रविवार, 31 जुलाई 2011

स्त्रीलिंग पुलिंग

Unlike English, all nouns in Hindi are categorized as masculine or feminine gander. This creates endless problems for those who are learning Hindi as they are at a loss to understand what decides the gander of a particular noun. Here is Kaka Hathrasi poking fun on this funny problem in his unique style. Rajiv Krishna Saxena.
Keywords: stri-ling pul-ling, masculine, feminine, gander, Hindi nouns, problem, Kaka Hathrasi, men women
 

भारत में तुस्टीकरण की राजनीति कोई अनादी काल से चला आ रहा है. और ये तुस्टीकरण की बातें हमारी पुराणों में भी है. एक छोटी सी उदहारण देने से आप को शायद पता चल जायेगा. जब गणेशजी और कार्तिकेयजी के बीच में पृथ्वी को कौन तीन वार शीघ्र परिक्रमा करते हुए शिव पार्वती जी के निकट पहुंचेगा. कार्तिकेयजी ने तो आपना मयूर वाहन में पृथ्वी की चक्कर लगाने निकल पड़े. लेकिन गणेशजी ने तुस्टीकरण की नीति अपनाते हुए शिव पार्वती की ३चक्कर लाग लिये. कार्तिक जी जब पृथ्वी की चक्कर लगाकर पहुंचे तब गणेश जी को वहां पहले से मौजूद देख कर कार्तिक ने पूछा तुमने अभी तक यहीं पर हो ? तो गणेशजी ने कहा मैंने तो कब से ३ चक्कर लगा चूका हूँ. कार्तिकेयजी ने अस्चर्य होकर पूछा कैसे चक्कर लगाया ? तो गणेशजी ने कहा जिस माता पिता ने हमें जन्म दिया उनसे बढ़ कर कुछ नहीं. वे ही हमारा सब कुछ है. इसीसे खुस होकर शिव पार्वती ने गणेशजी अग्र पूज्य और गणपति होने का वर दिया. क्या यह संतुष्टि करण नहीं था.वैसे ही जिस दिन भारत के सारे हिन्दू संगठीत हो जायेंगे उस दिन ये छद्मधर्म्निर्पेक्ष्य वादियों का होस ठिकाने लग जायेगा. लेकिन क्या करें यहाँ के हिन्दुओं को शिर्फ़ श्मशान जाते समय ही संगठीत होने की बात सूझती है.यहाँ तो भाई लोग खुद को गधा कहना पसंद करते हैं लेकिन हिन्दू कहना पसंद नहीं.यहाँ का हिन्दू संगठीत नहीं है. जैसे हिन्दू बंटे हुए है वैसे हिन्दुओं की वोट भी बंटा हुआ है.ये छद्म धर्मनिर्पेक्ष्य  वादी अछि तरह से जानते है कि हिन्दू एक मेरुदंड हीन प्राणी है, ये उठ ने की कोशिश कभी नहीं करेगा और अगर उठ भी गया तो उसको कैसे सुलाया जायेगा.हिन्दू शिर्फ़ खुद के लिए सोचता है. देश के लिए हिन्दू संगठीत हो कर कभी सोचता ही नहीं.अगर संगठीत हो कर देश के लिए सोचता तो आज देश कि हालत इतना बदतर नहीं होता.और जो लोग देश की पुनरुत्थान के बारे में सोचते हैं उनको कैसे दबाया जायेगा ये छद्म धर्मनिरपेक्ष्य सत्ता लोलुप राजनेता रास्ता खोजते रहते हैं.        

शनिवार, 30 जुलाई 2011

जय हिंद, सत्यमेव जयते.

