बुधवार, 12 सितंबर 2012

देर आई दुरुस्त आया ---- लौट के बुद्धू घर को आया .....


महिला काडरों के प्राइवेट पार्ट्स शेव और बिना कपड़ों के स्‍नान करने का क्रांति से क्‍या वास्‍ता?



महिला काडरों के प्राइवेट पार्ट्स शेव और बिना कपड़ों के स्‍नान करने का क्रांति से क्‍या वास्‍ता?महिला काडरों के प्राइवेट पार्ट्स शेव और बिना कपड़ों के स्‍नान करने का क्रांति से क्‍या वास्‍ता?







शोषितों, वंचितों की लड़ाई लड़ने का दावा करने वाले नक्‍सलियों में आजकल अंदरूनी घमासान मचा है। हाल में पार्टी से निकाले गए माओवादी कमांडर सब्‍यसाची पांडा ने काफी बगावती तेवर दिखाए थे। वह अब बिल्‍कुल अकेला है। ओडिशा में नक्‍सल आंदोलन के 'पोस्‍टर ब्‍वॉय' के तौर पर मशहूर 43 साल का पांडा अब खुद को 'ओल्‍ड डॉग' की तरह मानता है जिसका उसकी पार्टी नामोनिशान मिटा देनी चाहती है। ओडिशा का सबसे अहम नक्सली नेता माने जाने वाले पांडा को 'चे ग्वेरा' कहलाता था।
पांडा ने एक खत लिख कर कई सवाल उठाए थे। उसने नक्‍सलियों के प्राइवेट पार्ट्स 'क्‍लीन शेव' करने के चलन पर जोर देने की परंपरा को भी गलत ठहराया है। उसका कहना है कि यह तेलुगु कैडरों में आम बात है और महिला काडरों को अक्‍सर ऐसा करने की सलाह दी जाती है। उसने लिखा है, 'महिला काडरों को बिना कपड़े के स्‍नान करने को भी कहा जाता है। मुझे समझ नहीं आता कि क्रांति का ऐसे बकवास सिद्धांतों से क्‍या ताल्‍लुक है?'
पार्टी द्वारा निकाले जाने की घोषणा से कुछ दिन पहले पांडा ने लंबी-चौड़ी चिट्ठी लिखी थी। इसे उसका इस्‍तीफा कहा जा सकता है। दरअसल, पांडा ने दो खत लिखे थे। तीन पन्‍नों के पहले खत में उसने आम तौर पर पार्टी के कॉमरेड्स को संबोधित किया था। हालांकि, उसका दूसरा खत काफी बड़ा था। 16 पन्‍नों की चिट्ठी, माओवादियों के सुप्रीम कमांडर गणपति और जेल में बंद दो सीनियर नेताओं नारायण सान्‍याल (विजय दादा) और अमिताभ बागची (सुमित दादा) को संबोधित करते हुए लिखी गई थी। पांडा की चिट्ठी गणपति को मिल गई, लेकिन नारायण सान्‍याल और अमिताभ बागची को सब्‍यसाची का संदेश नहीं मिल सका। माना जा रहा है कि पांडा की यह चिट्ठी लेकर माओवादी नेताओं के पास जा रहे संदेशवाहक प्रभाकर को कोलकाता में सुरक्षा एजेंसियों ने पकड़ लिया। माना जाता है कि पांडा की इन चिट्ठियों की वजह से ही उसे पार्टी से बाहर का रास्‍ता दिखा दिया गया।

'ओपन' मैगजीन ने पांडा के खत अपने पास होने का दावा किया है। मैगजीन ने कहा है कि दुखी मन से लिखे गए इस खत में पांडा ने सीपीआई (माओवादी) के आलाकमान की गतिविधियों पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। खत में पांडा ने ऐसे सनसनीखेज खुलासे किए हैं जिनसे माओवादी नेतृत्‍व में फूट पड़ सकती है। पांडा ने कहा है कि माओवादी नेता खुद को मालिक समझ बैठे हैं और कैडर उनकी गलतियों का विरोध करने की हिम्‍मत नहीं जुटा पाते हैं। पांडा ने नक्सल नेतृत्व पर अकारण हिंसा फैलाने का आरोप लगाया है।

पांडा ने अपने खत में कई जगहों पर सेंट्रल कमेटी के मेंबर मनोज उर्फ भास्‍कर और माओवादियों के सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के प्रभारी बासवराज के साथ बार-बार हुई झड़पों का जिक्र किया है। भास्‍कर के बयान का जिक्र करते हुए पांडा ने लिखा है, 'हम कम्युनिस्ट‍ पार्टी में किसी गलती के लिए पार्टी के सदस्‍य को सस्‍पेंड कर सकते हैं और जरूरत पड़ी तो उसकी हत्‍या भी की जा सकती है।' पांडा ने लिखा है कि किस तरह भास्‍कर ने किशनजी को भी नहीं बख्‍शा। भास्‍कर के हवाले से उसने कहा कि किशनजी कुछ नहीं करते हैं। एक भी पुलिसवाले की हत्‍या नहीं करते, केवल बयान जारी करते रहते हैं। पांडा ने सवालिया लहजे में कहा, 'क्‍या किसी क्रांतिकारी का काम केवल पुलिसवालों की हत्‍या करना ही रह गया है।'
पांडा ने 'बेवजह किसी खास वर्ग के विध्‍वंस' के खिलाफ भी जमकर अपनी भड़ास निकाली है। उसने लिखा है, 'किसी पर मुखबिर होने का ठप्‍पा लगाकर उसे मारना-पीटना और जला देना ही समस्‍या का हल नहीं है।' पांडा ने संबलपुर के पांच-छह गांववालों, जिन्‍हें 2004 में मुखबिर होने के शक में मार डाला गया था, का उदाहरण देते हुए कहा, 'केवल मैंने इसका विरोध किया था। भास्‍कर ने गलत सूचना दी कि संबलपुर में सलवा जुडूम का अभियान चल रहा था।

