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खबर आई कि प्रणब मुखर्जी ने अपने नोट से चिदंबरम को कठघरे में ला खड़ा किया. इसके बाद एक और खबर आई कि यह नोट तो पीएमओ के कहने पर तैयार किया गया था. दर्जनों बैठकों और कई मंत्रालयों के विचार इस नोट में शामिल हैं. सवाल यह है कि क्या चिदंबरम पर निशाना साधने के लिए किसी ने किसी के कंधे का इस्तेमाल तो नहीं किया है? सवाल यह भी है कि कहीं निगाहें चिदंबरम पर और निशाना कहीं और तो नहीं है? आ़खिर इस पूरे मामले में पीएमओ की क्या भूमिका है? फिर पीएमओ और कैबिनेट के मुखिया के नाते इस पूरी लेटर डिप्लोमेसी के पीछे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की क्या भूमिका है? 2-जी के इस पूरे प्रकरण से एक बात सा़फ हो जाती है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अराजनीतिक समझने वाले लोगों को अब एक बार फिर से अपना राजनीतिक ज्ञान जांच लेना चाहिए. पीएमओ के आदेश पर यह नोट तैयार होता है. तो पीएमओ को यह आदेश किसने दिया होगा?
ज़ाहिर है, खुद प्रधानमंत्री ने. अब सवाल यह है कि सरकार और कैबिनेट के मुखिया होने के नाते क्या मनमोहन सिंह को यह बात नहीं पता थी कि इस तरह के नोट से उनके ही सहयोगियों पर सवाल उठेंगे और यह सब कुछ सरकार और कांग्रेस के लिए ठीक नहीं रहेगा तथा विपक्ष को बैठे-बैठाए एक और हथियार मिल जाएगा. ज़ाहिर है, जो आदमी 8 साल से इस देश का प्रधानमंत्री हो, उसे यह सब तो मालूम होगा ही. फिर भी पीएमओ ने यह आत्मघाती क़दम क्यों उठाया? स़िर्फ एक पत्र लीक होने से कांग्रेस को आज बैकफुट पर आना पड़ा है. कांग्रेस अध्यक्ष तय नहीं कर पा रही हैं कि इस पूरे प्रकरण का सटीक समाधान क्या हो सकता है और इस सबके बीच मनमोहन सिंह के पास खोने के लिए कुछ नहीं है. सर्वविदित तथ्य है कि प्रणब मुखर्जी प्रधानमंत्री बनना चाहते थे. इस इच्छा में कोई बुराई भी नहीं है, लेकिन प्रणब दा यह समझ चुके हैं कि उनके हाथ से यह मौका निकल चुका है. कांग्रेस के भीतर इस व़क्त मुक़ाबला स़िर्फ और स़िर्फ राहुल गांधी और मनमोहन सिंह के बीच है. यूपीए-2 का कार्यकाल 3 साल बचा हुआ है और मनमोहन सिंह के पास अभी सबसे बड़ा टास्क यही है कि वह किसी तरह ये तीन साल गुज़ार दें. उधर कांग्रेस का एक धड़ा तीन साल तक इंतजार के लिए तैयार नहीं है.
लेटर डिप्लोमेसी भी कमाल की चीज होती है.अच्छों-अच्छों की पोल खुल जाती है. हालत यह है कि चिदंबरम का भविष्य और सरकार की साख खतरे में है. बहरहाल, एक मुद्दा ऐसा है, जिस पर बात नहीं हो रही है और वह यह कि आ़खिर इस पूरे प्रकरण में पीएमओ यानी प्रधानमंत्री कार्यालय और खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की भूमिका क्या है? दरअसल, जब चिदंबरम प्रकरण ने जोर पकड़ा तो प्रणब मुखर्जी ने मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी को एक पत्र भेजकर बताया कि जिस नोट पर इतना बवाल मचा है, वह दरअसल पीएमओ यानी प्रधानमंत्री कार्यालय के आदेश पर तैयार किया गया और उसे कई मंत्रालयों ने मिलकर तैयार किया. पत्र में बताया गया कि वित्त मंत्रालय की ओर से 25 मार्च, 2011 को चिदंबरम के संबंध में जो नोट भेजा गया था, उसे पीएमओ, कैबिनेट सचिवालय और कानून, दूरसंचार एवं वित्त मंत्रालय ने मिलकर तैयार किया था.
इस दस्तावेज के मुताबिक़, वित्त मंत्रालय ने कहा है कि वित्तमंत्री रहते हुए पी चिदंबरम ने यदि 2-जी स्पेक्ट्रम की नीलामी के लिए जरूरी कोशिश की होती तो लाइसेंस वितरण के बदले सरकार को नुकसान न होता, उसे रोका जा सकता था. दरअसल, इस नोट में 2-जी स्पेक्ट्रम आवंटन से संबंधित विभिन्न मंत्रालयों के बीच बैठक और उनके बीच पत्रों के आदान-प्रदान का विस्तृत ब्योरा है. इस नोट को वित्त मंत्रालय, कैबिनेट सचिवालय, दूरसंचार मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारियों ने मिलकर तैयार किया है. प्रणब मुखर्जी के मुताबिक, यह नोट इसलिए तैयार किया गया था कि अगर 2-जी मामले में किसी विभाग के अधिकारी की गवाही हो तो उसमें कोई परिवर्तन न हो और सभी की गवाही एक जैसी हो. प्रणब मुखर्जी के मुताबिक़, नोट तैयार करने के पूरे घटनाक्रम पर कैबिनेट सचिवालय की निगरानी थी. पीएमओ के अधिकारी और पूर्व कैबिनेट सचिव के एम चंद्रशेखर भी नोट बनाने की इस पूरी प्रक्रिया में शामिल थे. इसके लिए इस साल जनवरी से लेकर मार्च तक करीब 22 बैठकें हुईं.
