गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

समलैंगिकता पर अपने रूख से पलटी सरकार, सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजगी


समलैंगिकता पर अपने रूख से पलटी सरकार, सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजगी



गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि भारतीय संस्कृति में समलैंगिक सेक्स की इजाज़त नहीं दी जा सकती। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने गुरुवार को समलैंगिक संबंधों को अत्यंत ‘‘अनैतिक’’ और ‘‘सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ’’ करार देते हुए इन्हें अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने का उच्चतम न्यायालय में कड़ा विरोध किया। मंत्रालय की ओर से पैरवी कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पीपी मल्होत्रा ने दलील दी कि भारतीय समाज अन्य देशों से भिन्न है और यह विदेशों का अनुकरण नहीं कर सकता।
समलैंगिक संबंधों को निहायत अनैतिक करार देकर इन्हें अपराध की श्रेणी से बाहर रखने पर नामंजूरी जताने के बाद सरकार ने अपना रुख पलट लिया, जिसके बाद उच्चतम न्यायालय की पीठ ने नाराजगी व्यक्त की। सरकार की ओर से जारी किए गए ताज़ा बयान में कहा गया है कि दिल्ली हाई कोर्ट के साल 2009 के आदेश के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल ने तय किया था कि सरकार हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिका दायर नहीं करेगी। हालांकि अगर कोई निजी तौर पर जाकर इसके खिलाफ अपील करना चाहे तो अटॉर्नी जनरल उनकी मदद करेंगे।
मल्होत्रा ने न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी तथा न्यायमूर्ति जे. मुखोपाध्याय की पीठ के समक्ष तर्क दिया कि समलैंगिक संबंध बहुत अनैतिक तथा भारतीय सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ हैं और इस तरह के कृत्यों से बीमारियां फैलने के ज्यादा अवसर होते हैं। मल्‍होत्रा ने कहा कि हमारा संविधान अलग है और हमारी नैतिकता तथा हमारे मूल्य भी दूसरे देशों से भिन्न हैं, इसलिए हम दूसरे देशों के संस्‍कृति और मूल्यों को नहीं अपना सकते। उन्‍होंने कहा कि समलैंगिक संबंधों को समाज द्वारा अस्वीकार किया जाना इन्हें अपराध की श्रेणी में रखने का पर्याप्त आधार है।
दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले का विरोध करते हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि भारतीय समाज समलैंगिकता को अस्वीकार करता है। कानून समाज से अलग नहीं चल सकता। उल्‍लेखनीय है कि उच्च न्यायालय ने 2009 में दिए अपने फैसले में समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था। आईपीसी की धारा 377 (अप्राकृतिक अपराध) समलैंगिक संबंधों को अपराध मानती है, जिसके तहत अधिकतम सजा उम्रकैद हो सकती है।
कोर्ट ने सरकार से ऐसे लोगों के बारे में भी जानकारी मांगी थी जो देश में ‘समलैगिक व्यवहार’ में पकड़े गए है। दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा था कि दो मर्द या औरत अगर अपनी सहमति से बंद कमरे के भीतर समलैंगिक यौन संबंध बनाते हैं तो ये अपराध नहीं है। हाई कोर्ट की इस घोषणा से पहले भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत ऐसे संबंध बनाए जाने पर कड़ी सजा का भी प्रावधान था। इस आदेश को चुनौती देते हुए दिल्ली कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ चाइल्ड राइट्स ने कहा था कि समलैंगिक रिश्ते बनाना कुदरत के ख़िलाफ़ है और इसे आपराधिक जुर्म करार दिया जाना चाहिए।
गृह मंत्रालय ने कैबिनेट के फैसले से अवगत कराने के अलावा कोई अन्य निर्देश भी नहीं दिया है।’ उसने बताया कि अटार्नी जनरल से शीर्ष न्यायालय को सिर्फ सहयोग करने को कहा गया है। गृह मंत्रालय ने कहा कि इस विषय पर कैबिनेट ने विचार किया और कैबिनेट का फैसला था कि केंद्र सरकार उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ कोई अपील नहीं कर सकती। जैसे ही मल्होत्रा ने करीब चार घंटे तक चली कार्यवाही के बाद अपनी दलीलें समाप्त कीं, एक अन्य एएसजी मोहन जैन ने अदालत से कहा कि उन्हें यह संदेश देने का निर्देश दिया गया है कि केंद्र इस मुद्दे पर कोई रुख अख्तियार नहीं कर रहा। जैन की अंतिम मिनट में दी गयी दलील पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराते हुए पीठ ने कहा कि सरकार ने अपनी दलीलें पहले ही रखी हैं और अदालत उन्हें दिये गये निर्देश को संज्ञान में नहीं ले सकती। पीठ ने सरकारी वकील से कड़े लहजे में कहा, ‘अदालत में इस तरह के बयान नहीं दें। इससे आपको ही परेशानी होगी। अदालत ने अगली सुनवाई के लिए 28 फरवरी की तारीख मुकर्रर की।
इससे पूर्व पीठ ने कहा था कि समलैंगिकता को बदलते समाज के परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। पीठ ने ‘लिव इन रिलेशनशिप’, ‘सिंगल पेरेंट’ और ‘सरोगेसी’ (किराए की कोख) का हवाला देते हुए कहा था कि पहले देश में बहुत सी चीजें जो पहले अस्वीकार्य थीं, अब समय के साथ स्वीकार्य हो गई हैं। वरिष्ठ भाजपा नेता बीपी सिंघल ने उच्च न्यायालय के फैसले को यह कहकर शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी कि इस तरह के कृत्य अवैध, अनैतिक और भारतीय संस्कृति के मूल्यों के खिलाफ हैं। आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड, उत्कल क्रिश्चियन काउंसिल और एपोस्टोलिक चच्रेज एलायंस जैसे धार्मिक संगठनों ने भी उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी। कई अन्‍य लोगों ने भी इस फैसले का विरोध किया था।

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