सब्यसाची पांडा भाकपा (माओवादी) राज्य (ओडिशा) संगठन का सचिव था। मार्च महीने में दो इतालवी नागरिकों के अपहरण के पीछे इसी का हाथ था। अपहृतों की रिहाई के बदले पांडा ने अपनी पत्‍नी मिली को जेल से छोड़े जाने की मांग की थी। उसे बाद में जमानत पर छोड़ दिया गया था। सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक पांडा नक्सली संगठन में आंध्र प्रदेश कैडर के नक्सलियों के दबदबे से परेशान था और ओडिशा में पांडा की बढ़ती ताकत से आंध्र के नक्सली नेता खुश नहीं थे। यही कारण है कि पांडा को अब तक सेंट्रल कमेटी या पोलित ब्यूरो में जगह नहीं दी गई थी। सेंट्रल कमेटी और पोलित ब्यूरो सीपीआई (एम) की सर्वोच्च संस्था है, जो आंदोलन की मूल दिशा तय करती है।

 देर आई दुरुस्त आया ---- लौट के बुद्धू घर को आया
















































सोमवार, 10 सितंबर 2012

जन गण मन अधिनायक जय हे

 

जन गण मन अधिनायक जय हे
भारत भाग्य विधाता
पंजाब सिन्ध गुजरात मराठा
द्राविड़ उत्कल बंग
विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा
उच्छल जलधि तरंग
तव शुभ नामे जागे
तव शुभ आशिष मागे
गाहे तव जय गाथा
जन गण मंगल दायक जय हे
भारत भाग्य विधाता
जय हे जय हे जय हे
जय जय जय जय हे
अहरह तव आह्वान प्रचारित
शुनि तव उदार वाणी
हिन्दु बौद्ध शिख जैन
पारसिक मुसलमान खृष्टानी
पूरब पश्चिम आशे
तव सिंहासन पाशे
प्रेमहार हय गाँथा
जन गण ऐक्य विधायक जय हे
भारत भाग्य विधाता
जय हे जय हे जय हे
जय जय जय जय हे
अहरह: निरन्तर; तव: तुम्हारा
शुनि: सुनकर


आशे: आते हैं
पाशे: पास में
हय गाँथा: गुँथता है
ऐक्य: एकता
पतन-अभ्युदय-बन्धुर-पंथा
युगयुग धावित यात्री,
हे चिर-सारथी,
तव रथचक्रे मुखरित पथ दिन-रात्रि
दारुण विप्लव-माझे
तव शंखध्वनि बाजे,
संकट-दुख-त्राता,
जन-गण-पथ-परिचायक जय हे
भारत-भाग्य-विधाता,
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे
अभ्युदय: उत्थान; बन्धुर: मित्र का
धावित: दौड़ते हैं


माझे: बीच में

त्राता: जो मुक्ति दिलाए
परिचायक: जो परिचय कराता है
घोर-तिमिर-घन-निविड़-निशीथे
पीड़ित मुर्च्छित-देशे
जाग्रत छिल तव अविचल मंगल
नत-नयने अनिमेष
दुःस्वप्ने आतंके
रक्षा करिले अंके
स्नेहमयी तुमि माता,
जन-गण-दुखत्रायक जय हे
भारत-भाग्य-विधाता,
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे
निविड़: घोंसला

छिल: था
अनिमेष: अपलक

करिले: किया; अंके: गोद में
रात्रि प्रभातिल उदिल रविछवि
पूर्व-उदय-गिरि-भाले,
गाहे विहन्गम, पुण्य समीरण
नव-जीवन-रस ढाले,
तव करुणारुण-रागे
निद्रित भारत जागे
तव चरणे नत माथा,
जय जय जय हे, जय राजेश्वर,
भारत-भाग्य-विधाता,
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे 
- रवीन्द्रनाथ ठाकुर
प्रभातिल: प्रभात में बदला; उदिल: उदय हुआ
* * *









शनिवार, 23 जून 2012

      गणेशाय  नम:


