शनिवार, 31 दिसंबर 2011

संघ अछूत है क्या ?


यूंपीए – 2 के मंत्रीगण एवं कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्त्ता अपना विवेक खो बैठे हैं परिणामतः बार – बार एक देशभक्त संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ  के ऊपर अपने शब्दों के माध्यम से कुठाराघात करते रहते है ! इनकी आखों पर राजनीति की ऐसी परत चढी है कि समाज को बांटने के लिए संघ को कभी “भगवा आतंकवाद” से संबोधित करते है तो कभी “फासिस्ट संगठन” की संज्ञा देते हैं ! कांग्रेस के नेता हिटलर के प्रचार मंत्री गोयबेल्स के दोनों सिद्धांतो पर चलते है ! मसलन एक – किसी भी झूठ को सौ बार बोलने से वह सच हो जाता है ! दो – यदि झूठ ही बोलना है, तो सौ गुना बड़ा बोलो ! इससे सबको लगेगा कि बात भले ही पूरी सच न हो; पर कुछ है जरूर !  इसी सिद्धांतों पर चलते हुए कांग्रेसी हर उस व्यक्ति की आड़ में संघ को बदनाम करने कोशिश करते है जो देशहित की बात करता है ! मसलन कभी अन्ना हजारे जी की ओट में  संघ पर हमला करते है तो कभी बाबा रामदेव और श्री श्री रविशंकर जी की ओट में संघ पर तीखा प्रहार करने से भी नहीं गुरेज करते ! अन्ना जी की अगुवाई में भ्रष्टाचार के खिलाफ देश में बने जनमानस की हवा निकालने के लिए सरकार बार – बार संघ का हाथ होने का दावा करती है ! कभी किसी चित्र का हवाला देती है तो कभी संघ के किसी कार्यक्रम में अन्ना जी की उपस्थिति का पोस्टमार्टम  करती है ! इसकी आड़ में वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को लपेटने के चक्कर में हैं, जिसकी देशभक्ति तथा सेवा भावना पर विरोधी भी संदेह नहीं करते ! भारत में स्वाधीनता के बाद भी अंग्रेजी कानून और उसकी मानसिकता बदस्तूर जारी है !  इसीलिए कांग्रेसी नेता आतंकवाद को मजहबों में बांटकर इस्लामी, ईसाई आतंकवाद के सामने ‘भगवा आतंक’ का शिगूफा कांग्रेसी नेता छेड़ कर देश की जनता को भ्रमित करने नाकाम कोशिश करते है !

