सोमवार, 31 अक्टूबर 2011

संघ लिए कोई भी पार्टी पराई नहीं है.



बीजेपी से घनिष्‍ठ रिश्‍ते के बारे में स्थिति स्‍पष्‍ट करते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि उनके लिए कोई भी पार्टी पराई नहीं है.

किसी को मिलने के लिए नहीं बुलाते'आज तक' के कार्यक्रम 'सीधी बात' के दौरान मोहन भागवत ने कहा कि उनके लिए सभी पार्टियां अपनी हैं. यह पूछे जाने पर कि बीजेपी को छोड़कर और किसी पार्टी के नेता उनसे नहीं मिलते, भागवत ने कहा कि वे किसी को मिलने के लिए नहीं बुलाते हैं. साथ ही उन्‍होंने यह भी कहा कि दूसरी पार्टी के नेताओं से मुलाकात होने पर भी यह बात खबर नहीं बनती है. उदाहरण देते हुए उन्‍होंने कहा कि हाल ही में सचिन पायलट से उनकी भेंट हुई, पर यह खबर नहीं बनी.

संघ की शाखाओं में लगातार इजाफाआरएसएस के बारे में मोहन भागवत ने कहा कि इसकी शाखाओं और स्‍वयंसेवकों की संख्‍या में लगातार इजाफा हो रहा है. संघ की नाव आगे बढ़ रही है. संघ परिवार में एकता है. कार्यक्रम के दौरान 'हिंदुत्‍व' और 'भारतीयता' के बारे में सवाल के जवाब में भागवत ने कहा कि 'भारतीयता' और 'हिंदुत्‍व' एक ही बात है, साथ ही 'वैश्विकता' और 'हिंदुत्‍व' भी एक ही बात है. उन्‍होंने कहा कि समाज के निर्माण के लिए पूरे समाज को सामने आना होगा. उन्‍होंने विश्‍वास व्‍यक्‍त किया कि स्‍वयंसेवक जरूर समाज को बदल देंगे.

भारत से आ मिलेगा पाकिस्‍तानपड़ोसी देशों के बारे में सधी टिप्‍पणी करते हुए उन्‍होंने कहा, ''ये हमारे हैं और एक दिन हमसे मिलकर रहेंगे.'' उन्‍होंने कहा कि पाकिस्‍तान को भी भारत से मिलना ही होगा, ये मिलेंगे. बीजेपी पर संघ के दबाव के बारे सवाल पूछे जाने पर उन्‍होंने कहा कि वे दबाव नहीं डालते. बीजेपी के नेता उन्‍हें रिपोर्ट करें, यह जरूरी नहीं है. जिस संगठन में व्‍यक्ति काम करता है, वहां अनुशासन कायम रखना बड़ी बात है. स्‍वयंसेवक जहां भी रहें, अपने विचारों पर कायम रहें. आडवाणी सरीखे नेताओं के बारे में मोहन भागवत ने कहा कि सही समय आने पर सही निर्णय होंगे.

आतंकवाद को हिंदू का समर्थन नहीं अन्‍य हिंदुत्‍ववादी संगठनों के बारे में स्थिति स्‍पष्‍ट करते हुए उन्‍होंने कहा कि श्रीराम सेना और प्रज्ञा ठाकुर के संगठनों से संघ का कुछ लेना-देना नहीं है. उन्‍होंने कहा कि किसी भी आतंकवाद को हिंदू का समर्थन प्राप्‍त नहीं है, कोई व्‍यक्ति विशेष इसमें शामिल हो, तो यह अलग बात है. कोई गलत करता है, तो उसे समाज का समर्थन प्राप्‍त नहीं है. प्रज्ञा ठाकुर के बारे में उन्‍होंने कहा कि उन्‍हें नहीं लगता कि साध्‍वी दोषी हैं. मामला कोर्ट में है, गुनाह साबित होने पर ही किसी को सजा हो.

Indira Gandhi: Feroze Gandhi


Indira Gandhi: Feroze Gandhi
built 1349 days ago
Indira Gandhi's second son was not from Feroze Gandhi (Khan). He is believed to be the son of Mohammed Yunus. When Sanjay and Menaka were to be married, there were rumours in Delhi political circles that Mohammed Yunus was against this match, because he wished that Sanjay marry a Muslim girl of his choice. When Sanjay Gandhi died in a plane crash, Mohammed Yunus wept the most.
Indira Gandhi attended Santiniketan University and Somerville College, Oxford University, in England. She married Feroze Gandhi (no relation to Mahatma Gandhi) in March 1942. Shortly thereafter they were both imprisoned for a period of 13 months for their part in the nationalist political agitation against British rule. Feroze Gandhi was a lawyer and newspaper executive and became an independent member of Parliament. He died in 1960. They had two sons, Rajiv and Sanjay.
Source:
Shortly after her mother's death in 1936, Indira enrolled at Santiniketan University and Somerville College, Oxford University, in England. She married Feroze Gandhi (... no relation to Mohandas Gandhi) in March 1942, despite both family's objections, as the two were not part of the same social status or religions—he was a descendent of Iranian immigrants; she was Hindu. Feroze Gandhi became a lawyer and newspaper executive as well as an independent member of Parliament. Shortly after their marriage, they were both imprisoned for a period of thirteen months for their part in the nationalist political demonstrations against British rule. During her imprisonment Indira taught reading and writing to prisoners. Feroze Gandhi died in 1960.
Gandhi may have seen traits of Feroze in Sanjay and was ever-anxious to please him, as she perceived that Sanjay blamed her for his father's death. While Rajiv developed as an independent young man free from politics, Sanjay's reckless youth induced a need in his mother to take care of her son under all circumstances. The outcome was a political partnership that eventually resulted in abrogation of democracy, corruption and abuse of power on a previously unwitnessed scale. Rajiv Gandhi is believed to have said that he would never forgive his brother for what he had done to their mother at a time when she was isolated, depressed and humiliated after her defeat in the 1977 elections.
In 1938, Indira finally joined the Indian National Congress Party, something she always longed to do. Soon afterwards in 1942, she married journalist Feroze Gandhi to whom she eventually bore two sons. Soon after the couple was married, they were sent to prison on charges of subversion by the British. Her first and only imprisonment lasted from September 11, 1942 until May 13, 1943 at the Naini Central Jail in Allahabad.
The Nehru family - Motilal Nehru is seated in the center, and standing (L to R) are Jawaharlal Nehru, Vijayalakshmi Pandit, Krishna Hutheesing, Indira, and Ranjit Pandit; Seated: Swaroop Rani, Motilal Nehru and Kamala Nehru (circa 1927).At the height of the tension, Gandhi and her husband separated. However, in 1958, shortly after re-election, Feroze suffered a heart attack, which dramatically healed their broken marriage. At his side to help him recuperate in Kashmir, their family grew closer. But Feroze died on September 8, 1960, while Gandhi was abroad with Nehru on a foreign visit.

Her marriage to Feroze Gandhi on March 26, 1942 does not seem to have been a happy one. Feroze Gandhi, who was considered an able parliamentarian, died in 1960. The marriage resulted in two sons - Rajiv Gandhi and Sanjay Gandhi.
Source:
Feroze Khan married Indira in a Masjid in London. Well-known English newspapers publicized this event. When the couple returned to India, it was arranged to get a photograph of the couple married in Vedic style for publishing in India. Later all these photographs were exhibited in 'Anandbhavan'.