          जो आदमी सब कुछ स्वीकार कर सके , वही समझदार है जो 'यह स्वीकार, यह अस्वीकार ' का भाव रखता है वह निश्चित ही नासमझ है
वह काल और होनी को नहीं समझता है
काल और होनी को समझने वाले राम ने कैकेयी का कभी बुरा नहीं माना
काल और होनी यदि प्रवल  नहीं होते तो कैकेयी का हमेशा का वात्सल्य भरा ह्रदय क्यूँ एक दिन  इतना  कुटिल और कठोर हो जाता 
समझदार व्यक्ति काल के इस कुचक्र को देख कर, उदासीनता का लावादा ओढने में ही अपनी भलाई और सुरक्षा महसूस करता है तथा  इस जीवन यात्रा में धीर गति से चल पाता है 
उदासीनता का यह नरम लावादा उनके लिए अभेद्य कवच का सा काम करता है
ऐसा आदि गुरु ने भी स्पस्ट कहा है | 

       दुःख आने पर दुःख के साथ ज्यादा लड़ाई नहीं करनी चाहिए
धर्य अपनाना चाहिए
दुःख अपने समय से ही  जाएगा
सूर्योदय तो अपने समय से ही होता है
जैसे कि रात को हम सो जाते हैं उसी प्रकार उसी प्रकार धैर्य की चादर ओढ़ कर  आये हुए दुःख को और उदासीनता से उन्मुख होना चाहिए
      शिकायत का भाव तो रखना ही नहीं चाहिए न परिस्थिति से न लोगों से  और न अपने आप से
परिस्थिति से शिकायत करने वाले का विधाता से द्रोह हो जाता है लोगों से शिकायत रखने वाला लोगों में अप्रिय हो जाता है
और अपने आप से शिकायत रखने वाला आत्मघाती हो जाता है शिकायत रूपी राक्षस उसकी साडी मानसिक शक्ति चट कर जाता है शिकायत करने वाला आदमी इस्वर और दुनिया के दरवार में द्रोही तथा अपने मन के दरवार में आत्मघाती साबित होता है |


   देनदार प्रारव्ध है
वह जो देता है उसीसे संतोष मान कर चल
तेरे से जो बन पड़े तू जरुर करता चल
ज्यादा दे तो त्याग कर
कम दे तो तपस्या कर
दुनिया उसकी चाकर है, वह कुछ नहीं दे सकती
भोजन का हर निवाला वह दे रहा है
जो प्रारव्ध दे उसीसे संतोष कर
कर कर कर मेरे भाई
संतोष का पाठ सबसे बड़ा है |

      कल क्या हो जायेगा
कल के लिए किसकी प्रतीक्षा कर रहे हो
कल आकर कौन सहारा देगा
आज यदि हम अपने पुरुषार्थ से अपनी बुद्धि को सबल तथा शरीर को कष्ट उठाने की आदी नहीं बनाते हैं
तो कल हमें घोर कष्ट उठाना ही पड़ेगा
इस जंगल में कोई भी सहारा देने वाला नहीं है
कष्ट के मौके पर सब असहाय नजर आयेंगे
कष्ट तो अकेले ही उठाना पड़ेगा ।





इन्द्रिय सुख और ध्यान सुख
दोनों एक साथ नहीं मिल-सकते
एक  को छोड़ोगे  तो दूसरा मिलेगा
एक मृत्यु के दरवाज़े तक पहुंचाता है
तो दूसरा अमरता के द्वार तक पहुंचाता है ।।


मुंह के अन्दर जो डालते हो
तथा मुंह से बाहर जो निकालते हो
दोनों में बहुत ध्यान देने की दरकार है ।।


जव संदेह का सांप सिर उठाता है
तो अमृत भी जहर लगता है
जव श्रद्धा जागता है
तो पत्थर भी भगवान् हो जाते हैं ।।


काल तुम्हें धीरे-धीरे चिता की
लकडियों की ओर खींचे लिए जा रहा है
यदि शरीर को कष्ट की आदत नहीं होगी
तो वे लकड़ियाँ तुम्हें बहुत गड़ेंगी













गुरुवार, 17 मई 2012





क्या आप सिगरेट स्मोक करते हैं ?
क्या आप अपनी फेफड़े जलाते हैं ?
क्या आप दिन भर खांसते रहते हैं ? 
क्या आप के  सिने में दर्द रहता है ?
क्या आप खांसते समय खून निकलता है ?
क्या आप के परिवार तथा दोस्त आपके नजदीक नहीं आते ?
क्या आप के परिवार के लोग आपसे परेशान रहते हैं ?
क्या आप सिगरेट से दूर रहना चाहते हैं ?
कोई बात नहीं, एक सहज और सरल उपाय इससे दूर रहने की !!!!!!
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इसके पास मत जाइए, बस हो गए न आप इससे दूर !!!!!!!! 
     

गुरुवार, 10 मई 2012

बिघटन की मनोब्रुत्ति................

