ?????
उसे अगर बचपन कहोगे तो मम्मी को क्या कहगे ?????
खून का रंग तो लाल ही होता है लेकिन क्यूँ उसमे श्रेणी बिभाग होता है और किसीको खून दान करने से पहले क्रास मेचिंग करना क्यूँ जरुरी होता है ????
सादर प्रणाम
jai jagannath  



इसके वारे में एक ही बात कहना चाहूँगा कि, हमें पता है वो एक मिशनरी स्कूल है फिर भी हम अपने बच्चों को वहां क्यूँ पढ़ाते हैं ? जैसे कि अखिल भारतीय शिक्ष्या संस्थान द्वारा परिचालित सरस्वती शिशु मंदिर में किसी भी मुस्लिम या ख्रिश्तियन पर्व में छुट्टी नहीं दिया जाता | वहां पर शिर्फ़ हिन्दू पर्व ही पालन किया जाता है और हिन्दू रित रिवाज ही मनाया जाता है | इसलिए वहां कोई मुस्लिम या ख्रिस्तियन बच्चे पढ़ते नहीं, तो हम लोग क्यूँ मरे जा रहे हैं अपने बच्चों को मिशनरी स्कूल में पढ़ाने को ?
सठिया गया लगता है खुर्शीद ? खुर्शीद को शायद पता नहीं संघ क्या कर सकता है ?
हिंदुत्व के बारे में एक ही वाक्य कहा जायेगा कि, सर्वे भवन्तु सुखिनः की उदघोष विश्व में सर्व प्रथम हिन्दू ही किया था |
देश में कांग्रेस से समर्पित एक ही पार्टी है, पता है कौन.............. यार मीडिया पार्टी, मीडिया से बढ़ कर और कोई कांग्रेस के प्रति समर्पित नहीं है |


हाँ ये नियम तो लागु करना ही है, साथ में ये नियम भी तुरंत लागु करना है कि जो मीडिया झूठे संवाद परिवेषण करेगा उसे ७ साल की सजा |

केवल बड़े n g o ही नहीं सब के सब n g o घपले वाज है | सभी को j l p की दायरे में लाना है | कानून सब के लिए एक सामान है या गरिवों के लिए अलग और अमीरों के लिए अलग ? यहीं तो घपला है, तभी तो मैं कहूँ कि  क्यूँ  मीडिया इतना बढ़ चढ़ कर अन्ना को सपोर्ट कर रहा है ? चोर चोर मौसेरा भाई बाली बात इनके लिए ठीक बैठता है |

क्या मीडिया जनता को धोका दे रही है ? ये हमसे पूछे ................

हाँ आपने सही कहा है युवा की परिभाषा को बिगाड़ा जारहा है लेकीन क्या करें ये सव तो मीडिया वालों की करसादी है |
आप जैसे ही एक संत थे स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती ओडिशा के एक बीहड़ जंगल फुलबानी जिल्ले की चकापाद  में कार्य गरीव बनवासिओं के लिए कार्य करते थे और जन्माष्टमी के दिन वहां के ख्रिश्तियन लोगों से पैसा लेकर नक्सलिओं ने उनको हत्या कर दिए |
देर इस  ओनली ४ वेस टू कोन्वेर्ट ए हिन्दू १/ लेडी,२/ पेडी, ३/ हेन, ४/ पेन

हमें अपने मानसिकता में परिवर्तन लाने की जरुरत है,इसके लिए हम खुद ही जिम्मेदार है | हमारे अन्दर अंग्रेज भाषा प्रति जो विचार है, जो सोच है कि अंग्रेज पढने से ही बच्चे आगे बढ़ पायेंगे,फर्राटेदार अंग्रेज बोलने से ही लोग उसको इज्जतदार और उच्च शिक्षित मानेगें ये कुछ गलतफहमी अंग्रेजों की ज़माने से हमारे अन्दर बैठा हुआ है | हाँ, ये कहना होगा कि अंग्रेज शिक्ष्या आवश्यक है लेकिन जरुरी नहीं | वैसे देखा जय तो आज भी बहुत सारे पाश्चात्य देश के बड़े बड़े अधिकारी यहाँ तक कि राष्ट्रपति तक को अंग्रेज भाषा ठीक से आता नहीं,वे अपने मातृभाषा में ही बात करते हैं | हमें अपनी मातृभाषा प्रति कितना आदर है सम्मान है ये सबको पता है | ये जो अंग्लो विद्यालय भारत में गली से लेकर दिल्ली तक खोले हैं उसीका ही परिणाम है | ख्रिस्तिआन संस्थाएं इसका फ़ायदा उठा रहे हैं और हमें बेवकूफ बना कर हमारे बच्चों को हाई मम हाई डैड कहना सिखाते हैं और हम भी खुस हो जाते हैं उनकी तोतली जुवान से डैड मम सुनकर | लेकिन यही मम डैड सिखाते सिखाते बच्चों को वे कब अपने हिन्दू विचार और माँ बाप से दूर ले जाते है ये न बच्चा जान पाता है और न माँ ओर पिताजी से बदल कर मम डैड हुए हम जान पाते हैं |
आज अखिल भारतीय शिक्ष्या संस्थान " विद्या भारती " समग्र भारतवर्ष में सरस्वती शिशु मंदिर के नाम से शिक्ष्या जगत में और विचार में जो वैप्लविक क्रांति लाया है उसकी उन्नति को भारत सरकार की कोप दृष्टि का शिकार होना पड़ रहा है |

अंग्रेजी शिक्ष्या आवश्यक है लेकिन जरुरी नहीं,अंग्रेज भाषा विश्व भाषा भी नहीं, अपनी मातृभाषा से बढ़ कर कोई भाषा ही नहीं | आप अगर ध्यान से देखेंगे तो समझ जायेंगे कि, जिन सब देशों के ऊपर अंग्रेजों ने राज किया था और गुलाम बनाया था या किसी न किसी तरह की प्रभाव था, उन सब देशों में ही अंग्रेजी भाषा के ऊपर जोर दिया जा रहा है |और उसीका ही परिणाम ये क्रिकेट खेल भी है | ज्यादा नहीं कहना चाहता हूँ आप सब समझदार है |

जन्म दिन की सुभ अवसर पर आप को सादर हार्द्धिक अभिनन्दन

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दु-स्तान हमारा हमारा
लूट के ले गए सब कुछ,
फिर भी हम लगा रहे हैं नारा ||

आज का नारा.............
हिन्दुस्थान की क्या पहचान
यहाँ शासन कर रहे हैं चोर डाकू और बेईमान ||

   पन्नू --की मन्नू मोशाय,क्या सोच रहे हो
  मन्नू -- वो सरदू की थप्पड़ के बारे में सोच रहा हूँ
  पन्नू --उडी बाबा, केनो आवार की होयेछे
 मन्नू-- उसको थप्पड़ कैसे लगा रहा होगा ?
पन्नू -- उडी बाबा, उसको तो थोप्पोड़ लोगा होमको कोभी भी चोप्पोल लोगेगा |
एक सच बात बताऊँ,इसमें गलती उन लड़कों की नहीं जिसने इनको फंसाया गलती इन लड़कियों की है जो इन्होनें उसके jaal में फंसे हैं,
क्या ये कॉलेज में पढने जाते हैं या प्यार करने जाते हैं ?
क्या इनको पता नहीं था कि वो मुस्लिम लड़का है ?
क्या इनको पता नहीं है कि इनके परिवार वाले इसका विरोध करेंगे ?
क्या इनके कालेज या मोहल्ले में कोई हिन्दू लड़का नहीं है ?
क्या कोई हिन्दू लड़का इनके नजर में प्यार करने लायक नहीं है ?
हमारे यहाँ कहावत है कि खुद का सोना अगर भिन्डी है तो फिर किसे दोष देंगे ?
कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है
की जैसे मैं उड़के जाऊं और संसद भवन पर बम गिरादूं ||


ये सब बिन ब्याही माँ बनेंगे
और भारत में नाजायजों की संक्ष्या बढ़ाएंगे ||






जगन्नाथ स्वामी नयनपथ गामी भवतुमें..........   जय जगन्नाथ
कांग्रेस का क्या पहचान ? काले पंजे की निशान .....आज कल जैसे थप्पड़ का जमाना चल रहा है उसको देखते हुए मैडम ने आदेश दिया है कि सब कांग्रेसी खुद की गाल पर पंजे की निशानी बना लें, शायद निशान देख कर थप्पड़ मारने को आने वाला मार खाया हुआ समझेगा और वापस चला जायेगा और साथ ही साथ पंजे की निशान का प्रचार भी हो जायेगा ||


जन गण मन अधिनायक जय है भारत भाग्य विधाता................

लगता है हरविंदर के पीछे "सिब्बल या दिग्गी" का हाथ है, क्यूंकि ये झूठ बोलने आदत ज्यादातर कंग्रेसिओं में ही देखने को मिलता है ||


आम आदमी की पैसे से हम ऐस करेंगे
जो जनता कल मरने वाले हैं उन्हें आज मारेंगे ||
पीओ भाई और पीओ क्यूँ कि दीदी ने मरने वालों को २ २ लाख रूपया दे रही है | आदत बिगाड़ने के लिए ये प्रोच्छाहन दे रही है | जम के पीओ और मर जाओ कम से कम बीवी बच्चे तो बच जायेंगे || पीओ और मौज मनाओ ||


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आपने जो कहा है वो सोलाने सही है , लेकिन एक प्रश्न जो बार बार मन में उठ रहा है उसका निराकरण अत्यंत जरुरी है | जब अफज़ल गुरु के सपक्ष्य में सारे के सारे मुस्लिम सम्प्रदाय इकट्ठे हो जाते हैं और कसब के सपक्ष्य में बोलने लगते हैं, वैसे आज तक किसी हिन्दू ने ऐसा किया है ? कारण क्या है कोई बता सकता है ? हम  डरपोक  नहीं है, हम दुर्वल  भी नहीं  है | शिर्फ़ एक ही चीज का अभाव है हम में वो है हमारे अन्दर वो मानसिकता ही नहीं है | हिन्दू को जब मार पड़ता है तभी उसे भारत माता की याद आता है | अन्यथा वो सोये रहता है, भले पडोसी की घर मे आग लग जाये, भले पडोसी की माँ,बहन और बीवी को कोई विधर्मी भगा ले जाये उससे इसको कुछ फरक पड़ने वाला नहीं है | स्वार्थ से घिरे हैं हम,में और मेरा परिवार तक ही सिमित हैं हम | दोष किसे देंगे किसी राजनीति करने वाले को ? वो तो अपने न्यस्त स्वार्थ के कारण कुछ भी करने को तैयार रहते हैं | जागना है हमें, जगाना है दूसरों को, संगठीत होना है हमें तभी कुछ हो सकता है, वर्ना ऐसे ही तिल तिल मरते रहेंगे |    
भारत माता की जय
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यावतभ्रियेत जठरं तावत स्वत्वं हि देहिनाम
अधिकं योयोभिमन्यते स स्तेनो दंडमर्हती ?

