ईसाईयत बनाम इस्लाम की मजहबी जंग

जो चिदंबरम एक पखवाड़े पहले तक 'भगवा आतंकवाद' पर अड़े हुए थे उनसे पूछा जाना चाहिए कि आप कुरआन शरीफ जलने की घटना पर संभावित उत्पात से फ़ैलाने वाले आतंकवाद को क्या मानते हैं? चूंकि उक्त उत्पात का उत्प्रेरक फ्लोरिडा के पादरी की हरकत थी,उक्त पादरी अपनी हरकत एक चर्च से अंजाम दे रहा था तो क्या इस आतंकवाद को पादरी के सफ़ेद चोगे के चलते सफ़ेद आतंकवाद कहा जा सकता है? क्या चिदंबरम में इतनी हिम्मत है कि वे सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष रहते इसे सफ़ेद आतंकवाद कह सकते हैं?
आतंकवाद और मजहब को लेकर भारत सरकार का रुख क्या है इसे डेनिस कार्टूनिस्ट के विवादास्पद कार्टून के वक्त भी देखा गया था और इस बार कुरान जलाने के बवाल पर भी देखा गया. लेकिन भारत सरकार जैसे डरपोक प्रतिष्ठान से इससे अधिक कुछ उम्मीद भी नहीं की जा सकती. लेिकन जरा दूसरी ओर ९/११ के निमित्त आतंकवाद पर भिड़नेवाले 'सफ़ेद' और 'हरे' आतंकवाद के पोषक विचारों को भी देख लें. ९/११ पर हमले की योजना बनानेवाले अल-काइदा का एजेंडा पूरी दुनिया में इस्लाम स्थापित करने का नहीं है क्या? इस अल-काइदा का जनक पाकिस्तान,सऊदी अरब और अमेरिका को माना जाता है. पाकिस्तान और सऊदी अरब का राजधर्म इस्लाम है,जबकि अमेरिका कितना भी सेकुलर होने की बात कर ले उसका राजधर्म ईसाईयत है. अल-काइदा को सोवियत संघ के साम्यवाद के विस्तार को रोकने के लिए पैदा किया गया था. अमेरिका,सऊदी और पाकिस्तान खुल कर अल-काइदा को तब तक समर्थन दिया जब तक यह इस्लामी आतंकवाद पश्चिम में इस्लाम का परचम लहराने की बात नहीं कर रहा था. आज भी अल-काइदा का अमेरिका जरूर विरोध कर रहा है लेकिन पाकिस्तान और सऊदी अरब समेत तमाम इस्लामी देश अल-काइदा समेत तमाम इस्लामी आतंकवादी संगठनों को समर्थन और चन्दा इस्लाम के नाम पर ही तो दे रहे हैं.फ्लोरिडा का पादरी कुरान शरीफ क्यों जलाना चाहता है? क्योंकि उसे लगता है कि इस्लाम ईसाई जगत के लिए खतरा है?
अधिकाँश इस्लामी जगत ९/११ के ग्राउंड जीरो यानी वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर की जगह पर मस्जिद बनाने की बात का समर्थन क्या सेकुलरवाद के तहत करता है? अमेरिकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा ने ग्राउंड जीरो पर मस्जिद बनाने की बात का समर्थन क्या किया पूरे अमेरिकी ईसाई समुदाय ने उनके पिता हुसैन को लेकर इतनी तरह की गालियाँ बकीं कि खुद ओबामा ने बयान दिया कि उनके विरोधी उन्हें 'कुत्ता' समझते हैं. क्या यह 'सफ़ेद' बनाम 'हरी' साम्प्रदायिकता नहीं है? ईसाईयत बनाम इस्लाम की यह जंग मजहबी विस्तारवाद की जंग है. फ्लोरिडा में कुरआन शरीफ जलाए जाने और ग्राउंड जीरो पर मस्जिद बनाने की बहस के बीच वेटिकन के एक प्रमुख पादरी फादर पीचेरो गेडो का एक बयान आया जिसमें उन्होंने सचेत किया कि आगामी १५ वर्षों में इस्लाम आबादी के मामले में ईसाईयत को पछाड़ देगा. १९९६ के वैश्विक आंकड़ों के मुताबिक़ पूरी दुनिया में २१९ करोड़ ईसाई, १५० करोड़ मुसलमान, ८७ करोड़ हिन्दू और लगभग ३८ करोड़ बौद्धों की आबादी है. अनुपात के मापदंड पर दुनिया में ३१ फ़ीसदी ईसाई, २१ फीसदी मुस्लिम, १४ फीसदी हिन्दू, ६ फीसदी बौद्ध तथा २८ फीसदी अन्य धर्मावलम्बियों की आबादी है. फादर गेडो की आशंका है कि २०२५ तक दुनिया की आबादी में ईसाईयों की आबादी केवल २५ फीसदी बचेगी जबकि मुसलामानों की आबादी ३० फीसदी हो जायेगी. फादर गेडो जो आशंका व्यक्तकर रहे हैं वही आशंका दुनिया भर के ईसाईयों की है तभी इस्लाम को आतंकवादियों का धर्म बताया जा रहा है. कुरआन शरीफ को फ्लोरिडा के पास्टर टेरी जोल्स आतंकवाद का स्रोत ग्रन्थ क्यों करार दे रहे हैं?