धर्मयुद्ध के धित्राष्ट्र : मनमोहन सिंह मनमोहन सिंह को भारत में सब लोग तब से जानते हैं जब से वो नरसिम्हा राव सरकार में वित्तमंत्री बने परन्तु कोई नहीं जनता की वो पहले क्या थे, और उनकी नियुक्ति कैसे हुई ? सभी जानते हैं की मनमोहन जी अर्थशास्त्र के पंडित हैं, स्वतंत्रता के कुछ ही साल बाद यानि १९५२ और १९५४ में उन्होंने स्नातक और स्नातकोतर की डिग्रीयां हासिल कर ली थी फिर पंजाब विश्वविद्यालय से ले कर ऑक्सफोर्ड तक उन्हों ने कई मक़ाम हासिल किये. उनकी ph.d का शीर्षक था "India’s export performance, 1951–1960, export prospects and policy implications" जो बाद में एक किताब में विकसित हो गया, "India’s Export Trends and Prospects for Self-Sustained Growth". तब से लेकर आज तक देशी-विदेशी कई विश्वविद्यालय ने उनको doctorate की डिग्रीयां प्रदान की बिना किसी शर्त के. ph.d पूरी करने के बाद उन्होंने जहाँ काम किया वो संस्था थी United Nations Conference on Trade and Development (UNCTAD), १९६६–१९६९ जिसमें उन्होंने गरीब देशों के हित में कई शोध किए और ये सिद्ध किया कि कैसे गरीब देशों से पैसा अमीर देशों में जाता है और south commision के Secretary General बन कर उन्होंने सिद्ध किया ki undeveloped कहलाने वाले देश developed देशों को पाल रहे हैं. परन्तु इस अंतराल में वो ललित नारायण मिश्र के संपर्क में आकर जब वो Ministry of Foreign Trade में सलाहकार बन गए तो धीरे-धीरे उनके तेवर हे बदलते चले गए, और जो कामयाबी ३० साल में भी ना मिली थी वो मिलने लगी...!!!!!!!!! पहले १९८२ me Reserve Bank of India के गवर्नर फिर १९८५ में Planning Commission of India के डिप्टी चेयरमयेन और फिर south commision के Secretary General और फिर तो विदेश तक लोग जान गए थे की मनमोहन सिंह जी को !!!!!! लोग कहते हैं की मई 1991 में फ्रांस के एक अखबार में खबर छापी थी की INDIA में आने वाले इलेक्शन में सरकार किसी भी पार्टी की बने पर वित्तमंत्री मनमोहन सिंह ही होंगे !!!!! उस समय राजीव गाँधी जीवित थे और किसी को मालूम नहीं था आगले इलेक्शन में कौन जीतेगा !! फिर राजीव गाँधी नहीं रहे और सहानुभूति की लहर पर सवार कांग्रेस सत्ता में आगई !!! प्रधानमंत्री P V नरसिम्हा राव बने पर वित्तमंत्री मनमोहन सिंह !!!! कैसे???? राजीव गाँधी जी ने सरकार इतनी अच्छी चलायी थी की भारत वित्तीय संकट आ गया था, हमारे पास मुश्किल से कुछ हफ्ते आयत करवाने लायक पैसे बचे थे और सरकार ने IMF कर्जा माँगा तो world बैंक ने शर्त रख दी की वित्तमंत्री मनमोहन सिंह होंगे और सरकार ने बना दिया कठपुतली वितत्य मंत्री !!!! जब कोई बैंक किसी कंपनी को लोन देता है तो उस में Nominee Director नियुक्त करता है जिस पर कंपनी के नियम पूरी तरह लागु नहीं होते और वो बैंक के धन और हितों की रक्षा के लिए कार्य करता है, और समझोते के हिसाब से उससे कोई भी पद मिल सकता है, चाहे वो चीफ़ फिनांस ऑफिसर-CFO क्यों न हो !!! सरकार में इस पद को फिनांस मिनिस्टर का पद कहते हैं जो मनमोहन सिंह को मिला ताकि वो वर्ल्ड बैंक के पैसे की रक्षा कर उससे लौटने की व्यवस्था कर सकने और इस के लिए उन्होंने उन् नीतियों को अपनाया जो विदेशी संस्थाएं चाहती थीं !!! कुछ लोग globalization को ही अर्थव्यवस्था का उध्हारक समझते हैं और चीन की globalization से तुलना करते हैं पर ये सही नहीं है !! पर इस पर चर्चा फिर किसी दिन करेंगे !!! जब मनमोहन सिंह वित्त मंत्री बने तो महंगाई ३ गुना बढ गयी और अब कितने गुना बढ रही है ये अभी भी देखना बाकि है !! फिर कुछ ही दिनों में मनमोहन सिंह कुछ ऐसे कार्य करने लगे जो आज़ादी के 45 सालों में नहीं हुए थे, भारत का बाज़ार दुनिया की कम्पनिओं के लिए खोल दिया जो इतनी बड़ी थीं कि भारत सरकार को भी खरीद लें और वोही हुआ !!! जब भी कोई नया तंत्र लागु किया जाता है तो उसे समय दिया जाता है और उस से सम्बंधित जानकारी का संकलन किया जाता है पर ऐसा नहीं हुआ और बाज़ार के द्वार बाहर वालों के लिए खुलते ही लूट मच गयी, कई नकली कंपनियां बनी और यहाँ से लूट कर गायब हो गयीं ,शेयर बाज़ार पहले बढता रहा और फिर अचानक गिरता चला गया!!!!!! लोगो की सालों तक खून-पसीने बहा कर कमा कर जमा करी पूंजी चोरी हो गयी!!! मनमोहन सिंह ने इस्तीफा देने का ड्रामा किया और PV नरसिम्हा राव ने नामंजूर कर दिया!!! वो उस समय की दुनिया की सबसे बड़ी लूट थी !!! पर आज जब मनमोहन जी प्रधान मंत्री बन गए तो भारत की लूट के नए रिकॉर्ड बनाये जा रहे हैं और वोह हमेशा की तरह दूर से देख कर मुस्कुराते रहते है और कह देते हैं मुझे इस की जानकारी नहीं थी !!! जबकि उनके मंत्री कोर्ट में गवाही और सबूत दे रहे हैं की उनको घोटालों की जानकारी थी !!! कांग्रेस की भ्रष्ट सेना हमेशा ऐसे लोग चाहती थी जिनके नीचे वो खूब भ्रष्टाचार कर धन बना सकें परन्तु मौका तब मिला जब सोनिया गाँधी अध्यक्ष बनी, क्योकि विदेशी होने के कारण उनको भारत भूमि से लगाव नहीं था और अपने रिश्तेदार के सिवा भारतियों से भी कोई लगाव नहीं था !!! इस में सोनिया मिअनो का दोष नहीं क्योकि अगर मैं भी अब १०-२० साल चीन या इटली में रहूँ तो भी मेरा दिल भारत के लिए धड्केगा इटली के लिए नहीं !!! तोह भ्रष्ट सेना जिसमे राजा-नवाब के खानदान, और चोर डाकू लूटेरे जो सत्ता को फिर से पाने के लिए कांग्रेस में शामिल हुए थे, उनको एक औसत दर्जे की अध्यक्ष मिल गयी फिर वैसे ही चोर सहयोगी ढूँढ निकाले गए !!!फिर उन्होंने सोनिया गाँधी को प्रधान मंत्री बनाना चाहा जो संभव नहीं हो सका क्योंकि सोनिया गाँधी ने आज तक आपनी इटली की नागरिकता नहीं छोड़ी और भारतीय नहीं बनी इसलिए<span class=" fbUnderline"> कानून के हिसाब से वो प्रधान मंत्री नहीं बन सकती थीं, इसलिए एक कठपुती को प्रधान मंत्री बनाना था !! सो महामौनी मनमोहन सिंह से अच्छा कोई न हो सकता था जिसका पहले भी दूसरों के इशारे पर नाचने का रिकॉर्ड रहा था...