बुधवार, 26 अक्टूबर 2011

भ्रष्‍टाचार मिटाने की शुरुआत खुद से


आज सारी दुनिया जिस मुल्क को, जिस मुल्क की तरक़्क़ी को आदर और सम्मान के साथ देख रही है, वह भारत है. लोग कहते हैं कि हिंदुस्तान में सब कुछ मिलता है, जी हां हमारे पास सब कुछ है.
  लेकिन हमें यह कहते हुए शर्म भी आती है और अफ़सोस भी होता है कि हमारे पास ईमानदारी नहीं है. हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में भ्रष्टाचार कितनी गहराई तक उतर चुका है और किस तरह से बेईमानी एक राष्ट्रीय मजबूरी बनकर हमारी नसों में समा चुकी है इसका सही अंदाज़ा करने के लिए मैं आपको एक कहानी सुनाना चाहता हूं.
एक गांव के स्कूल में इंटरवल के दौरान एक कुल्फी बेचने वाला अपनी साइकिल पर आता था और बच्चों में कुल्फियां बेचा करता था. उसका रोज़गार और बच्चों की पसंद, दोनों एक दूसरे की ज़रूरत थे. इंटरवल में उसकी साइकिल के चारों तरफ़ भीड़ लग जाती. ऐसे में कुछ शरारती लोग उसकी आंख घूमते ही कुल्फ़ी के डिब्बे में हाथ डाल कर कुछ कुल्फियां ले उड़ते. कुल्फियां कम होने का शक तो उसे होता, लेकिन रंगे हाथ न पकड़ पाने की वजह से वह कुछ कर नहीं पाता था.
एक दिन उसने एक अजनबी हाथ को तब पकड़ लिया जब वह डिब्बे में ही था. वह लड़ पड़ा, तो इस लड़ाई का फ़ायदा उठाकर कुछ और हाथों ने सफ़ाई दिखा दी. यह देखकर कुल्फ़ीवाले ने अपना आपा खो दिया. फिर तो लूटने वालों के हौसले और बुलंद हो गये. जब क़ुल्फ़ीवाले को यह अहसास हुआ कि उसकी सारी कुल्फ़ियां लुट जाएंगी तो वह भी लूटने वालों में शामिल हो गया और अपने दोनों हाथों में जितनी भी क़ुल्फियां आ सकती थीं उन्हें लूट-लूट कर जल्दी जल्दी खाने लगा.
जी हां, हमारे यहां बेईमानी, भ्रष्टाचार और खुली लूट का यही आलम हैं. इससे पहले कि कोई दूसरा लूट ले. हम ख़ुद ही ख़ुद को लूट रहे हैं.
जुर्म, वारदात, नाइंसाफ़ी, बेईमानी और भ्रष्टाचार का सैकड़ों साल पुराना क़िस्सा नई पोशाक पहनकर एकबार फिर हमारे दिलों पर दस्तक दे रहा है. रगों में लहू बन कर उतर चुका भ्रष्टाचार का कैंसर. आखिरी ऑपरेशन की मांग कर रहा है. अवाम सियासत के बीज बोकर हुकूमत की रोटियां सेंकने वाले भ्रष्ट नेताओं के मुस्तकबिल का फैसला करना चाहती है. ये गुस्सा एक मिसाल है कि हजारों मोमबत्तियां जब एक मकसद के लिए एक साथ जल उठती हैं तो हिंदुस्तान का हिंदुस्तानियत पर यकीन और बढ़ जाता है.
बेईमान सियासत के इस न ख़त्म होने वाले दंगल में अक़ीदत और ईमानदारी दोनों थक कर चूर हो चुके हैं. मगर फिर भी बेईमान नेताओं, मंत्रियों, अफसरों और बाबुओं की बेशर्मी को देखते हुए लड़ने पर मजबूर हैं. बेईमान और शातिर सियासतदानों की नापाक चालें हमें चाहे जितना जख़्मी कर जाएं. हमारे मुल्क के 'अन्ना' हजारों के आगे दम तोड़ देती हैं.
महंगाई, ग़रीबी, भूख और बेरोज़गारी जैसे अहम मुद्दों से रोज़ाना और लगातार जूझती देश की अवाम के सामने भ्रष्टाचार
इस वक्त सबसे बड़ा मुद्दा और सबसे खतरनाक बीमारी है. अगर इस बीमारी से हम पार पा गए तो यकीन मानिए सोने की चिड़िया वाला वही सुनहरा हिंदुस्तान एक बार फिर हम सबकी नजरों के सामने होगा. पर क्या ऐसा हो पाएगा? क्या आप ऐसा कर पाएंगे? जी हां, हम आप से पूछ रहे हैं. क्योंकि सिर्फ क्रांति की मशालें जला कर, नारे लगा कर, आमरण अनशन पर बैठ कर या सरकार को झुका कर आप भ्रष्टाचार की जंग नहीं जीत सकते. इस जंग को जीतने के लिए खुद आपका बदलना जरूरी है. क्योंकि भ्रष्टाचार और बेईमानी को बढ़ावा देने में आप भी कम गुनहगार नहीं हैं.
मंदिर में दर्शन के लिए, स्कूल अस्पताल में एडमिशन के लिए, ट्रेन में रिजर्वेशन के लिए, राशनकार्ड, लाइसेंस, पासपोर्ट के लिए, नौकरी के लिए, रेड लाइट पर चालान से बचने के लिए, मुकदमा जीतने और हारने के लिए, खाने के लिए, पीने के लिए, कांट्रैक्ट लेने के लिए, यहां तक कि सांस लेने के लिए भी आप ही तो रिश्वत देते हैं. अरे और तो और अपने बच्चों तक को आप ही तो रिश्वत लेना और देना सिखाते हैं. इम्तेहान में पास हुए तो घड़ी नहीं तो छड़ी.
अब आप ही बताएं कि क्या गुनहगार सिर्फ नेता, अफसर और बाबू हैं? आप एक बार ठान कर तो देखिए कि आज के बाद किसी को रिश्वत नहीं देंगे. फिर देखिए ये भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी कैसे खत्म होते हैं.
आंकड़े कहते हैं कि 2009 में भारत में अपने-अपने काम निकलवाने के लिए 54 फीसदी हिंदुस्तानियों ने रिश्वत दी. आंकड़े कहते हैं कि एशियाई प्रशांत के 16 देशों में भारत का शुमार चौथे सबसे भ्रष्ट देशों में होता है. आंकड़े कहते हैं कि कुल 169 देशों में भ्रष्टाचार के मामले में हम 84वें नंबर पर हैं.
आंकड़े ये भी बताते हैं कि 1992 से अब तक यानी महज 19 सालों में देश के 73 लाख करोड़ रुपए घोटाले की भेंट चढ़ गए. इतनी बड़ी रकम से हम 2 करोड़ 40 लाख प्राइमरी हेल्थसेंटर बना सकते थे. करीब साढ़े 14 करोड़ कम बजट के मकान बना सकते थे. नरेगा जैसी 90 और स्कीमें शुरू हो सकती थीं. करीब 61 करोड़ लोगों को नैनो कार मुफ्त मिल सकती थी. हर हिंदुस्तानी को 56 हजार रुपये या फिर गरीबी की रेखा से नीचे रह रहे सभी 40 करोड़ लोगों में से हर एक को एक लाख 82 हजार रुपये मिल सकते थे. यानी पूरे देश की तस्वीर बदल सकती थी.
तस्वीर दिखाती है कि भारत गरीबों का देश है. पर दुनिया के सबसे बड़े अमीर यहीं बसते हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो स्विस बैंक के खाते में सबसे ज्यादा पैसे हमारा जमा नहीं होता. आंकड़ों के मुताबिक स्विस बैंक में भारतीयों के कुल 65,223 अरब रुपये जमा है. यानी जितना धन हमारा स्विस बैंक में जमा है, वह हमारे जीडीपी का 6 गुना है.
आंकड़े ये भी बताते हैं कि भारत को अपने देश के लोगों का पेट भरने और देश चलाने के लिए 3 लाख करोड़ रुपये का कर्ज लेना पड़ता है. यही वजह है कि जहां एक तरफ प्रति व्यक्ति आय बढ़ रही है, वही दूसरी तरफ प्रति भारतीय पर कर्ज भी बढ़ रहा है. अगर स्विस बैंकों में जमा ब्लैक मनी का 30 से 40 फीसदी भी देश में आ गया तो हमें कर्ज के लिए आईएमएफ या विश्व बैंक के सामने हाथ नहीं फैलाने पड़ेंगे.
स्विस बैंक में भारतीयों का जितना ब्लैक मनी जमा है, अगर वह सारा पैसा वापस आ जाए तो देश को बजट में 30 साल तक कोई टैक्स नहीं लगाना पड़ेगा. आम आदमी को इनकम टैक्स नहीं देना होगा और किसी भी चीज पर कस्टम या सेल टैक्स नहीं लगेगा.
सरकार सभी गांवों को सड़कों से जोड़ना चाहती है. इसके लिए 40 लाख करोड़ रुपये की जरूरत है. अगर स्विस बैंक से ब्लैक मनी वापस आ गया तो हर गांव तक चार लेन की सड़क पहुंच जाएगी.
जितना धन स्विस बैंक में भारतीयों का जमा है, उसे उसका आधा भी मिल जाए तो करीब 30 करोड़ नई नौकरियां पैदा की जा सकती है. हर हिंदुस्तानी को 2000 रुपये मुफ्त दिए जा सकते हैं. और यह सिलसिला 30 साल तक जारी रह सकता है. यानी देश से गरीबी पूरी तरह दूर हो सकती है.
पर ऐसा हो इसके लिए आपका बदलना जरूरी है. वर्ना 'अन्ना हजारों' की मुहिम बेकार चली जाएगी.
दिल्ली का जन्तर-मंतर. यानी वह दहलीज़ जहां से देश का ग़ुस्सा अपने ज़िल्लेइलीही से फ़रियाद करता है. ये फ़रियादें दराबर के किस हिस्से तक पहुंचने में कामयाब होती हैं इसी बात से फ़रियाद के क़द और उसकी हैसियत का अंदाज़ा लगाया जाता है. लेकिन इस बार चोट थोड़ी गहरी है.
अन्ना देश के अन्ना हैं. इस बार जंतर मंतर पर ग़म और ग़ुस्से का अजीब संगम है. किसी को आम आदमी का त्योहार देखना हो तो उसे जंतर मंतर का नज़ारा ज़रूर करना चाहिये. हर तरफ़ बस एक ही शोर है कि शायद अन्ना का ये अनशन आम आदमी के हक़ में एक ऐसा क़ानून बना सके जिसके डर से भ्रष्टाचारी को पसीने आ जाएं. क्योंकि अन्ना के समर्थन में आने वालों का ये मानना है कि अन्ना जो कहते हैं सही कहते हैं.
जिन्हें शक है कि अन्ना ऑटोक्रेटिक हैं, निरंकुश हैं या सियासी लोग उन्हें इस्तेमाल कर लेते हैं. उन्हें जंतर-मंतर के इस ग़म और ग़ुस्से को क़रीब से महसूस करना चाहिये. ये भीड़ किसी वोट बैंक का हिस्सा नहीं बल्कि उनकी है जो भ्रष्टाचार से तंग आ चुके हैं. अगर हम तंग आ चुके इन हज़ारों लोगों को किसी एक नाम से पुकारेंगे तो यक़ीनन वह नाम अन्ना ही होगा.
बहरहाल ये एक ऐसा आंदोलन है जिसकी आवाज़ को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता क्योंकि,
सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना 
तड़प का न होना 
सब कुछ सहन कर जाना 
घर से निकलना काम पर 
और काम से लौटकर घर आना 
सबसे ख़तरनाक होता है 
हमारे सपनों का मर जाना 
सबसे ख़तरनाक वो घड़ी होती है 
आपकी कलाई पर चलती हुई भी जो 
आपकी नज़र में रुकी होती है 
सबसे ख़तरनाक वो दिशा होती है 
जिसमें आत्‍मा का सूरज डूब जाए 
और जिसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा 
आपके जिस्‍म के पूरब में चुभ जाए 
सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना 
सबसे खतरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना

क्या है अखंड भारत का अर्थ ?


क्या है अखंड भारत का अर्थ

India Map-देवेन्द्र स्वरूप
   अखंड भारत का संकल्प लेने से पहले अखंड भारत की अवधारणा स्पष्ट होनी चाहिए। अगर अखंड भारत का अर्थ भौगोलिक अखंडता है तो वह आज भी अपनी जगह पर है। भूगोल तो जैसा पहले था, वैसा ही आज भी है। केवल उस पर राजनीतिक विभाजन की लकीरें खींच दी गई हैं। वे लकीरें क्यों खींची गईं? दूसरा प्रश्न यह है कि अगर भारत की परंपरागत सीमाओं की बात की जाए तो उन सीमाओं में तो अफगानिस्तान भी आता है, लेकिन अफगानिस्तान को अखंड भारत का अंग हम नहीं मानते।
   अभी हमारे सामने अखंड भारत का जो चित्र है, वह एक प्रकार से ब्रिटिश भारत का चित्र है। अगर हम परंपरा के दृष्टिकोण से देखें तो भारत की सीमाओं में नेपाल भी आता है, भूटान, श्रीलंका और अफगानिस्तान भी आते हैं। भौगोलिक सीमाओं और सांस्कृतिक सीमाओं में हमेशा समन्वय बिठाने की आवश्यकता पड़ती है। फिर इसमें राजनीति भी आती है। भारत का विभाजन क्यों हुआ? वह मजहब के आधार पर हुआ। मुस्लिम बहुल क्षेत्र भारत से अलग हो गए। उनके और भारत के बीच में इस्लाम एक दीवार बनकर खड़ा हो गया। अब खंडित भारत में अधिकतम 20 प्रतिशत मुसलमान हैं और भारत की पूरी राजनीति इन 20 प्रतिशत मुसलमानों के पास गिरवी रखी है। भारत की समूची वोट राजनीति मुस्लिम वोटबैंक के चारों ओर घूम रही है। हर राजनीतिक दल मुस्लिम वोटों को रिझाने के लिए एक ओर हिन्दुओं को लांछित कर रहा है और दूसरी ओर मुस्लिम गठजोड़ के साथ समझौते कर रहा है। आज घुसपैठ के विरुद्ध बोलना कठिन है, कश्मीर का प्रश्न पूरा का पूरा मुस्लिम समस्या से जुड़ गया है।
   कश्मीर के पुराने निवासियों, जिन्होंने कश्मीर की सभ्यता को सुरक्षित रखा था, उनका कश्मीर में कहीं स्थान नहीं है। जब भी बात होती है, हुर्रियत की बात होती है। ऐसी स्थिति में अगर पाकिस्तान और बांग्लादेश मिल जाते हैं और अगर भारत इसी राजनीतिक प्रणाली को लेकर चलता है तो इससे कैसी स्थिति बनेगी? यह एक विचारणीय प्रश्न है। अगर अखंड भारत एक सांस्कृतिक अवधारणा है तो प्रश्न उठता है कि यदि खंडित भारत में वह संस्कृति स्वयं को घिरी हुई पा रही है तो पाकिस्तान और बांग्लादेश को उनके वर्तमान चरित्र के साथ मिला लेने के बाद उस संस्कृति की स्थिति क्या होगी? यही कारण है कि अब पाकिस्तान और बांग्लादेश के बुद्धिजीवी भी अखंड भारत की भाषा बोल रहे हैं।
दूसरा प्रश्न यह है कि अखंड भारत कैसे बनेगा? क्या सैनिक विजय द्वारा बनेगा? क्या आज के युग में यह संभव है? और अगर सैनिक विजय द्वारा नहीं होगा तो क्या वार्तालाप द्वारा एकीकरण के लिए अनुकूल मन:स्थिति उन देशों में विद्यमान है? क्या पाकिस्तान और बांग्लादेश की मानसिकता में कोई परिवर्तन हुआ है? अगर अखंड भारत का स्वप्न पूरा करना है तो खंडित भारत में भारतीय संस्कृति के आधार पर एक श्रेष्ठ और शक्तिशाली सभ्यता का निर्माण् करना होगा। जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक अखंड भारत की बात करना अव्यावहारिक है। राजनीतिक सीमाएं तो परिवर्तनशील होती हैं। वे स्थाई नहीं होतीं। भूगोल स्थाई होता है और जब तक उस भूगोल का सांस्कृतिक प्रवाह अवरुद्ध नहीं हो जाता, उसकी अस्मिता और पहचान बनी रहती  है।
   आज खंडित भारत की हिन्दू पहचान नहीं है जबकि पाकिस्तान और बांग्लादेश की मुस्लिम पहचान है। भारत में हिन्दू समाज अपनी प्रकृति के कारण अंदर से विभाजित है। राजनैतिक दृष्टि से भी, जातियों में भी और क्षेत्रीय दृष्टि से भी। हिन्दू समाज का यह विखंडन भारत की राजनीति में भी प्रतिबिम्बित हो रहा है। देश की लोकसभा में जो 44-45 राजनीतिक दल हैं, इनमें से दो-चार को छोड़कर सभी हिन्दू दल हैं और सभी व्यक्ति केंद्रित हैं। ऐसी स्थिति में केवल ऊंची-ऊंची बातें करना अधिक उचित नहीं है। दीनदयाल उपाध्याय और राममनोहर लोहिया ने मिलकर जो भारत-पाकिस्तान महासंघ की बात की थी, क्या उसे अखंड भारत मानेंगे? वे पाकिस्तान और भारत को अलग-अलग राजनीतिक इकाई मानकर कुछेक तालमेल की व्यवस्था सोच रहे थे। ऐसा ही प्रयास विभाजन के पहले भी हुआ था। विभाजन के पहले भी विदेश नीति और मुद्रा आदि कुछ विषयों पर स्थानीय स्वायत्तता के आधार पर एक महासंघ बनाने का प्रस्ताव रखा गया था, लेकिन वह बात मानी नहीं गई।