आज एक कैथोलिक पादरी द्वारा कुरान जलाने की बात कहने को भले ही उस पादरी का पब्लिशिटी प्रोपगण्डा मान लिया जाए लेकिन क्या वास्तव में ईसाईत इस्लाम को स्वीकार करती है? ईसाई मिशनरियों के लिए सबसे अधिक दिक्कत वहां हो रही है जो इस्लामी राष्ट्र हैं. 2006 में पोप बेनेडिक्ट ने जर्मनी के रेशिमबर्ग में जो कहा था वह क्या था? पोप ने अपने भाषण में इस्लाम को सीधे तौर पर आतंकवाद से जोड़ा था. इसका इस्लामी जगत में इतना तीव्र विरोध हुआ कि पोप को वेटिकन में इस्लामी विद्वानों की शांति वार्ता करानी पड़ा और वेटिकन के अखबार ला ओसर्वेत्रो रोमानो ने लिखा था कि ईसाई और मुस्लिम अच्छे पड़ोसी हो सकते हैं. क्या दोनों मजबहों के बीच चौड़ी खाईं को इससे भी नहीं आंका जा सकता?
हिलेरी क्लिंटन और अमेरिकी सेना के अफगानिस्तान के शीर्ष कमांडर डेविड पेट्रायस फ्लोरिडा के पास्टर की हरकत का विरोध तो करते हैं लेकिन वे उसकी हरकत की निंदा वे ईसाईयों पर वैश्विक खतरे के आधार पर करते हैं. कुरआन शरीफ को वे सदग्रंथ नहीं करार दे रहे हैं. लड़ाई विस्तारवाद की है.इसी विस्तारवाद के चलते सोनिया मायनो गांधी के कारिंदे पी.चिदंबरम को 'भगवा आतंकवाद' के ख्वाब आते हैं. पी.चिदंबरम समेत पूरी कांग्रेस गांधीवाद की दुहाई देती है लेकिन क्या वह महात्मा गांधी के गांधीवाद को आज जानती भी है? 'एम्.के.गांधी:एन ऑटोबायोग्राफी ऑर दि स्टोरी ऑफ़ माय एक्सपेरिमेंट्स विथ ट्रुथ' के पृष्ठ ३-४ पर महात्मा गांधी लिखते हैं "जिस प्रकार मेरे ईसाई मित्र प्रयास में थे कि मैं ईसाई बन जाऊं,मुसलमान मित्रों की कोशिश थी कि मैं मुसलमान बन जाऊं.अब्दुल्ला शेठ सदा इस्लाम की खूबसूरती मुझे बताते रहते.इन सब प्रयासों से मुझे जो मुश्किलें हुईं,उसे लेकर मैंने रायचंद भाई को पत्र लिखा.भारत के अन्य अधिकारी विद्वानों को भी पत्र लिखा.पर रायचंद भाई का पत्र मुझे संतोषप्रद और शान्तिप्रद लगा." गांधी अपनी आत्मकथा में इस्लाम वाद और ईसाईयत के बीच विस्तारवाद को लेकर जारी जंग का वर्णन और उनकी तुलना में हिन्दू जीवन पद्धति की श्रेष्ठता को तर्कपूर्ण ढंग से साबित करते हैं. महात्मा गांधी' सरमन ऑन दि माउंट' की सीखों के प्रशंसक थे लेकिन मिशनरियों द्वारा प्रचारित ईसाईयत के वे घोर विरोधी थे.वे साफ़ तौर मानते थे कि युद्ध ईसाईयत का मूल स्वाभाव रहा है,सम्पूर्ण गांधी वांग्मय के खंड ४८ के आइटम क्रमांक २८२ में महात्मा गांधी को उद्धृत किया गया है " मैंने सरमन ऑन दि माउंट की अक्सर प्रशंसा की है,पर इसे गलत रंग नहीं देना चाहिए. मुझे न्यू टेस्टामेंट की या जीसस के जीवन की वह व्याख्या बिलकुल स्वीकार नहीं है,जो अभी तक परम्परागत ईसाई लोग करते आये हैं."ईसाईयत के अध्येता प्रमुख लेखकों व्हाईटहेड और मथ्यूज का कहना है-"'सरमन ऑन दि माउंट के उपदेशों पर यदि ईसाई सभ्यता चल रही होती तो वह जाने कब की ख़त्म हो चुकी होती. युद्धों ने ही ईसाई सभ्यता की शक्ति बढ़ाई है."
