बुधवार, 12 सितंबर 2012

देर आई दुरुस्त आया ---- लौट के बुद्धू घर को आया .....


महिला काडरों के प्राइवेट पार्ट्स शेव और बिना कपड़ों के स्‍नान करने का क्रांति से क्‍या वास्‍ता?



महिला काडरों के प्राइवेट पार्ट्स शेव और बिना कपड़ों के स्‍नान करने का क्रांति से क्‍या वास्‍ता?महिला काडरों के प्राइवेट पार्ट्स शेव और बिना कपड़ों के स्‍नान करने का क्रांति से क्‍या वास्‍ता?







शोषितों, वंचितों की लड़ाई लड़ने का दावा करने वाले नक्‍सलियों में आजकल अंदरूनी घमासान मचा है। हाल में पार्टी से निकाले गए माओवादी कमांडर सब्‍यसाची पांडा ने काफी बगावती तेवर दिखाए थे। वह अब बिल्‍कुल अकेला है। ओडिशा में नक्‍सल आंदोलन के 'पोस्‍टर ब्‍वॉय' के तौर पर मशहूर 43 साल का पांडा अब खुद को 'ओल्‍ड डॉग' की तरह मानता है जिसका उसकी पार्टी नामोनिशान मिटा देनी चाहती है। ओडिशा का सबसे अहम नक्सली नेता माने जाने वाले पांडा को 'चे ग्वेरा' कहलाता था।
पांडा ने एक खत लिख कर कई सवाल उठाए थे। उसने नक्‍सलियों के प्राइवेट पार्ट्स 'क्‍लीन शेव' करने के चलन पर जोर देने की परंपरा को भी गलत ठहराया है। उसका कहना है कि यह तेलुगु कैडरों में आम बात है और महिला काडरों को अक्‍सर ऐसा करने की सलाह दी जाती है। उसने लिखा है, 'महिला काडरों को बिना कपड़े के स्‍नान करने को भी कहा जाता है। मुझे समझ नहीं आता कि क्रांति का ऐसे बकवास सिद्धांतों से क्‍या ताल्‍लुक है?'
पार्टी द्वारा निकाले जाने की घोषणा से कुछ दिन पहले पांडा ने लंबी-चौड़ी चिट्ठी लिखी थी। इसे उसका इस्‍तीफा कहा जा सकता है। दरअसल, पांडा ने दो खत लिखे थे। तीन पन्‍नों के पहले खत में उसने आम तौर पर पार्टी के कॉमरेड्स को संबोधित किया था। हालांकि, उसका दूसरा खत काफी बड़ा था। 16 पन्‍नों की चिट्ठी, माओवादियों के सुप्रीम कमांडर गणपति और जेल में बंद दो सीनियर नेताओं नारायण सान्‍याल (विजय दादा) और अमिताभ बागची (सुमित दादा) को संबोधित करते हुए लिखी गई थी। पांडा की चिट्ठी गणपति को मिल गई, लेकिन नारायण सान्‍याल और अमिताभ बागची को सब्‍यसाची का संदेश नहीं मिल सका। माना जा रहा है कि पांडा की यह चिट्ठी लेकर माओवादी नेताओं के पास जा रहे संदेशवाहक प्रभाकर को कोलकाता में सुरक्षा एजेंसियों ने पकड़ लिया। माना जाता है कि पांडा की इन चिट्ठियों की वजह से ही उसे पार्टी से बाहर का रास्‍ता दिखा दिया गया।

'ओपन' मैगजीन ने पांडा के खत अपने पास होने का दावा किया है। मैगजीन ने कहा है कि दुखी मन से लिखे गए इस खत में पांडा ने सीपीआई (माओवादी) के आलाकमान की गतिविधियों पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। खत में पांडा ने ऐसे सनसनीखेज खुलासे किए हैं जिनसे माओवादी नेतृत्‍व में फूट पड़ सकती है। पांडा ने कहा है कि माओवादी नेता खुद को मालिक समझ बैठे हैं और कैडर उनकी गलतियों का विरोध करने की हिम्‍मत नहीं जुटा पाते हैं। पांडा ने नक्सल नेतृत्व पर अकारण हिंसा फैलाने का आरोप लगाया है।

