रविवार, 19 फ़रवरी 2012


टीम  टिमाती  एक  दिया..............
जल  बुझ  रही  थी 
हवा  की  ठंडी  झोंक  से लौ फड फडा रही  थी 
फिर  भी थके हारे पथिक  को  आशा की  उजाला दिखा  रही  थी .
किसी अंधियारे पथ  पर  पथिक  को  मंजिल  दिखा  रही  थी 

शायद  वो  दीपक  बुझ  जाएगी  भोर  होने  से  पहले 
शाम  को  फिर  से  कोई  जला  जाएगी  रात  घना  होने  से  पहले 
कोई  पथिक  न  भटके  इसी  की  रौशनी  काफी  है  मंजिल  तक  के  लिए 
फिर  से  लक्ष  पर  पथिक  पहुँच  जायेगा  दिया  बुझने  से  पहले  |

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