शनिवार, 18 जून 2011

कूटनीति

जब धृतराष्ट्र के मन में चिंता होने लगी कि यदि युद्ध हुआ तो पांडव अधिक पराक्रमी होने के कारण जीत जायेंगे.इससे राजपाट जा सकता है.अत: कुछ न कुछ प्रयत्न करना चाहिए.जो लोग कपट के माध्यम से जोड़ तोड़ से राज्य हासिल करते हैं और पाशवी सकती के माध्यम से उसे चलते हैं, उनके मन में सदा यह आशंका बनी  रहती है कि कहीं समाज विद्रोह में खड़ा न हो जाय. फिर वो प्रयास करते हैं कि किसी प्रकार से लोगों के मन को जीता जाय, उनकी हिम्मत ही समाप्त कि जाय.उनकी आकंक्ष्याओं को समाप्त किया जाय, उनकी हिम्मत ही समाप्त   की जाय.इसी भाव से धृतराष्ट्र ने संजय को पांडवों की और भेजा. संजय पांडवों की सेना में आया और धृतराष्ट्र का सन्देश  बताने लगा-" धृतराष्ट्र हमेशा ही आपके कल्याण की कामना करते हैं.आप की ही चिंता में धुलते रहते हैं. दुर्याधन के विषय में वो बड़े दुखी है. दुर्याधन उनकी एक भी बात नहीं मानता.उनका कहना है की इस युद्ध से आप को क्या मिलनेवाला है ? भाई-भाई आपस में लड़ने से क्या लाभ ? मान लो, यदि आप जीत गए तो भी भाई को मार कर ही तो जीतोगे. जीत कर क्या मिलेगा?राज्य ! राज्य तो क्ष्यणभंगुर है.ऐसे क्षणभंगुर राज्य के लिए क्या आप अपने ही लोगों को मारेंगे ? इतना बड़ा पाप कर्म करेंगे ? आप जैसे सुसंस्कृत  और सात्विक भाइयों के साथ युद्ध करना शोभा नहीं देता. अंधा भी भीख मांग कर अपने धर्म की रक्ष्या कर सकता है. युद्ध करेंगे तो दुनिया में आप की बड़ी बदनामी होगी और आप का परलोक भी बिगड़ जायेगा.लोक और परलोक सुधारना है तो आप इस युद्ध से बिरत हो जाइए.

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