   नौवीं शताब्दी में मनुस्मृति के एक व्याख्याकार हुए हैं, मेधा तिथि। उन्होंने अपनी व्याख्या में लिखा है कि जहां-जहां वर्ण-व्यवस्था है, वहां-वहां तक आर्यावर्त है। आर्यावर्त की पहचान वर्ण-व्यवस्था और यज्ञ है। यह व्याख्या सांस्कृतिक आधार पर की गई थी। यदि भारतीय संस्कृति आज स्वयं को इतना तेजस्वी और चैतन्य बना सकती है कि दूसरे लोगों में उसे स्वीकार करने की इच्छा पैदा हो तो सांस्कृतिक भारत का विस्तार हो सकता है। आज पश्चिम में भारत के जो साधु-संत जाते हैं, वे किसी को मतांतरित नहीं करते, लेकिन उनके अध्यात्म और प्रवचनों से प्रभावित होकर लोग उनके शिष्य बनते हैं और वे स्वयं ही भारतीय नाम, वेशभूषा आदि धारण कर लेते हैं। यह एक प्रकार से भारत के सांस्कृतिक प्रभाव का ही विस्तार है। आज ईसाई चर्च कह रहा है कि योग का प्रचार तो हिन्दू संस्कृति का प्रचार है। इसलिए हम जो स्वप्न देखते हैं, उन्हें जिस यथार्थ में पूरा करना है, उस यथार्थ को निर्मम होकर समझना आवश्यक है। अखंड भारत यदि बनेगा तो पूरे हिन्दू समाज की आंतरिक स्थिति के आधार पर बनेगा। कोई दो-चार व्यक्तियों के सोचने से नहीं बनेगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अस्सी वर्षों से हिन्दू समाज को संगठित करने का प्रयास कर रहा है और उसके रहते हुए ही हिन्दू समाज विघटन की ओर बढ़ रहा है और उसका चारित्रिक पतन हो रहा है। इसकी विवेचना होनी चाहिए। तात्पर्य यह है कि अखंड भारत की परंपरागत अवधारणा व्यावहारिक नहीं है। यदि अखंड भारत का स्वप्न देखना है तो जो वाल्मिकी रामायण में नवद्वीपवती भारत की व्याख्या है, उसको सामने रखें, ब्रिटिश भारत को क्यों रखें?
   बहुराज्यीय राष्ट्र के रूप में भारत एक राष्ट्र रहा है, लेकिन वह काफी पहले की बात है। वह जिस कालखंड की बात है, उस समय अनेक राज्य होते हुए भी उन सभी राज्यों का सामाजिक और सांस्कृतिक अधिष्ठान समान था। इतने विशाल भूखंड पर एक केंद्रीय राज्य का स्थापित होना और वहां से शासन चलाना संभव ही नहीं था। इसलिए उस विशाल भूखंड में छोटे-छोटे राज्य होते हुए भी वहां के राजा या शासक एक ही आदर्श और व्यवस्था के अंतर्गत कार्य करते थे। सभी एक ही राजधर्म का पालन करते थे। सभी की शब्दावलियां समान थीं। इसलिए उस कालखंड से आज की तुलना नहीं की जा सकती। आज बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल में भाषा व वेशभूषा आदि अनेक चीजें समान हैं, लेकिन इस्लाम एक विभाजनकारी रेखा है। आज के भारत का संकट यह है कि वह इस्लाम के प्रभाव में है जो एक अलग प्रकार की विचारधारा है। यह भौगोलिक राष्ट्रवाद में विश्वास नहीं करता। भौगोलिक राष्ट्रवाद को स्वीकार न करके वह अपना वर्चस्व चाहता है।
   आज के विश्व में विविध प्रकार की प्रवृत्तियां साथ-साथ काम कर रही हैं। सभी अपने-अपने स्वार्थों को लेकर साझा मंच भी तैयार कर रहे हैं और साथ-साथ सब अपने पृथक अस्तित्व को भी सुदृढ़ करने की कोशिश कर रहे हैं। जैसे, भारत में ही बीस दल मिलकर एक गठबंधन तैयार करते हैं। लेकिन गठबंधन बनाने का उनका एकमात्र उद्देश्य गठबंधन के कंधे पर सवार होकर अपने दल की स्थिति मजबूत करना है। इसी प्रकार दक्षेश एक प्रकार से वृहत्तर भारत का ही लघु चित्र है। दक्षेश उसी दिशा में कुछ समान बिंदु खोजने की कोशिश है। हमें विचार करना होगा कि क्या हम अखंड भारत की बात करके ही उस लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं या दक्षेश जैसी प्रक्रियाओं के द्वारा भी उस दिशा में बढ़ा जा सकता है। राजनैतिक रूप से अखंड भारत का स्वप्न देखने वालों को तो व्यावहारिक शिक्षा की बहुत आवश्यकता है। वे भावुकता के जगत में जी रहे हैं, उन्हें यथार्थ से परिचित कराने की आवश्यकता है। केवल कुछ शब्दों का बंदी बने रहने से काम नहीं चलेगा। अखंड भारत की बात करते हुए अंदर से टूटते रहने से अच्छा है कि दक्षेश जैसे प्रयोग किए जाएं। यदि इन प्रयोगों से कुछ सफलता मिलती है तो अच्छी बात है, यदि नहीं मिलती है तो हमारा कुछ नहीं बिगड़ता।

मंगलवार, 25 अक्टूबर 2011

दीपावली


दीपावली का अर्थ है दीपों की पंक्ति। दीपावली शब्द ‘दीप’ एवं ‘आवली’ की संधिसे बना है। आवली अर्थात पंक्ति, इस प्रकार दीपावली शब्दका अर्थ है, दीपोंकी पंक्ति । भारतवर्षमें मनाए जानेवाले सभी त्यौहारों में दीपावलीका सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ यह उपनिषदोंकी आज्ञा है। इसेसिखबौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं। माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजाश्री रामचंद्र अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से उल्लसित था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाए । कार्तिकमास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। यह पर्व अधिकतर ग्रिगेरियन कैलन्डर के अनुसारअक्तूबर या नवंबर महीने में पड़ता है। दीपावली दीपों का त्योहार है। इसे दीवाली या दीपावली भी कहते हैं। दीवाली अँधेरे से रोशनी में जाने का प्रतीक है। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है। दीवाली यही चरितार्थ करती है- असतो माऽ सद्गमय , तमसो माऽ ज्योतिर्गमय। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती है। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन,सफ़ेदी आदि का कार्य होने लगता हैं। लोग दुकानों को भी साफ़ सुथरा का सजाते हैं। बाज़ारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है। दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाज़ार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नज़र आते हैं।