</span> परन्तु 2002 में एक मुसलमान वैज्ञानिक APJ अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति पद पर चुने जाना उनके गले की हड्डी बन गया जो उन्होंने सोचा भी नहीं था !!! उन्होंने मुसलमानों को अब तक वोट बैंक या धरम के नाम पर भड़कने वाली जमात के रूप में ही देखा था पर ये व्यक्ति भारत के अच्छे कॉलेजों में पढ़ा था और उच्च गरिमा और अनुशाशन वाले सरकारी संस्थानों में नाम रोशन करता रहा था जिनसे देश भक्ति की धारा बहती है!!! महामहीम राष्ट्रपति ने देश के सर्वोच्य पद की गरिमा को बनाये रखा और ये जानते हुए भी की 2002 में राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस के वोट भी उनको ही मिले थे, कांग्रेस की चमचागिरी नहीं की !! कांग्रेस के सभी गलत और जनता विरोधी फैसलों पर उन्होंने कांग्रेस को मना किया और जितना उनके अधिकार में था वोह किया !! कई फाइल उन्होंने 2 बार हस्ताक्षर किये बिना लौटाई जिससे कांग्रेस की पोल खुली और कांग्रेस की छवि ख़राब हुई!!! कांग्रेस लोगो के मन से उतर चुकी थी और लोग उससे समर्थन नहीं देते थे !!! इसलिए 2007 में दूसरी पार्टिओं के पहले से समर्थन होने पर भी कांग्रेस ने अब्दुल कलम या भैरवों सिंह शेखावत जैसे गरिमा वाले व्यक्ति को राष्ट्रपति नहीं बनने दिया और अपनी करीबी और पिछलग्गू प्रतिभा पाटिल को दूसरी कटपुतली बनाया !!! अब सत्ता की सारी शक्ति का केन्द्रीयकरण हो चूका था, फिर भी न्यायपालिका से चुनौती मिल सकती थी जिस प्रकार 1977 में इंदिरा गाँधी को मिली थी जब उन्होने मनमानी चलाने की कोशिश की थी !! सो एक और कठपुतली को उच्च न्यायाधीश बना कर सर्वोच्च न्यायलय में बैठा दिया !!! उनका नाम लेकर मैं सर्वोच्च न्यायलय की गरिमा कम नहीं करूँगा !! बाबुशाही तो सरकार के हिसाब से ही चलती है चाहे क्लेर्क हो या कलेक्टर !!! इसके बाद जो हुआ वो कभी नहीं हुआ !!! भ्रष्ट लोग सारे नियम कानून अपनी जेब में लेकर घुमने लगे और CBI का दुरूपयोग विपक्ष को डराने-धमकाने के लिए इस्तेमाल होने लगा, मीडिया में विदेशी पैसा लगा और बरखा दत्त जैसे मशहूर पत्रकारों ने सत्ता की दलाली की और कांग्रेस ने २००९ के इलेक्शन में समर्थन ख़रीदा !!! फिर भी मीडिया पर सरकार ने ऐसी पकड़ बनाई की मीडिया सरकार की भाषा बोलने लगा और प्रजातंत्र का चौथा स्तम्भ भी गिर गया !! लोगो का मीडिया से विश्वास उठ गया !!! सत्ता का दुरूपयोग इतना बढ़ गया की कांग्रेस अध्यक्ष के दामाद को उच्च पद पर कार्य करने वालो जैसी सुविधा दी जाती है, बिना तलाशी के और कोई टोल टैक्स दिये बिना कहीं भी जा सकते हैं !!! 2009 के चुनाव में वो हुआ जो भारत के नागरिकों ने सोचा भी नहीं था, कांग्रेस फिर चुनाव जीत गयी!!!! कई लोगो को सड़क पर बात करते सुना जा सकता था जो कह रहे होते थे की हमने तो कांग्रेस को वोट नहीं दिया फिर भी कांग्रेस जीत गयी!!! कांग्रेस पहले से कई ज्यादा वोटों से जीती थी और ४४ सीटें ज्यादा!!! पर बाद में पता चला की ये EVM मशीन का कमाल था जिसमे गड़बड़ी करवा कर कांग्रेस ने इलेक्शन में भरी जीत दर्ज की जिसके शिकायत कई पोलिटिकल पार्टियों ने की पर कोई सुनवाई नहीं हुई, इलेक्शन कमीशन भी सरकार के दवाब में हो गया !! यह प्रजातंत्र भारत में बहुत बुरा समय आया था इस में कोई शक नहीं !! पर भारत जाग रहा है इसलिए भ्रष्टों में थोडा संकोच है ! प्रजा आज बहुत शक्तिशाली है पर संगठित और सुशिक्षित नहीं !! भलाई की आड़ में ही बुराई जीवित रह सकती है सो सरकार जनहित में कई सरकारी परियोजनाएं चलती है और फिर उनमे घोटाले कर अपनी जेब भर लेती है !! भ्रष्टाचार को मजबूत करने के लिए कई कदम उठाये गए और सत्ता को छोटे स्तर यानि पंचायत तक इस प्रकार तंत्रबद्ध किया गया की पैसे वाले और कला धन कमाने की चाहत रखने वाले राजनीती में उतारते हैं !! अच्छाई की आड़ में ही बुराई पनपती है वर्ना नहीं, मनमोहन सिंह की अर्थशात्री की छवि की आड़ में कांग्रेस सरे गलत काम कर रही है !! और मनमोहन सिंह यह भली भांति जानते हैं पर करते कुछ नहीं ! गलत काम के सामने मौन रहना उससे सहमति देने का एक तरीका होता है, मनमोहन सिंह भी उतने ही दोषी हैं जितने ऐ.राजा और कलमाड़ी !! उस पर मनमोहन सिंह कहते हैं "रोमन राजा सीसर की पत्नी पर संदेह नहीं किया जाना चाहिए", उन्होंने अपनी तुलना सीसर की रानी से कर डाली,ये उनकी मानसिकता बताती है ! यही बयान उन्होंने नरसिम्हा राव सरकार में घोटाला होने के बाद 1996 में दिया था !! सीसर की तीन रानियाँ थी जिसमें से दूसरी रानी पोम्पी ने "बोना डेया" नाम की देवी का उत्सव मनाया बंझता के निवारण के लिए, जिस में मर्दों का जाना मना था और वो सब होता था जो तांत्रिक कहते थे, कहने का अर्थ यह की अगर कुछ गलत हुआ तो उसमे उनकी गलती नहीं थी !! सीधी सी बात है, न मनमोहन सिंह के हाथ में कुछ है न वो मर्द हैं !! उनका इस्तेमाल कांग्रेस ने कुछ इस तरह किया की वो अपराध जिनसे कांग्रेस कभी अपना दामन मैला होने से नहीं बचा सकती थी, पर पर्दा पड़ गया !! <span class=" fbUnderline">एक-एक कर सरे घोर आपराध ( सिखों का कतल-ए-आम, भोपाल के दोषिओं को बचाना, बोफोर्स घोटाले के अपराधियों को बचाना ) को मिटटी डाल के दबा दिया गया है ! और वोट की राजनीती को और हवा दी जा रही है, मुसलमानों को खुश करने के लिए उन्होंने National Development council की बैठक में सारे देश के मुख्यामंत्रियों के सामने यह कहा हमें मुस्लिमों के लिए विशेष परियोजनाए बनानी चाहिए और उनका भारत के संसाधनों पर पहला हक होना चाहिए ???????? </span> ये कांग्रेस का तुरुप का इक्का और कितने दिन काम आएगा ! भोपाल और दिल्ली(सिख) के वो लोग जो आज भी रोते हैं और मनमोहन सिंह को कभी माफ़ नहीं करेंगे !! पर कुछ दिनों पहले उच्च न्यायादिश क पद पर इमानदार श्री HS कपाडिया जी की नियुक्ति हुई और एक आशा की किरण सामने आई!!! उस के बाद भ्रष्टों पर कारवाई शुरू हो गयी और अच्छे लोगो को आवाज उठाने का बल मिला... हम आशा कर सकते हैं की इस धर्मयुद्ध में जल्द ही अच्छाई की विजय होने लगेगी !!! जय हिंद सत्यमेव जयते.

