शनिवार, 11 जून 2011

देश तरक्की कर रहा है,बेचारा गरीब ठग जाता है.














देश तरक्की कर रहा है. बिकशित  देशों की गिनती में पहुँच गया है, देश की तरक्की के लिये सरकार सदा सचेतन है,सरकार गरीबों के लिये काम कर रहे हैं. देश से गरीबी हट रहा है,ये सब हम नहीं कहते. ये सब तो सरकार कह रही है जिसका नारा है सरकार का हाथ गरीबों के साथ.फिर भी देश की जनता भूख मरी से जूझ रहे हैं, भूख मरी से मर  रहा है.कभी किसी गाँव में जाके देखिये क्या बच्चे  क्या जवान क्या बृद्ध भूख से हा हा कार कर रहे हैं,भूख से मर रहे हैं,उनका शरीर  कालेजों के बिज्ञानागार में दिखाने के लिये रखने लायक बन गया है. फिर भी सरकार कह रहे हैं की मेरा देश महान है.सरकार में बैठे हुये लोग गरीबों के लिये कभी दिल से कुछ भी किये हैं ? पूछिए उसी जनता से जो आप की झूठे आश्वासन से चिकनी बातों में आकर आप के हाथों में देश की बागडोर सम्हाल ने के लिये अधिकार दिया है. सोचा था आप सिंहाशन पर बैठ कर शायद उसके लिये ऐसा कुछ करेंगे जिससे शायद उसको दिन में दो बार भर पेट खाने को मील जायेगा.घर जो दिन में सूरज रात को चन्द्रमा और तारे दीखते हैं वो रहने लायक बन  जयेगा उसके बच्चे पढने लिखने लायक बन जायेंगे. पढ़ लिख कर शायद कही किसी जगह पर नौकरी में लग जायेंगे तो उसका दुःख दूर हो जायेगा.लेकिन गरीबों का साथ बाला हाथ, निर्वाचन के समय गरीबों के पीठ पर रेंगने बाला हाथ में सिंहासन की बागडोर आते ही गरीबों मुह पर कश के ऐसा तमाचा मारता है कि बेचारा गरीब त्राही त्राही करने लगता है. कहे तो किसे कहे रोये तो किसके आगे रोये , फरियाद करे तो किसे करें.दुखड़ा बताये तो किसको बताएं, सुनने बाला कोई नहीं.बेचारा बेवकूफ गरीब इंतजार करता है और सोचता है कि ठीक है अगले निर्वाचन में इसको सबक सिखायेंगे. पांच साल का लम्बा इन्तजार ख़तम होने को आते ही फिर वो ही मारने बाला हाथ सहर सहर, गाँव गाँव और घर घर घूमता है पीठ थपथपा के फिर से चिकनी बातों से गरीबों को उलझाते हुये. बेचारा गरीब फिर से फँस जाता है.फिर से वोही कार्य का पुनराब्रिती होता  है जो पहले हुआ था. बेचारा गरीब ठग जाता है.     

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