धार्मिक संदर्भ

दीप जलाने की प्रथा के पीछे अलग-अलग कारण या कहानियाँ हैं। राम भक्तों के अनुसार दीवाली वाले दिन अयोध्या के राजा राम लंका के अत्याचारी राजा रावण का वध करके अयोध्या लौटे थे। उनके लौटने कि खुशी मे आज भी लोग यह पर्व मनाते है। कृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाए। एक पौराणिक कथा के अनुसार विंष्णु ने नरसिंह रुप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए। जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी दीपावली को ही है। सिक्खों के लिए भी दीवाली महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में १५७७ में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था।और इसके अलावा १६१९ में दीवाली के दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था। नेपालियों के लिए यह त्योहार इसलिए महान है क्योंकि इस दिन से नेपाल संवत में नया वर्ष शुरू होता है।
पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म व महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ। इन्होंने दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान करते समय 'ओम' कहते हुए समाधि ले ली। महर्षि दयानन्द ने भारतीय संस्कृति के महान जननायक बनकर दीपावली के दिन अजमेर के निकट अवसान लिया। इन्होंने आर्य समाज की स्थापना की। दीन-ए-इलाही के प्रवर्तक मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में दौलतखाने के सामने ४० गज ऊँचे बाँस पर एक बड़ा आकाशदीप दीपावली के दिन लटकाया जाता था। बादशाह जहाँगीर भी दीपावली धूमधाम से मनाते थे। मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफर दीपावली को त्योहार के रूप में मनाते थे और इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में वे भाग लेते थे। शाह आलम द्वितीय के समय में समूचे शाही महल को दीपों से सजाया जाता था एवं लालकिले में आयोजित कार्यक्रमों में हिन्दू-मुसलमान दोनों भाग लेते थे।

पर्वों का समूह दीपावली



दीपावली के दिन भारत में विभिन्न स्थानों पर मेले लगते हैं | दीपावली एक दिन का पर्व नहीं अपितु पर्वों का समूह है। दशहरे के पश्चात ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती है। लोग नए-नए वस्त्र सिलवाते हैं। दीपावली से दो दिन पूर्व धनतेरस का त्योहार आता है। इस दिन बाज़ारों में चारों तरफ़ जनसमूह उमड़ पड़ता है। बरतनों की दुकानों पर विशेष साज-सज्जा व भीड़ दिखाई देती है। धनतेरस के दिन बरतन खरीदना शुभ माना जाता है अतैव प्रत्येक परिवार अपनी-अपनी आवश्यकता अनुसार कुछ न कुछ खरीदारी करता है। इस दिन तुलसी या घर के द्वार पर एक दीपक जलाया जाता है। इससे अगले दिन नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली होती है। इस दिन यम पूजा हेतु दीपक जलाए जाते हैं। अगले दिन दीपावली आती है। इस दिन घरों में सुबह से ही तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं। बाज़ारों में खील-बताशे , मिठाइयाँ ,खांड़ के खिलौने, लक्ष्मी-गणेश आदि की मूर्तियाँ बिकने लगती हैं । स्थान-स्थान पर आतिशबाजी और पटाखों की दूकानें सजी होती हैं। सुबह से ही लोग रिश्तेदारों, मित्रों, सगे-संबंधियों के घर मिठाइयाँ व उपहार बाँटने लगते हैं। दीपावली की शाम लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती है। पूजा के बाद लोग अपने-अपने घरों के बाहर दीपक व मोमबत्तियाँ जलाकर रखते हैं। चारों ओर चमकते दीपक अत्यंत सुंदर दिखाई देते हैं। रंग-बिरंगे बिजली के बल्बों से बाज़ार व गलियाँ जगमगा उठते हैं। बच्चे तरह-तरह के पटाखों व आतिशबाज़ियों का आनंद लेते हैं। रंग-बिरंगी फुलझड़ियाँ, आतिशबाज़ियाँ व अनारों के जलने का आनंद प्रत्येक आयु के लोग लेते हैं। देर रात तक कार्तिक की अँधेरी रात पूर्णिमा से भी से भी अधिक प्रकाशयुक्त दिखाई पड़ती है। दीपावली से अगले दिन गोवर्धन पर्वत अपनी अँगुली पर उठाकर इंद्र के कोप से डूबते ब्रजवासियों को बनाया था। इसी दिन लोग अपने गाय-बैलों को सजाते हैं तथा गोबर का पर्वत बनाकर पूजा करते हैं। अगले दिन भाई दूज का पर्व होता है। दीपावली के दूसरे दिन व्यापारी अपने पुराने बहीखाते बदल देते हैं। वे दूकानों पर लक्ष्मी पूजन करते हैं। उनका मानना है कि ऐसा करने से धन की देवी लक्ष्मी की उन पर विशेष अनुकंपा रहेगी। कृषक वर्ग के लिये इस पर्व का विशेष महत्त्व है। खरीफ़ की फसल पक कर तैयार हो जाने से कृषकों के खलिहान समृद्ध हो जाते हैं। कृषक समाज अपनी समृद्धि का यह पर्व उल्लासपूर्वक मनाता हैं।

परंपरा

अंधकार पर प्रकाश की विजय का यह पर्व समाज में उल्लास, भाई-चारे व प्रेम का संदेश फैलाता है। यह पर्व सामूहिक व व्यक्तिगत दोनों तरह से मनाए जाने वाला ऐसा विशिष्ट पर्व है जो धार्मिक, सांस्कृतिक व सामाजिक विशिष्टता रखता है। हर प्रांत या क्षेत्र में दीवाली मनाने के कारण एवं तरीके अलग हैं पर सभी जगह कई पीढ़ियों से यह त्योहार चला आ रहा है। लोगों में दीवाली की बहुत उमंग होती है। लोग अपने घरों का कोना-कोना साफ़ करते हैं, नये कपड़े पहनते हैं। मिठाइयों के उपहार एक दूसरे को बाँटते हैं, एक दूसरे से मिलते हैं। घर-घर में सुन्दर रंगोली बनायी जाती है, दिये जलाए जाते हैं और आतिशबाजी की जाती है। बड़े छोटे सभी इस त्योहार में भाग लेते हैं। अंधकार पर प्रकाश की विजय का यह पर्व समाज में उल्लास, भाई-चारे व प्रेम का संदेश फैलाता है। हर प्रांत या क्षेत्र में दीवाली मनाने के कारण एवं तरीके अलग हैं पर सभी जगह कई पीढ़ियों से यह त्योहार चला आ रहा है। लोगों में दीवाली की बहुत उमंग होती है।

पावन दीपावली की शुभ अवसर पर हार्द्धिक शुभ कामनाएं

प्रकाश पर्व दीपावली समस्त विश्व को शांति,सौहार्ध्य,प्रेम और भाई-चारे से आलोकित करे एबं सर्वत्र सुख तथा समृद्धि laye 


रौशनी  भी  होगी , होंगे  चिराग  भी
आवाज़  भी  होगी , होंगे  साज़  भी
पर  न  होगी  उसकी  परछाई , न  उसका  आहट
बहुत  सुनी  होगी  यह  दिवाली
बीन  मेरे भाई के  कैसे  मिलेगी  मुझे  राहत |
"Happy Diwali"

सर सादर प्रणाम,पावन दीपावली की शुभ अवसर पर हार्द्धिक शुभ कामनाएं.
दीप का संदेश है यह
प्रीत का अनुदेश है यह
दीपमाला अनगिनत हों
टिमटिमाता दीप न हो
हो प्रखर ज्योती निराली
यों मनाएँ हम दीवाली
दीप हम ऐसे जगाएँ
स्वप्न सोये जाग जाएँ
द्वेष तम मिट जाए जग से
इस धरा पर प्रेम बरसे|
-----------------------------
आओ दिये में सूरज भर दें
घर को जग को रौशन कर दें
नयी रौशनी की दीपमाला से
घर आँगन और द्वार सजाएँ
अनंत आस्था की बाती से
दीप मन के भी जला लें
मन की चौखट पर टाँकें फिर
प्रेम विश्वास की बंदनवार
आओ मनाएँ मिलजुल कर
इस बार दिवाली का त्योहार