जो सभ्यता पूरे विश्व के कल्याण का उदघोष करती हो और उस सभ्यता का जोरदार समर्थन करने वाले लोगों को बदनाम करने की साजिश वर्तमान सरकार की नियत को दर्शाता है !  भारतीय चिंतन में ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ की भावना और भोजन से पूर्व जीव-जंतुओं के लिए भी अंश निकालने का प्रावधान है। ‘अतिथि देवो भव’ का सूत्र तो अब शासन ने भी अपना लिया है ! 
खुद कमाओ खुद खाओ यह प्रकृति है , दूसरा कमाए तुम छीन कर खाओ यह विकृति है और खुद कमाओ दूसरे को खिलाओ यह भारतीय संस्कृति है ! परन्तु तथाकथित वैश्वीकरण अर्थात ग्लोब्लाईजेशन के इस दौर में अपने को अधिक आधुनिक कहलाने की होड़ के चक्कर में व्यक्ति जब अपनी  पहचान,  अपने राष्ट्रीय स्वाभिमान, अपने मूल्यों तथा  अपनी संस्कृति से समझौता करने को आतुर हो तो ऐसे विकट समय में अपने देश की ध्वजा-पताका थामे अगर कोई भारत में भारतीयता की बात करता हो तो उसे बदनाम करने के लए तरह – तरह के हथकंडे अपनाये जाते है ! क्या स्वतंत्र भारत में भारतीयता की बात करना गुनाह है ? आज भारत अनेक आतंरिक कलहों से जूझ रहा है ! देश में कही आतंकवाद अपने चरम पर है तो कही पर नक्सलवाद ! बंगलादेशी घुसपैठ सबको विदित ही है ! कृषि – प्रधान कहलाने वाले देश में  कृषक आत्म हत्या को मजबूर हो रहा है !  वनवासियों, झुग्गी-झोपड़ियों अथवा गरीबों की सेवा के नाम पर उन्हें चिकित्सा,शिक्षा  आर्थिक मदद देकर अथवा आतंकवादियों द्वारा प्रायोजित लव-जेहाद ( आतंकवादी हिन्दू लड़कियों को अपने प्रेमजाल में फंसाकर उनसे शादी कर उन्हें मतांतरित करते है और बाद में उन्हें तलाक देकर नए शिकार की तलाश में जुट जाते है ! )  के माध्यम से हजारो बालिकाओं को धर्मांतरण करने पर मजबूर किया जाता है !  
दिल्ली विश्वविद्यालय के स्नातक की पुस्तक में करोडो भारतीयों के इष्ट देवी – देवताओं पर अभद्र टिप्पणियां कर विद्यार्थियों को पढने पर मजबूर किया जाता है ! भारत पर हर तरफ से चाहे वह शिक्षा का क्षेत्र हो ,सेवा का क्षेत्र हो, राजनीति का क्षेत्र हो, ग्रामीण क्षेत्र हो हर तरफ से लगभग भारतीय संस्कृति और सभ्यता पर लगातार हमला हो रहा है ! राजनैतिक पार्टियाँ बस अपने स्वार्थ-पूर्ति में ही लगी रहती है कोई पार्टी जाति के नाम पर वोट मांगती है तो कोई किसी विशेष समुदाय को लाभ पहुचाने के लिए उन्हें कोटे के लोटे से अफीम चटाने का काम करती है ! परन्तु राष्ट्रीयता की बात संघ विचार धारा की पार्टी अर्थात भारतीय जनता पार्टी  को छोड़कर कोई नहीं करता !  हिन्दी भाषा पर तो अंग्रेजी भाषा ने लगभग कब्ज़ा ही कर लिया है ! कोई राज्य “गीता” पर प्रतिबंध लगा देता है तो कोई राष्ट्रीय गीत “वन्देमातरम” के गाने पर विरोध जताता है ! आज भ्रष्टाचार का हर तरफ बोलबाला है परन्तु बावजूद इसके सरकार को इस समस्या से ज्यादा चिंता इस बात की है कि भार्स्त्चार के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले के पीछे कही संघ तो नहीं है ! क्या संघ के लोग इस देश के नागरिक नहीं है ? क्या संघ के लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज नहीं उठा सकते ? संघ अछूत  है क्या ? ज्ञातव्य है कि देश के कई राज्यों में इस विचारधारा को मानने वाली राजनैतिक पार्टी अर्थात भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री है !  ”बाटों और राज्य करो” की नीति को मानने वाली राजनैतिक पार्टी “कांग्रेस” जिसकी अभी केंद्र में सरकार है, अगर वह संघ के लोगों को देशभक्त नहीं मानती तो संघ पर बैन क्यों नहीं लगा देती !   
किसी प्रसिद्ध चिन्तक ने कहा है  कि जो कौमें अपने पूर्वजों को भुला देती है वो ज्यादा दिन तक नहीं चलती है !  परन्तु राजनेताओं पर राजनीति का ऐसा खुमार चढ़ा है अपनी सस्ती राजनीति चमकाने के चक्कर में देश की अखंडता के साथ खिलवाड़ करने से भी बाज नहीं आते ! जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी दिल्ली में खुले आम देश की अखंडता को चुनौती देकर चले जाते है और किसी के कानो पर जूं तक नहीं रेंगती ! पिछले दिनों अमरीका में ‘कश्मीर अमेरिकन सेंटर’ चलाने वाले डा0 गुलाम नबी फई तथा उसका एक साथी पकड़े गये हैं, जो कुख्यात पाकिस्तानी संस्था आई.एस.आई के धन से अवैध रूप से सांसदों एवं अन्य प्रभावी लोगों से मिलकर कश्मीर पर पाकिस्तान के पक्ष को पुष्ट करने का प्रयास (लाबिंग) करते थे ! कश्मीर की स्थिति लगातार चिंताजनक बनी है ! इस बारे में देश को जागरूक करने के लिए कश्मीर विलय दिवस (26 अक्तूबर) को 2010 में शाखाओं पर तथा सार्वजनिक रूप से लगभग 10,000 कार्यक्रम हुए ! ग्राम्य विकास में लगे कार्यकर्ताओं का सम्मेलन कन्याकुमारी तथा मथुरा में हुआ ! हिन्दू आतंकवाद के नाम पर किये जा रहे षड्यन्त्र के विरोध में 10 नवम्बर, 2010 को देश भर में 750  से अधिक स्थानों पर हुए धरनों में करोड़ों लोगों ने भाग लिया।
संघ एक अनुशासित तथा शांतिप्रिय संगठन है और उसका काम  ”व्यक्ति निर्माण” का है ! संघ को समझने के लिए बहुत दूर जाने की आवश्यकता नहीं होती !  देश भर में हर दिन सुबह-शाम संघ की लगभग 50,000 शाखाएं सार्वजनिक स्थानों पर लगती हैं !  इनमें से किसी में भी जाकर संघ को समझ सकते हैं ! शाखा में प्रारम्भ के 40 मिनट शारीरिक कार्यक्रम होते हैं ! बुजुर्ग लोग आसन करते हैं, तो नवयुवक और बालक खेल व व्यायाम ! इसके बाद वे कोई देशभक्तिपूर्ण गीत बोलते हैं ! किसी महामानव के जीवन का कोई प्रसंग स्मरण करते हैं और फिर भगवा ध्वज के सामने पंक्तियों में खड़े होकर भारत माता की वंदना के साथ एक घंटे की शाखा सम्पन्न हो जाती है ! संघ के ऊपर प्रायः आरोप लगता रहा है कि उसने स्वाधीनता संग्राम में भाग नहीं लिया, जबकि संघ के संस्थापक डा0 हेडगेवार ने जंगल सत्याग्रह में भाग लेकर एक साल का सश्रम कारावास वरण किया था ! चूंकि उन दिनों कांग्रेस आजादी के संघर्ष में एक प्रमुख मंच के रूप में काम कर रही थी, अतः संघ के हजारों स्वयंसेवक सत्याग्रह कर कांग्रेस के बैनर पर ही जेल गये ! 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शाखा चलाने के अलावा अनेक क्षेत्रों में भी काम करता हैं। निस्वार्थ भाव एवं लगन के कारण ऐसे सब कार्यां ने उस क्षेत्र में अपनी एक अलग व अग्रणी पहचान बनाई है।
संस्कृत भाषा के प्रति जागृति लाने हेतु विभिन्न संस्थाएं प्रयासरत हैं ! पूरी दुनिया को पांच क्षेत्रों (अमरीका, यूरोप, आस्ट्रेलिया, अफ्रीका तथा एशिया) में बांटकर, जिन देशों में हिन्दू हैं, वहां साप्ताहिक, मासिक या उत्सवों में मिलन के माध्यम से काम हो रहा है !  भारत के वनों व पर्वतों में रहने वाले हिन्दुओं को अंग्रेजों ने आदिवासी कहकर शेष हिन्दू समाज से अलग करने का षड्यन्त्र किया !  दुर्भाग्य से आजादी के बाद भी यही गलत शब्द प्रयोग जारी है ! ये वही वीर लोग हैं, जिन्होंने विदेशी मुगलों तथा अंग्रेजों से टक्कर ली है; पर वन-पर्वतों में रहने के कारण वे विकास की धारा से दूर रहे गये ! इनके बीच स्वयंसेवक ‘वनवासी कल्याण आश्रम’ नामक संस्था बनाकर काम करते हैं !  इसकी 29 प्रान्तों में 214 से अधिक इकाइयां हैं ! इनके द्वारा शिक्षा, चिकित्सा, खेलकूद और हस्तशिल्प प्रशिक्षण आदि के काम चलाये जाते हैं !
ज्ञातव्य है कि दिल्ली में अभी हाल में ही संपन्न हुए “कॉमनवेल्थ गेम्स – 2010″ में  ट्रैक फील्ड में पहला पदक और एसियन गेम्स में. 10,000 मीटर  में सिल्वर पदक , 5,000 मीटर में कांस्य पदक  जीतने वाली “कविता राऊत ” वनवासी कल्याण आश्रम संस्था से ही निकली हैं ! 
संघ का कार्य केवल पुरुष वर्ग के बीच चलता है; पर उसकी प्रेरणा से महिला वर्ग में ‘राष्ट्र सेविका समिति’ काम करती है ! इस समय देश में उसकी 5,000 से अधिक शाखाएं हैं !  इसके साथ ही समिति 750 सेवाकार्य भी चलाती है ! ‘क्रीड़ा भारती’ निर्धन, वनवासी व ग्रामीण क्षेत्र में छिपी हुई प्रतिभाओं को सामने लाने का प्रयास कर रही है ! धर्मान्तरण के षड्यन्त्रों को विफल करने के लिए धर्म जागरण के प्रयासों के अन्तर्गत 110 से अधिक जाति समूहों में सेवा कार्य प्रारम्भ किया गया है ! सेवा के कार्य में ‘दीनदयाल शोध संस्थान’ भी लगा है ! गोंडा एवं चित्रकूट का प्रकल्प इस नाते उल्लेखनीय है ! राजनीतिक क्षेत्र में ‘भारतीय जनता पार्टी’ की छह राज्यों में अपनी तथा तीन में गठबंधन सरकार है ! समाज के प्रबुद्ध तथा सम्पन्न वर्ग की शक्ति को आरोग्य सम्पन्न, आर्थिक रूप से स्वावलम्बी तथा समर्थ भारत के निर्माण में लगाने के लिए ‘भारत विकास परिषद’ काम करती है ! परिषद द्वारा संचालित देशभक्ति समूह गान प्रतियोगिता तथा विकलांग सहायता योजना ने पूरे देश में एक विशेष पहचान बनायी है ! इसके अतिरिक्त परिषद के 1545 से अधिक  सेवा कार्य भी चला रही है ! 1975 के बाद से संघ प्रेरित संगठनों ने सेवा कार्य को प्रमुखता से अपनाया है !  ‘राष्ट्रीय सेवा भारती’ के बैनर के नीचे इस समय लगभग 400 से अधिक  संस्थाएं काम कर रही हैं !  विकलांगों में कार्यरत‘सक्षम’ नामक संस्था की 102 से अधिक नगरों में बड़े जोर – शोर से  लगी है ! नेत्र सेवा के क्षेत्र में इसका कार्य उल्लेखनीय है ! 

