आज देश की तथाकथीत धर्मनिरपेक्ष्य वोट वादी नेता खुद को धर्मनिरपेक्ष्य दर्शाने के लिए क्या क्या कहते हैं और करते हैं ये सोचने की बात है. पहले तो ये लोग ईद और मह्र्रुम में उनके गले मिलते थे वो भी उनकी जैसे टोपी पहन कर और उनके इफ्तार पार्टी में जाते थे यहाँ तक तो ठीक था, फिर अगर किसी जगह पर हिन्दुओं के साथ ख्रिस्तियन और मुस्लिम लोगों का दंगा हो जाए तो ये लोग हिन्दुओं को दोषी ठहराते थे यह भी ठीक था, नमाज पढने मस्जीद या प्रयेर करने चर्च भी जाते थे यहाँ तक भी ठीक था.लेकिन वोट के लिए इतने निचे गिर गए की कहने लगे मंदिरों में अहिंदुओं को भी प्रवेश करना चाहिए क्या ये सही है ?
ओडिशा में बीजू जनता दल का तथा कथित एक सांसद प्यारीमोहन महापात्र का यह बयान है कि " जगन्नाथ पूरी श्री मंदिर में पर्यटन की विकाश के लिए अहिंदुओं को भी प्रवेश मिलना चाहिए जिससे सरकार की खजाने में बृद्धि होगी".
ये कहाँ तक सही है कि मंदिरों में अहिंदुओं को प्रवेश करने की अनुमति मिलें ?
क्या वाटिकन में ख्रिस्तान लोगों के अलावा दूसरों को प्रवेश की अनुमति है ?
क्या मक्का में मुसलमानों के अलावा दुसरे लोगों को प्रवेश की अनुमति है ?
क्या धर्मनिरपेक्ष्य वादी नेता जैसे हिन्दुओं को कह रहे हैं वैसे मुसलमान और ख्रिस्तान लोगों को सलाह दे पाएंगे कि उनकी मक्का कि मस्जीद या वाटिकन कि चर्च में हिन्दुओं को भी प्रवेश की अनुमति मिलना चाहिए ?
क्या श्री जगन्नाथ भगवान की मंदिर एक तीर्थ स्थान है या पर्यटन स्थान है ?
क्या बिश्व के चारों और से यहाँ श्री जगन्नाथ भगवान् के भक्त भगवान् को दर्शन करने आते हैं या घुमने मजा करने आते हैं ?
करोड़ों लोगों की आस्था और भावना के साथ खिलवाड़ करके धर्मनिरपेक्ष्य नहीं बना जाता.
दूसरों की धार्मिक भावना को ठेश पहुंचा कर कोई धर्मनिरपेक्ष्य नहीं बनता.
स्वार्थ और सत्ता के लिए धर्मनिरपेक्ष्य बनने की जो दिखावा करता है जो लोगों से छल करता रहता है उसकी जिंदगी कुत्ते की समान है.चाहे उसकी गले में जितना भी दामी पट्टा क्यूँ न बंधा हो कुत्ता आखिर कुत्ता ही होता है.
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