आज देश की विडम्बना यह है कि कट्टरता के आगे झुकने कि प्रवृत्ति को हम उदारता कहते हैं और कट्टरता का सामना करने के आह्वान को संकुचितता और कट्टरता कहते हैं |
बिघटन की मनोब्रुत्ति
आज देश के तथाकथित धर्मनिरपेक्षवादी, हिंदुत्व के पुरस्कर्ताओं पर विघटनकारी  मनोवृत्ति को बढ़ावा देने का आरोप लगाते  नहीं थकते | तथापि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि बिघटन का प्रारंभ स्वतन्त्रता के बाद नहीं अपितु स्वतन्त्रता के पहले ही हो चूका था | भारत का विभाजन ही विघटनकारी मनोब्रुत्ति का परिणाम है और इसके लिए उत्तरदायी है वे, जिन्होनें  विभाजन की मांग उठाई और इसे स्वीकार किया | खंडित भारत में अखंडता की चर्चा करना कहाँ तक उचित है ? भारत विभाजन की मांग निश्चित ही मुस्लिम कट्टरता की देन थी तथा उसे मान्य करने की भूमिका से कांग्रेस की तृष्टिकरण की निति थी | ये दोनों ही प्रवृतियां विभाजन के बाद भी यथावत बनी हुई है और आज भी वे ही विघटन की प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रहे हैं  |


रविवार, 15 अप्रैल 2012

हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है









         हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है
राष्ट्र भाषा का सम्मान राष्ट्र का सम्मान ।।
हम स का भिमान है हिंदी,
भारत देश की शान है हिंदी ।।
हिंदी अपनाओ, देश का मान बढ़ाओ  ।।




  सिर्फ मातम-पुर्सी से काम नहीं चलने वाला है।हिन्दी भारत र्ष में राज-काज की भाषा है,हमारे सम्मान की प्रतीक है,तो सभी प्रांतीय व स्थानीय भाषायें हिन्दी की बहनें।भारत-वर्ष में बोली जाने वाली समस्त स्थानीय भाषाओं का एक समान आदर व सम्मान हमारा राष्ट धर्म होना चाहिए।डा0राममनोहर लोहिया ने प्रत्येक हिन्दी भाषी क्षेत्र के निवासी को सलाह दी थी कि वो कम से कम जहां जिस क्षेत्र या प्रदेश में रह रहे हों,वहां की स्थानीय भाषा को भी सीखें,उसका आदर करें,उसी स्थानीय भाषा को वहां पर बोल-चाल में अपनायें।इसी के साथ समूचे भारत के लोगों को हिन्दी अवश्य सीखने की सलाह भी डा0 लोहिया ने दी थी।
आज हिन्दी अपने उस मुकाम पर नहीं है जहां उसको होना चाहिए था।हिन्दी भाषी क्षेत्रों के शहरी इलाकों में रहने वाले लोग हिन्दी की जगह अंग्रेजी व पाश्चात्य सभ्यता को जाने-अनजाने बढ़ावा देते चले आ रहे हैं।हिन्दी समूचे राष्ट के लिए सम्मान की प्रतीक होनी चाहिए परन्तु एैसा हो नहीं पा रहा है।अंग्रेजों के जाने के पश्चात् भी अंग्रेज परस्त लोगों की गुलाम मानसिकता के कारण आजाद भारत में आज भी निज भाषा गौरव का बोध परवान नहीं चढ़ पा रहा है।जगह-जगह हर शहर,कस्बों में अंग्रेजी माध्यम का बोर्ड लगा देखकर इस भाषाई पराधीनता की वस्तुस्थिति को समझा जा सकता है।आज की शिक्षा बच्चों के लिए बोझ सदृश्य हो गई है।वर्तमान शिक्षा में अंग्रेजी के अनावश्यक महत्व ने आम जन व गरीबों के बच्चों के विकास को बाधित कर रखा है।जो गरीब का बच्चा,आम आदमी का बच्चा हिन्दी या अपनी किसी अन्य मातृभाषा में शिक्षा ग्रहण करता है,उस बालक को अपने-आप शैक्षिक रूप से पिछडा़ मान लिया जाता है।अंग्रेजी भाषा का झुनझुना उसके हाथों में पकड़ा कर उसके बोल उसके कानों में जबरन डाले जाते हैं।वो बेबस बालक दोहरी पढ़ाई करता है यानि कि एक तो शिक्षा ग्रहण करना और दूसरी पराई भाषा को भी पढ़ना।उस पर अंग्रेज परस्त लोगों का यह कहना कि अंग्रेजी एक वैश्विक भाषा है,इसका महत्व किसी भी स्थानीय भाषा के महत्व से ज्यादा है,भारत में व्याप्त अभी भी गुलाम मानसिकता का द्योतक है।इन गुलाम मानसिकता के अंग्रेज-परस्त लोगों ने अंग्रेजी भाषा को आज प्रतिष्ठा का विषय बना लिया है।जबकि सत्य यह है कि आज लोग इस भ्रम में कि अपने बच्चों को अंग्रेजी की शिक्षा दिलाना चाहते हैं कि अंग्रेजी सीखने के बाद जीविका के तमाम अवसर मिल जायेंगें।दरअसल किसी भी भाषा के बढ़ने के कारकों में सर्वाघिक महत्व-पूर्ण बात यह हो गई है कि उस भाषा का प्रत्यक्ष लाभ आदमी को रोजी-रोटी कमाने में मिले।जिस भाषा से ज्ञान और शिक्षा को संगठित करके रोजगार परक बना दिया जाता है,वह भाषा आम जन के मध्य लोकप्रिय होती जाती है।आज भारत की भाषाओं पर एक सोची-समझी रणनीति के पहत् अंगेजी थोप दी गई है।जीविका को अंग्रेजी भाषा के आश्रित बनाकर भारत के लोगों को मानसिक तौर पर गुलाम बना लिया गया है।आज पूरे विश्व में भारत ही एकमात्र एैसा देश है जहां के निवासियों को अपनी भाषा में बात-चीत करने या लिखने पढ़ने में भी शर्म आने लगी है।भारत के मूल निवासी मानसिक गुलाम अधकचरी अंग्रेजी बोलने में मस्तक उॅंचा करके गर्व महसूस करते हैं।
हम अंग्रेजी भाषा के ज्ञान को कदई गलत नहीं मानते,किसी भी भाषा का ज्ञान व्यक्ति के व्यक्तिगत विकास व योग्यता के लिए बहुत आवश्यक होता है।लेकिन जब किसी भाषा को किसी देश की मातृभाषा,स्थानीय भाषा के उपर थोपा जाता है तब कष्ट होता है।भारत के लोगों को भी चीन,जापान,रूस,फ्रांस,स्पेन आदि देशों के लोगों की ही तरह अंग्रेजी को सिर्फ एक साधारण भाषा के तौर पर ही लेना चाहिए।भाषा ज्ञान का पर्यायवाची नहीं होती है।कोई भी राष्ट अपनी भाषा में तरक्की के बेमिसाल मापदण्ड़ स्थापित कर सकता है इसके जीवन्त उदाहरण जापान,अमेरिका,चीन आदि देश हैं।

