भारत में तुस्टीकरण की राजनीति कोई अनादी काल से चला आ रहा है. और ये तुस्टीकरण की बातें हमारी पुराणों में भी है. एक छोटी सी उदहारण देने से आप को शायद पता चल जायेगा. जब गणेशजी और कार्तिकेयजी के बीच में पृथ्वी को कौन तीन वार शीघ्र परिक्रमा करते हुए शिव पार्वती जी के निकट पहुंचेगा. कार्तिकेयजी ने तो आपना मयूर वाहन में पृथ्वी की चक्कर लगाने निकल पड़े. लेकिन गणेशजी ने तुस्टीकरण की नीति अपनाते हुए शिव पार्वती की ३चक्कर लाग लिये. कार्तिक जी जब पृथ्वी की चक्कर लगाकर पहुंचे तब गणेश जी को वहां पहले से मौजूद देख कर कार्तिक ने पूछा तुमने अभी तक यहीं पर हो ? तो गणेशजी ने कहा मैंने तो कब से ३ चक्कर लगा चूका हूँ. कार्तिकेयजी ने अस्चर्य होकर पूछा कैसे चक्कर लगाया ? तो गणेशजी ने कहा जिस माता पिता ने हमें जन्म दिया उनसे बढ़ कर कुछ नहीं. वे ही हमारा सब कुछ है. इसीसे खुस होकर शिव पार्वती ने गणेशजी अग्र पूज्य और गणपति होने का वर दिया. क्या यह संतुष्टि करण नहीं था.वैसे ही जिस दिन भारत के सारे हिन्दू संगठीत हो जायेंगे उस दिन ये छद्मधर्म्निर्पेक्ष्य वादियों का होस ठिकाने लग जायेगा. लेकिन क्या करें यहाँ के हिन्दुओं को शिर्फ़ श्मशान जाते समय ही संगठीत होने की बात सूझती है.यहाँ तो भाई लोग खुद को गधा कहना पसंद करते हैं लेकिन हिन्दू कहना पसंद नहीं.यहाँ का हिन्दू संगठीत नहीं है. जैसे हिन्दू बंटे हुए है वैसे हिन्दुओं की वोट भी बंटा हुआ है.ये छद्म धर्मनिर्पेक्ष्य वादी अछि तरह से जानते है कि हिन्दू एक मेरुदंड हीन प्राणी है, ये उठ ने की कोशिश कभी नहीं करेगा और अगर उठ भी गया तो उसको कैसे सुलाया जायेगा.हिन्दू शिर्फ़ खुद के लिए सोचता है. देश के लिए हिन्दू संगठीत हो कर कभी सोचता ही नहीं.अगर संगठीत हो कर देश के लिए सोचता तो आज देश कि हालत इतना बदतर नहीं होता.और जो लोग देश की पुनरुत्थान के बारे में सोचते हैं उनको कैसे दबाया जायेगा ये छद्म धर्मनिरपेक्ष्य सत्ता लोलुप राजनेता रास्ता खोजते रहते हैं.
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