जितने से पेट भर जाय उतने पर हि तुम्हारा अधिकार है | उससे अधिक लोगे तो तुम चोर हो,तुम्हे दंड मिलना चाहिये |हमारे यहाँ प्रकृति को माता माना गया है | जिस प्रकार बच्चा माँ का स्तनपान करता है -उतना ही दूध पीता है जितने की आवश्यकता होती है | पेट भर जाने के बाद माँ यदि जवरदस्ती दूध पिलाती है तो बच्चा मुँह फेर लेता है |हमें भी प्रकृति माता से उतना ही लेना चाहिये जितना हमारे लिए नितान्त आवश्यक है | उतना ही खाओ ताकि प्रकृति का भंडार सबके काम आ सके | कुछ लोगों ने ज्यादा खाया और कुछ भूखे रहे, कुछ लोग सुबह से शाम तक चर रहे हैं और कुछ लोगों भाग्य में एक समय का भोजन भी नहीं है इसका कारण क्या है ? हमारे यहाँ कहा गया है तेन त्यक्तेन भुन्जीथा मतलब जितना जरुरत है उतना ही उपभोग करो | लेकिन लगता है लोग जैसे खाने के लिए जीते हैं,जीने के लिए नहीं खाते | और इसीका परिणाम दूसरों को भोगना पड़ता है |और इसीका ही परिणाम है भ्रष्टाचार ||

परम आदरणीय भारतीय राजनीति के भीष्म पितामह माननीय अटलजी की दीर्घायु कामना करते हुए इतना ही कहना है
" है आदरणीय, भीष्म की प्रतिज्ञां सा अटल है आप,
ह्रदय तो है वज्र के समान,
लेकिन फूलों की पंखुड़ी सा कोमल है मन,
नन्हे बालक सा निश्चल निष्पाप और निष्कपट है आप "

Madan Mohan Malaviya was born to an orthodox Hindu family at Allahabad on December 25, 1861.Malaviya popularised the famous slogan "Satyameva Jayate" (Truth alone will triump). He was a great teacher and a follower of The Bhagavad Gita - A great Karmayogi.He established one of India's oldest and most prestigious universities, Banaras Hindu University(B.H.U), at Varanasi.He was founder editor of two nationalist weeklies called Hindustan (in Hindi) and The Indian Union (in English).[1] Malaviya was the president of the Indian National Congress in 1909 and in 1918. Like many of the living leaders of Indian National Congress he was a Moderate.He worked for the destruction of caste barrier in temples and other social barriers. He is believed to have undergone a Kayakalpa[citation needed]. Also, he organized a mass of 200 Dalit peoples, including the Hindu Dalit (Harijan) leader P. N. Rajbhoj to demand entry at the Kalaram Temple on a Rath Yatra day. All those who participated in this event took a dip in the Godavari River and chanted Hindu mantras. Pandit Madan Mohan Malaviya made massive efforts for the entry into any Hindu temple.




र्वीर्यहीन मनुष्य कैसे बलशाली हो सकता है ?????

मैं एक शांतिप्रिय आदमी हूँ (वैसे असल में मैं शांतिप्रिय नहीं हूँ ) क्यूँ कि मैं दुर्वल हूँ (मैं दुर्वल भी नहीं हूँ) | मुझे कोई एक थप्पड़ मारेगा (मारने की सोचने से पहले ही उसका थोबड़ा बिगाड़ दूंगा ) तो मैं दूसरा गाल आगे कर दूंगा | अगर कोई दुर्वल व्यक्ति यह कहे कि वो शांतिप्रिय और अहिंसक है, ये तो ऐसी बात हुई न कि कोई नपुंसक यह कहे कि वो संयमता पालन कर रहा है | अहिंसा की बात बलवान को ही शोभा देती है दुर्वल को नहीं,जैसे कि संयमता आचरण की बात पुरुषत्वहीन निर्वीर्य पुरुष की मुंह से शोभा नहीं देता | आज से अनेक साल पहले यह हमारा राष्ट्र जो की पौरषत्व युक्त बलशाली था, किसी पौरषत्व हीन दुर्वल व्यक्ति की बह्काबे में आकर भूल चुकी है |  र्वीर्यहीन मनुष्य कैसे बलशाली हो सकता है ?????

यह अगर इतना ही सच्चा इन्सान है तो राजनीति जैसे गन्दगी भरा कीचड़ में क्यूँ पड़ा है छोड़ क्यूँ नहीं देता राजनीति ? समाज सेवा बिना राजनीति के भी किया जा सकता है इसमें यूथ लोगों को बुलाने की भी जरुरत नहीं है यूथ अपने आप पहुँच जायेंगे |लोगों को कैसे ठगा जाये ये इससे सीखना चाहिए |

ये थप्पड़ की बात कर रहा है या व्हाई दिस कोलाबरी की एड कर रहा है ?

इस देश का नियम कानून सब कुछ गरीव और निर्धन लोगों पर ही लागू होता है जी | किसी पैसे वाले लोगों पर नहीं |
माँ  तब  भी  रोती  थी  जब  बेटा  खाना  नहीं  खता  था ,माँ  अब  भी  रोती  है  जब  बेटा  खाना  नहीं  खिलाता  है . एक  माँ तीन बेटे को पाल सकती  है  लेकिन  तीन  बेटों  से  एक  माँ  नहीं  पाली जा सकती . इस  मेसेज को  इतना  शेयर  करो  कि कोई  माँ  भूखी  न  रहे . इससे तुम्हारी सर पर माँ का आशीर्वाद सदा बनी रहेगी . ''माँ  मेरी  प्यारी  माँ ''


काँग्रेस का एक भी नेता ये बताने को तयार नहीं है की "एफ़डीआई" की क्या जरूरत है | 
पढे लिखे नेता कह रहे हैं सुनिए उनके तर्क अनपद आदमी भी हसेगा उन पर -

# किसानो को अच्छे दाम मिलेंगे - 
अब क्यों नहीं दे देते ? राजनीति के लिए कर्ज़ माफ कर देंगे पर 
महारास्ट्रे के किसानो को कपास का सही मूल्य नहीं देंगे

# इनफ्रास्ट्रक्चर लगाएँगे -
अब क्यों नहीं लगा देते ? सरकार अपनी जेब से क्यों नहीं लगा सकती ?
क्योंकि सरकार की अपनी कोई योग्यता ही नहीं है

# बीचोलिए खतम होंगे -
जिससे मेहंगाई घटेगी , देश की जनता को जहर दे दो -
सब खतम हो जाएंगे , पूरी महंगी खतम हो जाएगी ? कितना अजीब तर्क है - तुम तो आतंकवाद को भी कंट्रोल नहीं का कर सकते - फिर क्या करें?
हिंदुस्तान को अमेरिका या इंग्लैंड को दे दें ?

# क्वालिटी मिलेगी -
वाल मार्ट क्या अमेरिका से आयात करेगा वस्तुएं ?
चाइना का माल हम खुद आयात नहीं कर सकते ? हमारे किसानो ने पूरी दुनिया को खेती करना सिखाया , क्या ये लोग हमे सिखाएँगे क्वालिटी क्या है ? भारतवर्ष मैं जब 200 तरह का चावल उगाया जाता था उस समय पूरी दुनिया केवल मास खाती थी ? तो हमे अब खाना पीना अमेरिका से सीखना होगा ?

#रोजगार बढ़ेंगे
रोजगार बढ़ाएगी नहीं यहाँ के रोजगार को खत्म करके उस पर वे
खुद राज करेगी जो पैसे अमेरिका यूरोप जाएगा हमें मिलेगा तो चवन्नी अठन्नी ....

# डिस्ट्रिब्यूशन अच्छा होगा - सरकार की अपनी कोनसी लोजीस्टिक कंपनी है ? सरकार के अपने कोनसे कोल्ड स्टोरेज हैं ? सरकार फूड डिस्ट्रिब्यूशन पर कोनसी स्पेशल सब्सिडि देती है ? अगर सरकार खुद कुछ नहीं कर सकती तो क्या देश को बेच दोगे? क्या इंडिया मैं ऐसा कोई बिज़नस हाउस नहीं है जो इन सब मैं इनवेस्टमेंट कर सके और करवा सके ? अगर रिलायंस पावर मैं लोग अंधे हो कर इनवेस्टमेंट कर सकते हैं तो क्या आप रीटेल इनफ्रास्ट्रक्चर मैं स्माल सैक्टर के व्यापारियों से इनवेस्टमेंट नहीं करा सकते ?