रविवार, 8 अप्रैल 2012

माँ भारती पुकारती..............





आज माँ भारती पुकारती 
आओ बलिदानी आओ 
तन को तिल तिल जलाकर 
देश को उजाला करने आओ ।
ये तन है क्षण भंगुर 
इससे प्रीत न लगाओ 
मात्रुभूमि के बलि वेदी पर 
खुद को अर्पण करने आओ ।
माँ आज रो रही है 
माँ भारती पुकार रही है 
उसकी अंग की घाव अव नासूर बन गयी है 
कोई तो उसकी दर्द सुनने आओ ।
सोने की चिडिया था ये देश कभी
क्या बन गया है अभी 
फिर से जग में मातृभूमि को 
सोने की मुकुट पहनाने आओ ।
सोने का अव समय नहीं 
सोचने की अवकाश नहीं 
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी 
रटने से कुछ होनेवाला नहीं ।
जन्मभूमि के लिए मर मिटने का आज समय आया है 
सर पर कफ़न बाँध कर शत्रुओं को पराभूत करने का आज समय आया है 
सुनलो उन सहिदों की नारा वन्देमातरम की आज कहने की समय आया है ।
आओ वीरों आओ, आओ जवानों आओ । 
   
   



शनिवार, 7 अप्रैल 2012

In the story of Krishna, as told in the Mahabharata and the Bhagavata Purana, he spends much of his childhood in the company of young cow-herd girls, called Gopis in the village of Vrindavan. Krishna left his native place at the age of twelve for study at gurukul .The Mahabharata does not describe Krishna's earlier life in Vrindavan in much detail, and focuses more on the later battle ofKurukshetra but within the Bhagavata Purana the child-hood pastimes of Krishna are described very vividly. Within the Bhagavata Purana, Radha is not mentioned by name but is alluded to within the tenth chapter of the text as one of the gopis whom Krishna plays with during his upbringing as a young boy. Krishna left Vrindavan for Mathura at the age of 10 years and 7 months according toBhagavata Purana.[6] So Radha is assumed to be also 10 years old or less when Krishna left Vrindavan. It is in later texts such as the Gita Govinda where we find the story of Radha given in more detail.

[edit]Within Vaishnavism


Radha with Krishna, as painted by Raja Ravi Varma

Krishna and Radha Seated on a Terrace - Brooklyn Museum
In the Vaishnava devotional or bhakti traditions of Hinduism that focus on Krishna, Radha is Krishna's friend and advisor. For some of the adherents of these traditions, her importance approaches or even exceeds that of Krishna. She is considered to be his original shakti, the supreme goddess in both the Nimbarka Sampradaya and following the advent of Chaitanya Mahaprabhu also within the Gaudiya Vaishnava tradition. Other gopis are usually considered to be her maidservants, with Radha having the prominent position of Krishna's favour "Among the eternal associates of the Lord the gopis are the most exhalted, and among the gopisSrimati Radharani is the best. It has been mentioned in the narration of the Skanda Purana that out of many thousands of gopis, 16,000 are prominent. Out of these, 108 are important, and out of 108, eight are principal. Out of eight gopis, Radharani and Candravali are chief, and out of these two Srimati Radharani is superior."[7]
Her connection to Krishna is of two types: svakiya-rasa (married relationship) andparakiya-rasa (a relationship signified with eternal mental "love"). The Gaudiya tradition focuses upon parakiya-rasa as the highest form of love, wherein Radha and Krishna share thoughts even through separation. The love the gopis feel for Krishna is also described in this esoteric manner as the highest platform of spontaneous love of God, and not of a sexual nature.
Proponents of the Gaudiya and Nimbarka schools of Vaishnavism give the highlyesoteric nature of Radha's relationship to Krishna as the reason why her story is not mentioned in detail in the other Puranic texts.[8]