आयुर्वेद तथा अन्य विधाओं के चिकित्सकों को ‘आरोग्य भारती’ के माध्यम से संगठित किया  गया है ! ‘नैशनल मैडिकोज आर्गनाइजेशन’ द्वारा ऐसे ही प्रयास एलोपैथी चिकित्सकों को संगठित कर किये जा रहे हैं ! ‘चाहे जो मजबूरी हो, मांग हमारी पूरी हो’ के स्थान पर ‘देश के हित में करेंगे काम, काम के लेंगे पूरे दाम’ की अलख जगाने वाले ‘भारतीय मजदूर संघ’ का देश के सभी राज्यों के 550 जिलों में काम है ! अब धीरे-धीरे असंगठित मजदूरों के क्षेत्र में भी कदम बढ़ रहे हैं ! ‘भारतीय किसान संघ’ ने बी.टी बैंगन के विरुद्ध हुई लड़ाई में सफलता पाई ! ‘स्वदेशी जागरण मंच’ का विचार केवल भारत में ही नहीं, तो विश्व भर में स्वीकार्य होने से विश्व व्यापार संगठन मृत्यु की ओर अग्रसर है ! मंच के प्रयास से खुदरा व्यापार में एक अमरीकी कंपनी का प्रवेश को रोका गया तथा जगन्नाथ मंदिर की भूमि वेदांता वि0वि0 को देने का षड्यन्त्र विफल किया गया ! ग्राहक जागरण को समर्पित ‘ग्राहक पंचायत’ का काम भी 135 से अधिक जिलों में पहुंच गया है ! इसके द्वारा  24 दिसम्बर को ग्राहक दिवस तथा 15 मार्च को क्रय निषेध दिवस के रूप मनाया जाता है ! ‘सहकार भारती’ के 680 से अधिक तहसीलों में 20 लाख से ज्यादा सदस्य हैं !  इसके माध्यम से मांस उद्योग को 30 प्रतिशत सरकारी सहायता बंद करायी गयी !  अब सहकारी क्षेत्र को करमुक्त कराने के प्रयास जारी हैं ! ‘लघु उद्योग भारती’ मध्यम श्रेणी के उद्योगों का संगठन है ! इसकी 26 प्रांतों में 100 से ज्यादा इकाइयां हैं।
शिक्षा क्षेत्र में ‘विद्या भारती’ द्वारा 15,000 से अधिक विद्यालय चलाये जा रहे हैं, जिनमें लाखों आचार्य करोड़ों शिक्षार्थियों को पढ़ा रहे हैं ! शिक्षा बचाओ आंदोलन द्वारा पाठ्य पुस्तकों में से वे अंश निकलवाये गये, जिनमें देश एवं धर्म के लिए बलिदान हुए हुतात्माओं के लिए अभद्र विशेषण प्रयोग किये गये थे ! ‘अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद’ का 5,604 से अधिक  महाविद्यालयों में काम है !  इसके माध्यम से शिक्षा के व्यापारीकरण के विरुद्ध व्यापक जागरण किया जाता है !‘भारतीय शिक्षण मंडल’शिक्षा में भारतीयता संबंधी विषयों को लाने के लिए प्रयासरत है ! सभी स्तर के 7.5 लाख से अधिक अध्यापकों की सदस्यता वाले‘शैक्षिक महासंघ’ में लगभग सभी  राज्यों केलगभग विश्वविद्यालयों के शिक्षक जुड़े हैं। स्वामी विवेकानंद के विचारों के प्रसार के लिए कार्यरत ‘विवेकानंद केन्द्र, कन्याकुमारी’ ने स्वामी जी की 150 वीं जयन्ती 12 जनवरी, 2013 से एक वर्ष तक भारत जागो, विश्व जगाओ अभियान चलाने का निश्चय किया है !  पूर्वोत्तर भारत में इस संस्था के माध्यम से शिक्षा एवं सेवा के विविध प्रकल्प चलाये जाते हैं !
‘विश्व हिन्दू परिषद’ जहां एक ओर श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के माध्यम से देश में हिन्दू जागरण की लहर उत्पन्न करने में सफल हुआ है, वहां 36,609 से अधिक सेवा कार्यों के माध्यम से निर्धन एवं निर्बल वर्ग के बीच भी पहुंचा है !  इनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वालम्बन तथा सामाजिक समरसता की वृद्धि के कार्य प्रमुख रूप से चलाये जाते हैं ! “एकल विद्यालय” योजना द्वारा साक्षरता के लिए हो रहे प्रयास उल्लेखनीय हैं !  बजरंग दल, दुर्गा वाहिनी, गोसेवा, धर्म प्रसार, संस्कृत प्रचार, सत्संग, वेद शिक्षा, मठ-मंदिर सुरक्षा आदि विविध आयामों के माध्यम से परिषद विश्व में हिन्दुओं का अग्रणी संगठन बन गया है !
पूर्व सैनिकों की क्षमता का समाज की सेवा में उपयोग हो, इसके लिए ‘पूर्व सैनिक सेवा परिषद’ तथा सीमाओं के निकटवर्ती क्षेत्रों में सजगता बढ़ाने के लिए ‘सीमा जागरण मंच’ सक्रिय है ! कलाकारों को संगठित करने वाली ‘संस्कार भारती’ का 50 प्रतिशत से अधिक जिलों में पहुच है !  अपने गौरवशाली इतिहास को सम्मुख लाने का प्रयास ‘भारतीय इतिहास संकलन समिति’ कर रही है ! इसी प्रकार विज्ञान भारती, अखिल भारतीय साहित्य परिषद, राष्ट्रीय सिख संगत, अधिवक्ता परिषद, प्रज्ञा प्रवाह आदि अनेक संगठन अपने-अपने क्षेत्र में राष्ट्रीयता के भाव को पुष्ट करने में लगे हैं !
इस प्रकार स्वयंसेवकों द्वारा चलाये जा रहे सैकड़ों छोटे-बड़े संगठन और संस्थाओं द्वारा देश के नागरिको को देशभक्ति का पाठ पढाया जा रहा है परिणामतः देश भर में लोग सरकार की कारगुजारियों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करते है जिससे सरकार की किरकिरी होती है ! इसलिए सरकार के मंत्री और कांग्रेसी  नेता  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसा देशभक्त संगठन को बदनाम करने की नाकाम कोशिश मात्र अपनी  राजनैतिक रोटी सेंकते है इससे ज्यादा कुछ नहीं ! 1925 में डा0 केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा संघ रूपी जो बीज बोया गया था, वह अब एक विराट वृक्ष बन चुका है ! अब न उसकी उपेक्षा संभव है और न दमन अतः इस मुगालते में किसी  को नहीं रहना चाहिए ! 