दिलचस्प तथ्य यह है कि नोट बनाने के लिए ज़रूरी सूचनाएं खुद पीएमओ के अधिकारियों ने मुहैय्या कराई थीं. दरअसल, पीएमओ 2-जी मामले की पूरी जानकारी चाहता था. इसलिए अलग-अलग मंत्रालयों को मिलकर यह नोट तैयार कराने के लिए कहा गया था. इस नोट में वित्त मंत्रालय की ओर से स़िर्फ 12 पैराग्राफ की सूचनाएं ही उपलब्ध कराई गई थीं और 14 पैराग्राफ विभिन्न मंत्रालयों की ओर से. अंत में 35 पैराग्राफ का नोट तैयार हुआ, जिसे कैबिनेट सचिवालय ने वित्त मंत्रालय की सहमति और हस्ताक्षर के लिए प्रणब मुखर्जी के पास भेजा. हालांकि, प्रणब मुखर्जी ने इस पर अपनी सहमति देने से मना कर दिया और अंत में यह नोट बिना हस्ताक्षर के पीएमओ के पास गया. सबसे बड़ी बात यह कि अंत में पीएमओ से ही यह नोट आरटीआई के जरिए बाहर भी आया. इसी नोट के ज़रिए पी चिदंबरम का नाम 2-जी घोटाले में आ गया और दिल्ली का राजनीतिक पारा अचानक काफी बढ़ गया. अनुभवी प्रणब मुखर्जी के एक पत्र ने कांग्रेस से लेकर सरकार तक की मुश्किलें बढ़ा दीं. दूसरी ओर इस पत्र के आधार पर सुप्रीम कोर्ट में सुब्रह्मण्यम स्वामी ने एक याचिका भी डाली है, जिसमें 2-जी घोटाले में चिदंबरम की भूमिका की जांच कराने की मांग की गई है. सुब्रह्मण्यम स्वामी 2-जी घोटाले में याचिकाकर्ता हैं. उन्होंने वित्त मंत्रालय की ओर से पीएमओ को लिखी चिट्ठी सुप्रीम कोर्ट में पेश की है. उनका आरोप है कि अगर तत्कालीन वित्त मंत्री चिदंबरम चाहते तो 2-जी घोटाला न होता. याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है.
बहरहाल, कोर्ट से क्या आदेश आता है और चिदंबरम का भविष्य क्या होगा, यह तय करने का व़क्त अभी नहीं है, लेकिन कांग्रेस को मिशन 2014 या उससे पहले, यदि मध्यावधि चुनाव संभव हुआ, की तैयारी का़फी सोच-समझ कर करनी होगी. 2-जी के बहाने यह लड़ाई अब कांग्रेस के भीतर भी चरम पर पहुंच गई है. मनमोहन सिंह अब स़िर्फ अर्थशास्त्री नहीं रहे, वह एक परिपक्व राजनीतिज्ञ भी बन चुके हैं. ऐन मौके पर अगर फिर से कोई नया खेल हुआ तो कांग्रेस के भविष्य का भविष्य भी अनिश्चित हो सकता है.
तुरुप का पत्ता
सवाल यह है कि इस पूरे मामले में तुरुप का पत्ता किसके पास है? प्रणब मुखर्जी, प्रधानमंत्री या सुब्रह्मण्यम स्वामी के पास, जिन्होंने सूचना के अधिकार के तहत प्रणब मुखर्जी का पत्र हासिल किया था. सुब्रह्मण्यम स्वामी और मनमोहन सिंह बहुत गहरे दोस्त हैं. जब चंद्रशेखर जी प्रधानमंत्री थे, तब सुब्रह्मण्यम स्वामी उस सरकार में मंत्री थे और मनमोहन सिंह उस सरकार में तत्कालीन प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार थे. उन्हें यह नहीं मालूम कि सुब्रह्मण्यम स्वामी दोधारी तलवार हैं. सुब्रह्मण्यम स्वामी कांग्रेस के ऊपर भी वार करेंगे और करुणानिधि के लोगों पर भी वार करेंगे. सुब्रह्मण्यम स्वामी एक ऐसे राजनेता हैं, जिन्होंने अकेले खड़े होकर 2-जी स्पेक्ट्रम की लड़ाई लड़ी. तो क्या तुरुप का पत्ता प्रधानमंत्री कार्यालय से निकल कर सुब्रह्मण्यम स्वामी के पास आ गया है? एक और संस्था है, जिसके निर्णय से कुछ भी पलट सकता है.
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