[edit]Birth

Radha was the daughter of Vrishbhanu Gurjar who was king Suchandra in his previous life. Suchandra and his wife had acquired a boon from Brahmaji that in the Dwapar age Shri Laxmi will be born as a daughter to them in the form of Radha. King Suchendra and Queen Kalavati only were reborn as Vrishbhanu and Kirtikumari and Laxmiji was incarnated as Radha.
It is said[citation needed] that at Radha’s birth, Devarshi Narad himself went and met Vrishbhanu and informed him, “This girl’s beauty and nature is divine. All the houses, wherever her footprints are, Lord Narayan with all other deities will reside. Nurture this girl thinking her to be a Goddess.” According to Naradji’s advice, Vrishbhanu nurtured Radha with great love and care. Nandbaba who lived in the nearby village was friends with Vrishbanu. Once during the festival of Holi; Vrishbanu went to Gokul to meet Nandrai. At Nandrai and Yashoda’s house Krishna (who was growing up as their son) met Radha. Their union was divine, phenomenal and incessant[citation needed]. This meeting was Radha and Krishna’s first meeting which became eternal.[citation needed]
Radha’s love towards Krishna in the terrestrial or customary meaning is not just the relation between a man and woman. The feeling of this love is divine and phenomenal which gives this love a pious form. The philosophical side of this reduces the distance of the support and supportive, also the difference between the worshipper and worshipful is not there. Krishna is the life of Vraj; Radha is the soul of Krishna. That is why, it is said, “Atma Tu Radhika Tasya” (Radha, you are His soul). One form of Radha is, she is a devotee, worshipper of Krishna and in the second form she is the worshipful, devoted by Krishna. ‘Aradhyate Asau itii Radha.’ Radha – Krishna’s love is the symbol of the feeling of being united. When two souls are united, the difference of the other or the second vanishes.Her father Vrsabhanu was the king of cowherds Gop. Vrsabhanu was a partial incarnation of Lord Narayana while her mother Kalavati was a partial incarnation of Goddess Lakshmi.
Her worship is especially prominent in Vrindavan, the place where Krishna is said to have lived. Wherein Her importance surpasses even the importance of Krishna. Radha's love for Krishna is held within Gaudiya Vaishnavism as the most perfect primarily because of its endless and unconditional nature. Thus she is the most important friend of Krishna, 'His heart and soul', and His 'hladini-shakti' (mental companion potency).
In the Brihad-Gautamiya Tantra, Radharani is described as follows: "The transcendental goddess Srimati Radharani is the direct counterpart of Lord Sri Krishna. She is the central figure for all the goddesses of fortune. She possesses all the attractiveness to attract the all-attractive Personality of Godhead. She is the primeval internal potency of the Lord."

[edit]Nimbarka










गुरुवार, 22 मार्च 2012

हिन्दू नववर्ष मंगलमय हो,

                                                                हिन्दू नववर्ष मंगलमय हो,
                                                  चैत्र शुक्ल वर्ष प्रतिपदा विक्रम संवत २०६९
वर्षभर आपको ..........
तेज सूर्य का,
पवित्रता अग्नि की,
आदर्श राम के,
नीति कृष्ण की,
भक्ति नानक की,
अहिंसा महावीर की,
ज्ञान बुद्ध का,
शौर्य शिवाजी का,
वीरता गुरु गोविन्द सिंह की,
दृढ़ता राणा प्रताप की,
प्यार भारतमाता का उपलव्ध रहे,
आप सभी परिवार जनों के के सुखी - यशस्वी जीवन हेतु कोटिश: शुभ कामनायें............


आप व आप के परिवार को नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रम संवत् 2069, युगाब्द 5114,शक संवत् 1934 तदनुसार 23 मार्च 2012 , धरती मां की 1955885113 वीं वर्षगांठ तथा इसी दिन सृष्टि का शुभारंभ, भगवान राम का राज्याभिषेक, युधिष्ठिर संवत की शुरुवात, विक्रमादित्य का दिग्विजय, वासंतिक नवरात्र प्रारंभ, शिवाजी की राज्य स्थापना, डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का जन्मदिन की से ढेर सारी शुभकामना........




बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

नकली देशभक्ति

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य रचनात्मक है । हिन्दू संगठन का यह कार्य परकीय के भय से प्रारंभ नहीं हुआ है । निर्भय लोगों के निर्माण के महान कार्य के लिए पराभूत मनोब्रुत्ति का आश्रय नहीं लिया जा सकता ।