मंगलवार, 26 जुलाई 2011

हमारे यहाँ भिन्न - भिन्न देवताओं के बड़े विचित्र विचित्र वाहन बताये गए हैं.ब्रह्मदेव का वाहन है हंस.सरस्वती भी हंसवाहिनी और मयूरवाहिनी है.शिव का वाहन बृषभ है. काली या दुर्गा सिंहवाहिनी है.विष्णु का वाहन गरुड़ है. लक्ष्मी का वाहन उलूक माना गया है.
सामान्य अनुभव से भी कहा जा सकता है कि कोई आपना वाहन उसी को निश्चित करेगा जिस पर वह पूरा नियंत्रण रख सके.जिसका नियमन करने कि योग्यता तथा सिद्धता नहीं होगी, उसको वाहन बनाना व्यर्थ ही है. 
यद्यपि उपरोक्त सरे वाहन जानवर ही बताये गए हैं तथापि वे केबल जानवर ही नहीं है. वे विशेष गुणों या दोषों के प्रतीक भी है.दुसरे, वे सवारी करने वालों कि उस योग्यता कि ओर भी इंगित करते हैं जिसके अनुसार वे वाहनों से सम्बन्धित गुणों और दोषों का नियमन ओर निराकरण करते हैं. वाहन में जो दोष है, उससे मुक्त, ओर जो गुण है उन्हीको अधिक तत्परता से प्रकट करने वाला यदि  कोई हो तभी वह वाहन पर सवारी कर सकेगा अन्यथा नहीं, यह बात स्वष्ट है. अर्ताह्त सम्बन्धित गुणदोषों  से मुक्त मनुष्यों का नियमन और सुधार करना तथा उनके द्वारा सबकी उन्नति का कार्य करा लेना, यह भाव भी प्रकट होता है.
पुराणों में कहा गया है कि " जो कर्तव्य भावना से अनभिज्ञ तथा सब प्रकार के कर्मो से अपरिचित है, जिसको समयोचित सदाचार का भी ज्ञान नहीं है, वह मुर्ख वास्तव में पशु ही होता है. शिवजी को पशुपति कहते हैं, वह भी इसी अर्थ में.उनको महादेव भी कहते हैं. यह भी इसीलिए कि समाज में प्राय अधिकांश मनुष्य उपरोक्त परिभाषा के अंतर्गत गणना करने लायक ही ही होते हैं, जो महादेवजी के सीधे सादे किन्तु तपस्यायुक्त किन्तु अव्यवस्थित जीवन से प्रभावित तथा नियंत्रित होते रहते हैं.परिचित पशु-सृष्टि से युक्त बैल ही है. इसिलए महादेवजी के वाहन के रूप में उसकी कल्पना की गयी है.
हाथी अदूरदर्शी एवं बड़ा ताकतवर होता है.इन गुणों वाले लोगों से काम लेने वाला तथा नियमन करने वाला इंद्र सहस्राक्ष्य है, राजा है. " चारै पश्यन्ति राजानो " इस वचन के अनुसार उसकी सहस्र आँखें उसके सहस्र गुप्तचरों  की सूचक है.गुप्तचरों से सर्वत्र समाचार पाकर तदनुसार दक्ष्यता एवं सतर्कता व्यवहार इंद्र रखता है. तभी तो वह अपने बलशाली किन्तु अदुरदर्शी अनुयाइयों का नेतृत्व करता सकता है और यशस्वी बन सकता है.
सिंह बड़ा साहसी एवं तेजस्वी होता है. ऐसे लोगों पर नियंत्रण रख कर उनका उपयोग करने वाली काली स्वयं भगवती शक्ती कहलाती है.सैनिक शक्ती का स्वामी बनना चाहते हो तो  तेजस्वी लोगों का नियंत्रण करने की योग्यता संपादन करो, यही भाव मनो उससे प्रकट होता है.
कार्तिकेय का वाहन मयूर है और सरस्वती भी मयूरवाहिनी है.जो लोग अनेक आँखों वाले अतीव चतुर एवं दक्ष्य होते हैं तथा जोबहुत आकर्षक बहिर्रंग रखते हैं, ऐसे लोगों के भी ह्रदय भाव को ताड़कर उनका वन्दोवस्त करना हो तो सब प्रकार के शस्त्र तथा शाश्त्रों का ज्ञान होना आवश्यक है. ऐसा दक्ष्य एवं चतुर स्त्री-पुरुष ही सेनानी कहला सकते हैं तथा वही ऊँचे दर्जे का साहित्य सेवी और कलोपासक भी हो सकते है. जो एकांगी ही नहीं बरन सर्वांगीन ज्ञान रखता है, वोही प्रमुख कहलाने का अधिकारी है. यही भाव अंग्रेजी में सेनापति को ' जनरल ' कहकर व्यक्त किया जाता है.
गरुड़ बेगवान होता है और उसकी दृष्टि अति तीक्ष्ण होती है. वह आपना घोंसला अति ऊँचे स्थान पर बनता है. दूर दृष्टी, उच्च आकंक्ष्या रखने वाले एवं उत्कट भावना बाले लोगों पर जो नियंत्रण रखेगा और साथ ही साथ अपनी निर्लोभता से दुष्टों को भी जो अपने वश में कर सकेगा ऐसा ही पुरुष इस संसार में लोक पलक रजा बन सकता है.यही तत्व  "माविष्णु: पृथ्वी पतिः" इस वचन में प्रकट किया गया है. भगबान विष्णु अपना लोकपालन  का कर्तव्य पूर्ण करने के निमित्त ही गणेश के रूप में प्रकट होकर मंगलमूर्ति और विघ्नहर्ता कहलाते हैं.  