अगर आप वास्तव मे एफ़डीआई के पक्ष मे हो तो निश्चित ही देश को गुलामी के रास्ते पर ले जा रहे हो ... नई ईस्ट इंडिया कंपनियों को पहले से ही खदेड़ दो नहीं तो काफी देर हो जाएगी हम तो दुध से जले है छाछ को फूँक फूँक कर पिएंगे



धन्यवाद भाई साब "MY MOTHER IS REALLY GREAT" 







शुक्रवार, 25 नवंबर 2011

MAHATMA GANDHI'S VIEW ON CONVERSION


MAHATMA GANDHI'S VIEW ON CONVERSION

Gandhi was one of those Hindus who had studied the scriptures of all the important religions with open mind and without prejudice. During his prayer meetings, parts of the Bible were read out and at times Psalms were sung along with ‘bhajans’. The Sermon on the Mount “went straight to his heart” he used to say. During his lifetime Gandhi had developed friendship with several Christians. Some of them had become his followers like C.F. Andrews, Raj Kumari Amrit Kaur, Madeleine Slade (Mirabehn), and J.C. Kumarappa, to name just a few. The great French writer and philosopher Romain Rolland (who also wrote Gandhi’s biography) used to call Gandhi a ‘second Christ’. In fact Gandhi had shocked the Christian world by living like Jesus without being a Christian. Like Jesus he disowned all property as well as his relatives; became a celibate at the age of thirty seven, lived a simple life adorned by Truth and like Jesus he had gathered around him followers (apostles) who were prepared to do his bidding without demur. His life-style and his preaching added to his charisma. He had become a phenomenon, an enigma, a saint worshipped by millions of people in India. 1
Christian missionaries were greatly tempted to convert a man like Gandhi. They thought that if Gandhi was converted millions of his followers would automatically follow suit. Christian missionaries came from all parts of the world, to discuss with him matters religious but often with the sole aim of converting him to Christianity. They argued with him. He listened to them patiently, argued with them and sometimes even rebuked them for mixing up social work with proselytising. What they had brought to sell did not appeal to the Mahatma. He used to tell the missionaries that he refused to believe that Jesus was the only son of God and that the salvation of a person lay in accepting Jesus Christ as the Saviour (in other words by becoming a Christians). 1
Gandhi’s first exposure to a Christian missionary, while studying in school, was not a very happy event. It left, it seems, a lasting impression on his mind as childhood impressions often do. Gandhi has described this incident in his Autobiography (1929) in the following words: 1
"In those days Christian missionaries used to stand in a corner near the high school and hold forth, pouring abuse on Hindus and their gods. I could not endure this. I must have stood there to hear them once only, but that was enough to dissuade me from repeating the experiment. About the same time, I heard of a well-known Hindu having been converted to Christianity. It was the talk of the town that, when he was baptized, he had to eat beef and drink liquor, that he also had to change his clothes, and that thenceforth he began to go about in European costume including a hat. These things got on my nerves. Surely, thought I, a religion that compelled one to eat beef, drink liquor, and change one’s own clothes did not deserve the name. I also heard that the new convert had already begun abusing the religion of his ancestors, their customs and their country. All these things created in me a dislike for Christianity." 1
While in England as a student (1888-91) Gandhi met several Christians, made a few friends but most of them were more interested in vegetarian diet than religious matters. Gandhi had become a member of the Vegetarian Society and discussed with other members matters dietary. The real confrontation with Christian missionaries started in 1893 while Gandhi was in South Africa. (This confrontation continued till almost the last days of his life). Gandhi has described these first attempts in detail in his Autobiography thus: 1
The first to come in contact was one Mr. A. W. Baker. He, besides being an attorney, was a staunch lay preacher. 1
He (Mr. Baker) upholds the excellence of Christianity from various points of view, and contends that it is impossible to find eternal peace, unless one accepts Jesus as the only Son of God and the Saviour of mankind. 1
During the very first interview Mr. Baker ascertained his religious views. Mahatma said to him: “I am a Hindu by birth. And yet I do not know much of Hinduism, and I know less of other religions. In fact I do not know where I am, and what is and what should be my belief. I intend to make a careful study of my own religion and, as far as I can, of other religions as well.” 1
Mr. Baker was happy to hear that and offered to introduce me to his co-workers in the church, which he had built at his own expense. He also gave some religious books to Gandhi to read, including the Holy Bible, of course. Mr. Baker had invited Gandhi to a prayer meeting next day, which Gandhi attended. Apart from the general prayer, Gandhi records: 1
“A prayer was now added for my welfare: Lord, show the path to the new brother who has come amongst us. Give him, Lord, the peace that thou have given us. May the Lord Jesus who has saved us save him too. We ask all this in the name of Jesus.” 1
One of the groups was a young man Mr. Coates, a Quaker. He had given Gandhi quite a few books on Christianity and had hoped that he would come round and embrace Christianity. Gandhi continues in the Autobiography: 1
“He (Mr. Coates) was looking forward to delivering me from the abyss of ignorance. He wanted to convince me that, no matter whether there was some truth in other religions, salvation was impossible for me unless I accepted Christianity which represented the truth, and that my sins would not be washed away except by the intercession of Jesus, and that all good works were useless.” 1
Gandhi was introduced to several other practicing Christians, including a family belonging to Plymouth Brethren, a Christian sect. one of the Plymouth Brethren confronted Gandhi with an argument for which he was not prepared. He said: 1
“How can this ceaseless cycle of action bring you redemption? You can never have peace. You admit that we are all sinners. Now look at the perfection of our belief. Our attempts at improvement and atonement are futile. And yet redemption we must have. How can we bear the burden of sin? We can but throw it on Jesus. He is the only sinless Son of God. It is His word that those who believe in Him shall have everlasting life. Therein lies God’s infinite mercy. And as we believe in the atonement of Jesus, our own sins do not bind us. Sin we must. It is impossible to live in this world sinless. And therefore Jesus suffered and atoned for all the sins of mankind. Only he who accepts His great redemption can have eternal peace. Think what a life of restless is yours, and what a promise of peace we have.”
Gandhi’s reaction to this offer is typical of him and is oft quoted by his western biographers like Erik Erikson and Geoffrey Ash: 1
“The argument utterly failed to convince me. I humbly replied: If this be the Christianity acknowledged by all Christians, I cannot accept it. I do not seek redemption from the consequences of my sin. I seek to be redeemed from sin itself or rather from the very thought of sin. Until I have attained that end, I shall be content to be restless.” 1
Gandhi was troubled with what was written in the Bible itself after he started reading it. Gandhi narrates another experience: 1
“Mr. Baker was getting anxious about my future. He took me to the Wellington Convention. The Protestant Christian organizes such gatherings every few years for religious enlightenment or, in other words, self-purification. --- Mr. Baker had hoped that the atmosphere of religious exaltation at the Convention, and the enthusiasm and earnestness of the people attending it, would inevitably lead me to embrace Christianity. --- The Convention lasted for three days. I could understand and appreciate the devoutness of those who attended it. But I saw no reason for changing my belief - my religion. It was impossible for me to believe that I could go to heaven or attain salvation only by becoming a Christian. When I frankly said so to some of the good Christian friends, they were shocked. But there was no help for it.” 1
Gandhi continues: “My difficulties lay deeper. It was more than I could believe that Jesus was the only incarnate Son of God, and that only he who believed in him would have everlasting life. If God could have sons, all of us were His sons. If Jesus was like God or God himself, then all men were like God and could be God himself. My reason was not ready to believe literally that Jesus by his death and by his blood redeemed the sins of the world. Metaphorically there might be some truth in it. Again according to Christianity only human beings had souls, and not other living beings, for which death meant complete extinction; while I held a contrary belief. I could accept Jesus as a martyr, an embodiment of sacrifice, and a divine teacher, but not as the most perfect man ever born. His death on the cross was a great example to the world, but that there was anything like a mysterious or miraculous virtue in it my heart could not accept. The pious lives of Christians did not give me anything that the lives of men of other faiths had failed to give. I had seen in other lives just the same reformation that I had heard of among Christians. Philosophically there was nothing extraordinary in Christian principles. From the point of view of sacrifice, it seemed to me that the Hindus greatly surpassed the Christians. It was impossible for me to regard Christianity as a perfect religion or the greatest of all religions. 1
I shared this mental churning with my Christian friends whenever there was an opportunity, but their answers could not satisfy me.” 1
Gandhi was only twenty-four when these skirmishes with Christian missionaries occurred. This shows an amazing maturity of thought at this young age. 1
Let us take note of what Gandhi had thought about Christianity and Conversion: -
"I speak from experience, that many of the conversions are only so called. In some cases, the appeal has gone not to the heart but to the stomach. And in every case, a conversion leaves a sore behind it, which, I venture to think, is avoidable." 1
In answering a question from an American student of frank evaluation of the work of Christian missionaries in India. Gandhi said, "In my opinion Christian missionaries have done good to us indirectly. Their direct contribution is probably more harmful than otherwise. I am against the modern method of proselytising. Years’ experience of proselytising both in South Africa and India has convinced me that it has not raised the general tone of the converts who have imbibed the superficialities of European civilization, and have missed the teaching of Jesus. I must be understood to refer to the general tendency and to brilliant exceptions. The indirect contribution, on the other hand, of Christian missionary effort is great. It has forced us to put our own house in order. The great educational and curative institutions of Christian missions I also count, amongst indirect results, because they have been established, not for their own sakes, but as an aid to proselytising." (Vol. 29 p.326.Young India 17-12-1925) 1
Replying to question " if non-Christians in the Indian Dominion would have freedom to embrace Christianity" by the President of the Punjab Student Christian League, Gandhiji said: 1
"They would be guided in this connection by the rules and laws framed. Christ came into this world to preach and spread the gospel of love and peace, but what his followers have brought about is tyranny and misery. Christians who were taught the maxim ‘Love thy neighbour as thy self,’(1) are divided among themselves." (Hindustan Times, 3-8-1947, Vol. 88 p.471-72) 1

गुरुवार, 24 नवंबर 2011

अनिबर्य हेलमेट बिल


आज संसद में एक नया बिल पास होने जा रहा है,
इस बिल को भ्रष्ट नेताओं का जोरदार समर्थन मिलने की आसार दिख रहा है |
ये बिल सरद पवार की थप्पड़ की वजह से लाया जा रहा है |.
बिल में  भ्रष्ट राज नेताओं को फुल फेस हेलमेट पहनना अनिवार्य कर दिया गया है |
संसद भवन से बाहर निकलते ही हेलमेट पहनना जरुरी कर दिया गया है |
इससे मुंह पर थप्पड़,चप्पल,थूक और सर पर लाठी का कोई असर नहीं पड़ेगा |
ये बिल पास होने से पहले ही हेलमेट कम्पनिओं में होड़ सुरु हो गयी है |




आज का नारा .........................
एक चांटा और कसके मारो, भ्रष्टाचारियो को तड़ीपार करो .................
जो भ्रष्टाचार से दूर होगा, वही देश पर राज करेगा ......................




गली गली में एक ही नारा 
धन्य है वो माँ जिसकी बेटे ने ये थप्पड़ मारा ||  




जो इस घटना की निंदा करेगा 
वो भी इस तरह थप्पड़ खायेगा ||

बुधवार, 23 नवंबर 2011

He is a NATO guy

Amethi has 39.5% literacy level (national average being around 65%), (2) Around 50% population is below poverty line (3) Only 15% population has access to electricity (4) Vaccination level is below 16% (5) Around 16% of children die below age of 5 years (6) Amethi received Rs.3.06 crore as developmental fund (or MPLAD) from Govt. of India in 2009-10 of which Rahul Gandhi used merely 5.89% (0.18 crore). SECOND, let us see his record as a champion youth icon Member of Parliament : (1) The national MP attendance average in the parliament is 77%. Rahul Gandhi's attendance is 47%. (2) National average for questions asked by MPs in parliament is 119. Rahul Gandhi asked ZERO questions. (3) The national average for Debates attended by MPs is 15.6. Rahul Gandhi attended ZERO debates. (source: PRS Legislative) This so-called youth icon and leader is a farcical creation of the media.
This guy cannot do anything. He is a NATO guy, that is NO ACTION TALK ONLY. Surprised to hear that he didn't even talk to people. Good Luck to India and Congress Party. We can see more tamashas.