रविवार, 23 अक्टूबर 2011

धनतेरस

ND
पाँच दिवसीय दीपावली पर्व का आरंभ धन त्रयोदशी से होता है। इस दिन सायंकाल घर के मुख्य द्वार पर यमराज के निमित्त एक अन्न से भरे पात्र में दक्षिण मुख करके दीपक रखने एवं उसका पूजन करके प्रज्वलित करने एवं यमराज से प्रार्थना करने पर असामयिक मृत्यु से बचा जा सकता है। धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ था। समुद्र मंथन के समय इसी दिन धन्वंतरि सभी रोगों के लिए औषधि कलश में लेकर प्रकट हुए थे।

अतः इस दिन भगवान धन्वंतरि का पूजन श्रद्धापूर्वक करना चाहिए, जिससे दीर्घ जीवन एवं आरोग्य की प्राप्ति होती है। धनतेरस के दिन अपनी शक्ति अनुसार बर्तन क्रय करके घर लाना चाहिए एवं उसका पूजन करके प्रथम उपयोग भगवान के लिए करने से धन-धान्य की कमी वर्ष पर्यन्त नहीं रहती है।

धन्वंतरि देवताओं के वैद्य और चिकित्सा के देवता माने जाते हैं इसलिए चिकित्सकों के लिए धनतेरस का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। धनतेरस के संदर्भ में एक लोककथा प्रचलित है कि एक बार यमराज ने यमदूतों से पूछा कि प्राणियों को मृत्यु की गोद में सुलाते समय तुम्हारे मन में कभी दया का भाव नहीं आता क्या? 

ND
दूतों ने यमदेवता के भय से पहले तो कहा कि वह अपना कर्तव्य निभाते है और उनकी आज्ञा का पालन करते हें। परंतु जब यमदेवता ने दूतों के मन का भय दूर कर दिया तो उन्होंने कहा कि एक बार राजा हेम के पुत्र का प्राण लेते समय उसकी नवविवाहिता पत्नी का विलाप सुनकर हमारा हृदय भी पसीज गया लेकिन विधि के विधान के अनुसार हम चाह कर भी कुछ न कर सके। 

धनतेरस के दिन चाँदी खरीदने की भी प्रथा है, इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है। संतोष को सबसे बडा़ धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है वह स्वस्थ, सुखी है और वही सबसे बड़ा धनवान है। भगवान धन्वंतरि जो चिकित्सा के देवता भी हैं और उनसे धन व सेहत की कामना जब करें तो याद रखें संतोष ही धन है और संतोष से ही सेहत बनती है।

प्रधान मन्त्री सरदार मन मोहन सिंह की सरकार का क्या २०११ में अन्त हो जायेगा ?


प्रधान मन्त्री सरदार मन मोहन सिंह की सरकार का क्या २०११ में अन्त हो जायेगा ?

प्रधान मन्त्री सरदार मन मोहन सिंह की सरकार का क्या २०११ में अन्त हो जायेगा ?
हालात तो कुछ ऐसे ही पैदा हो रहे है / यह कान्ग्रेस की खुश किस्मत थी कि २००९ के चुनाव में उसकी सरकार बन गयी / वह भी दूसरे दलों के समर्थन से / अब इन सभी समर्थन देने वाले दलों के और कान्ग्रेस पार्टी के बीच क्या और किस तरह की डील हुयी और उनके बीच क्या सहमति हुयी , यह तो वही जाने, लेकिन सच सामने आ गया , जब २ जी घोटाला हुआ, राष्ट्र मन्डल खेलों मे भयानक तरीके का भ्रष्टाचार निकल कर सामने आया , मुम्बई की आदर्श सोसायटी मे गैर कानूनी खेल हुआ और इसके साथ ऐसी दूसरी बातें सामने आयी , जिसे मैने पिछले साठ साल में न देखा , न सुना /
अन्ना हजारे हमारे देश के एक वरिष्ठ नागरिक है / वे भारतीय सेना की सेवा एक सैनिक के स्वरूप में कर चुके है / सामाजिक कार्यों की बदौलत उनको उपलब्धियां मिली, जिसे देखकर कोई भी शख्स उनके एचीवमेन्ट का अन्कलन कर सकता है / अविवाहित अन्ना हजारे के पास अपना कहने के लिये कुछ भी नहीं है, न कोई बहुत ज्यादा बैन्क बैलन्स, न दुकान, न मकान, न प्रापर्टी, न खेत , न खलिहान, न कोई असेट्स / यह बात इस देश की जनता को अच्छी तरह से पता है /
अन्ना जी को सेना की ओर से कई मेडल दिये गये / उनको देश का पद्म श्री, पद्म भूषन, राजीव गान्धी सद्भावना पुरस्कार और भारत सरकार तथा महाराष्ट्र सरकार के पुरष्कारों से नवाजा गया / उनकी उपलब्धियों के बारे में मैने दो दशक पहले मशहूर अन्ग्रेजी मासिक पत्रिका Readers Digest में पढा था /
ऐसे साफ सुथरे चरित्र जैसे व्यक्ति के ऊपर जब कान्ग्रेस के घाघ नेताओं ने और सरकार ने साथ मिलकर चौतरफा हमला बोला तो यह स्वाभाविक था कि इसकी प्रतिक्रिया धीरे धीरे जन मानस में कान्ग्रेस के खिलाफ होती चली गयी / कान्ग्रेस के कपिल सिब्बल, पी० चिदामबरम, अम्बिका सोनी, जनार्दन द्विवेदी के साथ साथ अभिषेक मनु सिन्घवी, मनीष तिवारी और दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं ने जब अन्ना के खिलाफ बोलना शुरू किया तो इस देश की जनता को यह अच्छा नही लगा / देश के लोगों ने यह समझा कि कान्ग्रेस एक तो खुद चोरी और भ्रष्टाचार कर रही है , इसके साथ साथ सीना जोरी भी दिखा रही है और इस बात की चुनौती इस देश की जनता को दे रही है कि अब जो भी उखाड़ना है , उखाड़ लो /
कान्ग्रेस पार्टी और कान्ग्रेस की सरकार की ऐसी ललकार और इस देश की जनता को दी गयी चुनौती से जनता सनक गयी और नतीजा सामने है , जो हम सभी देख रहे है /
दिनांक १६ अगस्त २०११ को सन्सद के अन्दर के बीते घटना क्रम को याद करिये / सन्सद ठप हो गयी थी / लगभग दिन ११ बजे श्री लाल कृष्ण आडवाणी से कम्युनिस्ट पार्टी के सान्सदों की मुलाकात हुयी / फिर दिन में ४ बजे शाम यही सब सान्सद और विपक्ष के अन्य नेता श्रीमती सुषमा स्वराज से मिले और बैठक हुयी / इसी बैठक में भाग लेने के लिये समाजवादी पार्टी के श्री मुलायम सिह जी यादव भी आये /
यह बैठक शाम ६ बजे तक चली / बैठक समाप्त होने के बाद श्री मुलायम सिह ने कहा कि सरकार ने अन्ना को गिरफ्तार करके गलती की है, इसका खामियाजा इस सरकार को भुगतना पड़ेगा /
शाम ७ बजे अन्ना हजारे को दिल्ली पुलिस रिहा कर देती है / क्यों ?
हम केवल कयास और Guess लगा सकते है कि क्या क्या स्तिथियां बन सकती है, जब कम्युनिस्ट पार्टी के साथ सारा विपक्ष और श्री मुलायम सिह मिले होन्गे ?
पहला – देश की स्तिथि पर चर्चा और सबका यह कहना कि देश में emergency जैसे हालात हो गये है
दूसरा – कान्ग्रेस की सरकार को सहयोग दे रहे दलों की मानसिकता और उनके विचार
तीसरा – क्या हालात ऐसे बन रहे है जिससे कान्ग्रेस की सरकार अल्प मत में आ सकती है /
चौथा – कान्ग्रेस की सरकार यदि बनी रहती है तो सब ठीक है लेकिन परिस्तिथि वश यदि गिरती है तो इस स्तिथि में क्या किया जा सकता है ?
पान्चवा – भारतीय जनता पार्टी का कहना होगा कि अगर सरकार अल्प्मत में आती है तो वे सरकार नहीं बनायेन्गे क्योंकि कोई भी नेता नही चाहता कि सरकार गिरने का ठीकरा भाजपा के सिर फोड़ा जाये / वैसे भी उनको कोई समर्थन देने वाला नहीं होगा /
छठवां – इस स्तिथि में एक समीकरण यह होगा कि कम्युनिस्ट सामने आकर सरकार बनायें / लेकिन इनको समर्थन कौन देगा /
सातवां – ऐसे में श्री मुलायम सिह इस देश के प्रधान मन्त्री हो सकते है और कान्ग्रेस सरकार गिरने की दशा में आगे आ सकते है / क्योंकि उनकी छवि बहुत अच्छी नहीं, तो बहुत खराब भी नहीं है /
आठवां – श्री मुलायम सिह को भारतीय जनता पार्टी बाहर से समर्थन दे सकती है और सरकार में शामिल न होकर अगले बचे टर्म तक सरकार चलाने में मदद कर सकती है /
नवां – कम्युनिस्ट तथा शेष विपक्ष जिसमें तेलगू देशम, शिव सेना आदि शामिल होकर अपने अपने राज्यों में फिर से पैठ बना सकेन्गे, क्योंकि ये सब केन्द्र की सरकार में शामिल होन्गे /
दसवां – जाहिर है , उत्तर प्रदेश में चुनाव होने वाले है / सभी के निशाने पर बहन मायावती होन्गी / केन्द्र में जब श्री मुलायम सिह प्रधान मन्त्री होन्गे, तो बहन मायावती का क्या होगा ? यही हाल पश्चिम बन्गाल, आन्ध्र प्रदेश और महाराष्ट्र की सरकारों का होगा / भाजपा का भी फायदा होगा / कम्युनिस्टॊ की बल्ले बल्ले हो जायेगी और जाहिर है कु० ममता बनर्जी से हार की खुन्नस पश्चिम बन्गाल को भी न ले डूबे /
ग्यारहवां – मुलायम सरकार तो जन लोक पाल विधेयक पास करके जनता की वाह वाही तो लूटेगी ही, सभी पार्टियां अपने जनाधार में इजाफा करके देश की जनता की सहानुभूति भी बटोर ले जायेन्गी /
अन्ना हजारे अगर यह कह रहे हैं कि सरकार यदि ३० अगस्त २०११ तक जन लोक पाल बिल नहीं पास करेगी तो फिर सरकार अपने अस्तित्व के लिये भी सोचे ?
कान्ग्रेस की मौजूदा सरकार ने जल्दी ही कुछ नही किया तो मुझे लगता है कि कुछ तो होकर रहेगा, मुझे तो सारी गणित लगाने के बाद यही समझ में आता है /