गणपति

गणपति 
हिन्दू समाज में अनंत देवी देवताओं की उपासना प्रचलित है. गणेशजी की उपासना करने वालों का गणपत्य सम्प्रदाय है. गणेशजी का पूजन करने बाले हिन्दू सभी सम्प्रदाय में पाए जाते हैं.हिन्दुओं के धार्मिक कार्यों का प्रारम्भ गणेश-पूजन के द्वारा ही किया जाता है, क्यूँकी गणेशजी मंगलमूर्ति है, वे विघ्नविनाशक है.उनकी पूजन न करने वाला हिन्दू ढूंढे से भी मिलना कठिन है.विशाल हिन्दू समाज के भिन्न भिन्न मतावलम्बियों में बिभाजित होते हुए भी उसको एकत्व में बांधकर रखने वाले जो कोई  सामर्थ्यशाली सूत्र है,उनमे गणेश पूजा भी एक प्रधान सूत्र है. गणेशजी को यह स्थान कैसे प्राप्त हुआ ? इसके भीतर कौनसा रहस्य छिपा हुआ ? इन्ही वातों का हम थोडा विचार करेंगे.फलतः हमें गणेशजी की जन्म और कुछ नामों के अर्थ पर विचार करना होगा.
शिव-पार्वती और उनके पुत्र  
गजमुख गणेश और षडानन कार्तिकेय, ये दोनों शिव-पार्वती के पुत्र है. शिव का अर्थ है कल्याण और पार्वती मूर्तिमती ज्ञान-लालसा है.अपने प्राचीन संस्कृत साहित्य में कितनी ही विद्याओं का और शास्त्रों का विवेचन शिव-पार्वती के संवादों के माध्यम से हुआ है.पार्वती प्रश्न करती है और शिव उसका उत्तर देते हैं.
शिवजी का जीवन तपस्यामय है. भूतमात्र की कल्याण - कामना से वे सर्वदा ताप में लीं रहते हैं. बाह्वा वेष की और उनका तनिक भी ध्यान नहीं है. अहर्निश कर्मरत रहने के कारण उनके पास सब प्रकार के ज्ञान का भण्डार है. परन्तु उनका वैराग्य इतना उत्कट है कि उनको अपना बृद्ध ज्ञान का भी पता नहीं. वे बहुत भोले है. ठन्डे दिमाग से सोचकर काम करना और सतर्कता से काम लेना वे जानते ही नहीं. उसी प्रकार हर बात में मर्यादापालन एबं तारतम्य के महत्व की वे तनिक भी चिंता नहीं करते. इसीलिए कपटी शत्रुओं का वंदोवस्त वे कभी नहीं कर पाते. उसी प्रकार वे कोई बार अंतर्गत विकारों के अधीन भी हो जाते हैं.फिर भी उनके वैराग्य तथा ज्ञान पर मुग्ध होकर पार्वती उनको पाने के लिए तरसती है और उनको पाकर अपने को धन्य समझती  है. उनकी भक्ति से संतुष्ट होकर शिवजी उनकी सब शंकाओं का समाधान करते है.
उपरोक्त विवेचन के आधार पर हम कह सकते हैं कि शिव तत्व है और पार्वती व्यवहार. इस शिव पार्वती मिलन का ही परिणाम है षडानन कार्तिकेय और गजानन गणेशजी का जन्म.
कार्तिकेय अपनी सतर्कता के कारण  देवताओं के सबसे श्रेष्ठ सेनापति हुए हैं.गणना पूर्वक व्यवस्थित कार्य करना गणेशजी का सहज स्वभाव है.किन्तु शिवजी को वह पसंद नहीं. ध्येय सिद्धि के लिए काम करने कि शीघ्रता में व्यवस्थित काम करने के लिए सोचने और लोगों को अनुशासन सिखाने में समय बिताना वे आवश्यक तथा इष्ट नहीं समझते. अंततोगत्वा उस पद्धति से अधिक कार्य हो सकेगा, इस वात पर उनकी श्रद्धा ही नहीं है.परन्तु पार्वतीजी गणेशजी का पक्ष्य लेकर उनको बचाती है.फलतः गणेशजी अपने मार्ग पर आगे बढ़ पाते हैं.गणेशजी के कारण अंतर्गत परिस्थिति काबू में की जाती है और कार्तिकेय द्वारा कपटी शत्रुओं का वंदोवस्त किया जाता है.उनके वाहन मयूर और मूषक उसका प्रमाण है.    
क्या देश की जनता इन भ्रस्टाचारी नेताओं को क्ष्यमा कर पायेगा?
क्या देश की जनता इन भ्रस्टाचारी नेताओं की करतूतों को भूल पायेगा?

