बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

नकली देशभक्ति

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य रचनात्मक है । हिन्दू संगठन का यह कार्य परकीय के भय से प्रारंभ नहीं हुआ है । निर्भय लोगों के निर्माण के महान कार्य के लिए पराभूत मनोब्रुत्ति का आश्रय नहीं लिया जा सकता ।

अंग्रेजों का राज्य आने पर उनकी देखा-देखि हमारे यहाँ कुछ नकली देशभक्तों का निर्माण हुआ । इंग्लॅण्ड के लोग अपने देश के लिए कार्य करते हैं, अतएव हमें भी कुछ करना चाहिए । इस अवस्था में देशभक्ति की सही कल्पना होना कठीन ही था ।सर्वसाधारण पढ़े-लिखे आदमी का तो यही दृष्टिकोण था कि बड़ा अच्छा काम है,करना चाहिए। अपना परिवार का काम करने के वाद समय बचे, तो करो । इस तरह, फुरसत के समय राष्ट्र के लिए कार्य करने की पद्धति इतनी रूढ़ हो गयी थी कि कोई भी सार्वजनिक कार्य प्रारंभ हो तो लोग कहते थे - हाँ काम तो अछा है ।मेरी इस काम के साथ सुहानुभूति है । मैं यथाशक्ति इसके लिए मदद करूँगा । परिवार के किसी काम के लिए, कोई भी व्यक्ति 'सुहानुभूति', 'मदद', 'यथाशक्ति' आदि शव्दों का प्रयोग नहीं करता । वहां इन शव्दों का कोई अर्थ ही नहीं है । अछे अछे लोग भी यही कहते हुए सुने जाते हैं कि ' उसने समाज का कितना उपकार किया !
समाज का उपकार करने की क्या बात है ? व्यक्ति तो समाज का अंग ही है । क्या पैर कभी कहता है कि मैं शरीर का उपकार कर रहा हूँ, क्या आँख कभी कहता है कि मैं इस देह का उपकार कर रहा हूँ ? उसके शरीर,मन और बुद्धि जिस किसी क्षमता से युक्त है, समाज के कारण ही है । गंगा का पानी गंगा को ही समर्पण । इसमें देने - लेने की कोई बात नहीं है ।  इस दृष्टी से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने कहा था - समूचा समाज हमारे परिवार में आता है ।
'में परिवार के लिए सर्वस्व अर्पण करूँगा ' इन शव्दों का उच्चारण न करने पर भी मनुष्य परिवार के लिए सर्वस्व अर्पण करता ही है, मृत्यु भी स्वीकार कर लेता है । फिर वह समाज के लिए क्यूँ नहीं कर सकेगा ? समाज -कार्य के लिए "यथाशक्ति" कहना उचित नहीं । यदि परिवार अपना है तो क्या उसके लिए तुम "यथाशक्ति " काम करते हो या तुम सर्वस्व - समर्पण करते हो । समाज के विषय में भी यही भावना चाहिए । इसमें समझौता नहीं हो सकता । "फुरसत" के समय काम करने की बात भी कृत्रिम है,अज्ञान है । इसमें न व्यक्ति का कल्याण है न समाज का । सचाई और निःस्वार्थ बुद्धि से काम करना ही स्वाभाविक है ।
और ये नकली देशभक्ति आज कल के समय में भी कुछ ज्यादा ही देखने को मिल रहा है   ।।  





















 

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