शनिवार, 22 अक्टूबर 2011

आरएसएस: देश को चाहिए चरित्रवान नेता


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
इसे चाहे अण्णा आंदोलन का असर माना जाए या किसी दीर्घकालिक चिंतन का, लेकिन अभी तक व्यक्ति की बजाए राष्ट्र  को महत्वपूर्ण मानने वाला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अब इस नतीजे पर पहुंचा है कि  'देश को ईमानदार और चरित्रवान नायकों की जरूरत है' और 'शाखाओं के जरिए ऐसे नायकों की खोज की जाएगी.'
गोरखपुर में 14,15 और 16 अक्तूबर को हुई संघ की राष्ट्रीय कार्यकारी मंडल की बैठक इसलिए खास तौर पर याद की जाएगी कि पहली बार संघ प्रमुख मोहनराव मधुकरराव भागवत ने सार्वजनिक रूप से आह्‌वान किया कि 'संघ को सहानुभूति नहीं,  बल्कि स्वयंसेवकों की जरूरत है.'
राष्ट्रीय कार्यकारिणी मंडल की बैठक इस लिहाज से अहम मानी जाती है कि इसमें लिए गए फैसलों के आधार पर ही संघ पूरे वर्ष अपने कार्यक्रम, अभियान और आंदोलनों की रूपरेखा तय करता है. यह संयोग ही कहा जाएगा कि उनके प्रवास के दौरान अण्णा से संघ के रिश्तों और आंदोलन के 'श्रेय' को लेकर दिग्विजय सिंह, अरविंद केजरीवाल और खुद अण्णा के इतने बयान आए कि संघ को बार-बार इस बाबत अपनी स्थिति स्पष्ट करनी पड़ी.
विजयादशमी उत्सव के अवसर पर सार्वजनिक संबोधन में भागवत ने साफ कहा था कि संघ हर अच्छे काम का समर्थन करता है, इसीलिए अण्णा के आंदोलन को उसका समर्थन मिला. बाद में संघ के सर कार्यवाहक सुरेश भैयाजी जोशी ने पत्रकारों से बात करते हुए कांग्रेस के महासचिव (दिग्विजय) द्वारा षड्यंत्रपूर्वक उठाए गए विवाद पर अण्णा जैसे व्यक्ति के भी कुटिल राजनैतिक चाल से प्रभावित हो जाने पर अफसोस जताते हुए कहा कि संघ को अण्णा से कोई परहेज नहीं है पर यदि अण्णा को संघ से परहेज है तो इस बाबत उन्हीं से पूछा जाना चाहिए.
बहरहाल 39 प्रांतों से आए 450 शीर्ष पदाधिकारियों के तीन दिवसीय चिंतन के बाद पारित प्रस्तावों पर नजर डालें तो साफ संकव्त दिखते हैं कि आने वाले दिनों में संघ न सिर्फ अपने सांगठनिक ढांचे को समृद्ध बनाने के प्रयास तेज करेगा, बल्कि जनता के बीच आंदोलनों के जरिए अपनी सक्रियता में इजाफा भी करेगा.  इसके लिए संघ ने एक तरफ गंगा में बढ़ते प्रदूषण के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाने और स्वामी विवेकानंद की 150वीं जयंती के मौके पर देश और दुनिया में विविध कार्यक्रम आयोजित करने जैसे सांस्कृतिक प्रकल्प चुने हैं तो दूसरी तरफ केंद्र द्वारा लाए जा रहे सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा निवारण विधेयक के खिलाफ व्यापक जनांदोलन चलाने का भी फैसला किया है.
प्रस्ताव में इस विधेयक को 'समाज की एकता और अखंडता को तोड़ने वाला' बताते हुए कहा गया है कि इससे न कव्वल बहुसंख्यक और अल्पसंख्यकों में दूरी बढ़ेगी, बल्कि यह हिंदू समाज में भी अनुसूचित जाति और जनजाति में भेद बढ़ाएगा. इसके अलावा संघ राष्ट्रीय सुरक्षा के मसले पर 'सरकार की निष्क्रियता' पर भी आक्रामक रवैया अपना सकता है.
कार्यकारी मंडल में राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए प्रभावी रणनीतिक पहल पर पारित 5 पृष्ठों के प्रस्ताव में देश के चतुर्दिक मौजूद खतरों खासकर चीन से मिल रहीं चुनौतियों, सामरिक दृष्टि से अहम इलाकों में चल रही परियोजनाओं में उसकी घुसपैठ और 3जी तथा 4जी जैसी दूरसंचार प्रौद्योगिकी में चीनी उपकरणों के बढ़ते इस्तेमाल से पैदा हो सकने वाले खतरों पर विस्तार से चर्चा है. बैठक के बाद सर कार्यवाहक सुरेश जोशी ने ढांचागत सुरक्षा व्यवस्थाओं पर सरकार के सुस्त रवैए को खतरनाक मानते हुए कहा कि ''हमारी सेनाओं का मनोबल तो अच्छा है, लेकिन साधनों के अभाव से वह दुर्बल दिखे, यह चिंताजनक है.''
हालांकि संघ के जमावड़े में पूर्व प्रमुख सुदर्शन, सह सरकार्यवाह दत्तात्रय होसबले, राम माधव, सुरेश सोनी, रामजी लाल और विहिप के अशोक सिंघल, प्रवीण तोगड़िया के अलावा भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही और विनय कटियार समेत भाजपा के कई बड़े नेता शामिल हुए, मगर संघ ने भाजपा से जुड़े मसलों पर टिप्पणी करने के बजाए उसे उसका आंतरिक फैसला बताकर पल्ला झाड़ लिया. लेकिन भाजपा इस बैठक को संजीवनी की तरह मान रही है.