"गले में जितना भी दामी पट्टा क्यूँ न बंधा हो कुत्ता आखिर कुत्ता ही होता है"

आज देश की तथाकथीत धर्मनिरपेक्ष्य वोट वादी नेता खुद को धर्मनिरपेक्ष्य दर्शाने के लिए क्या क्या कहते हैं और करते हैं ये सोचने की बात है. पहले तो ये लोग ईद और मह्र्रुम में उनके गले मिलते थे वो भी उनकी जैसे टोपी पहन कर और उनके इफ्तार पार्टी में जाते थे यहाँ तक तो ठीक था, फिर अगर किसी जगह पर हिन्दुओं के साथ  ख्रिस्तियन  और मुस्लिम  लोगों का दंगा हो जाए तो ये लोग हिन्दुओं को दोषी ठहराते थे यह भी ठीक था, नमाज पढने मस्जीद या प्रयेर करने चर्च भी जाते थे यहाँ तक भी ठीक था.लेकिन वोट के लिए इतने निचे गिर गए की कहने लगे मंदिरों में अहिंदुओं को भी प्रवेश करना चाहिए  क्या ये सही है ? 
ओडिशा में बीजू जनता दल का तथा कथित एक सांसद प्यारीमोहन महापात्र का यह बयान है कि " जगन्नाथ पूरी श्री मंदिर में पर्यटन की विकाश के लिए अहिंदुओं को भी प्रवेश मिलना चाहिए जिससे सरकार की खजाने में बृद्धि होगी". 
ये कहाँ तक सही है कि मंदिरों में अहिंदुओं को प्रवेश करने की अनुमति मिलें ?  
क्या वाटिकन में ख्रिस्तान लोगों के अलावा दूसरों को प्रवेश की अनुमति है ?
क्या मक्का में मुसलमानों के अलावा दुसरे लोगों को प्रवेश की अनुमति है ?
क्या धर्मनिरपेक्ष्य वादी नेता जैसे हिन्दुओं को कह रहे हैं वैसे मुसलमान और ख्रिस्तान लोगों को सलाह दे पाएंगे कि उनकी मक्का कि मस्जीद या वाटिकन कि चर्च में हिन्दुओं को भी प्रवेश की अनुमति मिलना चाहिए ?
क्या श्री जगन्नाथ भगवान की मंदिर एक तीर्थ स्थान है या पर्यटन स्थान है ?
क्या बिश्व के चारों और से यहाँ श्री जगन्नाथ भगवान् के भक्त भगवान् को दर्शन करने आते हैं या घुमने मजा करने आते हैं ?


करोड़ों लोगों की आस्था और भावना के साथ खिलवाड़ करके धर्मनिरपेक्ष्य नहीं बना जाता.
दूसरों की धार्मिक भावना को ठेश पहुंचा कर कोई धर्मनिरपेक्ष्य नहीं बनता.
स्वार्थ और सत्ता के लिए धर्मनिरपेक्ष्य बनने की जो दिखावा  करता है जो लोगों से छल करता रहता है उसकी जिंदगी कुत्ते की समान है.चाहे उसकी गले में जितना भी दामी पट्टा क्यूँ न बंधा हो कुत्ता आखिर कुत्ता ही होता है.    

  

सोमवार, 25 जुलाई 2011

मातृभूमी,पित्रुभूमी,धर्मभूमी है यह

मातृभूमी,पित्रुभूमी,धर्मभूमी है यह 
जिसके गोद में सो जाते रण बाँकुरे वह कर्मभूमी  है यह.
देश की खातिर हम अपनी जां न्योछाबर करें,
इसीके खातिर हम अपना तन मन न्योछाबर करें. 
पूर्वजों ने इसीके लिए लूटा दी थी अपनी जान,
आओ दोस्तों हम भी कुछ करें हम तो है उनकी संतान. 
इस मिट्टी की कण कण अपने लिए है पावन,
इस मिटटी को धन्य किया था भगवान राम और किशन.

उन सहीदों और वीरों को सत सत नमन 
जिन्होंने इस माँ की खातिर अपनी जान कर दिया कुर्वान
  

शनिवार, 23 जुलाई 2011

त्रीशंकू

त्रीशंकू कोई अज्ञात  पुरुष नहीं है, इसका नाम एबं सदेह स्वर्ग  प्राप्ति  के प्रयत्न में अपयश प्राप्त होने से अंतरिक्षय में ही अधोमुख  लटकते रहने सम्बन्धी कथा सर्ब परिचित है. परन्तु यह बात बहुत कम लोग जानते  होंगे कि वह स्वप्न में बचन का परिपालन जग्रुताबस्था में करने बाले एबं तदर्थ अनंत कष्ट झेलकर सत्यनिष्ठा का आदर्श प्रस्तुत  करने बाले प्रातःस्मरणीय राजा  हरिश्चंद्र का पिता थे. 
इक्ष्वाकु वंश में त्रयारण नाम का एक राजा हुआ. उसका पुत्र था त्रीशंकू. उसका वास्तविक नाम था सत्यव्रत. जन्म से वह मंदबुद्धि एबं जिद्दी था. बड़ा होने पर उसने एक बार बड़े गर्व से एक ब्रह्मण वधु को यह कहते हुए जवर्दस्ती से विवाह मंडप से उठा  उठा लिया कि " मैं राजपुत्र हूँ, मेरा कौन क्या कर सकता है ? राजा के पास शिकायत पहुंची. राजा ने उससे पूछा तो बोला कि " विवाह तो सप्तपदी के के पश्चात पूर्ण होता है, उसके पूर्व वधु को लेन पर वह अपहरण नहीं कहा जा सकता ." उसकी उद्दंडता इतनी अधिक बढ़ गयी थी. राजा इस बात से क्रोधित हो गए. उन्होंने कहा-" तुने चंडाल जैसे कृत्य किया है. अतः यहाँ से चले जाओ और राज्य के बाहर चांडालों के साथ ही तुम रहो. तुम्हारी इस घृणित करनी के कारण अब मेरी पुत्रवान कहलाने कि इच्छा भी शमाप्त हो गयी, क्यूँकि तू ने कुल को कर दिया है. तुझे अब राजगद्दी का भी हक नहीं मिलेगा. यह घोषणा होते
 समय बसिष्ठ मुनी ने राजा को रोका क्यूँ नहीं, ऐसा कहकर सत्यव्रत मुनि पर ही बिगड़ गया. परन्तु उसका कुछ उपाय नहीं था. तत्कालीन समाज नियम के अनुसार उसे बन में चांडालों के बस्ती में रहना पड़ा.
त्रयारण भी अति उद्विग्न हो कर तपश्चर्या के लिए जंगल में चला गया. उस समय वसिष्ठ ने राज कार्य सम्हाल लिया. परन्तु राज कार्य की उनकी पद्धति सम्पूर्ण अलग थी.राज्य को वे एक बड़ा परिवार मानते थे. वसिष्ठ के
लिए लोगों के ह्रदय में अत्यधिक आदर था, अतः कोई कुछ कहता नहीं था.
   इस प्रकार कई वर्ष बीत गए. सब लोग शांति पूर्वक आपने आपने कामधंदे में लग गए. परन्तु अन्य लोग चुप कैसे रहते ? पडोश में विश्वामित्र का राज्य था.उसने आक्रमण कर दिया. उसका परिणाम सर्वश्रुत ही है.अंत में विश्वामित्र तपश्चर्या के लिए चला गया. परन्तु उस समय की उसकी तपस्या में तामस भाव था. उसने सत्यव्रत को भड़काया. सत्यव्रत ने बसिस्ठ के हाथ से आपना राज्य छीन लेने की इच्छा से लूटमार प्रारम्भ कर दिया और इसी प्रकार वो आपने ही प्रजा को पीड़ा देने लगा.जिस प्रजा ने अपनी हिम्मत एबं पराक्रम के बल पर विश्वामित्र के परचक्र की सराहना नहीं की वहां सत्यव्रत की दाल कैसे गलती ? सत्यव्रत को भी भाग जाना पडा. इसी समय से उसे त्रिशंकु नाम प्राप्त हुआ. शंकु सींग के आकार का होता है.मनुष्य के शिर पर सींग हो हो तो उसे पशु की संज्ञा प्राप्त होगी और इसी से लाक्ष्यणीक रूप में शंकु का अर्थ है पशुता, अपराध या पाप हो गया. सत्यव्रत ने तो तीन तीन वार अपराध किया था. राजा का पुत्र होकर भी उसने ब्रह्मण के विवाह में विघ्न उपस्थित किया था, यह उसका पहला अपराध. पिता से उसने उद्दंडतापूर्ण व्यवहार बातचीत की जिससे पिता उस पर क्रोधित हुआ, यह दुसरा अपराध और अंत में किसी डकैत की तरह उसने प्रजा को पीड़ा दी, यह था उसका तीसरा अपराध. इसी कारण उसका सत्यव्रत नाम लुप्त हो गया और त्रिशंकु नाम से ही वह प्रसिद्द हो गया.    


