हमारे यहाँ भिन्न - भिन्न देवताओं के बड़े विचित्र विचित्र वाहन बताये गए हैं.ब्रह्मदेव का वाहन है हंस.सरस्वती भी हंसवाहिनी और मयूरवाहिनी है.शिव का वाहन बृषभ है. काली या दुर्गा सिंहवाहिनी है.विष्णु का वाहन गरुड़ है. लक्ष्मी का वाहन उलूक माना गया है.
सामान्य अनुभव से भी कहा जा सकता है कि कोई आपना वाहन उसी को निश्चित करेगा जिस पर वह पूरा नियंत्रण रख सके.जिसका नियमन करने कि योग्यता तथा सिद्धता नहीं होगी, उसको वाहन बनाना व्यर्थ ही है.
यद्यपि उपरोक्त सरे वाहन जानवर ही बताये गए हैं तथापि वे केबल जानवर ही नहीं है. वे विशेष गुणों या दोषों के प्रतीक भी है.दुसरे, वे सवारी करने वालों कि उस योग्यता कि ओर भी इंगित करते हैं जिसके अनुसार वे वाहनों से सम्बन्धित गुणों और दोषों का नियमन ओर निराकरण करते हैं. वाहन में जो दोष है, उससे मुक्त, ओर जो गुण है उन्हीको अधिक तत्परता से प्रकट करने वाला यदि कोई हो तभी वह वाहन पर सवारी कर सकेगा अन्यथा नहीं, यह बात स्वष्ट है. अर्ताह्त सम्बन्धित गुणदोषों से मुक्त मनुष्यों का नियमन और सुधार करना तथा उनके द्वारा सबकी उन्नति का कार्य करा लेना, यह भाव भी प्रकट होता है.
पुराणों में कहा गया है कि " जो कर्तव्य भावना से अनभिज्ञ तथा सब प्रकार के कर्मो से अपरिचित है, जिसको समयोचित सदाचार का भी ज्ञान नहीं है, वह मुर्ख वास्तव में पशु ही होता है. शिवजी को पशुपति कहते हैं, वह भी इसी अर्थ में.उनको महादेव भी कहते हैं. यह भी इसीलिए कि समाज में प्राय अधिकांश मनुष्य उपरोक्त परिभाषा के अंतर्गत गणना करने लायक ही ही होते हैं, जो महादेवजी के सीधे सादे किन्तु तपस्यायुक्त किन्तु अव्यवस्थित जीवन से प्रभावित तथा नियंत्रित होते रहते हैं.परिचित पशु-सृष्टि से युक्त बैल ही है. इसिलए महादेवजी के वाहन के रूप में उसकी कल्पना की गयी है.
गरुड़ बेगवान होता है और उसकी दृष्टि अति तीक्ष्ण होती है. वह आपना घोंसला अति ऊँचे स्थान पर बनता है. दूर दृष्टी, उच्च आकंक्ष्या रखने वाले एवं उत्कट भावना बाले लोगों पर जो नियंत्रण रखेगा और साथ ही साथ अपनी निर्लोभता से दुष्टों को भी जो अपने वश में कर सकेगा ऐसा ही पुरुष इस संसार में लोक पलक रजा बन सकता है.यही तत्व "माविष्णु: पृथ्वी पतिः" इस वचन में प्रकट किया गया है. भगबान विष्णु अपना लोकपालन का कर्तव्य पूर्ण करने के निमित्त ही गणेश के रूप में प्रकट होकर मंगलमूर्ति और विघ्नहर्ता कहलाते हैं.
पुराणों में कहा गया है कि " जो कर्तव्य भावना से अनभिज्ञ तथा सब प्रकार के कर्मो से अपरिचित है, जिसको समयोचित सदाचार का भी ज्ञान नहीं है, वह मुर्ख वास्तव में पशु ही होता है. शिवजी को पशुपति कहते हैं, वह भी इसी अर्थ में.उनको महादेव भी कहते हैं. यह भी इसीलिए कि समाज में प्राय अधिकांश मनुष्य उपरोक्त परिभाषा के अंतर्गत गणना करने लायक ही ही होते हैं, जो महादेवजी के सीधे सादे किन्तु तपस्यायुक्त किन्तु अव्यवस्थित जीवन से प्रभावित तथा नियंत्रित होते रहते हैं.परिचित पशु-सृष्टि से युक्त बैल ही है. इसिलए महादेवजी के वाहन के रूप में उसकी कल्पना की गयी है.
हाथी अदूरदर्शी एवं बड़ा ताकतवर होता है.इन गुणों वाले लोगों से काम लेने वाला तथा नियमन करने वाला इंद्र सहस्राक्ष्य है, राजा है. " चारै पश्यन्ति राजानो " इस वचन के अनुसार उसकी सहस्र आँखें उसके सहस्र गुप्तचरों की सूचक है.गुप्तचरों से सर्वत्र समाचार पाकर तदनुसार दक्ष्यता एवं सतर्कता व्यवहार इंद्र रखता है. तभी तो वह अपने बलशाली किन्तु अदुरदर्शी अनुयाइयों का नेतृत्व करता सकता है और यशस्वी बन सकता है.
सिंह बड़ा साहसी एवं तेजस्वी होता है. ऐसे लोगों पर नियंत्रण रख कर उनका उपयोग करने वाली काली स्वयं भगवती शक्ती कहलाती है.सैनिक शक्ती का स्वामी बनना चाहते हो तो तेजस्वी लोगों का नियंत्रण करने की योग्यता संपादन करो, यही भाव मनो उससे प्रकट होता है.
कार्तिकेय का वाहन मयूर है और सरस्वती भी मयूरवाहिनी है.जो लोग अनेक आँखों वाले अतीव चतुर एवं दक्ष्य होते हैं तथा जोबहुत आकर्षक बहिर्रंग रखते हैं, ऐसे लोगों के भी ह्रदय भाव को ताड़कर उनका वन्दोवस्त करना हो तो सब प्रकार के शस्त्र तथा शाश्त्रों का ज्ञान होना आवश्यक है. ऐसा दक्ष्य एवं चतुर स्त्री-पुरुष ही सेनानी कहला सकते हैं तथा वही ऊँचे दर्जे का साहित्य सेवी और कलोपासक भी हो सकते है. जो एकांगी ही नहीं बरन सर्वांगीन ज्ञान रखता है, वोही प्रमुख कहलाने का अधिकारी है. यही भाव अंग्रेजी में सेनापति को ' जनरल ' कहकर व्यक्त किया जाता है.गरुड़ बेगवान होता है और उसकी दृष्टि अति तीक्ष्ण होती है. वह आपना घोंसला अति ऊँचे स्थान पर बनता है. दूर दृष्टी, उच्च आकंक्ष्या रखने वाले एवं उत्कट भावना बाले लोगों पर जो नियंत्रण रखेगा और साथ ही साथ अपनी निर्लोभता से दुष्टों को भी जो अपने वश में कर सकेगा ऐसा ही पुरुष इस संसार में लोक पलक रजा बन सकता है.यही तत्व "माविष्णु: पृथ्वी पतिः" इस वचन में प्रकट किया गया है. भगबान विष्णु अपना लोकपालन का कर्तव्य पूर्ण करने के निमित्त ही गणेश के रूप में प्रकट होकर मंगलमूर्ति और विघ्नहर्ता कहलाते हैं.
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