भारत माता की जय |
अभी भी संघ राष्ट्र को ही सर्वोपरि मानता है |संघ पर किसीका असर नहीं बरं संघ का ही असर, संघ का ही विचार है जो आज अन्ना जैसे लोगों के द्वारा कार्यान्वित हो रहा है.संघ तो सालों से व्यक्ति निर्माण की कार्य से लगा है. 

Malaria and the human body



Malaria and the human body, part 1: Danger cycle

1/10/02. By Kevin Marsh
Kevin Marsh examines the life cycle of the malaria parasite in the human body, and the body's response.
Malaria is a major threat to the health of thousands of millions of people throughout the tropics and subtropics. It causes hundreds of millions of episodes of disease and kills more than a million people a year, the majority of them children in sub-Saharan Africa.
Although four species of malaria parasite infect humans, severe disease and deaths are overwhelmingly due to a single species, Plasmodium falciparum. The development of new approaches to prevention and treatment depends on understanding exactly how the malaria parasite interacts with the human host and causes its damage.

In The Body

Malaria parasites are transmitted to humans by the bite of anopheline mosquitoes. After injection, the parasites (at this stage known as sporozoites) circulate for only a few minutes in the blood before finding their way into the host's liver cells. Here, they divide rapidly over the next week or so, a single parasite giving rise in that time to around 30 000 daughter parasites (or merozoites). During this period of frenetic division the host remains completely well.
After a week or so, the now distended liver cell bursts open, releasing the merozoites into the blood stream, where they can only survive if they rapidly attach to and enter host red blood cells. Now the parasite is in a protected environment, shielded from detection or attack by the host's immune system. Inside the red blood cell, the parasite again grows and divides – this time forming up to 32 daughter merozoites. After around 48 hours, the host red blood cell bursts releasing merozoites into the blood to repeat the whole cycle.
This repeated cycling of growth, release and reinvasion leads to an exponential explosion of parasites in the blood – unchecked the progeny from a single parasite in the liver could lead to the destruction of all the host's red blood cells within 12 and 14 days.
This exponential growth and destruction of red blood cells contributes to anaemia, one of the characteristic problems of Plasmodium falciparum malaria. When this develops rapidly, the inability to deliver sufficient oxygen to the body's vital organs is itself enough to explain many of the features of disease and to lead to the death of the host.

Dangerous Times

Two other aspects of the interactions between the host and the parasite also play key roles in leading to severe disease and death. The first is the host's immune response to the growing parasite. Although relatively protected while in the red blood cell, the parasite becomes detectable whenever it bursts out of red cells, releasing its own toxins and host cellular debris into the blood stream.
This initiates a barrage of responses from the host, including the mobilisation of protective cells and the release of chemical agents, known as cytokines, which both regulate the host's response and, in some cases, kill the parasites directly.
Any blunderbuss sort of response is difficult to control, and the cytokines that can kill parasites may also cause damage to host cells if present in excess. This is a precarious balance: too limited a response may allow the parasite to kill the host; too aggressive a response may itself kill the host. There is now clear evidence that, in some individuals, an excessive host response plays a role in the development of severe disease.
The other key aspect of the host–parasite interaction is the phenomenon of 'sequestration' or 'withdrawal' of infected red blood cells into small blood vessels of the body. While red blood cells containing young parasites can be found in the peripheral blood – and can readily be seen in blood samples taken from patients with falciparum malaria – the larger, more mature dividing parasites appear to be absent.
Instead, they are found in large numbers lining small blood vessels in many tissues of the body. The infected cell does not come to rest passively in such vessels: the parasite inserts molecules into the red blood cell surface that hook onto host receptor molecules found on the lining of blood vessels.
Quite why the mature stages of the parasite should be withdrawn is not clear. The presumption is that there is some advantage to the parasite, either by protecting it from passing through the spleen, where infected red blood cells might be recognised and removed, or by providing optimum conditions for the parasite to grow.
Whatever the case, the packing of the small blood vessels compromises blood flow and delivery of oxygen to tissues, and the tissues become damaged due to lack of oxygen.
In part 2 of Malaria and the human body, Kevin Marsh examines clinical problems, prevention and treatment

Malaria and the human body, part 2: Tackling illness

1/10/02. By Kevin Marsh
Kevin Marsh examines clinical problems of malaria, and issues of its prevention and treatment.
The life cycle of the malaria parasite in the human body is intimately tied to the clinical problems it produces (see part 1 of Malaria and the human body). These clinical problems can be predicted from these three main aspects of host–parasite interaction:
  • the destruction of the red blood cells
  • the activation of cytokines
  • the sequestration of mature parasites.
In most cases, malaria is a febrile illness with a wide range of symptoms that include headache, rigors, muscle pains, lassitude, and cough – most of which probably reflect activation of cytokines.
The episode is usually limited, either by the host's response or by treatment, but in a proportion of cases the disease progresses to become severe and life threatening.
Although complex, the clinical picture of severe malaria is dominated by three main problems: anaemia, respiratory distress and coma, and these can be seen as resulting from the interaction of the three main components of the host–parasite interaction discussed above.
Thus, severe anaemia may result from rapid parasite growth and red blood cell destruction (although the removal of uninfected red blood cells by an overenthusiastic immune system, and the suppression of the bone marrow response by cytokines, also play a role).
Reduced oxygen delivery to tissues caused by a combination of small vessel obstruction, and exacerbated by reduced oxygen-carrying capacity due to anaemia, leads to a profound metabolic acidosis (where the blood becomes too acidic). This in turn leads to respiratory distress, a compensatory mechanism by which the patient breathes harder to try to 'blow off' carbon dioxide to reduce the acidity.
The most well known and feared manifestation of severe malaria is cerebral malaria, in which the patient goes into coma and often has convulsions.
In some cases, coma seems to be the body's response to overwhelming metabolic disturbance, particularly the metabolic acidosis described above. But in other cases the general features described above are specifically focused in the brain, with massive packing of blood vessels by infected parasites, leading to a variety of local effects, including tissue damage, cytokine activation and other poorly understood cellular pathology.

Prevention And Treatment

The key to reducing malaria deaths is prevention of infection. Historically, emphasis was on reducing the numbers of mosquitoes by a combination of environmental hygiene and residual insecticide spraying. While still important in many settings, these approaches are often of limited use in widespread rural communities which bear the brunt of the malaria threat. Here, the current emphasis is on individual protection by sleeping under insecticide-impregnated bednets, an approach demonstrated to have major effects in reducing childhood mortality.
The prevention of mosquito biting is only ever partial, however, and in most circumstances the major barrier between malaria infection and death is the early use of antimalarial drugs as soon as the patient has fever. Here the major problem is the development of resistance to chloroquine, a cheap and effective drug.
There is a desperate need for the development of new, safe affordable antimalarials. Once severe malaria has developed, antimalarial drugs still have a role but just as important is rapid management of the problems discussed above: blood transfusion for anaemia, fluid therapy to correct acidosis and the treatment of convulsions to limit subsequent brain damage.
While malaria has been eradicated from some areas of the world, these were essentially regions where the balance between transmission and control was already precarious. There is no prospect of eradication with currently available measures in the core areas of malaria's range, where the dynamics of transmission massively favour the parasite.
In sub-Saharan Africa in particular, there will continue to be a race between the development of new approaches to control and the parasite's ability to evade them.
Currently the parasite has the upper hand. Central to attempts to reverse this are the search for novel antimalarial drugs and the development of vaccines.
But malaria is complex and successful, and all the easy options have been exhausted.
New approaches depend critically on developing a holistic view which integrates our understanding of malaria, from the most basic realities of life for those who are its victims to the most fundamental aspects of the parasite's biology, and it is here that the information from the genome project will play a critical role.
Professor Kevin Marsh is Director of the KEMRI-Wellcome Trust Research Programme, which is based in Kilifi and Nairobi, Kenya.
Page of 2; 2/9/04
[WTD023880] Malaria and the human body, part 2: Tackling illness.doc

Page of 2; 2/9/04
[WTD023879] Malaria and the human body, part 1: Danger cycle.doc