क्या आप धर्मनिरपेक्ष्य है ? फिर से सोचिये

हिन्दुस्थान में हिन्दुओं को ही भाईचारा का पाठ पढाना सबसे आसान है,हिन्दुस्थान में हिन्दुओं की देवी देवताओं को गाली देना सबसे आसान है | हिन्दुओं को मुसलमानों का टोपी या ख्रिस्तियानो का क्रोस पहनाना सबसे आसान है | अगर ये धर्मनिरपेक्ष्यवादी अपनी असली बाप का बेटा हैं तो किसी मुसलमान या ख्रिस्तिआन को तुलसी की माला या नामावली की चद्दर पहनाकर दिखाएँ | शिर्फ़ हिन्दुओं को ही, जिसने सर्व धर्म समभाव में विश्वास रखता है उसीको ही ये धर्मनिरपेक्ष्यवादी धर्मनिरपेक्ष्यता का पाठ पढ़ाते हैं | जिस दिन उन मुसलमान और ख्रिस्तिआन को ये धर्मनिरपेक्ष्यता का पाठ पढ़ाएंगे उसी दिन इनको वे लोग गाजर मुली की तरह काटकर सत्ता से उखाड़ फेकेंगे | हिन्दू अपना ३३ करोड़ देवी देवताओं के साथ साथ और दो को भी जोड़ देंगे ३३ करोड़ २ को भी पूजा कर लेंगे, क्या ये धर्मनिरपेक्ष्यवादी लोग मुसलमानों और ख्रिस्तिआनो को कह पाएंगे कि उनकी १ में हिन्दुओं का १ को भी जोड़ दें ? है किसी माइके लाल धर्मनिरपेक्ष्यवादी हिन्दू में दम ????वो दिन भी दूर नहीं इन धर्मनिरपेक्ष्य वादिओं की नीतियों की वजह से देश मातृका को फिर से खंडित होना पड़ेगा |
क्या आप धर्मनिरपेक्ष्य है ? फिर से सोचिये  

गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

यहाँ सब कुछ बिकता है खरीदनेवाला चाहिए |

हे जगन्नाथ ! हे श्रीकृष्ण !
लोकपाल बिल टला नहीं टाला गया ,
१५ मिनट की टी ब्रेक में चैरमेन की चैर बिक गया ||

उल्टा चोर कहे कोतवाल को तू क्यूँ पकड़ा मोय
मैं अपनी मनमानी करता रहूँ तू जाके सो जाय ||

नं १- कल मौनमोहन बाबा की मौन व्रत था,
नं २-मौनमोहन बाबा गांधीजी के ३ बंदरों का १ समिश्रण है. आँख है देखूंगा नहीं, कान है सुनूंगा नहीं और जुवान है कहूँगा नहीं |

यहाँ बिकता है सब कुछ  खरीदनेवाला चाहिए |
सढ़ रहा है माल गोदाम में लुटनेवाला चाहिए ||
बेचारा गांधीजी का बन्दर भी बोलता है ? कहेगा नहीं कहलाया जायेगा | मेडम जो कहेगी उसका लिखा हुआ ये बेचारा लिखा हुआ शिर्फ़ पढ़ेगा |

बुधवार, 28 दिसंबर 2011

हे ! कृष्ण

कृष्ण त्वदीय पदपंकज पूजयन्ते |
अद्दैव में विशतु मानसराजहंसः ||
प्राणप्रयाणसमये कफ बात पित्त्य्ये: |
कंठावरोधनविद्यो स्मरण कुतस्ते ||


हे ! कृष्ण आपके चरण कमल मेरे लिए पूजनीय है -- वे मेरे मानस में राजहंस बनकर आज ही प्रवेश कर जायें | अन्यथा जब प्राण छुटने के समय वात-पित्त-कफ कंठ को अवरुद्ध कर देंगे तो आपका स्मरण कहाँ हो पायेगा ||

पश्चिम का चकाचौंध


हमारी नई पीढ़ी पश्चिम की और देखती है कारण, आमेरिका,रुष,जर्मान,जापान आदि की प्रशंसा गाथा बार बार उनके कानों पर आती रहती है और उसका अत्यंत अनिष्ट परिणाम उन पर होता है | पश्चिम की देश अपने उत्कर्ष के शिखर पर होने के कारण और हम भारतीय किसी जवर्दस्त बीमारी से जैसे तैसे बाहर निकले हुए रोगी के सामान होने के कारण, उनके साथ अपनी तुलना करने में हमारे विद्यार्थिओं के मन पर पश्चिम की चमक दमक का प्रभाव पड़ जाता है और अपरिपक्व बुद्धि के कारण वे इस निष्कर्ष पर पहुँच जाते हैं कि भारत में जन्म ग्रहण करना अपना परम दुर्भाग्य है | उनका शिक्ष्यक और उनके पालक उनका मार्गदर्शन नहीं कर सकते, क्यूंकि भारतीय इतिहास के तथ्य एबं उसके सत्य स्वरुप का ज्ञान उनको भी अप्राप्त सा ही रहता है | इस प्रकार कि मनोदशा का परिणाम,इस संकल्प में हो रहा है कि यदि किसी पाश्चिमात्य देश में जाकर बसना संभव हो तो वहां जाकर रहेंगे | इस प्रकार गत पच्चीस तीश वर्षों में विदेश में जाकर बसने वाले बुद्धिमान,कर्त्तव्य सम्पन्न भारतीयों कि संख्या हजारों,लाखों में गिनी जा सकती है |

तत्परता किस ओर ?