मंगलवार, 22 नवंबर 2011

देखें एक बिन माँ बाप के बच्चे की तस्वीर

देखें एक बिन माँ बाप के बच्चे की तस्वीर, अरे ओ मीडिया वाले क्या ये बच्चे तुम लोगों को नजर नहीं आ रहे है ????????










अमिताभ बच्चन के घर में बच्चा हुआ उसको दिखा रहे हो लेकिन सड़क के किनारे ऐसे हजारों अनाथ बच्चे पड़े हैं ये नजर नहीं आ रही है ?
शायद मीडिया वालों की कैमरे की आँख इनको देख पता ?

कुछ लेख

काम्युनाल मीडिया खुद को धर्म निरपेक्ष्य साबित करने के लिए नीच से नीच हरकत  करने में पीछे  नहीं  हटेगा,ये जिस दिन सच्चा धर्म निरपेक्ष्य बन जायेंगे उसी दिन इनके आका लोग इनको धक्के मार कर मीडिया से निकाल देंगे  |
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गरीव को आज तक किसने पहचाना ? सब अमीर के पीछे पागल है पर्टिकुलर मीडिया वाले इनका क्या कहना जब इनका खाने की बारी आती है तो ये किसी अमीर के पीछे लग जायेंगे इन्होने कभी किसी गरीव को देखा है क्या ? कभी किसी गरीव के बारे में सोचा है क्या ? सिर्फ और सिर्फ पैसे के पीछे पागल है ये मीडिया वाले ||
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शराब हो या मदिरा बात प्रायतः एक ही है मतलब नशा, इसे पैसे वाले लोग बार में या किसी किसी ने अपने घर पर ही बार खोल रखे हैं और बैठ कर पीते हैं और गरीव बेचारे भट्टी में पीते हैं और किसी किसी ने भट्टी से लाकर घर पर पीते हैं || पैसे बाले पीकर हुडदंग करते हैं लेकिन सम्मानित जन होते हैं इसीलिए उनकी उटपटांग हरकतों को नजरअंदाज़ कर दिया जाता है लेकिन गरीव बेचारा हुडदंग करते ही पोलिस या साधारण जनता के हाथों से  पिट जाता है || पैसे वाले की इज्जत बेआबरू होने से बच जाती है लेकिन गरीब की इज्जत का जनाजा निकाल जाती है || जब पैसे वाले नशे की हालत में आधी रात को घर पहुँचते हैं शायद ही उनकी बीवी या बच्चे उनके इन्तजार में बैठी रहते हो क्यूंकि उनको पता है वो होटल से भर पेट खा कर आयेगा, लेकिन गरीब की बीवी और बच्चे उसकी इन्तजार में बिना खाए जागते रहते हैं कि वो कब आएगा उसके साथ सब मिल कर खायेंगे लेकिन ये नसे में धुत होकर घर पहुँचते ही लढना झगड़ना शुरू कर देता है और उसके बीवी बच्चे वैसे ही बिना खाए शो जाते हैं, पैसे वाले की मकान बहुत बड़ी होती है उसके अन्दर की लढाई झगडे की शोर बाहर नहीं पहुँच पाता है चार दिवार की अन्दर दब जाता इसीलिए वो इज्जतदार बन जाता है और गरीब की झोपडी से जो शोर निकलता है वो महल्ले से बाहर निकाल आती है इसीलिए उसकी इज्जत का जनाजा निकाल जाता है और बेचारा गरीब की इज्जत की नीलामी के साथ साथ पैसे की भी बर्बादी हो जाती है और पैसे बाले लोग आपने इज्जत को बचाने के लिए पैसे की बर्बादी करते हैं ||     
    

रविवार, 20 नवंबर 2011

वाह क्या बात है ..............

वाह क्या बात है ..................
चोरी करने वाला सीना ठोक कर कहता है मैं सच्चा हूँ,
चोर का साथ देने वाला ठग भी कहता है कि मैं सही हूँ,
जिसने चोरी होते हुए देखा वो भी कहता है
चोर चोरी नहीं कर रहा है वो तो समाजसेवक है |
सारी दुनिया जानती है कि वो एक डकायत है
लेकिन उसके रखवाले कहते हैं कि वो डकायत नहीं
वो तो साधू है ||,
वाह भाई वाह क्या बात है.................
लोगों का घर जलाना,खेत खलिहानों को लूटना
लोगों को डराना धमकाना,लोगों से जबरन पैसा असुली करना
पैसा न मिलने पर हत्या करना अगर समाजसेवा है साधुता है
तो फिर क्यूँ न हम लोग भी इस महान काम में लग जाएँ
इससे समाजसेवक होने की वाह वाही मिल भी जायेंगे
और तो और आप के बड़े बड़े रखवाले भी निकल आएंगे ||
वाह भाई वाह क्या बात है ........................




स्वामी रामदेवजी, नरेन्द्र मोदीजी और सुब्रमनियम स्वामीजी से ही क्यों डरती है कांग्रेस ?


स्वामी रामदेवजी, नरेन्द्र मोदीजी और सुब्रमनियम स्वामीजी से ही क्यों डरती है कांग्रेस ?

१-स्वामी रामदेव जी के तर्क के आगे कांग्रेस के तथाकथित प्रवक्ता ५ मिनट भी नहीं टिकते है और काले धन के बारे में प्राप्त होती नयी नयी खातेदारो की सूचि से सरकार परेशान हो चुकी है की अब जनता को कैसे बरगलाया जाये. .

२- राम देव जी के पास कांग्रेस का वास्तविक इतिहास का साक्ष्य है, उनके खानदानी नेताओ की असलियत, उनके कारनामो का काला चिटठा, नेहरू और गाँधी खानदान की जड़, उनका हिंदूविरोधी होने का कारन सब कुछ उजागर हो चूका है. कांग्रेस के हिंदू विरोधी कानूनों की वजह सबको मालूम पड़ गयी है.

३- रामदेव जी का एक स्थाई कार्यकर्ताओ की जमात का खड़ा हो जाना जो की सिर्फ राष्ट्रवाद के नारे से जुड़ा हुआ है और इन कार्यकर्ताओ का जल्दी से जल्दी व्यवस्था और सत्ता परिवर्तन की अकुलाहट कांग्रेस के लिए चिंता का कारन है.

४-रामदेव जी का काले धन पर अगले साल शुरू किया किया जाने वाला निर्णायक आन्दोलन कांग्रेस को बहुत ही भारी पड़ेगा अब जब की कांग्रेस के लोग खुले तौर से स्वामीजी का विरोध करना शुरू कर दिये है, उस समय जब पूरा देश कांग्रेस के विरोध में है,यूपी के चुनाव सर पर है, स्वामी जी एक आवाज़ कांग्रेस के लिए मिट जाने का सबब बन सकती है.

५- कांग्रेस का कालेधन पर देश को गुमराह करना, कालेधन को वादा करने के बावजूद राष्ट्रीय संपत्ति घोषित न करना, शातिराना तरीके से ७० देशो से दोहरा कराधान समझौते की आड़ में जानकारी उजागर न करना, प्रणव का ऐसे समझौते करना जिससे की अप्रैल-२०१२ के पहले जानकारी नहीं मिलाने की बाध्यता, पैसे का श्रोत, मात्रा , पैसे का मालिक, पैसा चुराने का समय, खाता धारक को कानून से बचा के रखने की सरकार की जिम्मेदारी जैसे देशद्रोही कानूनों पर दस्तखत कांग्रेस को डुबो देगी.

६-सुब्रमनियम स्वामी जी का अंतर्राष्ट्रीय छात्रों का नेटवर्क, उनके छात्रों का भारत और विदेशो में शीर्ष पदों पर काम करना, उनकी इमानदारी, उनका ज्ञान, उनका राष्ट्र प्रेम, उनका युवाओ में लोक प्रिय होना, उनका कानून का जानकार होना, स्वामी रामदेवजी की शीर्ष सूचि में उनका नाम होना, एक राष्ट्रीय पार्टी जनता पार्टी का अध्यक्ष होना, कांग्रेस / नेहरू खानदान का पक्का विरोधी होना, सोनिया और राहुल का असली रिकार्ड उनके पास होना, सोनिया के कारनामो की फेहरिस्त का सबूत होने की वजह से और हिन्दुवादी मुखर नेता होने की बजह से कांग्रेस सबसे ज्यादा इन्ही से डर रही है. और यदि दोनों स्वामी मिलकर साथ आ जाये तथा मोदी का साथ भी मिल जाये तो कांग्रेस सफाया निश्चित है.

७-हिंदू युवाओ में मोदी की हीरो की छवि और मोदी का हिन्दुवादी कट्टर नेता की छवि, आर एस एस की पहली पीएम पसंद होना, दक्षिण भारत में हिन्दुओ के मोदी की कड़क नेता की छवि, मोदी का रामदेवजी के बचाव में खड़े होना, गुजरात में विकास पुरुष की छवि बनाना, भाजपा के युवा कार्यकर्ताओ में मोदी का पीएम का उम्मीदवार होना कंग्रेस के बड़ी परेशानी का सबब है. नयी पीढ़ी और सूचना संचार से जुड़े युवाओ के हीरो मोदी ही है जो कांग्रेस के प्रचार तंत्र पर भारी पड़ रहे है. कांग्रेस को बिकी हुई मिडिया और इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन का सहारा है.

आने वाले नए साल में नए सिरे से कालेधन को भारत लाने के अभियान में पूरी तरह से शामिल होने की तैयारी करें और इस आन्दोलन को निर्णायक आन्दोलन साबित करे.

