बुधवार, 28 दिसंबर 2011

हे ! कृष्ण

कृष्ण त्वदीय पदपंकज पूजयन्ते |
अद्दैव में विशतु मानसराजहंसः ||
प्राणप्रयाणसमये कफ बात पित्त्य्ये: |
कंठावरोधनविद्यो स्मरण कुतस्ते ||


हे ! कृष्ण आपके चरण कमल मेरे लिए पूजनीय है -- वे मेरे मानस में राजहंस बनकर आज ही प्रवेश कर जायें | अन्यथा जब प्राण छुटने के समय वात-पित्त-कफ कंठ को अवरुद्ध कर देंगे तो आपका स्मरण कहाँ हो पायेगा ||

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