गोहत्या निरोध के सम्बन्ध में महात्मा गांधीजी से लेकर प्रत्येक कांग्रेसी गोरक्ष्या के लिए वचनबद्ध रहे है,किन्तु गत अनेक वर्षों से ये कार्य हो न सका | महात्मा गांधीजी चले गए उनके साथ ही कान्ग्रेसिओं का वचनबद्धता भी चला गया | ठीक ऐसे ही संस्कृत भाषा के साथ हुआ | कांग्रेसी शासन ने यह माना कि भारत की उन्नति में सम्पूर्ण देश की एकात्मता निर्माण करने के लिए संस्कृत भाषा का बहुत बड़ा योगदान है | इतना ही नहीं इस कार्य की परगति के लिए भी एक आयोग बिठाया गया | इस आयोग ने अपने प्रतिबेदन में यह सुझाव भी दिया कि सम्पूर्ण देश की पाठशालाओं में मात्रिक के स्टार तक संस्कृत भाषा के अध्ययन अनिवार्य कर देना चाहिए | किन्तु बाद में आयोग समाप्त हो गया और सुझाब कभी भी कार्यान्वित नहीं किया गया | देश की एकात्मता निर्माण करने के लिए आवश्यक इतना बड़ा यह कार्य कांग्रेस शासन ने छुआ तक नहीं |

कांग्रेसी शासन ने अनेक बार पर्व उत्स्सवों के प्रसंग प्र देश की प्राचीन गौरव गारिमा का बखान किया और कांग्रेस के कर्णधार लालकिले की छोटी से तालियों की गडगडाहट के बीच यह कहते रहे कि गौरवशाली प्रतिष्ठा पर किसी भी प्रकार विश्व में आंच न आने दी जायेगी | किन्तु अक्षय कृति करने का अवसर आने पर उन्होंने अपने वचन पर ध्यान नहीं और परिणाम यह निकला कि विश्व भर में भारत गरीब ,अपाहिज,कमजोर,भ्रष्टाचार और दरिद्र देश के नाते पहिचाना जाने लगा | विश्व के बिभिन्न राष्ट्रों के पारस्पारिक संघर्षों में भी भारत का योगदान एक समर्थ राष्ट्र के रूप में नहीं रहा | परिणाम यह हुई कि देश की प्रतिमा विदेशों में अपमानित हुई है |

ये और इन जैसे ही अनेक कार्य है,जिन्हें कांग्रेस ने अपने काल में वचनबद्ध होते हुए भी नहीं निभाया | कांग्रेस गलत कार्य करने में जितनी तत्परता दिखाई है,उतनी ही तत्परता यदि इन सही और वचनबद्ध कार्यों को संपन्न करने में भी दिखाती, तो जनता के बीच में कांग्रेस इस हद तक वदनाम नहीं होती | जनता कहती कि इन कांग्रेसी मंत्रिओं ने अपने घर भले ही भरे हों किन्तु फिर भी राष्ट्रिय स्तर पर ऐसे कार्य, जिनकी उपयोगिता निर्बिबाद थी और जिनके कार्यान्वयन के लिए कांग्रेस वचनवद्ध भी थी, कांग्रेस ने पूर्ण कर दिए हैं | इस स्थिति में देश की देशभक्त जनता कांग्रेस को उसके उन कार्य के लिए, जिनसे वह पीड़ित है,अवश्य ही क्ष्यमा कर देती | महंगाई,गरीवी,बेरोजगारी और भ्रष्टाचार को भूलकर भी जनता इतना संतोष कर लेती कि कांग्रेस ने कम से कम वे कार्य तो पूर्ण कर लिए हैं,जिनकी राष्ट्रीय स्तर पर अतीब अनिवार्य थी |

आज जबकि इन बिफलताओं के कारण कांग्रेस वदनाम हो चुकी है और कोई प्रान्तों में जनता ने उसे तिरष्कृत भी  कर दिया है,जैसे तैसे गठजोड़ करके केंद्र में सत्तासीन है, और आज की परिदृष्टि से देखें तो अगले चुनाव में उसकी क्या दशा होगी कहना असंभव है | इन बातों का विचार कांग्रेस कर्णधारों को अवश्य करना चाहिए |
   

मंगलवार, 27 दिसंबर 2011

गीता पर सरकार का पाखंड

भारतीय संसद पिछले दिनों आश्चर्यजनक कायापलट के दौर से गुजरी। पार्टी लाइन से ऊपर उठकर हर जाति और धर्म के सांसदों ने रूस के टोम्स्क में स्टेट प्रॉसिक्यूटर ऑफिस के भगवद्‍गीता पर उठाए गए कदम का एक सुर में विरोध किया। दरअसल, स्टेट प्रॉसिक्यूटर ऑफिस ने रूसी कोर्ट से कहा है कि वहां भगवद्‍गीता को बैन कर दिया जाए, क्योंकि यह 'कट्टरपंथी' किताब है।

लालू यादव, मुलायम सिंह यादव और शरद यादव जैसे समेत अन्य दिग्गजों ने भारत की सांस्कृतिक विरासत के लिए खतरे के तौर पर उभरे इस मामले पर अपना जेनुइन गुस्सा जाहिर किया। इस पूरे शोर-शराबे पर सरकार की प्रतिक्रिया सबसे ज्यादा दिल को छू जाने वाली रही। सरकार ने तुरंत कहा कि इस गंभीर और अति महत्वपूर्ण मसले पर वह सभी सांसदों के साथ है और जल्द से जल्द वह रूसी अधिकारियों के सामने इस मसले को मजबूत तरीके से उठाएगी। 

फिलहाल कई ज्वलंत मुद्दों की गिरफ्त में फंसी इस सरकार से किसी को भी सहानुभूति हो सकती है।  लेकिन, यह होनी नहीं चाहिए। क्यों? क्योंकि, सरकार सच नहीं बोल रही है और अब सिर्फ अपनी खाल बचाने की कोशिश कर रही है। और इसीलिए, वह न सिर्फ संसद में हरेक को, बल्कि पूरे राष्ट्र को, वचन दे रही है कि वह मामले की गंभीरता को समझती है।

सचाई यह है कि यह सरकार, या कम से कम इस सरकार के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन लोग जैसे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, यूपीए प्रमुख सोनिया गांधी, विदेश मंत्री एसएम कृष्णा, वाणिज्य और उद्योग मंत्री आनंद शर्मा और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिव शंकर मेनन रूस में भगवद्‍गीता के खिलाफ बने इस माहौल से काफी पहले 1 नवंबर 2011 से वाकिफ थे।  1 नवबंर 2011 को इस्कॉन की गवर्निंग बॉडी कमिश्नर गोपाल कृष्ण गोस्वामी ने हमारे प्रधानमंत्री के प्रिंसिपल सेक्रेट्री पुलोक चटर्जी को इस मामले पर हर तरह की बारीकी बताते हुए चिट्ठी लिखी थी। इसकी कॉपी ऊपर दिए गए माननीयों को भी भेजी गई थी। (नीचे इमेज में देखें लेटर की कॉपी)