थमेंगे रथ के पहिए घूमेगा सियासी चक्र

भ्रष्टाचार के मुद्दे पर यूपीए सरकार के खिलाफ निकले भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी के रथ के पहिए रविवार को भले ही थम रहे हैं लेकिन उनसे उठी सियासी आंधी संसद पर दस्तक देने को तैयार है। काले धन और भ्रष्टाचार को लेकर केंद्र के खिलाफ भाजपा का महासंग्राम अब सड़क से संसद की चौखट तक पहुंचने जा रहा है। देश भ्रमण के दौरान अपनी जनचेतना यात्रा के जरिए भाजपा नेता तो यह संदेश देते ही आ रहे थे लेकिन रविवार को इसका और स्पष्ट खुलासा हो जाएगा जब रथ से उतरकर आडवाणी सरकार पर और दूने तेवरों के साथ चढ़ाई करेंगे।

जो मास्टरमाइंड, उन्हें छोड़ जा रहा
कैश फॉर वोट कांड को भ्रष्टाचार पर कड़ाई करने की यूपीए की कथित नाकामी साबित करने का सियासी अस्त्र बना रही भाजपा ने तो मामले में तिहाड़ में बंद रहे अपने पूर्व सांसदों को सम्मानित कर यही संदेश दिया है कि इस मुद्दे का इस्तेमाल प्रमुख विपक्षी दल किस तरह करने जा रहा है। भाजपा लगातार यही कहती आ रही है कि कैश फॉर वोट की सच्चाई सामने लाने वाले उसके सदस्यों पर कार्रवाई की जा रही है और जो मास्टरमाइंड हैं उन्हें छोड़ा जा रहा है।

देश में व्याप्त भ्रष्टाचार को महंगाई की वजह बताकर इस मुद्दे को आम आदमी से सीधे जोड़ चुके आडवाणी कांग्रेस को जनता की नजरों में दोषी ठहराने की हर संभव कोशिश करते नजर आएंगे। पिछले कई माह में सरपट भागते रोजमर्रा की वस्ुतओं के दाम और उन पर लगाम लगाने में सरकार की कथित नाकामी के आरोपों से संसद तो गूंजेगी ही। साथ ही जनचेतना यात्रा के दौरान जनता से संवाद कर लौटे आडवाणी सरकार को जन अपेक्षाओं के बारे में बताने का भी कोई मौका नहीं चूकेंगे।

भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता को केंद्र सरकार से राहत नहीं मिलने से दोहरी निराशा का जिक्र तो आडवाणी लगातार करते आ रहे हैं। रथयात्रा समापन से दो दिन पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर निशाना साधकर आडवाणी ने साफ कर दिया है कि भाजपा ने यूपीए अध्यक्ष को भी असहज करने की पूरी रणनीति तैयार की है। आडवाणी ने कहा भी कि देश को परेशान कर रहे कई अहम मुद्दों पर तो सोनिया गांधी का रुख ही आज तक कोई नहीं जानता है।

गुजरात में गौ हत्या पर 7 साल की सजा

 गुजरात में गौ हत्या करने वालों की अब खैर नहीं। गुजरात सरकार ने गौ हत्या पर जुर्माने और सजा के नियमों को बेहद कड़ा कर दिया है। मंगलवार को इससे जुड़ा विधेयक सर्वसम्मति से विधानसभा में पारित कर दिया गया। इस विधेयक के मुताबिक गाय को हत्या के नीयत से ले जा रहे शख्स को 7 साल जेल हो सकती है। 

गौ हत्या को बैन करने वाले गुजरात एनिमल प्रेजर्वेशन ऐक्ट (जीएपीए) 1954 में इस इरादे से मवेशियों को ले जाते वक्त पकड़े जाने वालों पर कार्रवाई का कोई प्रावधान नहीं था। मंगलवार को गुजरात एनिमल प्रेजर्वेशन (संशोधित) बिल 2011 पेश करते हुए राज्य के कृषि मंत्री दिलीप संघानी ने कहा कि नए कानून में गौ हत्या के जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़े प्रावधान किए गए हैं। इस विधेयक को विपक्षी कांग्रेस ने भी अपना समर्थन दिया है। 

इसके तहत गौ हत्या पर 6 माह की सजा को बढ़ाकर 7 साल और जुर्माना 1,000 से बढ़ाकर 50,000 रुपये कर दिया गया है। नए विधेयक में हत्या के मकसद से गायों को ले जा रहे वाहन को भी जब्त करने का प्रावधान किया गया है। कृषि कार्य या पालन के उद्देश्य से मवेशियों को एक से दूसरी जगह ले जाने के लिए पूर्व अनुमति लेनी पड़ेगी। 

दूसरी तरफ विधेयक पर चर्चा के दौरान विपक्ष के नेता शक्ति सिंह गोहिल ने कहा कि मालधारी समुदाय के बीच सरकार के प्रति गुस्सा है। गोहिल के मुताबिक 1980 में राज्य में जहां 3,32,000 हेक्टेयर भूमि गायों के चरागाह के तौर पर मौजूद थी जो एक साल पहले तक सिकुड़ कर बेहद कम रह गई है। सरकार ने इसमें से ज्यादातर जमीन उद्योगपतियों को बेच दी है।

और भी रूप हैं भ्रष्टाचार के


आज जब भी हम भ्रष्टाचार की बात करते हैं,तो अक्सर सरकारी कर्मचारियों द्वारा ली जाने वाली रिश्वत को ही लक्ष्य मानते हैं या समझते है. वास्तव में भ्रष्टाचार का रूप काफी व्यापक है. भ्रष्टाचार के मूल अर्थ है भ्रष्ट आचार अर्थात कोई भी अनैतिक व्यव्हार, गैरकानूनी व्यव्हार भ्रष्टाचार ही होता है. अतः सिर्फ नौकरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाकर वांछित परिणाम प्राप्त नहीं किये जा सकते .आम जनता को भी अपने व्यव्हार में ईमानदारी,पारदर्शिता,शुचिता,मानवता जैसे गुणों को अपनाना होगा. आईये देखते हैं कैसे;
1. उचित मार्ग अर्थात नैतिकता और आदर्शों पर चलने वाले व्यक्ति को साधारणतया हम मूर्ख कहते है, अव्यवहारिक कहते हैं,कभी कभी बेचारा भी कहते हैं.
2. कोई भी सरकारी या गैरसरकारी कर्मचारी अपने कार्य के प्रति उदासीन रहता है ,जनता की समस्या को सुनने,समझने समाधान करने में कोई रूचि नहीं रखता.
3. दुकानदार नकली वस्तुओं को असली बता कर बेचता है,और अप्रत्याशित कमाई करता है.
4. उत्पादक नकली वस्तुओं या मिलावटी वस्तुओं का निर्माण करता है,उन्हें असली ब्रांड नाम से पैक करता है.
5. कोई भी जब दहेज़ की मांग पूरी न होने पर बहू को प्रताड़ित करता है उसके साथ हिंसक व्यव्हार करता है.
6. जब कोई व्यक्ति किसी महिला के साथ छेड़खानी करता है, तानाकशी करता है.या दुर्व्यवहार करता है.
7. ऑफिस में,व्यवसाय में,कारोबार में कार्यरत मातहत महिला की विवशता का लाभ उठाते हुए उसका शारीरिक या मानसिक शोषण किया जाता है.
8. समाज में किसी के भी साथ अन्याय,दुराचार,अत्याचार किया जाता है.
9. चापलूसी कर कोई नौकरी हड़पना,या फिर अपने प्रोमोशन का मार्ग प्रशस्त करना भी भ्रष्टाचार का ही एक रूप है.
10. यदि कोई व्यक्ति योग्य है ,सक्षमहै ,कर्मठ है,बफादार है अर्थात सर्वगुन्संपन्न है परन्तु चापलूस नहीं है, इस कारण उसे प्रताड़ित किया जाना,दण्डित करना,अपमानित करना भी क्या भ्रष्टाचार का हिस्सा नहीं है?
11. अपने छोटे से लाभ की खातिर किसी दलाल,कमीशन एजेंट,व्यापारी द्वारा ग्राहक को दिग्भ्रमित करना और ग्राहक की बड़ी पूँजी को दांव पर लगा देना क्या भ्रष्टाचार का ही रूप नहीं है?
12. डाक्टर,इंजीनयर ,मिस्त्री,अपने लाभ के लिए अनाप शनाप बिल बना कर ग्राहक के साथ अन्याय करते हैं.
13. असंयमित आहार विहार अथवा असंतुलित खान पान द्वारा विभिन्न बिमारियों को आमंत्रित कर लेना भी भ्रष्टाचार का ही रूप है स्वयं अपने साथ अन्याय है .मदिरा पान,बीडी सिगरेट व अन्य नशीले पदार्थों का सेवन अपने शरीर पर अत्याचार है, भ्रष्टाचार है.

शनिवार, 19 नवंबर 2011

आजाद भारत के महान घोटाले


आजाद भारत के महान घोटाले

किसी भी लोकतंत्र का स्वास्थ्य इस बात पर निर्भर करता है कि उसके तीनों अंगों-विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संबंध कैसे हैं और इन तीनों में जवाबदेही बची है या नहीं. आज भारत की दुर्दशा भी इन्ही दो कारकों पर आंकी जा सकती है. पिछले साल भारत में भ्रष्टाचार और घोटालों का बोलबाला रहा. ऐसा लगा, जैसे भारत में घोटाले नहीं, घोटालों में भारत है. आम जनता जहां महंगाई से बदहाल हुई जा रही है, वहीं हमारे नेता और सरकारी अफ़सर नियमों को ताक पर रखकर बेशर्मी से जनता का पैसा दबाए जा रहे हैं. देखने में आया कि भारतीय प्रजातंत्र के तीनों अंग आपस में ही लड़ते रहे. लड़ ही नहीं रहे हैं, बल्कि अपने भीतर के ही विरोधाभासों से जंग भी कर रहे हैं. मंत्री प्रधानमंत्री की बात नहीं मानते हैं और सुप्रीमकोर्ट हाईकोर्ट में हो रहे भ्रष्टाचार पर उंगली उठा रहा है. सरकारी अफ़सर घोटालों में लिप्त होने के बावजूद पद छोड़ने को तैयार नहीं हैं. भारत में आज ये सारी घटनाएं एक साथ ऊपरी सतह पर और जनता के सामने आ गई हैं, इसलिए आश्चर्य होता है. लेकिन ऐसा नहीं है कि घोटाला और अनियमितता कोई नई बात है. इस देश में घोटालों की पूरी श्रृंखला है और वह भी बहुत लंबी. भारत में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जहां घोटाले नहीं हुए हैं. पहले ये सारे घोटाले जनता की नज़र से या तो बच जाते थे या दबा दिए जाते थे. बात यह भी है कि आपस में ही फूट पड़ने की वजह से राज्य के तीनों तंत्रों में झगड़ा हो गया है और सब एक-दूसरे का गिरेबान पकड़ने में लग गए हैं. अच्छी बात यह है कि इस वजह से जनता को घोटालों के बारे में पता भी चल गया है. आज के भारत में किसी को भी ईमानदार कहना एक ज़ोखिम की बात बन गई है. कल के जो ईमानदार थे, आज उनकी कलई खुल गई है. आज भी मनमोहन सिंह अपने आप को जितना पाक-साफ़ बताएं, लेकिन जनता ने सबसे बड़े घोटाले तो उन्हीं की नाक के नीचे होते देखे हैं. यही हाल शुरू से रहा है. कोई नई बात नहीं है यह. वी के कृष्णमेनन का मुस्तक़बिल इतना ऊंचा था कि खुद नेहरू जी ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया था और उन्हें भारत के रचयिताओं में जगह दी. लेकिन भारत का पहला घोटाला भी उन्होंने ही कर डाला था, यह भी सच है. आज़ाद होने के बाद से अब तक हमारे प्रजातंत्र का बुरा हाल हो गया है. जवाबदेही धीरे-धीरे सामाजिक जीवन से ग़ायब होती जा रही है. देशप्रेम की कोई जगह नहीं बची है. देश के नेताओं और सरकारी अफसरों के मूल्य घटते जा रहे हैं और आज स्थिति यह आ गई है कि सभी जनता को ठगने में लगे हुए हैं. आइए, हम आपको बताते हैं कि इस पूरे भ्रष्ट तंत्र की नींव इतिहास में कितनी दूर तक जाती है और भारत के सबसे बड़े घोटालों के  इतिहास से आपका परिचय कराते हैं.
एक पौधे को वटवृक्ष बनने के लिए भरपूर खाद-पानी की भी ज़रूरत होती है. आज़ादी के ठीक बाद हमारे राजनेताओं ने घोटालों के फलने-फूलने का पूरा इंतजाम कर दिया था. अगर जीप घोटाले के आरोपी वी के कृष्णमेनन को रक्षा मंत्री नहीं बनाया जाता, प्रताप सिंह कैरों को क्लीन चिट नहीं दी जाती और नागरवाला कांड की सच्चाई जनता के बीच आ जाती तथा असली गुनहगारों का पता चल जाता तो शायद फिर कोई प्रभावशाली आदमी घोटाला करने से डरता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. नतीजतन, इस देश को जीप से लेकर 2-जी स्पेक्ट्रम तक सैकड़ों घोटाले सहने पड़े. और न जाने कब तक यह सब सहना पड़ेगा.
जीप घोटाला आज़ाद हिंदुस्तान का पहला घोटाला था. देश अभी आज़ादी के बाद कश्मीर मसले पर पाकिस्तान से दो-दो हाथ कर चुका था. तब वी के मेनन ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त थे. पाकिस्तानी हमले के बाद भारतीय सेना को क़रीब 4603 जीपों की जरूरत थी. मेनन इस सौदे में कूद पड़े. उनके कहने पर रक्षा मंत्रालय ने उस वक्त 300 पाउंड प्रति जीप के हिसाब से 1500 जीपों का आदेश दे दिया, लेकिन 9 महीने तक जीपें नहीं आईं. 1949 में जाकर महज 155 जीपें मद्रास बंदरगाह पर पहुंचीं. इनमें से ज्यादातर जीपें तय मानक पर खरी नहीं उतरीं. जांच हुई तो मेनन दोषी पाए गए, लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं हुआ. आगे चलकर उन्हें रक्षा मंत्री भी बनाया गया. ज़ाहिर है, जीप घोटाले ने भारत को घोटालों के देश में तब्दील करने के लिए बीजारोपण तो कर ही दिया था, क्योंकि इससे यह साबित हुआ कि आप भले ही घोटाले कर लो, लेकिन सत्ता पक्ष का समर्थन आपके पास है तो आपको कुछ नहीं होगा. इसमें बाद में कुछ भी नहीं हुआ.
स़िर्फ 1992 से लेकर अब तक घोटालों की वजह से देश की आम जनता का लगभग एक करोड़ करोड़ रुपये (10000000 रुपये) का नुक़सान हो चुका है या कहें, आम आदमी का एक करोड़ करोड़ रुपया लूटा जा चुका है.
अब जीप के बाद बारी थी साइकिल की, जो साइकिल इंपोट्‌र्स घोटाले के रूप में सामने आई. 1951 में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के सचिव एस ए वेंकटरमण थे. ग़लत तरीक़े से एक कंपनी को साइकिल आयात करने का कोटा जारी करने का आरोप लगा. इसके बदले उन्होंने रिश्वत भी ली. इस मामले में उन्हें जेल भी भेजा गया. लेकिन ऐसा भी नहीं था कि हर मामले में आरोपी को जेल भेजा ही गया. जैसे सिराजुद्दीन की डायरियों का मामला. साइकिल घोटाले के 6 साल बाद यानी 1956 में यह खबर आई कि उड़ीसा के कुछ नेता व्यापारियों के काम कराने के बदले उनसे दलाली ले रहे थे. जब इस संबंध में छापेमारी हुई. पूर्वी भारत के एक बड़े व्यवसायी मुहम्मद सिराजुद्दीन एंड कंपनी के कोलकाता और उड़ीसा स्थित दफ्तरों में भी छापेमारी हुई. पता चला कि सिराजुद्दीन कई खानों का मालिक है और उसके पास से एक ऐसी डायरी मिली, जिससे साबित हो रहा था कि उसके संबंध कई जाने-माने राजनेताओं से थे. लेकिन इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं हुई. कुछ समय बाद जब यह खबर मीडिया के हाथ लगी और छपने लगी, तब तत्कालीन खान और ईंधन मंत्री केशव देव मालवीय ने यह स्वीकार किया कि उन्होंने उड़ीसा के एक खान मालिक से 10,000 रुपये की दलाली ली थी. बाद में नेहरू के दबाव में मालवीय को इस्ती़फा देना पड़ा. लेकिन इस सबके बीच एक अच्छी बात यह रही कि उस वक्त भी कुछ ऐसे लोग थे, जो भ्रष्टाचार के खिला़फ लिख-बोल सकते थे. उदाहरण के लिए मूंध्रा कांड. 1957 में फिरोज गांधी ने एक सनसनीखेज कांड का खुलासा कर संसद को हिला दिया. उन्होंने बताया कि उद्योगपति हरिदास मूंध्रा की कई कंपनियों को मदद पहुंचाने के लिए उनके शेयर भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) द्वारा 1.25 करोड़ रुपये में खरीदवाए गए. निगम द्वारा शेयरों की बढ़ी हुई कीमत दी गई. जांच हुई तो उस मामले में वित्त मंत्री टी टी कृष्णामाचारी, वित्त सचिव एच एम पटेल और भारतीय जीवन बीमा निगम के अध्यक्ष दोषी पाए गए. मूंध्रा पर 160 करोड़ रुपये के घोटाले का आरोप था. 180 अपराधों के मामले थे. दबाव बढ़ा तो वित्त मंत्री को पद से हटा दिया गया. मूंध्रा को 22 साल की सजा मिली. कृष्णामाचारी को तो उनके पद से हटा दिया गया, लेकिन प्रताप सिंह कैरों के मामले में सरकार ने ऐसी तेज़ी नहीं दिखाई. 1963 में पंजाब के मुख्यमंत्री सरदार प्रताप सिंह कैरों के खिला़फ कांग्रेसी नेता प्रबोध चंद्र ने आरोपपत्र पेश किया. आरोपपत्र में ये बातें शामिल थीं कि पंजाब के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों ने मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए अनाप-शनाप धन-संपत्ति जमा किया. इसमें उनके परिवारीजन शामिल थे. मसलन, अमृतसर कोऑपरेटिव कोल्ड स्टोरेज लि., प्रकाश सिनेमा, कैरों ब्रिक सोसायटी, मुकुट हाउस, नेशनल मोटर्स अमृतसर, नीलम सिनेमा चंडीगढ़, कैपिटल सिनेमा जैसी संपत्तियों पर प्रताप सिंह कैरों के रिश्तेदारों का मालिकाना हक़ था. जब जांच हुई तो रिपोर्ट में कहा गया कि कैरों के पुत्र एवं पत्नी ने पैसा कमाया है. लेकिन इस सब के लिए प्रताप सिंह कैरों को सा़फ-सा़फ बरी कर दिया गया. कैरों तो बच गए, लेकिन एक और मुख्यमंत्री बीजू पटनायक अपनी कुर्सी नहीं बचा पाए. उड़ीसा के मुख्यमंत्री बीजू पटनायक पर यह आरोप लगा कि उन्होंने अपनी ही एक निजी कंपनी कलिंगा ट्यूब्स को एक सरकारी ठेका दिया. इस आरोप के बाद उन्हें इस्ती़फा देने पर मजबूर होना प़डा. इतने सालों में राजनेताओं और घोटालों का मानो एक अनकहा संबंध स्थापित हो गया था और इसमें प्रधानमंत्री तक का नाम सामने आने लगा. जैसे नागरवाला कांड. 1971 की 24 मई को दिल्ली में एसबीआई की संसद मार्ग शाखा के कैशियर के पास एक फोन आया. फोन पर उक्त कैशियर से बांग्लादेश के एक गुप्त मिशन के लिए 60 लाख रुपये की मांग की गई और कहा गया कि इसकी रसीद प्रधानमंत्री कार्यालय से ले जाएं. यह खबर आई कि फोन पर सुनी जाने वाली आवाज़ प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पी एन हक्सर की थी. बाद में पता चला कि यह कोई और आदमी था. रुपये लेने वाले और नकली आवाज निकाल कर रुपये की मांग करने वाले व्यक्ति रुस्तम सोहराबनागरवाला को गिरफ्तार कर लिया गया. 1972 में संदेहास्पद हालात में नागरवाला की मृत्यु हो गई. उसकी मौत के साथ ही मामले की असलियत भी जनता के सामने नहीं आ सकी. इस मामले को रफा-दफा कर दिया गया. घोटालों को दबाने का यह काम अब ज़ोर पकड़ने लगा था. आपातकाल के दौरान कर्नाटक के मुख्यमंत्री देवराज अर्स और उनके मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के क़रीब 25 आरोप लगे. उन पर 20 एकड़ जमीन अपने दामाद को आवंटित करने, अपने परिवार को बेंगलुरू की पॉश कालोनी में चार कीमती भूखंड आवंटित करने, अपने भाई को राज्य फिल्मोद्योग का प्रभारी बनाने आदि सगे-संबंधियों को अवैध तरीकों से फायदा पहुंचाने के कई आरोप लगे, लेकिन मामला सामने आने के बाद भी कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं हुआ.
1980 का दशक भी घोटालों के लिहाज़ से 2010 की टक्कर ले रहा था. कुओ तेल कांड. इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने 3 लाख टन शोधित तेल और 5 लाख टन हाई स्पीड डीजल की खरीद के लिए टेंडर निकाला. यह टेंडर हरीश जैन को मिला. जैन की पहुंच राजनैतिक गलियारों तक थी. इस सौदे में 9 करोड़ रुपये से ज़्यादा की हेराफेरी का आरोप लगा. जांच भी हुई. लेकिन कहा जाता है कि प्रधानमंत्री कार्यालय से ही इस मामले से जुड़ी फाइलें गुम हो गईं. तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री पी सी सेठी को इस्ती़फा देना पड़ा. बाद में उन्हें फिर से मंत्री बना दिया गया. 1982 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ए आर अंतुले का नाम एक घोटाले में सामने आया. उन पर आरोप यह था कि उन्होंने इंदिरा गांधी प्रतिभा प्रतिष्ठान, संजय गांधी निराधार योजना, स्वावलंबन योजना आदि ट्रस्ट के लिए पैसा इकट्ठा किया था. जो लोग, खासकर बड़े व्यापारी या मिल मालिक ट्रस्ट को पैसा देते थे, उन्हें सीमेंट का कोटा दिया जाता था. ऐसे लोगों के लिए नियम-क़ानून में ढील दे दी जाती थी. ऐसे लोगों के लिए नियम-क़ानून का कोई मतलब नहीं होता था. इस मामले में मुख्यमंत्री पद से ए आर अंतुले को हटना पड़ा. इसके बाद इस दशक के सबसे हाई प्रोफाइल घोटाले से लोगों का परिचय हुआ. बोफोर्स. 1986 में स्वीडन की ए बी बोफोर्स कंपनी से 155 तोपें खरीदने का सौदा तय किया गया. कहा गया कि इस सौदे को पाने के लिए 64 करोड़ रुपये की दलाली दी गई थी. ओटावियो क्वात्रोची और राजीव गांधी का नाम इसमें सामने आया. सीबीआई को जांच भी सौंपी गई, लेकिन अंतिम परिणाम अब तक सामने नहीं आ सका है. उल्टे सीबीआई ने कोर्ट में अर्जी लगाकर इस मामले को बंद करने की गुहार भी लगाई. हालांकि इसमें रक्षा राज्यमंत्री अरुण सिंह को इस्ती़फा देना पड़ा. यह दशक इसलिए भी चर्चा में रहा कि घोटाला पैदा करने के लिए भी घोटाला किया गया. मसलन, सेंट किट्‌स धोखाधड़ी. इस मामले में वी पी सिंह की साफ छवि को धूमिल करने के लिए नरसिम्हाराव ने एक षड्‌यंत्र रचा. उस वक्त नरसिम्हाराव विदेश मंत्री थे. उन्होंने वी पी सिंह पर अवैध पैसा लेने का आरोप लगवाया. बाद में पता चला कि जिन दस्तावेजों के सहारे वी पी सिंह को फंसाने की कोशिश की गई थी, उन पर अंग्रेजी में हस्ताक्षर थे, जबकि सच्चाई यह थी कि वी पी सिंह किसी भी सरकारी दस्तावेज पर अंग्रेजी में हस्ताक्षर नहीं करते थे. नतीजतन, वी पी सिंह इस मामले में निर्दोष साबित हुए. नब्बे के दशक तक आते-आते घोटालों का स्वरूप भी बदलने लगा. घोटालेबाज़ चारे जैसी चीज से भी पैसा पैदा करने लगे. जैसे बिहार का चारा घोटाला. लालू प्रसाद यादव जब मुख्यमंत्री थे तो यह घोटाला सामने आया. पहली बार लोगों को लगा कि पशुओं को खिलाए जाने वाले चारे में भी घोटाला करके सैकड़ों करोड़ कमाए जा सकते हैं. करीब एक हज़ार करोड़ रुपये के इस घोटाले में राज्य के दो मुख्यमंत्रियों की संलिप्तता की बात सामने आई. उस समय के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और 1980 में मुख्यमंत्री रहे जगन्नाथ मिश्र दोनों के नाम इस घोटाले से प्रमुख रूप से जुड़े. सीबीआई को इस घोटाले की जांच करने का ज़िम्मा दिया गया. 20 साल से ज़्यादा हो गए, लेकिन अभी तक इसका कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया है.