               
कहीं किसी रोज दादी की गोद में बैठ के सुना था 
इस देश में शुर वीरों की भरमार था.
लढ़ते थे दुश्मनों से लगा कर जान की बाजी,
हँसते हँसते सहीद होते थे न कोई दुःख न कोई भय थी. 
कहानी है रामायण में भगवन राम की 
कहानी थी महाभारत में श्री कृष्ण भगवान की.

सोचने का अब समय नहीं,

सोचने का अब समय नहीं,
बिन सोचे रहा जाता नहीं.
सिख लेनी है पूर्वजों से,
सीखना है इतीहास से.
क्या खोया क्या पाया हमने, 
क्या बोया था क्या उगाया हमने.
पीछे मुड़ने का अब समय नहीं,
लेकिन पिछली बातों को भूलना नहीं.
कब थी ये देश सोने की चिड़िया 
अब  तो उसकी परछाई भी नहीं.
ऋषि मुनियों का देश था ये,
साधू संतों का घर था ये.
शुर वीरों का क्रीडा भू था ये,
वीर जवानों का रण भूमि था ये.
उठो जागो वीर जवानों देश का, 
सुन लो पुकार माँ भारती  का.  
अब समय आया है साधू संत शुर वीर जवानों का,
समय है ये देश को फिर सोने की चिड़िया बनाने का.



शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

कभी तो कहा होता कि तेरे दिल मैं क्या है.................

कभी तो कहा होता कि तेरे दिल मैं क्या है................. 
बिना कहे सब ग़मों को कैसे पी गया तू,
हँसते हँसते हमसे क्यूँ  बिछड़ गया तू.
ऐसा क्या कसूर था मेरा कि  हमसे रूठ गया तू,
ये कैसा गम दे दिया मुझे जीवन भर का तू.
तेरे बिन ये घर सुना सुना सा लगता है, 
तेरे बिन मन सदा उदास सा रहता है.
सुबह से लेकर शाम तक तेरा ही ख्याल आते रहता है,
जहाँ भी देखूं चारों तरफ तू ही तू नजर आता है.
रात को किसी पहर जब नींद खुल जाता है,
सोचता हूँ कि शायद कहीं तू आँगन में तो नहीं बैठा है.
तेरा हंसता मुस्कुराता चेहरा सामने आ जाता है,
दिल भर जाता है आँखों में पानी भर आता है.
तुझे क्या पता तेरे बिन मेरा क्या हाल है,
हँसता हूँ फिर भी मन सदा रोते रहता है.
सोचता हूँ तू कहीं बाहर घुमने गया है,
अभी आकर मेरे पास बैठने ही बाला है.
तुझे भूलना चाहता हूँ फिर भी याद आ जाता है तू.
भाई मेरे फिर से मेरे पास लौट कर आ जा तू.
कभी तो कहा होता कि तेरे दिल मैं क्या है.................