अंग्रेजों का राज्य आने पर उनकी देखा-देखि हमारे यहाँ कुछ नकली देशभक्तों का निर्माण हुआ । इंग्लॅण्ड के लोग अपने देश के लिए कार्य करते हैं, अतएव हमें भी कुछ करना चाहिए । इस अवस्था में देशभक्ति की सही कल्पना होना कठीन ही था ।सर्वसाधारण पढ़े-लिखे आदमी का तो यही दृष्टिकोण था कि बड़ा अच्छा काम है,करना चाहिए। अपना परिवार का काम करने के वाद समय बचे, तो करो । इस तरह, फुरसत के समय राष्ट्र के लिए कार्य करने की पद्धति इतनी रूढ़ हो गयी थी कि कोई भी सार्वजनिक कार्य प्रारंभ हो तो लोग कहते थे - हाँ काम तो अछा है ।मेरी इस काम के साथ सुहानुभूति है । मैं यथाशक्ति इसके लिए मदद करूँगा । परिवार के किसी काम के लिए, कोई भी व्यक्ति 'सुहानुभूति', 'मदद', 'यथाशक्ति' आदि शव्दों का प्रयोग नहीं करता । वहां इन शव्दों का कोई अर्थ ही नहीं है । अछे अछे लोग भी यही कहते हुए सुने जाते हैं कि ' उसने समाज का कितना उपकार किया !
समाज का उपकार करने की क्या बात है ? व्यक्ति तो समाज का अंग ही है । क्या पैर कभी कहता है कि मैं शरीर का उपकार कर रहा हूँ, क्या आँख कभी कहता है कि मैं इस देह का उपकार कर रहा हूँ ? उसके शरीर,मन और बुद्धि जिस किसी क्षमता से युक्त है, समाज के कारण ही है । गंगा का पानी गंगा को ही समर्पण । इसमें देने - लेने की कोई बात नहीं है ।  इस दृष्टी से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने कहा था - समूचा समाज हमारे परिवार में आता है ।
'में परिवार के लिए सर्वस्व अर्पण करूँगा ' इन शव्दों का उच्चारण न करने पर भी मनुष्य परिवार के लिए सर्वस्व अर्पण करता ही है, मृत्यु भी स्वीकार कर लेता है । फिर वह समाज के लिए क्यूँ नहीं कर सकेगा ? समाज -कार्य के लिए "यथाशक्ति" कहना उचित नहीं । यदि परिवार अपना है तो क्या उसके लिए तुम "यथाशक्ति " काम करते हो या तुम सर्वस्व - समर्पण करते हो । समाज के विषय में भी यही भावना चाहिए । इसमें समझौता नहीं हो सकता । "फुरसत" के समय काम करने की बात भी कृत्रिम है,अज्ञान है । इसमें न व्यक्ति का कल्याण है न समाज का । सचाई और निःस्वार्थ बुद्धि से काम करना ही स्वाभाविक है ।
और ये नकली देशभक्ति आज कल के समय में भी कुछ ज्यादा ही देखने को मिल रहा है   ।।  





















 

मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

भारत की राष्ट्रीयता व्यापक है - हिन्दू धर्म मानव-धर्म है ।

भारत की राष्ट्रीयता और इंग्लॅण्ड तथा अमेरिका की राष्ट्रीयता में अंतर है । इंग्लॅण्ड की राष्ट्रीयता ऐसी है क़ि इंग्लॅण्ड के लोगों  के सुख  के लिए आवश्यक हुआ तो बाकी सबके साथ वे लढने को तैयार होंगे । अमेरिका की राष्ट्रीयता भी ऐसी ही है क़ि अमेरिका को सुखी बनाने के लिए एटम बम बनाने मेंं उनको दुःख नहीं होता दूसरों को लुटने की साधन बनाने मेंं उन्हें संकोच नहीं । हमारे यहाँ की राष्ट्रीयता ऐसी नहीं, क्यूंकि वह " सर्वे भवन्तु सुखिनः " के तत्व पर आधारित है ।
हिन्दू धर्म मुसलमान और इसाई सम्प्रदाय की तरह प्रसारणशील नहीं है । हमने प्रचार या जवरदस्ती के आधार पर दूसरों को अपने जैसा बनाने की प्रयत्न नहीं किया है । इसका अर्थ है कि हिन्दू धर्म वास्तव में उदार है । किसी के साथ जवरदस्ती नहीं, किसी से इर्षा - द्वेष  नहीं । अतएव हिन्दुओं का यह राष्ट्र धर्म मानवता  के अनुकूल है।



गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

समलैंगिकता पर अपने रूख से पलटी सरकार, सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजगी


समलैंगिकता पर अपने रूख से पलटी सरकार, सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजगी



गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि भारतीय संस्कृति में समलैंगिक सेक्स की इजाज़त नहीं दी जा सकती। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने गुरुवार को समलैंगिक संबंधों को अत्यंत ‘‘अनैतिक’’ और ‘‘सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ’’ करार देते हुए इन्हें अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने का उच्चतम न्यायालय में कड़ा विरोध किया। मंत्रालय की ओर से पैरवी कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पीपी मल्होत्रा ने दलील दी कि भारतीय समाज अन्य देशों से भिन्न है और यह विदेशों का अनुकरण नहीं कर सकता।
समलैंगिक संबंधों को निहायत अनैतिक करार देकर इन्हें अपराध की श्रेणी से बाहर रखने पर नामंजूरी जताने के बाद सरकार ने अपना रुख पलट लिया, जिसके बाद उच्चतम न्यायालय की पीठ ने नाराजगी व्यक्त की। सरकार की ओर से जारी किए गए ताज़ा बयान में कहा गया है कि दिल्ली हाई कोर्ट के साल 2009 के आदेश के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल ने तय किया था कि सरकार हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिका दायर नहीं करेगी। हालांकि अगर कोई निजी तौर पर जाकर इसके खिलाफ अपील करना चाहे तो अटॉर्नी जनरल उनकी मदद करेंगे।
मल्होत्रा ने न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी तथा न्यायमूर्ति जे. मुखोपाध्याय की पीठ के समक्ष तर्क दिया कि समलैंगिक संबंध बहुत अनैतिक तथा भारतीय सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ हैं और इस तरह के कृत्यों से बीमारियां फैलने के ज्यादा अवसर होते हैं। मल्‍होत्रा ने कहा कि हमारा संविधान अलग है और हमारी नैतिकता तथा हमारे मूल्य भी दूसरे देशों से भिन्न हैं, इसलिए हम दूसरे देशों के संस्‍कृति और मूल्यों को नहीं अपना सकते। उन्‍होंने कहा कि समलैंगिक संबंधों को समाज द्वारा अस्वीकार किया जाना इन्हें अपराध की श्रेणी में रखने का पर्याप्त आधार है।
दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले का विरोध करते हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि भारतीय समाज समलैंगिकता को अस्वीकार करता है। कानून समाज से अलग नहीं चल सकता। उल्‍लेखनीय है कि उच्च न्यायालय ने 2009 में दिए अपने फैसले में समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था। आईपीसी की धारा 377 (अप्राकृतिक अपराध) समलैंगिक संबंधों को अपराध मानती है, जिसके तहत अधिकतम सजा उम्रकैद हो सकती है।
कोर्ट ने सरकार से ऐसे लोगों के बारे में भी जानकारी मांगी थी जो देश में ‘समलैगिक व्यवहार’ में पकड़े गए है। दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा था कि दो मर्द या औरत अगर अपनी सहमति से बंद कमरे के भीतर समलैंगिक यौन संबंध बनाते हैं तो ये अपराध नहीं है। हाई कोर्ट की इस घोषणा से पहले भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत ऐसे संबंध बनाए जाने पर कड़ी सजा का भी प्रावधान था। इस आदेश को चुनौती देते हुए दिल्ली कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ चाइल्ड राइट्स ने कहा था कि समलैंगिक रिश्ते बनाना कुदरत के ख़िलाफ़ है और इसे आपराधिक जुर्म करार दिया जाना चाहिए।
गृह मंत्रालय ने कैबिनेट के फैसले से अवगत कराने के अलावा कोई अन्य निर्देश भी नहीं दिया है।’ उसने बताया कि अटार्नी जनरल से शीर्ष न्यायालय को सिर्फ सहयोग करने को कहा गया है। गृह मंत्रालय ने कहा कि इस विषय पर कैबिनेट ने विचार किया और कैबिनेट का फैसला था कि केंद्र सरकार उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ कोई अपील नहीं कर सकती। जैसे ही मल्होत्रा ने करीब चार घंटे तक चली कार्यवाही के बाद अपनी दलीलें समाप्त कीं, एक अन्य एएसजी मोहन जैन ने अदालत से कहा कि उन्हें यह संदेश देने का निर्देश दिया गया है कि केंद्र इस मुद्दे पर कोई रुख अख्तियार नहीं कर रहा। जैन की अंतिम मिनट में दी गयी दलील पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराते हुए पीठ ने कहा कि सरकार ने अपनी दलीलें पहले ही रखी हैं और अदालत उन्हें दिये गये निर्देश को संज्ञान में नहीं ले सकती। पीठ ने सरकारी वकील से कड़े लहजे में कहा, ‘अदालत में इस तरह के बयान नहीं दें। इससे आपको ही परेशानी होगी। अदालत ने अगली सुनवाई के लिए 28 फरवरी की तारीख मुकर्रर की।
इससे पूर्व पीठ ने कहा था कि समलैंगिकता को बदलते समाज के परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। पीठ ने ‘लिव इन रिलेशनशिप’, ‘सिंगल पेरेंट’ और ‘सरोगेसी’ (किराए की कोख) का हवाला देते हुए कहा था कि पहले देश में बहुत सी चीजें जो पहले अस्वीकार्य थीं, अब समय के साथ स्वीकार्य हो गई हैं। वरिष्ठ भाजपा नेता बीपी सिंघल ने उच्च न्यायालय के फैसले को यह कहकर शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी कि इस तरह के कृत्य अवैध, अनैतिक और भारतीय संस्कृति के मूल्यों के खिलाफ हैं। आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड, उत्कल क्रिश्चियन काउंसिल और एपोस्टोलिक चच्रेज एलायंस जैसे धार्मिक संगठनों ने भी उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी। कई अन्‍य लोगों ने भी इस फैसले का विरोध किया था।

रविवार, 19 फ़रवरी 2012

महा मृत्युंजय मन्त्र


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .

ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


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ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


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उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


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उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


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उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


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उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


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उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् 


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .

ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


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उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


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उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् 


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .


ॐ त्रियम्बकं यजामहे,सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं           ॐ त्रियम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् .... उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षिय मामृतात् ...............