मजहबी विस्तार के लिए ईसाईयत और इस्लाम सैकड़ों वर्षों से संघर्षरत हैं.इस संघर्ष को महात्मा गांधी भलीभांति जानते थे. महात्मा गांधी धर्मांतरण के प्रखर विरोधी थे.मई १९३५ में एक मिशनरी नर्स ने महात्मा गांधी से एक भेंटवार्ता में पूछा-"क्या आप कन्वर्जन(धर्मांतरण)के लिए मिशनरियों के भारत आगमन पर रोक लगा देना चाहते हैं ?" गांधीजी ने उत्तर दिया-"मैं रोक लगानेवाला कौन होता हूँ? अगर सत्ता मेरे हाथ में हो और मैं कानून बना सकूं तो मैं यह धर्मांतरण का सारा धंधा ही बंद करा दूं. मिशनरियों के प्रवेश से उन हिन्दू परिवारों में,जहां मिशनरी पैठे हुए हैं,वेशभूषा,रीतिरिवाज और खानपान तक में परिवर्तन हो चुका है...आज भी हिन्दू धर्म की निंदा जारी है. ईसाई मिशनों की दुकानों में मर्डोक की पुस्तकें बिकती हैं. इन पुस्तकों में सिवाय हिन्दू धर्म की निंदा के कुछ और नहीं है. अभी कुछ ही दिन हुए,एक ईसाई मिशनरी एक दुर्भिक्ष पीड़ित अंचल में खूब धन लेकर पहुंचा. वहाँ अकाल पीड़ितों को पैसा बांटा और उन्हें ईसाई बनाया. फिर उनका मंदिर हथियाया और उसे तुड़वा दिया. यह अत्याचार नहीं तो क्या है? जब उन लोगों ने ईसाई धर्म अपना लिया तो उनका मंदिर पर से अधिकार समाप्त लेकिन ईसाई मिशनरी का मंदिर पर क्या हक?
पर वह मिशनरी वहाँ पहुँच कर उन्हीं लोगों से वह मंदिर तुड़वाता है जो लोग कुछ दिन पहले तक उस मंदिर में ईश्वर का वास मानते थे. लोगों को अच्छा जीवन बिताने के लिए आप न्योता देते हैं. उसका यह अर्थ नहीं कि आप उन्हें ईसाई धर्म में दीक्षित कर लें. अपने बाइबल के धर्म वचनों का ऐसा अर्थ अगर आप करते हो तो इसका मतलब यह है कि आप लोग मानव समाज के उस विशाल अंग को पतित मानते हैं,जो आपकी तरह ईसाईयत में विश्वास नहीं करते.यदि ईसा मसीह आज पृथ्वी पर फिर से आ जाएँ तो वे उन बहुत सी बातों को निषिद्ध ठहराकर रोक देंगे जो आप लोग ईसाईयत के नाम पर आज कर रहे हैं. लॉर्ड-लॉर्ड चिल्लाने से कोई ईसाई नहीं हो जाएगा. सच्चा ईसाई वह है जो भगवान् की इच्छा के अनुसार आचरण करे. जिस व्यक्ति ने कभी भी ईसा मसीह का नाम नहीं सुना वह भी भगवान् की इच्छा के अनुरूप आचरण कर सकता है."अगर गांधीजी के इस साक्षात्कार को कोई पी.चिदंबरम या उनकी अध्यक्षा सोनिया गांधी को दिखाए यह बताये बिना कि यह गांधीजी का बयान है वे इसे शिवसेना, विश्व हिन्दू परिषद् के किसी नेता का बयान मान लेंगे. ३१ फीसदी ईसाईयत के २१ फीसदी इस्लामवाद के विस्तारवादी युद्ध को महात्मा गांधी १०० साल पहले ही भांप रहे थे. गांधीजी जो सोच रहे थे वह पश्चिम में सच साबित हुआ,लेकिन वे यह नहीं जान पाए कि उनके अपने देश में उनके उपनाम का दुरूपयोग करनेवाले एक दिन उनके शांतिपूर्ण हिंदुत्व को इस्लाम और ईसाईयत के विस्तारवादी अधिनायकवाद की तुलना में अनायास ही भगवा आतंकवाद करार दे देंगे. हजरत ईसा आज दुनिया में आते तो मिशनरियों को प्रतिबंधित कर देते. हजरत मोहम्मद अगर दुनिया में आज आये होते तो ओसामा बिन लादेन और उनके समर्थकों को चुन-चुन कर काटते.महात्मा गांधी का पुनर्जन्म होता तो क्या करते? वे १०, जनपथ जाते और वहां बैठे समूचे कांग्रेसी आलाकमान को अपनी लाठी से पीटते.
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