नब्बे के दशक में अर्थव्यवस्था तो मुक्त हो गई, लेकिन मुक्त अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए कोई क़ानून नहीं बन सका. नतीजतन, हमें प्रतिभूति जैसे क्षेत्र यानी शेयर मार्केट में भी घोटाला देखने को मिला. यह घोटाला बैंक अफसरों, नेताओं और शेयर दलालों की मिलीभगत का नतीजा था. शातिराना ढंग से ये सारे लोग मिलकर सरकारी नियम-क़ायदों को तोड़कर करोड़ों रुपये की हेराफेरी करते रहे. यह घोटाला 10 हज़ार करोड़ रुपये से भी ज़्यादा का था. इस मामले में सबसे चर्चित नाम रहा शेयर दलाल हर्षद मेहता का. हर्षद ने इस मामले में नरसिम्हाराव पर भी आरोप लगाया था, लेकिन अंत तक असली अपराधियों का नाम सामने नहीं आ सका. हर्षद मेहता की मृत्यु जेल में रहने के दौरान ही हो गई. शीर्ष राजनेताओं की संलिप्तता का एक और नमूना था लक्खू भाई पाठक केस. अचार व्यापारी लक्खू भाई पाठक ने नरसिम्हाराव और चंद्रा स्वामी पर 10 लाख रुपये रिश्वत लेने का आरोप लगाया. लक्खू भाई पाठक इंग्लैंड में रहने वाले भारतीय व्यापारी थे. उन्होंने यह आरोप लगाया कि 100 हजार पाउंड उन्हें बेवक़ूफ बनाकर इन दोनों ने ठग लिए थे. लक्खू भाई पाठक की मृत्यु हो गई और राव एवं चंद्रा स्वामी 2003 में सबूतों के अभाव में बरी हो गए. एक-एक करके मंत्री और नेता घोटाले पर घोटाले करते गए. सुखराम जो कि दूरसंचार मंत्री थे, पर आरोप लगा कि उन्होंने हैदराबाद की एक निजी कंपनी को टेंडर दिलाने में मदद की, जिसकी वजह से सरकार को 1.6 करोड़ रुपये का घाटा हुआ. 2002 में उन्हें इस मामले में जेल भी जाना पड़ा. फिर यूरिया घोटाला हुआ. नेशनल फर्टिलाइजर के एमडी सी एस रामकृष्णन ने कई अन्य व्यापारियों, जो कि नरसिम्हाराव के नजदीकी थे, के साथ मिलकर दो लाख टन यूरिया आयात करने के मामले में सरकार को 133 करोड़ रुपये का चूना लगा दिया. यह यूरिया कभी भारत तक पहुंच ही नहीं पाई. इस मामले में अब तक कुछ भी नहीं हुआ.
नित नए तरीके खोजे जाने लगे. इसी क्रम में हवाला भी सामने आया. देश से बाहर धन भेजने की इस कला से आम हिंदुस्तानियों का परिचय इसी घोटाले की वजह से हुआ. 1991 में सीबीआई ने कई हवाला ऑपरेटरों के ठिकानों पर छापे मारे. इस छापे में एस के जैन की डायरी बरामद हुई. इस तरह यह घोटाला 1996 में सामने आया. इस घोटाले में 18 मिलियन डॉलर घूस के रूप में देने का मामला सामने आया, जो कि बड़े-बड़े राजनेताओं को दी गई थी. आरोपियों में से एक लालकृष्ण आडवाणी भी थे, जो उस समय नेता विपक्ष थे. इस घोटाले से पहली बार यह बात सामने आई कि सत्ताशीन ही नहीं, बल्कि विपक्ष के नेता भी चारों ओर से पैसा लूटने में लगे हैं. दिलचस्प बात यह थी कि यह पैसा कश्मीरी आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन को गया था. कई नामों के खुलासे हुए, लेकिन सीबीआई किसी के भी खिला़फ सबूत नहीं जुटा सकी. नरसिम्हाराव के समय झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शैलेंद्र महतो ने यह खुलासा किया कि उन्हें और उनके तीन सांसद साथियों को 30-30 लाख रुपये दिए गए, ताकि नरसिम्हाराव की सरकार को समर्थन देकर बचाया जा सके. यह घटना 1993 की है. इस मामले में शिबू सोरेन को जेल भी जाना पड़ा. 1994 में खाद्य आपूर्ति मंत्री कल्पनाथ राय ने बा़जार भाव से भी महंगी दर पर चीनी आयात का फैसला लिया. यानी चीनी घोटाला. इस कारण सरकार को 650 करोड़ रुपये का चूना लगा. अंतत: उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा. उन्हें इस मामले में जेल भी जाना पड़ा.
बहरहाल, नब्बे के दशक में घोटाले भी अजीबोग़रीब शक्ल लेने लगे. जैसे जूता घोटाला. सोहिन दया नामक एक व्यापारी ने मेट्रो शूज के रफीक तेजानी और मिलानो शूज के किशोर सिगनापुरकर के साथ मिलकर कई सारी फर्जी चमड़ा कोऑपरेटिव सोसाइटियां बनाईं और सरकारी धन लूटा. 1995 में इसका खुलासा हुआ और बहुत सारे सरकारी अफसर, महाराष्ट्र स्टेट फाइनेंस कार्पोरेशन के अफसर, सिटी बैंक, बैंक ऑफ ओमान, देना बैंक आदि भी इस मामले में लिप्त पाए गए. इन सबके खिला़फ आरोपपत्र दाखिल किया गया, लेकिन कोई नतीजा सामने नहीं आ सका. तब तक देश 21वीं सदी में पहुंच चुका था. अब घोटाले कैमरे पर भी होने लगे और सीधे दुनिया ने इसे होते हुए देखा. इसका एक उदाहरण तहलका कांड है. एक मीडिया हाउस तहलका के स्टिंग ऑपरेशन ने यह खुलासा किया कि कैसे कुछ वरिष्ठ नेता रक्षा समझौते में गड़बड़ी करते हैं. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष को रिश्वत लेते हुए लोगों ने टेलीविजन और अ़खबारों में देखा. इस घोटाले में तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीज और भारतीय नौसेना के पूर्व प्रमुख एडमिरल सुशील कुमार का नाम भी सामने आया. इस मामले में अटल बिहारी वाजपेयी ने जॉर्ज फर्नांडीज का इस्ती़फा मंजूर करने से इंकार कर दिया. हालांकि बाद में जॉर्ज ने इस्ती़फा दे दिया.
इन घोटालों से खेल जगत भी नहीं बच सका. साल 2000 का मैच फिक्सिंग याद कीजिए. जेंटलमैन स्पोट्‌र्स यानी क्रिकेट में मैच फिक्सिंग का धब्बा पहली बार भारतीय खिलाड़ियों पर लगा. इसमें प्रमुख रूप से अज़हरुद्दीन और अजय जडेजा का नाम सामने आया. अजय शर्मा और अजहर पर आजीवन प्रतिबंध लगा तो जडेजा और मनोज प्रभाकर पर पांच साल का प्रतिबंध.
बराक मिसाइल रक्षा सौदे में भ्रष्टाचार का एक और नमूना बराक मिसाइल की खरीदारी में देखने को मिला. इसे इज़रायल से खरीदा जाना था, जिसकी क़ीमत लगभग 270 मिलियन डॉलर थी. इस सौदे पर डीआरडीपी के तत्कालीन अध्यक्ष ए पी जे अब्दुल कलाम ने भी आपत्ति दर्ज कराई थी. फिर भी यह सौदा हुआ. इस मामले में एफआईआर भी दर्ज हुई. एफआईआर में समता पार्टी के पूर्व कोषाध्यक्ष आर के जैन की गिरफ्तारी भी हुई. जॉर्ज फर्नांडीस, जया जेटली और नौसेना के एक पूर्व अधिकारी सुरेश नंदा के खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज हुई. सुरेश नंदा पूर्व नौसेना प्रमुख एस एम नंदा के बेटे हैं. जांच जारी है. अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है.
शेयर मार्केट से निकल कर ये घोटाले बैंकिंग सेक्टर में भी घुस गए. यूटीआई घोटाला. 48 हजार करोड़ रुपये का यह घोटाला पूर्व यूटीआई चेयरमैन पी एस सुब्रमण्यम और दो निदेशकों एम एम कपूर और एस के बासु ने मिलकर किया. ये सभी गिरफ्तार हुए, लेकिन सज़ा किसी को नहीं मिली.
स्टांप पेपर घोटाला जब सामने आया था, तब इसे सबसे बड़े घोटाले का ताज मिला था. इसके पीछे अब्दुल करीम तेलगी को मास्टर माइंड बताया गया. इस मामले में उच्च पुलिस अधिकारी से लेकर राजनेता तक शामिल थे. तेलगी की गिरफ्तारी तो ज़रूर हुई, लेकिन इस घोटाले के कुछ और अहम खिलाड़ी साफ बच निकलने में अब तक कामयाब हैं.
तेल के बदले अनाज. वोल्कर रिपोर्ट के आधार पर यह बात सामने आई कि तत्कालीन विदेश मंत्री नटवर सिंह ने अपने बेटे को तेल का ठेका दिलाने के लिए अपने पद का दुरुपयोग किया. उन्हें इस्ती़फा देना पड़ा, हालांकि सरकार ने उन्हें बिना विभाग का मंत्री बनाए रखा. एक के बाद एक नेता घोटालों के सरताज बनते जा रहे थे. इसी कड़ी में एक और घोटाला सामने आया. ताज कॉरिडोर. 175 करोड़ रुपये के इस घोटाले में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती पर लगातार तलवार लटकी रही और अब भी लटकी हुई है. सीबीआई के पास यह मामला है, लेकिन राजनीतिक वजहों से कभी जांच की गति तेज हो जाती है तो कभी मंद. कुल मिलाकर इस घोटाले के आरोपी अपने अंजाम तक पहुंचेंगे या नहीं, कहना मुश्किल है.
अब भला कार्पोरेट जगत इस बहती गंगा में हाथ धोने से पीछे क्यों रहता. अब सामने आया सत्यम घोटाला. कार्पोरेट जगत का शायद सबसे बड़ा घोटाला. 14 हज़ार करोड़ रुपये के इस घोटाले में सत्यम कंप्यूटर सर्विसेज के मालिक राम लिंग राजू का नाम आया. राजू ने इस्ती़फा दिया और वह अभी भी जेल में हैं. मुकदमा चल रहा है. राजनैतिक घोटालों की कभी न खत्म होने वाली श्रृंखला में एक और नाम शामिल हुआ. मधु कोड़ा का. मुख्यमंत्री रहते हुए कोई अरबों की कमाई कर सकता है, यह साबित किया झारखंड के मुख्यमंत्री मधु कोड़ा ने. 4 हज़ार करोड़ से भी ज्यादा की काली कमाई की कोड़ा ने. बाद में इन पैसों को विदेश भेजकर जमा किया और विदेशों में निवेश किया. इस मामले में केस दर्ज हुआ. कोड़ा फिलहाल जेल में हैं. जांच चल रही है. अब बात ऐसे घोटालों की भी, जहां महज़ सौ-दो सौ करोड़ का नहीं, बल्कि हज़ारों करोड़ का खेल होता है. जैसे राष्ट्रमंडल खेल घोटाला. हजारों करोड़ रुपये का घोटाला, जिसमें अधिकारी से लेकर नेता तक शामिल थे. सीवीसी ने अपनी जांच में कहा कि अनियमितताएं हुईं. फिलहाल सुरेश कलमाडी को राष्ट्रमंडल खेल आयोजन समिति के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया है. सीबीआई जांच कर रही है. कुछ अधिकारियों को गिरफ्तार किया गया है. और अब बात एक ऐसे घोटाले की, जिसका नाम ही आदर्श है. यानी आदर्श घोटाला. मतलब अब घोटाले भी आदर्श होने लगे. आदर्श कोऑपरेटिव सोसाइटी (लि.) ने ग़ैर क़ानूनी तरीक़े से कोलाबा के आवासीय क्षेत्र नेवी नगर और रक्षा प्रतिष्ठान के आसपास इमारत का निर्माण किया. यह योजना कारगिल युद्ध में शहीद हुए लोगों के परिवार वालों के लिए बनाई गई थी, जबकि इसके फ्लैट्‌स 80 फीसदी असैनिक नागरिकों को आवंटित किए गए. इस कारनामे में सेना के शीर्ष अधिकारी तक शामिल थे. सेना के दोषी अधिकारियों के खिला़फ कार्रवाई होनी बाकी है. मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण से इस्ती़फा ले लिया गया.
बहरहाल, घोटालों की यह सूची अभी और लंबी है. जिसकी बात फिर कभी, लेकिन इन घोटालों को देखने-पढ़ने के बाद यह सवाल भी उठता है कि आ़िखर इस कैंसर को खत्म करने के लिए क्या कोई क़दम भी उठाया गया. भारत में समय-समय पर भ्रष्टाचार को रोकने के लिए नियम और संस्थाएं बनती आई हैं. इसी वजह से सीबीआई और सीवीसी का गठन हुआ, लेकिन ये दोनों ही अपने मक़सद में नाकाम हैं. अलग-अलग कारणों से. आज तक के इतिहास में सीबीआई को अलग-अलग राजनैतिक पार्टियों ने बस इधर-उधर अपने विरोधियों के पीछे ही दौड़ाया है. ऐसा आरोप शुरू से सीबीआई पर विपक्षी लगाते रहे हैं. और सीवीसी को कोई अधिकार ही नहीं है. स्थिति यह हो गई है कि देश के प्रधानमंत्री इतने मजबूर और कमज़ोर हो गए हैं कि वह अपने ही मंत्रिमंडल के लोगों पर नकेल नहीं कस पा रहे. सरकार बचाना साख बचाने से ऊपर हो गया है. प्रधानमंत्री संसद से लेकर मीडिया तक कठघरे में खड़े किए गए, लेकिन फिर भी सरकार को सुध नहीं आई. सीवीसी पी जे थॉमस ने तो हद कर दी, लेकिन सरकार फिर भी कुछ नहीं कर पाई. आ़खिर क्यों? कहां गए लाल बहादुर शास्त्री और वी पी सिंह जैसे नेता, जो जनता के हित में अपनी कुर्सी तक छोड़ देते थे? कहां गए वे दिन, जब राजनीति घोटालेबाज़ों का गढ़ न होकर सम्मानित लोगों के लिए जनता की सेवा करने का एक ज़रिया था?