लेटर में इस मसले से जुड़ी सभी चीजें विस्तृत रूप से दी गई थीं। लेटर में सोनिया गांधी के  'धर्मनिरपेक्षता पर मजबूत और अटल सहयोग, बहुसंस्कृतिवाद और धार्मिक सहिष्णुता' का हवाला देते हुए अपील की गई कि जब नवंबर के दूसरे सप्ताह में आनंद शर्मा रूस आएंगे और फिर जब प्राइम मिनिस्टर दिसंबर में रूस के दौरे पर होंगे, उन्हें यह मसला अधिकारियों के सामने उठाना चाहिए। अब तक यह दोनों ही दौरे पूरे हो चुके हैं और कहने की जरूरत नहीं है कि दोनों में से किसी महानुभाव ने इसे अपने-अपने दौरे के दौरान नहीं उठाया। 

मैं इस बहसबाजी में नहीं पड़ना चाहूंगा कि एक विदेशी राष्ट्र, खासतौर से एक ऐसा देश जिसके हमसे दोस्ताना संबंध रहे हों, को इस देश के बहुसंख्यक वर्ग की भावनाओं को तकलीफ पहुंचाने जैसे कदम पर विचार करना चाहिए या नहीं। मुझे यह भी लगता है कि गीता एक ऐसा ग्रंथ है जो इसे धूमिल करने की कोशिशों के खिलाफ अपने पक्ष में खुद खड़ा होने में सक्षम है। और, हमें इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए कि दूसरे देश कर क्या रहे हैं? मैं ऐफिडेविट की अजीबोगरीब बातों पर भी कोई बहस नहीं करना चाहूंगा। सैंपल देखें- टोम्स्क स्टेट यूनिवर्सिटी की कंप्रिहेंसिव एक्सपर्ट एग्जामिनेशन कमिशन की 25/10/2010 को  जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार, किताब में धार्मिक सिद्धांतों की जिस तरह से व्याख्या की गई है, वह सांप्रदायिक घृणा भड़काती है, जाति, धर्म, भाषा, पैदाइश, नस्ल और राष्ट्रीयता के नाम पर मनुष्य के आत्मसम्मान पर चोट करती है। रिपो���्ट में 'भगवद्‍गीता' को ऐसी किताब के तौर पर माना गया है जो कट्टरपंथी है और जिसे सामाजिक संघर्ष पैदा करने या फूट डालने या फैलाने से रोकना जरूरी है।

इस किताब का सर्वसाधारण में बंटने से सामाजिक वैमनस्य पैदा हो सकता है और यह फैल सकता है। इसके बांटे जाने से कट्टरवादी गतिविधियों पर रोक लगाने के रशियन फेडरेशन के वर्तमान कानून का उल्लंघन भी होता है।'

इस सरकार से यह पूछे जाने की जरूरत है कि यह आखिर किस तरह काम करती है। जब आपको इस पूरे मामले पर काफी पहले ही बताया जा चुका था...दो महत्वपूर्ण पदासीन महानुभाव इसी देश में सरकारी काम के लिए गए थे, और बड़े से बड़े बिजनस  कॉन्ट्रैक्ट उस देश को दे रहे थे... तब आपको इस मसले की नाजुकता का पता कैसे नहीं चला? जिस समय पार्लियामेंट में इस मसले पर शोर-शराबा हुआ, आपने तुरंत खड़े हो कर मामले पर बनावटी हैरानी और ऐसे गुस्सा जताया जैसे आप यह पहली बार सुन रहे हों और ऐसे प्रिटेंड किया जैसे इस मसले पर सबके साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़े हों। 

आखिर क्यों? हमें ऐसी पाखंडी सरकार को बर्दाश्त कैसे कर रहे हैं?



शनिवार, 24 दिसंबर 2011

उनका ह्रदय शुद्ध कैसे होगा जो ईशा मसीह के नाम पर लोगों को ठगते हैं?

                        उनका ह्रदय शुद्ध कैसे होगा जो ईशा मसीह के नाम पर लोगों को ठगते हैं ?

  बाइबल में लिखा है कि वे धन्य है जिनका हृदय पवित्र है,शुद्ध है क्यूंकि वे परमपिता परमात्मा का दर्शन करेंगे,परन्तु जिनका हृदय पहले से ही अगर कलुषित हो तो वह क्या दर्शन कर सकेंगे ? जिनके ह्रदय में अन्य धर्म और सम्प्रदाय के महापुरषों के प्रति भिन्नता का भाव है,जो केवल यह देखते हैं कि आप के गले में भगवान राम की फोटो है, भगवान् कृष्ण की फोटो है, महात्मा बुद्ध की फोटो है और जो कहते हैं कि इनको निकाल दो - उनका ह्रदय कैसे पवित्र होगा ?जो महपुरुषों कि सन्देश की एकता को न समझकर उनके प्रति भेद भाव रखते हों,उनका ह्रदय कैसे शुद्ध होगा ? यहाँ तो पहले से ही तुम्हारे ह्रदय में चल भरा है, लोहे की मूर्ति बनाओ,लकड़ी की मूर्ति बनाओ,बस को झूठमूट में रोक दो,केले के अन्दर मलेरिया की दवा रखकर खिलाओ तो फिर तुम्हें परमात्मा का दर्शन कैसे मिलेगा ? अब बेचारे उन गरीव अनपढ़ बनवासी लोगों के दिमाग में यही आएगा कि राम और कृष्ण तो कुछ भी नहीं है | उन बेचारे अनपढ़ बनवासिओं को क्या पता कि भगवान्  राम और कृष्ण ने क्या कहा था, कैसा आदर्शमय,तपस्या और त्याग का उनका जीवन था | इशामसीह स्वयं कहते हैं कि जो तुम शारीर से पैदा हुए हो तो तुम शारीर के रहोगे और जो तुम आत्मा से पैदा होओगे तो तुम आत्मा के हो जाओगे | बास्तव में आज आत्म-तत्व को न जानने के कारण हम महापुरुषों में भिन्नता का भाव रखते हैं | और छल कपट से भोले भाले लोगों को ठगकर अपनी श्रेष्ठता प्रतिपादित करने में जुटे हैं ||    

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

आज कहे चाहे जो दुनियाँ, कल को झुके बिना न रहेगी |

शुद्ध ह्रदय की प्याली में, विश्वास दीप निष्कंप जलाकर,
कोटि कोटि पग बढ़े जा रहे,तिल तिल जीवन गला-गलाकर,
जब तक ध्येय न पूरा होगा तब तक पग की गति न रुकेगी,

 आज कहे चाहे जो दुनियाँ, कल को झुके बिना न रहेगी ||




  स्वामी विवेकानंद के कथानुसार सन १८३६ में जब रामकृष्ण परमहंस का जन्म हुआ था, तब से युग परिवर्तन की प्रक्रिया शुरू हुई है | महर्षि अरविंद ने बताया था कि युगसंधि का काल १७५ वर्षों का होता है | दो युगों के बीच जो काल है,उसको युगसंधि कहते हैं | जैसे दिन और रात के बीच संध्याकाल,रात और दिन के बीच उषाकाल होता है, वैसे ही एक युग और दुसरे युग के बीच युगसंधि होती है, जो १७५ वर्षों कि होती है | सन १८३६ में १७५ जोड़ेंगे तो सन २०११ में यह समय चल रहा है | इस काल पश्चात भारत का भाग्यसूर्य संपूर्ण विश्व में चमकना शुरू होगा | भारत को उशी स्थिति तक पहुँचाने वाले हम लोग है |उसका स्वागत करने के लिए शक्ति-संपन्न,बल-संपन्न होकर खड़ा होना है और उसका आधार संघकार्य ही है |  
आज हमें संकल्प करना है,अपनी आंतरिक शक्ति को पहचानना है,ताकि आनेवाला समय हमें कार्य-पूर्ति का वरदान दे सके | हमारे दृढ़ संकल्प के सम्मुख सारा विश्व नतमस्तक हो जाना चाहिए | इस स्वर्णिम भविष्य का स्वागत करने हम सब तैयार रहें |

कांग्रेसी नेता झूठ कह रहे हैं ?