पांडा ने अपने खत में कई जगहों पर सेंट्रल कमेटी के मेंबर मनोज उर्फ भास्‍कर और माओवादियों के सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के प्रभारी बासवराज के साथ बार-बार हुई झड़पों का जिक्र किया है। भास्‍कर के बयान का जिक्र करते हुए पांडा ने लिखा है, 'हम कम्युनिस्ट‍ पार्टी में किसी गलती के लिए पार्टी के सदस्‍य को सस्‍पेंड कर सकते हैं और जरूरत पड़ी तो उसकी हत्‍या भी की जा सकती है।' पांडा ने लिखा है कि किस तरह भास्‍कर ने किशनजी को भी नहीं बख्‍शा। भास्‍कर के हवाले से उसने कहा कि किशनजी कुछ नहीं करते हैं। एक भी पुलिसवाले की हत्‍या नहीं करते, केवल बयान जारी करते रहते हैं। पांडा ने सवालिया लहजे में कहा, 'क्‍या किसी क्रांतिकारी का काम केवल पुलिसवालों की हत्‍या करना ही रह गया है।'
पांडा ने 'बेवजह किसी खास वर्ग के विध्‍वंस' के खिलाफ भी जमकर अपनी भड़ास निकाली है। उसने लिखा है, 'किसी पर मुखबिर होने का ठप्‍पा लगाकर उसे मारना-पीटना और जला देना ही समस्‍या का हल नहीं है।' पांडा ने संबलपुर के पांच-छह गांववालों, जिन्‍हें 2004 में मुखबिर होने के शक में मार डाला गया था, का उदाहरण देते हुए कहा, 'केवल मैंने इसका विरोध किया था। भास्‍कर ने गलत सूचना दी कि संबलपुर में सलवा जुडूम का अभियान चल रहा था।

सब्यसाची पांडा भाकपा (माओवादी) राज्य (ओडिशा) संगठन का सचिव था। मार्च महीने में दो इतालवी नागरिकों के अपहरण के पीछे इसी का हाथ था। अपहृतों की रिहाई के बदले पांडा ने अपनी पत्‍नी मिली को जेल से छोड़े जाने की मांग की थी। उसे बाद में जमानत पर छोड़ दिया गया था। सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक पांडा नक्सली संगठन में आंध्र प्रदेश कैडर के नक्सलियों के दबदबे से परेशान था और ओडिशा में पांडा की बढ़ती ताकत से आंध्र के नक्सली नेता खुश नहीं थे। यही कारण है कि पांडा को अब तक सेंट्रल कमेटी या पोलित ब्यूरो में जगह नहीं दी गई थी। सेंट्रल कमेटी और पोलित ब्यूरो सीपीआई (एम) की सर्वोच्च संस्था है, जो आंदोलन की मूल दिशा तय करती है।

 देर आई दुरुस्त आया ---- लौट के बुद्धू घर को आया
















































सोमवार, 10 सितंबर 2012

जन गण मन अधिनायक जय हे

 

जन गण मन अधिनायक जय हे
भारत भाग्य विधाता
पंजाब सिन्ध गुजरात मराठा
द्राविड़ उत्कल बंग
विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा
उच्छल जलधि तरंग
तव शुभ नामे जागे
तव शुभ आशिष मागे
गाहे तव जय गाथा
जन गण मंगल दायक जय हे
भारत भाग्य विधाता
जय हे जय हे जय हे
जय जय जय जय हे
अहरह तव आह्वान प्रचारित
शुनि तव उदार वाणी
हिन्दु बौद्ध शिख जैन
पारसिक मुसलमान खृष्टानी
पूरब पश्चिम आशे
तव सिंहासन पाशे
प्रेमहार हय गाँथा
जन गण ऐक्य विधायक जय हे
भारत भाग्य विधाता
जय हे जय हे जय हे
जय जय जय जय हे
अहरह: निरन्तर; तव: तुम्हारा
शुनि: सुनकर


आशे: आते हैं
पाशे: पास में
हय गाँथा: गुँथता है
ऐक्य: एकता
पतन-अभ्युदय-बन्धुर-पंथा
युगयुग धावित यात्री,
हे चिर-सारथी,
तव रथचक्रे मुखरित पथ दिन-रात्रि
दारुण विप्लव-माझे
तव शंखध्वनि बाजे,
संकट-दुख-त्राता,
जन-गण-पथ-परिचायक जय हे
भारत-भाग्य-विधाता,
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे
अभ्युदय: उत्थान; बन्धुर: मित्र का
धावित: दौड़ते हैं


माझे: बीच में

त्राता: जो मुक्ति दिलाए
परिचायक: जो परिचय कराता है
घोर-तिमिर-घन-निविड़-निशीथे
पीड़ित मुर्च्छित-देशे
जाग्रत छिल तव अविचल मंगल
नत-नयने अनिमेष
दुःस्वप्ने आतंके
रक्षा करिले अंके
स्नेहमयी तुमि माता,
जन-गण-दुखत्रायक जय हे
भारत-भाग्य-विधाता,
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे
निविड़: घोंसला

छिल: था
अनिमेष: अपलक

करिले: किया; अंके: गोद में
रात्रि प्रभातिल उदिल रविछवि
पूर्व-उदय-गिरि-भाले,
गाहे विहन्गम, पुण्य समीरण
नव-जीवन-रस ढाले,
तव करुणारुण-रागे
निद्रित भारत जागे
तव चरणे नत माथा,
जय जय जय हे, जय राजेश्वर,
भारत-भाग्य-विधाता,
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे 
- रवीन्द्रनाथ ठाकुर
प्रभातिल: प्रभात में बदला; उदिल: उदय हुआ
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