ये थे ब़डे घोटाले…

1948   जीप घोटाला, आज़ाद भारत का पहला घोटाला
1951   साइकिल घोटाला, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के सचिव फंसे
1956   बीएचयू फंड घोटाला, आज़ाद भारत का पहला शैक्षणिक घोटाला
1958   मूंध्रा घोटाला, फिरोज गांधी ने किया खुलासा, फंसे वित्त मंत्री
1963   आज़ाद भारत में मुख्यमंत्री पद के दुरुपयोग का पहला मामला, आरोप प्रताप सिंह कैरों (पंजाब) पर
1965   उड़ीसा के मुख्यमंत्री बीजू पटनायक पर अपनी ही कंपनी को फायदा पहुंचाने का आरोप
1971   नागरवाला कांड. दिल्ली के पार्लियामेंट स्ट्रीट स्थित स्टेट बैंक शाखा से लाखों रुपये मांगने का मामला, इसमें इंदिरा गांधी का नाम भी उछला
1976   कुओ तेल घोटाला. आईओसी ने हांगकांग की फर्ज़ी कंपनी के साथ डील की, बड़े स्तर पर घूस का लेनदेन
1995   जूता घोटाला. जूता व्यापारियों ने फर्ज़ी सोसाइटी बनाकर सरकार को चूना लगाया