बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

नकली देशभक्ति

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य रचनात्मक है । हिन्दू संगठन का यह कार्य परकीय के भय से प्रारंभ नहीं हुआ है । निर्भय लोगों के निर्माण के महान कार्य के लिए पराभूत मनोब्रुत्ति का आश्रय नहीं लिया जा सकता ।

अंग्रेजों का राज्य आने पर उनकी देखा-देखि हमारे यहाँ कुछ नकली देशभक्तों का निर्माण हुआ । इंग्लॅण्ड के लोग अपने देश के लिए कार्य करते हैं, अतएव हमें भी कुछ करना चाहिए । इस अवस्था में देशभक्ति की सही कल्पना होना कठीन ही था ।सर्वसाधारण पढ़े-लिखे आदमी का तो यही दृष्टिकोण था कि बड़ा अच्छा काम है,करना चाहिए। अपना परिवार का काम करने के वाद समय बचे, तो करो । इस तरह, फुरसत के समय राष्ट्र के लिए कार्य करने की पद्धति इतनी रूढ़ हो गयी थी कि कोई भी सार्वजनिक कार्य प्रारंभ हो तो लोग कहते थे - हाँ काम तो अछा है ।मेरी इस काम के साथ सुहानुभूति है । मैं यथाशक्ति इसके लिए मदद करूँगा । परिवार के किसी काम के लिए, कोई भी व्यक्ति 'सुहानुभूति', 'मदद', 'यथाशक्ति' आदि शव्दों का प्रयोग नहीं करता । वहां इन शव्दों का कोई अर्थ ही नहीं है । अछे अछे लोग भी यही कहते हुए सुने जाते हैं कि ' उसने समाज का कितना उपकार किया !
समाज का उपकार करने की क्या बात है ? व्यक्ति तो समाज का अंग ही है । क्या पैर कभी कहता है कि मैं शरीर का उपकार कर रहा हूँ, क्या आँख कभी कहता है कि मैं इस देह का उपकार कर रहा हूँ ? उसके शरीर,मन और बुद्धि जिस किसी क्षमता से युक्त है, समाज के कारण ही है । गंगा का पानी गंगा को ही समर्पण । इसमें देने - लेने की कोई बात नहीं है ।  इस दृष्टी से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने कहा था - समूचा समाज हमारे परिवार में आता है ।
'में परिवार के लिए सर्वस्व अर्पण करूँगा ' इन शव्दों का उच्चारण न करने पर भी मनुष्य परिवार के लिए सर्वस्व अर्पण करता ही है, मृत्यु भी स्वीकार कर लेता है । फिर वह समाज के लिए क्यूँ नहीं कर सकेगा ? समाज -कार्य के लिए "यथाशक्ति" कहना उचित नहीं । यदि परिवार अपना है तो क्या उसके लिए तुम "यथाशक्ति " काम करते हो या तुम सर्वस्व - समर्पण करते हो । समाज के विषय में भी यही भावना चाहिए । इसमें समझौता नहीं हो सकता । "फुरसत" के समय काम करने की बात भी कृत्रिम है,अज्ञान है । इसमें न व्यक्ति का कल्याण है न समाज का । सचाई और निःस्वार्थ बुद्धि से काम करना ही स्वाभाविक है ।
और ये नकली देशभक्ति आज कल के समय में भी कुछ ज्यादा ही देखने को मिल रहा है   ।।  





















 

मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

भारत की राष्ट्रीयता व्यापक है - हिन्दू धर्म मानव-धर्म है ।

भारत की राष्ट्रीयता और इंग्लॅण्ड तथा अमेरिका की राष्ट्रीयता में अंतर है । इंग्लॅण्ड की राष्ट्रीयता ऐसी है क़ि इंग्लॅण्ड के लोगों  के सुख  के लिए आवश्यक हुआ तो बाकी सबके साथ वे लढने को तैयार होंगे । अमेरिका की राष्ट्रीयता भी ऐसी ही है क़ि अमेरिका को सुखी बनाने के लिए एटम बम बनाने मेंं उनको दुःख नहीं होता दूसरों को लुटने की साधन बनाने मेंं उन्हें संकोच नहीं । हमारे यहाँ की राष्ट्रीयता ऐसी नहीं, क्यूंकि वह " सर्वे भवन्तु सुखिनः " के तत्व पर आधारित है ।
हिन्दू धर्म मुसलमान और इसाई सम्प्रदाय की तरह प्रसारणशील नहीं है । हमने प्रचार या जवरदस्ती के आधार पर दूसरों को अपने जैसा बनाने की प्रयत्न नहीं किया है । इसका अर्थ है कि हिन्दू धर्म वास्तव में उदार है । किसी के साथ जवरदस्ती नहीं, किसी से इर्षा - द्वेष  नहीं । अतएव हिन्दुओं का यह राष्ट्र धर्म मानवता  के अनुकूल है।



गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

समलैंगिकता पर अपने रूख से पलटी सरकार, सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजगी


समलैंगिकता पर अपने रूख से पलटी सरकार, सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजगी



गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि भारतीय संस्कृति में समलैंगिक सेक्स की इजाज़त नहीं दी जा सकती। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने गुरुवार को समलैंगिक संबंधों को अत्यंत ‘‘अनैतिक’’ और ‘‘सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ’’ करार देते हुए इन्हें अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने का उच्चतम न्यायालय में कड़ा विरोध किया। मंत्रालय की ओर से पैरवी कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पीपी मल्होत्रा ने दलील दी कि भारतीय समाज अन्य देशों से भिन्न है और यह विदेशों का अनुकरण नहीं कर सकता।
समलैंगिक संबंधों को निहायत अनैतिक करार देकर इन्हें अपराध की श्रेणी से बाहर रखने पर नामंजूरी जताने के बाद सरकार ने अपना रुख पलट लिया, जिसके बाद उच्चतम न्यायालय की पीठ ने नाराजगी व्यक्त की। सरकार की ओर से जारी किए गए ताज़ा बयान में कहा गया है कि दिल्ली हाई कोर्ट के साल 2009 के आदेश के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल ने तय किया था कि सरकार हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिका दायर नहीं करेगी। हालांकि अगर कोई निजी तौर पर जाकर इसके खिलाफ अपील करना चाहे तो अटॉर्नी जनरल उनकी मदद करेंगे।
मल्होत्रा ने न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी तथा न्यायमूर्ति जे. मुखोपाध्याय की पीठ के समक्ष तर्क दिया कि समलैंगिक संबंध बहुत अनैतिक तथा भारतीय सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ हैं और इस तरह के कृत्यों से बीमारियां फैलने के ज्यादा अवसर होते हैं। मल्‍होत्रा ने कहा कि हमारा संविधान अलग है और हमारी नैतिकता तथा हमारे मूल्य भी दूसरे देशों से भिन्न हैं, इसलिए हम दूसरे देशों के संस्‍कृति और मूल्यों को नहीं अपना सकते। उन्‍होंने कहा कि समलैंगिक संबंधों को समाज द्वारा अस्वीकार किया जाना इन्हें अपराध की श्रेणी में रखने का पर्याप्त आधार है।
दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले का विरोध करते हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि भारतीय समाज समलैंगिकता को अस्वीकार करता है। कानून समाज से अलग नहीं चल सकता। उल्‍लेखनीय है कि उच्च न्यायालय ने 2009 में दिए अपने फैसले में समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था। आईपीसी की धारा 377 (अप्राकृतिक अपराध) समलैंगिक संबंधों को अपराध मानती है, जिसके तहत अधिकतम सजा उम्रकैद हो सकती है।
कोर्ट ने सरकार से ऐसे लोगों के बारे में भी जानकारी मांगी थी जो देश में ‘समलैगिक व्यवहार’ में पकड़े गए है। दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा था कि दो मर्द या औरत अगर अपनी सहमति से बंद कमरे के भीतर समलैंगिक यौन संबंध बनाते हैं तो ये अपराध नहीं है। हाई कोर्ट की इस घोषणा से पहले भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत ऐसे संबंध बनाए जाने पर कड़ी सजा का भी प्रावधान था। इस आदेश को चुनौती देते हुए दिल्ली कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ चाइल्ड राइट्स ने कहा था कि समलैंगिक रिश्ते बनाना कुदरत के ख़िलाफ़ है और इसे आपराधिक जुर्म करार दिया जाना चाहिए।
गृह मंत्रालय ने कैबिनेट के फैसले से अवगत कराने के अलावा कोई अन्य निर्देश भी नहीं दिया है।’ उसने बताया कि अटार्नी जनरल से शीर्ष न्यायालय को सिर्फ सहयोग करने को कहा गया है। गृह मंत्रालय ने कहा कि इस विषय पर कैबिनेट ने विचार किया और कैबिनेट का फैसला था कि केंद्र सरकार उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ कोई अपील नहीं कर सकती। जैसे ही मल्होत्रा ने करीब चार घंटे तक चली कार्यवाही के बाद अपनी दलीलें समाप्त कीं, एक अन्य एएसजी मोहन जैन ने अदालत से कहा कि उन्हें यह संदेश देने का निर्देश दिया गया है कि केंद्र इस मुद्दे पर कोई रुख अख्तियार नहीं कर रहा। जैन की अंतिम मिनट में दी गयी दलील पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराते हुए पीठ ने कहा कि सरकार ने अपनी दलीलें पहले ही रखी हैं और अदालत उन्हें दिये गये निर्देश को संज्ञान में नहीं ले सकती। पीठ ने सरकारी वकील से कड़े लहजे में कहा, ‘अदालत में इस तरह के बयान नहीं दें। इससे आपको ही परेशानी होगी। अदालत ने अगली सुनवाई के लिए 28 फरवरी की तारीख मुकर्रर की।
इससे पूर्व पीठ ने कहा था कि समलैंगिकता को बदलते समाज के परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। पीठ ने ‘लिव इन रिलेशनशिप’, ‘सिंगल पेरेंट’ और ‘सरोगेसी’ (किराए की कोख) का हवाला देते हुए कहा था कि पहले देश में बहुत सी चीजें जो पहले अस्वीकार्य थीं, अब समय के साथ स्वीकार्य हो गई हैं। वरिष्ठ भाजपा नेता बीपी सिंघल ने उच्च न्यायालय के फैसले को यह कहकर शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी कि इस तरह के कृत्य अवैध, अनैतिक और भारतीय संस्कृति के मूल्यों के खिलाफ हैं। आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड, उत्कल क्रिश्चियन काउंसिल और एपोस्टोलिक चच्रेज एलायंस जैसे धार्मिक संगठनों ने भी उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी। कई अन्‍य लोगों ने भी इस फैसले का विरोध किया था।

रविवार, 19 फ़रवरी 2012

महा मृत्युंजय मन्त्र


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .

ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


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उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् 


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .

ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
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उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


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उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


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उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् 


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् ...............