युद्धाय कृतनिश्चयः

दूसरी तरफ सरकार भी अन्ना से कम, सोशल मीडिया से ज्यादा हलकान है। वह जानती है कि अन्ना अड़ियल होने के बाद भी विनम्र हैं। गुस्सा उन्हें भी आता है पर वे भाषा का संयम नहीं छोड़ते। पर इस फेसबुकिये हुजूम का क्या किया जाय जो न उम्र का लिहाज करता है और न ओहदे का। बदमिजाजी और बदजुबानी तो उनकी तासीर में शामिल है।
सरकार समझ गयी कि यह सारा खेल सोशल मीडिया वालों का है। सरकार यह भी समझती है कि जो वह समझ रही है, वही सही है। उसे यह भी समझ है कि जो समझाने से न समझें उन्हें किस तरह समझाया जाय। सरकार के पंचरत्नों में से एक कपिल सिब्बल ने रामदेव प्रकरण में समझाने की कला का सार्वजनिक प्रदर्शन किया था और कोटरी की वाह-वाही बटोरी थी। सरकार ने इस बार सोशल मीडिया वालों को समझाने का जिम्मा भी सिब्बल पर डाल दिया। संयोग से यह उनका महकमा भी था इसलिये भी उनका इस पर हक बनता था।
जिम्मेदारी मिलते ही सिब्बल ने तमाम सोशल साइट ऑपरेटरों को तलब किया। हाजिर होने पर उन्हें तहजीब और तरीके से चलने की हिदायत दी। ऐसी कोई भी बात, जो ‘सरकार’ और सरकार की ‘सरकार’ के खिलाफ जाती हो, जा सकती हो, जाती न हो लेकिन जाती दिखती हो अथवा अपने रास्ते चलते-चलते पटरी बदल कर उस तरफ चल पड़ने की संभावना भी हो, सोशल मीडिया पर न चलायी जाये, न चलाने दी जाय।
सिब्बल के न्यौते को इन कंपनियों के कारिंदों ने रुटीन की चाय-पार्टी समझा था। नतीजतन वे बड़ी बेतकल्लुफी से सरकार के दफ्तर में जा पहुंचे। मातहतों ने उन्हें उसी तरह मुस्कान परोसी जैसे वे हर गोरी चमड़ी वाले को अपने ऑफिस में प्रवेश करते देख कर परोसते थे। सब कुछ सामान्य था। किन्तु मंत्री जी के दफ्तर में प्रवेश करते ही उनकी छठी इन्द्री गज-बजा उठी। सिब्बल ने हमेशा की तरह दरवाजे पर आ कर उनका स्वागत करने के बजाय कुर्सी में धंसे-धंसे ही आंखें तरेरी।
कंपनी कारिंदों के लिये उनकी यह अदा अजनबी थी। उनके हाथ में एक प्रिंटआउट था जिस पर एक विकृत सा नारी चित्र उकेरने की कोशिश की गयी थी। दूर से देखने पर यह कुछ-कुछ एम एफ हुसैन की उन कलाकृतियों की फूहड़ नकल लग रहा था जो उन्होंने हिन्दू देवियों के बारे में बनाये थे। हाँ, हाँ, ठीक है, अब गुस्सा छोड़ो ! वाली दृष्टि से लोगों ने मुस्कुराते हुए अनौपचारिक होने की कोशिश की लेकिन मंत्री जी सुनने के मूड में नहीं थे। एक गहरी सांस छोड़ते हुए सिब्बल ने कहा – यह नहीं चलेगा। तीन शब्दों का संक्षिप्त और गठा हुआ वाक्य। एक अक्षर भी कम करना संभव नहीं। नश्तर सी चुभती सर्द आवाज। बोझिल शब्द मानो टेबल के दूसरी तरफ से नहीं बल्कि दूर कहीं जनपथ से आ रहे हों। अब चौंकने की बारी थी। यह वही संचार भवन था जहां कुछ भी चलता था। राजा के जमाने में तो यहां सब कुछ चलता था। और अब बात एक चित्र के भी न चलने की हो रही थी। सिब्बल ने उन्हें तमाम उलाहने और लानत-मलामत देकर चलता कर दिया।
फटकार खा कर कंपनियों के कारकुन पिछले दरवाजे से इस खामोशी से निकले कि सबसे तेज मीडिया वालों को भी खबर न हुई। शूर्पणखा जिस तरह रावण के दरबार में विलाप करती पहुंची थी, उस तरह इन्हें जाने की जरूरत नहीं थी। टेक्नॉलॉजी का फायदा उठाते हुए उन्होंने अपने-अपने मालिकों को ऑन-लाइन दुहाई भेजी। दूसरी तरफ मालिकों के कम्प्यूटर में जैसे ही उनकी कटी हुई नाक डाउनलोड हुई, मालिक बिफर उठे। चट से फोन उठाया और पट से हिलेरी माई से शिकायत कर दी। भक्तों की पुकार पर हिलेरी माई दौड़ी आयीं। उन्होंने न केवल इस प्रकार की क्षुद्रता को धिक्कारा बल्कि निजी कंपनियों को इस प्रकार की समस्याओं का तोड़ निकालने की जिम्मेदारी भी याद दिलायी।
इंटरनेट स्वतंत्रता पर हेग में आयोजित सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए जब उन्होंने व्यक्ति के ऑफलाइन और ऑनलाइन मानवाधिकारों की समानता का ‘दर्शन’ प्रस्तुत किया उस समय उनके चेहरे पर प्लेटो और इस शोर-गुल में संयुक्त राष्ट्र संघ के अध्यक्ष की भी नींद टूटी और उन्होंने भी एक बयान झाड़ दिया।
इधर भारत में भी अनेक नेता और नेता टाइप के लोगों ने अपनी दुम खड़ी कर अंतरराष्ट्रीय संकेत ग्रहण किये और बयान हांकने शुरू कर दिये। सिब्बल इस सब से भड़कते, इससे पहले ही विनम्र प्रधानमंत्री ने उन्हें शांत करते हुए याद दिलाया कि अब मामला घरेलू नहीं बचा है। विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ भी घरेलू संस्थानों जैसा व्यवहार किया जाना शोभा नहीं देता। खास कर हिलेरी माई की सिफारिश के बाद तो मामला स्टाफ का हो गया है। हे वीर ! हे नरपुंगव ! अब अपनी तोप की नाल घुमाओ और टूजी मामले में फंस चुके चिदम्बरम का इस्तीफा मांग रहे विपक्ष पर गोलेबाजी शुरू कर दो। हमारे असली दुश्मन वे लोग हैं जो अन्ना को भड़काते हैं, रामदेव जिनकी बी टीम हैं, रविशंकर जिनकी सी टीम हैं, …… डी, ई और एफ टीम हैं, और देश की जनता जिनकी एक्स, वाई और जेड टीम है।
अपराधी तो वे हैं जो फेसबुक और गुगल पर इनका एजेन्डा लिख रहे हैं, हमारे विरुद्ध माहौल बना रहे हैं। हे महारथी ! तू इन सेवा प्रदाता बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की मासूमियत पर शक न कर। शिव खेड़ा के वचनों को स्मरण कर और महसूस कर कि आज चिदम्बरम पर हमला हो और तुझे नींद आ जाय तो समझ कि अगला नम्बर तेरा है। मैं तेरे लिये इसलिये चिंतित हूं कि तेरे बाद नंबर मेरा है। स्वामी के झोले में सबकी फाइलें हैं। इसलिये हे सिब्बल कुल शिरोमणि ! युद्धाय कृतनिश्चयः।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें