
हिमालयं समारम्भ्य् यावत् इन्दु सरोवरं
तददैव निर्मितं देशं हिन्दुस्थान प्रचक्षते
हिन्दुस्थान इसका भौगलिक नाम है। अपने स्थान और विश्व के भरण पोषण की सामर्थ्य के कारण, अपनी सभ्यता और संस्कृति के कारण, अपने प्रभाव और उत्कर्ष के कारण इसका नाम हुआ भारत (भ +आ +र +त) ज्ञान मे रत तथा ज्ञान का प्रकाश बिखरने वाला, विश्व को भरण पोषण करने वाला भारत। इस देश के महान् पुत्र हुए भरत और उनकी "माँ" के रूप में यह धरती हुई "भारत माता" ।
इस देश की सत्ता तो बदलती रही है लेकिन देश की स्वरुप नहीं बदला। समाज नहीं बदला। सम्बन्ध नहीं बदला। सदैव एक इकाई रहा। इसीलिए आज भी इसी एक इकाई की प्राकृतिक प्रवाह शक्ति सीमाओं को नकारती हुई गतिवान है। अवरोध जो कृत्रिम है, किसी भी क्षण ध्वस्त हो सकती है। इकाई की चेतना जीवन्त है और सक्रीय है।
भारत सोने की चिड़िया कहा जाता था। सम्पन्नता का घर था। लूटने के बाद भी आज कंगाल नहीं है। हमारी समझ समझ अपनी आँख नहीं रखती। विदेश की आँख से देखना उसे भाता है। अपनी नहीं विदेश की क्रूर दृष्टि उसे अच्छी लगती है। इसीलिए अपनी सुन्दरता और सम्पन्नता नहीं, विदेश की विपन्नता और विकृति उसे भाति है। पूछिए इन विद्वानों से, क्या हिमाद्रि की बर्फीली चट्टानों पर खोज की चरण पहुंचे हैं ? क्या सागर के स्रोतों तक दृष्टि दौड़ाई है ? क्या मैदानों में पर्तों के निचे झांका है ? क्या मध्यप्रदेश, छातीशगड, ओडिशा,बिहार और आँध्रप्रदेश के जंगली कक्षेत्रो पर पसीने की बुँदे बही है ? क्या राजस्थान की बालू तले गहरे पैठने का प्रयास किया है ? यदि नहीं तो क्यूँ ? भारत मिटटी के तेल पर तैर रहा है। गंगा और यमुना से भी बड़ा मीठे जल का प्रवाह धरा के निचे बह रहा है। औषोधियो और खनिज का भण्डार है हिमालय। अपरिमित जल शक्ति, ज्वार और लहरों के रूप में बिद्यमान है। सौर की कभी न समाप्त होने वाली ऊर्जा है। अणु शक्ति का, यूरोनियम से लेकर थोरियम तक विशाल भण्डार है। खनिज का अपार भण्डार है। खादयान्न और वस्त्र का कोई अभाव नहीं। गेहूं हो या चावल, गन्ना हो या चाय, कपास हो या जुट, भारत विश्व में किससे पीछे है ? बस हमारी बुद्धि, हमारा श्रम, हमारी समझ और और हमारा साहस, हमारी हीन भावना और परानुकरण, हमारे हाथ और पैर पंगु बना देते हैं। हम धनि देश के निर्धनवासी बन कर रह गए हैं।