कांग्रेस की नेता कहते है कि १२५ साल की कांग्रेस है ये | देश को बनाने में इनकी भूमिका अग्रणीय है | लेकिन ये नहीं कहते कि देश को बिभाजन करने में इनकी भूमिका भी तो अग्रणीय था | क्या देश बिभाजन में कांग्रेस का भूमिका कुछ नहीं था ? क्या हजारों लाखों लोगों की जान माल की नुकशान के लिए कांग्रेस उत्तरदायी नहीं है ? इनको किसने अधिकार दिया था मातृभूमी को तोड़ने के लिए ? क्या आज ये देश की जनता के सामने माफ़ी मांगेंगे ? अगर देश बिभाजन के लिए जातीय कांग्रेस उत्तरदायी नहीं है, तो फिर ये कांग्रेस कभी भी १२५ साल पुरानी हो ही नहीं सकता | ये आज की कांग्रेसी नेता झूठ कह रहे हैं | देश को तोड़ने में कांग्रेस को महारत हासिल है | देश की जनता को गुमराह करने में कांग्रेस माहिर है | 

बुधवार, 21 दिसंबर 2011

क्या सोनिया गाँधी खुद सरकार है ?

क्या सोनिया गाँधी खुद सरकार है ? वो कौन होती है वो, क्या वो प्रधान मंत्री है, या क्या वो कोई मंत्री है ?
क्या है वो ? मामूली सा एक सांसद, फिर भी देश का भाग्य निर्धारण वो karegi ?
अब पता चला लोकपाल बिल को किसने लटका रखा था ?


21 Dec 2011 11:40, 
(21 Dec 11:07 a.m.) नई दिल्ली। लगता है लोकपाल पर अब सरकार ने भी टीम अन्ना से मुकाबले को कमर कस लिया है। सोनिया ने कहा है कि सरकार की ओर से तैयार लोकपाल बिल मजबूत है साथ ही उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर उनकी सरकार मुकाबले को तैयार है। सोनिया गांधी ने बुधवार को पार्टी के सांसदों से कहा कि कांग्रेस ने खाद्य सुरक्षा और लोकपाल पर अपने चुनावी वायदों को पूरा किया। सोनिया ने कहा कि भाजपा कांग्रेस और सरकार के बीच मतभेदों के बारे में अफवाहें फैला रही है। सोनिया ने कहा कि मैं लोकपाल और महिला आरक्षण के लिए संघर्ष करती रहूंगी।

मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

अंग्रेज नव वर्ष हम क्यूँ मनाएं ?????

अंग्रेज नव वर्ष हम क्यूँ मनाएं ?????
१-क्या हिन्दुओं का कोई नव वर्ष नहीं है ?
२-क्या अंग्रेज नव वर्ष हमें अच्छा लगता है इसीलिए ?
३-क्या गुलामी मानसिकता के कारण ?
दोस्तों हम लोग अंग्रेज नव वर्ष को जिस धूमधाम से मनाते हैं क्या ये सही है ?
क्यूँ न हम लोग अपना नव वर्ष को उसी धूमधाम से मनाये ?
हम लोग हिंदुत्व की बड़ी बड़ी बातें करते हैं लेकिन उसको कार्य में परिणत करने में कुंठा प्रकाश करते हैं | इसीलिए भैओं और बहनों ये आने वाले २०१२ अंग्रेज नव वर्ष को त्याग करते हुए (चैत्र शुक्ल वर्ष प्रतिपदा) को धूमधाम से स्वागत करने की तयारी में आज से लग जाएं ||
हाँ अगर मनाना चाहते हैं तो स्वप्ष्ट रूप से कहें कि "अंग्रेज नव वर्ष का अभिनन्दन" ||
क्या कभी किसी मुसलमान या ख्रिस्तियन को हिन्दुओं की नव वर्ष मानते या अभिनन्दन करते आपने देखा है ?  

भगवद्गीता

रुस में भले ही कुछ कट्टरपंथी लोग भागवत-गीता पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हों लेकिन वहां कुरुक्षेत्र के धर्मक्षेत्र में उद्घोषित किया गया यह धर्मग्रंथ बहुत लोकप्रिय है तथा रुसी भाषा में इसके अनेक संस्करण उपलब्ध हैं1

सोवियत संघ के विघटन तथा कम्युनिस्ट शासन के अंत के बाद रुस में धर्म के प्रति रुझान बढ रहा है तथा भारतीय धर्मग्रंथों की लोकप्रियता लगातार बढ रही है1

रुसी भाषा में भगवद्गीता का पहला प्रमुख अनुवाद वर्ष 1916 में अन्ना कामेन्सकाया नामक एक धर्मनिष्ठ रुसी महिला ने किया था1 अन्ना भारतीय संस्कृति से प्रभावित होकर थियोसाफिकल सोसाइटी से जुड गयी थीं तथा उन्होंने अडयार .चेन्नई. आकर संस्कृत भाषा का अध्ययन किया था1 अडयार में अपने एक वर्ष के प्रवास के दौरान उन्होंने भगवद्गीता का अनुवाद किया1 आसान भाषा में किये गये इस अनुवाद को रुस में आज भी बहुत प्रामाणिक माना जाता है1

जवाहर लाल नेहरु पुरस्कार से सम्मानित वी एल सिमरनोव ने वर्ष 1978 में भगवद्गीता का अनुवाद किया तथा महाभारत को विषयवस्तु बनाकर अनेक लेख लिखे थे1 एक अन्य रुसी विद्वान एस. सिमेन्तसोव द्वारा रुसी भाषा में अनूदित भगवद्गीता का प्रकाशन वर्ष 1985 में हुआ था1 सिमेन्तसोव ने वाराणसी में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय आकर भारतीय धर्मदर्शन का अध्ययन किया था तथा डाक्टरेट की उपाधि अर्जित की थी1 उन्होंने भगवद्गीता का काव्यात्मक अनुवाद किया था1

