गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के सदभावना मिशन के तहत जारी उपवास की समाप्ति पर आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित विभिन्न सम्प्रदायो के धर्म गुरुओं के बीच निकवर्ती गांव पिराना की दरगाह सं आये मौलाना सैयद इमाम शाही ने जब नरेन्द्र मोदी के सिर टोपी पहनानी चाही तो उसे मोदी ने नम्रता सहित इमाम शाही को वापस लौटा दी तथा उनके द्वारा लाये शॉल को आदर सहित ओढ़ लिया।
बस यहीं से राजनीतिक गलियारों में सियासत की कहानी शुरू हो गई। इस हालात ने सूफी परम्परा व इस्लाम का अपमान तक कह डाला तो किसी ने इसे मोदी के असली चेहरा सामने आने की बात कह डाली। अभी तो ये कहानी शुरू हुई है जहां शाही इमाम की टोपी सियासत के बीच पूरी तरह से उलझती नजर अने लगी है। इस टोपी को हवा में और उछालने की कोशिश जारी रहेगी जहां मुद्दों से जुड़ी राजनीतिक परिस्थितियां गरमाई जा सके एवं समय आने पर इसे भुनाया जा सके। नरेन्द्र मोदी ने जाने में या अनजाने में इमाम की टोपी पहनने से इंकार कर फिलहाल इस तरह के परिवेश अपने विरुद्ध खड़ा तो कर ही लिया है जहां उनके शुभचिंतक मोदी में देश के भावी प्रधानमंत्री का सपना देखने लगे थे। आने वाले समय में इमाम की टोपी इस तरह के हालात को कौन सा रंग दे पायेगी यह तो भावी इतिहास के पन्नों में कैद होगा, परन्तु सफाई देने के वावयुद भी मोदी के मार्ग में रोड़े जरूर अटकेंगे जिसे इंकार नहीं किया जा सकता।
जब कि सदभावना मिशन उपवास उपरान्त नरेन्द्र मोदी ने सभी धर्मो के धर्मगुरूओं से निंबू पानी पीकर उपवास तोड़ा तथा इमाम की शॉल ओढ़कर सदभावना की मिशाल कायम करने की पूरी कोशिश की । पर इमाम की टोपी न पहनने के पीछे मोदी के मन में क्या भवना रही होगी , ये तो अच्छी तरह से मोदी ही जानते होंगे। शायद टोपी पहनने के बाद ऊ. प्र. के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम की तरह इनपर भी मुल्ला होने का आरोप न लग जाय जो भविष्य में मोदी के भावी राजनीति को प्रभावित करे, ऐसा मन में कहीं भय हो। पर टोपी न पहनकर भी आरोप के घेरे से वे बच नहीं सके तथा इमाम को नराजगी का अवसर देकर विरोधियों को बोलने एवं लाभ उठाने का पूरा मौका दे डाला।
वैसे नरेन्द्र मोदी कुशल एवं प्रबुद्ध राजनीतिज्ञ है। जो आज अपने बलबूते पर दल के भीतर विरोधाभास होने के उपरान्त भी विकास के आधार पर गुजरात में एकछत्र राज कायम रखने में सफल हुए है। जिसके आधार पर देश के भावी प्रधानमंत्री के रुप में उनकी गणना होने लगी है। आज देश भर में मोदी के प्रशंसकों की संख्या में निरन्तर वृद्धि दिखाई दे रही है । इस तरह के लोग कभी ये नहीं चाहते कि विकास पुरुष के रूप में ख्याति पा चुके मोदी इमाम की टोपी से उभरते प्रतिकूल परिवेश का शिकार हो। इस संदर्भ में बचाने की पूरी कोशिश भी जारी है। कुछ लोगों की राय यह भी है कि सदभावना मिशन के तहत मोदी को सीधे तौर पर इमाम की टोपी पहनने से इंकार नहीं करना चाहिए, बल्कि एक बार सिर पर टोपी रख आदर सहित अपने पास रख लेना चाहिए। कुछ लोगों की यह भी राय है कि मोदी भले टोपी नहीं पहनते, लौटाने के वजाय अपने पास ही रख लेते तो ज्यादा बेहतर होता। इस तरह की राय देने वालें भी कहीं न कहीं मोदी के शुभचिंतकों में शामिल हैं। जब तीर कमान से निकल चुका हो तो इस तरह की राय का कोई फायदा नही। जो हालात उभरेंगे, मोदी के भविष्य को तय करेंगे।
जब जब भी देश में इस तरह के हालात उभरे है, सियासती गलियारों में चर्चा का महौल गर्म रहा है। मुद्दों की राजनीति होती रही है। अब देश की जनता को तय करना है कि इस तरह के सियासती हवाओं को कौन सा रूख दें जो राष्ट्रहित में लाभकारी हो सकें एवं देश को कमजोर बनाने वाली ताकतों को नकाम साबित कर सकें।
-भरत मिश्र प्राची
नरेन्द्र मोदीजी ने मौलाना साब के हाथों से टोपी न पहनने से खुद को धर्मनिरपेक्ष्य कहलाने वाले छद्मधर्मनिरापेक्ष्य वादिओं को मौका मिलगया कहने को. ये अवसरवादी नेता अवसर खोजते रहते हैं कि कब मौका मिल जाये धर्मनिरपेक्ष्यता की प्रमाण देने को. टोपी पहनने से कोई धर्म निरपेक्ष्य नहीं बन जाता.कार्य शैली से खुद की धर्म निरपेक्ष्यता की प्रमाण मिलता है न कि टोपी पहेनने से.इन धर्म निरपेक्ष्य वादिओं से एक सवाल, क्या उनकी अपनी किसी कार्यक्रम में राम नाम लिखा हुआ या गायत्री मन्त्र लिखा हुआ शाल या तुलसी कि माला किसी मुल्ला या मौलवी साब के गले में डाल सकते हैं ? अगर ये छद्म धर्मनिरपेक्ष्य वादी असली बाप का बेटा है तो ये काम करके दिखाएँ तब मैं इनका जूता साफ़ करूँगा. हाय रे धर्म निर्पेक्ष्यता के नमूना !!!!
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