गुरुवार, 21 जुलाई 2011

हमें तो लूट लिया मिलके हुस्न वालों ने

जब माँ और बेटा मिलकर देश (घर) को  लूट रहे  हैं, तो दामाद क्यूँ पीछे रहेगा |  उसका तो हक बनता है ससुर की घर को लूटना | हम लोग ही बेवकूफ है जो इनको घर लूटने की इजाजत दी है | यदि हमारी लापरवाही से चोर घर में घुस कर चोरी कर लेता है बाद में हम लोग क्यूँ रोतें हैं और रोने से फायदा भी क्या है ? ये चोरी करना घर को लूटना तो इनका खानदानी परम्परा है. ये इन लोगों को विरासत से हाशिल हुई है. दादा परदादा ने लूटा है अब ये लूट रहे हैं. जब बाप दादी परदादा लूट कर थक गए तो लूटने के लिए विदेश से भी लूटेरों का सहारा लेना शुरू किया फ़िल्मी ढंग से.और वो होलीवूड स्टाइल में लूटना शुरू किया और कर रही है. खुद को त्याग की प्रतिमूर्ति बना कर लोगों के सामने पेश किया. पहले लोगों की वाहवाही लूटी अब देश को लूट रही है.उसकी चापलूसों ने तो यहाँ तक भी कह दिया की त्याग में वो भगवन राम से भी बढ़ कर है. ये चापलूसें भी बड़े पालतू है.मुखिया की जगह उसकी खानदान की कुत्ता को भी ये लोग मुखिया मान लेंगे.बीच में इनकी खानदान से बहार के दो चार लोग मुखिया बनने आये थे मगर ये चापलूसों ने उनको सहन नहीं कर पाए और विदेशी मुखिया की इशारे पर बेचारें भगा दिए गए या बेमौत मारे गए. हम भी किसीसे कम नहीं की होड़ लगी है मुखिया और उसकी बेटे की चापलूसी करने में................क्रमश..............          
ये होम मिनिस्टर है या हम्बुर्ग मिनिस्टर ? ऐसा कह रहे हैं जैसे देश को यही ढाल बन कर बचाए आर हे थे.  अगर ये न होते तो शायद देश कब से अरब सागर में डूब गया होता. 

न कोई संवेदन न कोई उत्तरदायीत्व.

इन जैसे लोगों के हाथ में हम अपना देश को छोड़ दिए  हैं  और उसकी सजा  भुगत रहे हैं. देश के प्रति न कोई संवेदन न कोई उत्तरदायीत्व. 

बुधवार, 20 जुलाई 2011

कटरीना कैफ ने क्या गलत कहा ?

कटरीना कैफ ने क्या गलत कहा ? सच कहने में गलत क्या है ? जो सच है वो सच है. वो खुद भी तो स्वीकार कर रही है कि वो भी आधा इंडियन  है. लेकिन कांग्रेस वालों की सोच निम्न स्तर की है इसीलिए उनको ये बात बुरा लगा. क्यूँ कि आज तक इन कांग्रेस बालोने देश को गलत सन्देश दे आ रहे थे. सच कहने में शर्म क्यूँ. कटरीना ने एक साहसिकता परिचय देते हुए युवा पीढी को सच कहने की क्ष्यमता से अवगत कराया. मगर उसे डर भी हुआ की कहीं ये सच उसकी जान पर न बन जाये. इसीलिए उसने उन से माफ़ी मांग ली. जो सच कहने में पीछे नहीं हटते ऐसे युवा पीढ़ी कटरीना का साथ देना चाहिए.   

शनिवार, 16 जुलाई 2011

The Mad Man

ndore, Jul 17: Congress General Secretary Digvijay Singh is once again grabbing headlines with his rhetoric that has defied sense and sensibility. After launching a scathing attack on the Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS) over their possible involvement in the Mumbai Blasts, he took back the comment stating that he was misquoted. 

He in his apparent u-turn said, “In the aftermath of the Mumbai blasts, I had said that the possibility of any group's involvement cannot be ruled out. But I had not taken the name of RSS. I have been misquoted.”

The BJP had slammed Digvijay's earlier comment that said, “I do not rule out anything. If they want evidence about Sangh's involvement in terror activity, I have got evidence. But not in this case.” But the Opposition has lambasted the Congress General Secretary's rhetoric calling it “playing politics over terror and dead bodies”. 

BJP Party spokesperson, Shahnawaz Hussain commented, “The BJP strongly condemns the disgusting statements of Digvijay Singh and seeks an apology from Congress chief Sonia Gandhi on this.”

The BJP visibly irked at Digvijay's statement called the insensitive comment, “disgusting and objectionable". Digvijay hit back at the BJP spokespersons remark and said, “Shahnawaz wears a mask. He reads out only those statements which the RSS writes and hands over to him.”

On the controversy that has erupted within political circles on Digvijay Singh's finger-pointing at the RSS, he also said that the Centre and the Maharashtra ATS were committed to their probe in the Mumbai blasts and they shhould be given enough time to probe the matter. 

He also stated on Rahul Gandhi's comments that caused a furore among politicos when he said that not all terror attacks can be avoided for which he replied, “I condemn the statements being made on what was said by the person who lost his grandmother and father to terrorism.”

शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

बुधवार, 13 जुलाई 2011

श्री राम स्तुती


श्रीरामचंद्र  कृपालु  भजु  मन  हरण  भवभय   दारुणं ,
नवकंज -लूचना , कन्जमुख्का, करा  कंजा  पद  कंजारुणं .
कन्दर्प  अगनित  अमित  चाविनावा  नील -नीरद  सुन्दरम ,
पता  पीट  मानहु  ताडिता  रूचि  शुची  नोइमी , जनका  सुतावरं .
भजु  दीनबंधु  दिनेश  दानव -दैत्य -वंशा -निकन्दनं ,
रघुनंद  आनंदकंद  कोशलचंद  दशरथ -नन्दनं  .
सिर  मुकुट कुंडल तिलक  चारू  उदारु  अंगा  विभुशानाम ,
आजानुभुज  शर -चाप -धर, संग्राम -जीत-खर  दुशानम .
इती वदति  तुलासिदासा  शंकर -सेष -मुनि -मन -रंजनं ,
मम हृदय   कंज-निवास  कुरु , कामादि  खल -दल -गंजनं .
मनु  जाह्नी  राचेउ  मिलिहि  सो  बरु  सहज  सुन्दर  सवारों ,
करुना  निधान  सुजान  सीलू  सनेहू  जानत  रावरो .
यही  भांति  गौरी  असीस  सुनी  सिया  सहित  हिं  हरषीं  अली ,
तुलसी  भवानिह  पूजी  पुनि  पुनि  मुदित  मन  मंदिर   चली .

श्री राम स्तुती 

सोमवार, 4 जुलाई 2011

गुलाम नवी आजाद ने ठीक ही कहा है | यह समलैंगिकता एक मानशिक बीमारी है | दुर्भाग्य से यह बीमारी हमारी देश में कुछ लोगों को लग चुकी है | इस बीमारी को कुछ लोग सही मानते है और इसके लिए वोकालत भी करते हैं. जो इसको सही मानते हैं और वोकालत करते हैं उनसे एक सवाल है कि क्या वे पेट भरने के लिए खाद्य खाते हैं या अखाद्य खाते हैं ?