भगवद्गीता पर रुसी भाषा में नवीनतम पुस्तक के लेखक ब्लादिमीर एंटानोव का कहना है कि इस धर्मग्रंथ में नीतिशास्त्र. ब्रह्मजिग्यासा और मानव विकास का विग्यान निहित है1

एंटानोव कुरुक्षेत्र में भगवान कृष्ण के उपदेश के बारे में कहते है कि युद्ध टालने की जब सारी कोशिशें असफल हो गयीं तब कृष्ण ने अर्जुन को योद्धा के धर्म का निर्वाह करने का निर्देश दिया1 कृष्ण का संदेश था कि योद्धा का धर्म है कि वह सही उद्देश्य के लिए युद्ध करे1

रुस में विवाद का केन्द्र बने हरे राम हरे कृष्ण सम्प्रदाय के संस्थापक प्रभुपाद के गीता भाष्य का रुसी संस्करण वर्ष 1984 में प्रकाशित हुआ था1 हाल के वर्षो में इस सम्प्रदाय के लोगों ने रुस के अनेक नगरों में अपनी शाखाएं खोली है1

सोमवार, 19 दिसंबर 2011

मोदी की धमकी से डर गया था चीन!


(19 Dec) सूरत।'मैंने चीन में कहा कि तुम्हारे लोग भी यहां (गुजरात) हैं, और बस वे इशारे में समझ गए। ...यह सब निर्भर करता है कि आप वहां अपने लोगों के लिए किस तरह से बातचीत करते हैं। केन्द्र सरकार को पता नहीं चलता कि अन्य देशों के साथ कैसे बातचीत की जाए। मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को सूरत में 'सद्भावना मिशन' में यह बात कही। उनका इशारा जनवरी 2010 में चीन के सेंजन में भारतीय हीरा व्यापारियों (अधिकांश सूरत के) की गिरफ्तारी तथा करीब दो साल बाद रिहाई के घटनाक्रम पर था। मुख्यमंत्री की इस टिप्पणी को हीरा कारोबारियों की मुक्ति का श्रेय लेने के रूप में देखा जा रहा है। कृष्णा पर ली चुटकी : मोदी ने विदेश मंत्री एसएम कृष्णा पर भी निशाना साधा और कहा कि जो लोग दूसरे देश का भाषण पढ़ जाते हैं उन्हें क्या पता चलेगा कि कहां किस तरह बात की जाए। मुख्यमंत्री का इशारा बीते दिनों संयुक्त राष्ट्र में त्रुटिवश कृष्णा के भारत की बजाय पुर्तगाल के विदेश मंत्री का भाषण पढऩे की घटना पर था। उल्लेखनीय है कि नवंबर के पहले पखवाड़े में मोदी पांच दिन की चीन यात्रा पर गए थे। सात दिसंबर को चीन की अदालत ने सेंजन हीरा विवाद में फैसला दिया। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि गुजरात में कई औद्योगिक इकाइयों में चीन के लोग काम करते हैं। मोदी ने कहा कि कांग्रेस के 'सी' का मतलब करप्शन है। देश तुम्हें कभी माफ नहीं करेगा। 100 दिन में महंगाई दूर करने का वचन दिया था किन्तु कोई उपाय नहीं कर सके। सूरत को 2100 करोड़ की सौगात: बहरहाल, सद्भावना मिशन के अपने संबोधन में मुख्यमंत्री सूरत के लिए 2100 करोड़ रुपए के पैकेज का भी ऐलान किया। साथ ही कहा कि इस धनराशि को सूरत में बीआरटीएस एवं पानी सहित सुविधाओं पर खर्च किया जाएगा। मोदी की तारीफ के मुद्दे पर अब राउंट-टू पर नजर : उमर अबदुल्ला

रविवार, 18 दिसंबर 2011

winter

 

In the depth of winter, I finally learned that within me there lay an invincible summer.
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Albert Camus (1913 - 1960)
If we had no winter, the spring would not be so pleasant: if we did not sometimes taste of adversity, prosperity would not be so welcome.
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Anne Bradstreet (1612 - 1672)'Meditations Divine and Moral,' 1655
Perhaps I am a bear, or some hibernating animal underneath, for the instinct to be half asleep all winter is so strong in me.
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Anne Morrow Lindbergh
Every winter, When the great sun has turned his face away, The earth goes down into a vale of grief, And fasts, and weeps, and shrouds herself in sables, Leaving her wedding-garlands to decay-- Then leaps in spring to his returning kisses.
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Charles Kingsley (1819 - 1875)Saint's Tragedy (act III, sc. 1)
In the bleak midwinter Frosty wind made moan, Earth stood hard as iron, Water like a stone; Snow had fallen, snow on snow, Snow on snow, In the bleak midwinter, Long ago.
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Christina Rossetti (1830 - 1894)A Christmas Carol
There's a certain Slant of light, Winter Afternoons-- That oppresses, like the Heft Of Cathedral Tunes--
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Emily Dickinson (1830 - 1886)No. 258
Every mile is two in winter.
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George Herbert (1593 - 1633)Jacula Prudentum
One kind word can warm three winter months.
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Japanese proverb
The tendinous part of the mind, so to speak, is more developed in winter; the fleshy, in summer. I should say winter had given the bone and sinew to literature, summer the tissues and the blood.
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John Burroughs (1837 - 1921)The Snow-Walkers
When you live in Texas, every single time you see snow it’s magical.
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Pamela RibonWhy Girls Are Weird, 2003
When there's snow on the ground, I like to pretend I'm walking on clouds.
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Takayuki Ikkaku, Arisa Hosaka and Toshihiro KawabataAnimal Crossing: Wild World, 2005
Winter is on my head, but eternal spring is in my heart.
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Victor Hugo (1802 - 1885)
Winter lies too long in country towns; hangs on until it is stale and shabby, old and sullen.
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Willa Cather (1873 - 1947)My Antonia
And for the season it was winter, and they that know the winters of that country know them to be sharp and violent, and subject to cruel and fierce storms.
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William Bradford (1590 - 1657)Of Plymouth Plantation
O Winter! ruler of the inverted year, . . . I crown thee king of intimate delights, Fireside enjoyments, home-born happiness, And all the comforts that the lowly roof Of undisturb'd Retirement, and the hours Of long uninterrupted evening, know.
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William Cowper (1731 - 1800)Task (bk. IV, l. 120)
Blow, blow, thou winter wind
Thou art not so unkind,
As man's ingratitude.
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William Shakespeare (1564 - 1616)
Now is the winter of our discontent
Made glorious summer by this son of York,
And all the clouds that loured upon our house
In the deep bosom of the ocean buried.
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William Shakespeare (1564 - 1616)Richard III, Act I, sc. I
Under the greenwood tree who loves to lie with me ... Here shall he see no enemy but winter and rough weather.
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William Shakespeare (1564 - 1616)As You Like It, Act II, sc. 5
Winter, which, being full of care, makes summer's welcome thrice more wish'd, more rare.
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William Shakespeare (1564 - 1616)Sonnet LVI