बुधवार, 31 अगस्त 2011

सरकारी लोकपाल और जन लोकपाल के बीच तुलना

  नई दिल्ली. देश में जन लोकपाल बिल को कानून बनाने की जबर्दस्त मांग हो रही है। सरकारी लोकपाल और जन लोकपाल के बीच तुलना भी हो रही है। अन्ना जन लोकपाल बिल को कानून बनाने को लेकर ही अनशन पड़े हैं। अन्‍ना जो बिल पारित कराना चाहते हैं, उसे सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस संतोष हेगड़े, वकील प्रशांत भूषण और आरटीआई कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल ने मिलकर तैयार किया है। आइए जानते हैं कि यह बिल पास हो गया तो क्‍या होगा...     

- भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए केंद्र में लोकपाल और राज्य में लोकायुक्तों की नियुक्ति होगी।    
- लोकपाल और लोकायुक्‍तों के कामकाज में सरकार और नौकरशाही का कोई दखल नहीं होगा।    
- भ्रष्टाचार की कोई शिकायत मिलने पर लोकपाल और लोकायुक्तों को साल भर में जांच पूरी करनी होगी।    
- अगले एक साल में आरोपियों के खिलाफ केस चलाकर कानूनी प्रक्रिया पूरी की जाएगी और दोषियों को सजा मिलेगी।    
- भ्रष्टाचार का दोषी पाए जाने वालों से नुकसान की भरपाई भी कराई जाएगी।    
- अगर कोई भी अफसर वक्त पर काम नहीं करता जैसे राशन कार्ड या ड्राइविंग लाइसेंस नहीं बनाता तो उस पर जुर्माना लगाया जाएगा। - 11 सदस्यों की एक कमेटी लोकपाल और लोकायुक्त की नियुक्ति करेगी।    
- लोकपाल और लोकायुक्तों के खिलाफ आरोप लगने पर भी फौरन जांच होगी।    
- जन लोकपाल बिल में सीवीसी और सीबीआई के एंटी करप्शन डिपार्टमेंट को आपस में मिलाया जाएगा।  
- भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले को पूरी सुरक्षा दी जाएगी।  
सरकारी लोकपाल और जन लोकपाल अहम मुद्दों पर क्या कहते हैं आइए देखें: 
क्या प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाया जाना चाहिए?
टीम अन्ना का नजरिया

प्रधानमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत पर लोकपाल की 7 सदस्य बेंच शिकायत की सुनवाई करेगी। अगर पहली नज़र में मामले में सुबूत सामने आते हैं तो लोकपाल इसकी जांच करेगा। अगर पहली नज़र में सुबूत नहीं मिले तो शिकायत करने वाले को सज़ा मिलेगी।
सरकार का नज़रियाप्रधानमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत के बाद सीबीआई इसकी जांच करेगी और गलत पाए जाने पर एफआईआर दर्ज की जाएगी। यहां गौर करने वाली बात है कि सीबीआई सीधे तौर पर प्रधानमंत्री के तहत आती है। 


क्या निचली नौकरशाही को शामिल किया जाए? 
टीम अन्ना का नजरिया हां, लोकसेवक माने जाने वाले सभी सरकारी अधिकारी इसके तहत आएंगे। इसमें सभी स्तरों के नौकरशाह शामिल हैं। 
सरकार का नजरिया
इसके तहत सिर्फ ग्रुप ए के नौकरशाहों को शामिल किया जाए।
क्या सांसद इसके दायरे में आएंगे?
टीम अन्ना का नजरिया

हां, सदन में बोलने या वोट देने के बदले घूस का आरोप लगने पर लोकपाल की सात सदस्यीय बेंच (इसमें ज़्यादातर सदस्य न्यायपालिका से होंगे) इसकी जांच करेगी। अगर आरोप झूठा पाया गया तो शिकायत करने वाले को सज़ा। लेकिन पहली नज़र में सुबूत मिलने पर लोकपाल बेंच एफआईआर दर्ज करने की इजाजत देगी। पुलिस या सीबीआई मामले की जांच करेगी। अगर आरोप सही पाए गए तो मुकदमा चलेगा।
सरकार का नजरिया नहीं, लोकपाल सांसदों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच नहीं करेगा। ऐसे आरोपों की जांच संसद खुद करेगी।
क्या न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे में लाया जाना चाहिए?
टीम अन्ना का नजरिया
 

हां, जजों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगने पर पहली नज़र में अगर आरोप बेबुनियाद लगे और सुबूत नहीं मिले तो शिकायत करने वाले के खिलाफ सज़ा। लेकिन सात सदस्यीय लोकपाल बेंच पहली नज़र में सुबूत मिलने पर एफआईआर दर्ज करने की इजाजत देगी। पुलिस या सीबीआई मामले की जांच करेगी। अगर आरोप सही पाए गए तो मुकदमा चलेगा।  
सरकार का नज़रिया नहीं, जज के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप की जांच को जुडिशियल अकांउटिबिलिटी बिल (जेएबी) में शामिल किए जाने का प्रस्ताव। तीन सदस्यों (दो जज और एक उसी कोर्ट का रिटायर्ड चीफ जस्टिस, जिससे उस जज का संबंध हो, जिस पर आरोप लगे हैं)  की समिति जांच करेगी। अगर  पहली नज़र में सुबूत मिलते हैं तो समिति एफआईआर दर्ज करने का आदेश देगी। लेकिन सरकार ने जेएबी का जो ड्राफ्ट तैयार किया है उसमें कहा गया कि जज के खराब बर्ताव की जांच की जा सकती है लेकिन उसके खिलाफ घूस लेने के आरोप की नहीं। 


लोकायुक्त 
टीम अन्ना का नजरिया एक ही बिल के जरिए केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति की जाए।
सरकार का नजरिया
सिर्फ केंद्र में लोकपाल। राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने लोकपाल बिल के तहत राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति पर ऐतराज जताया है।
सभी सरकारी विभागों में सिटिजन चार्टर का गठन किया जाए ताकि लोगों की शिकायतों का निपटारा हो सके?
टीम अन्ना का नज़रिया

हां, हर सरकारी विभाग का सिटिजन चार्टर हो, जिसमें यह बताया जाए कि कौन सा अधिकारी, क्या काम और कितने दिन में करेगा। अगर कोई अधिकारी ऐसा नहीं करता है तो जन शिकायत सुनने वाले अधिकारी के पास शिकायत। अगर शिकायत के बाद भी ३० दिनों में काम नहीं होता है तो लोकपाल को सूचना। लोकपाल जन शिकायत निवारण अधिकारी से जानकारी लेगा और उचित जुर्माना लगाएगा, जो संबंधित अधिकारी के वेतन से काटा जाएगा। उचित विभाग को तय समय में शिकायत दूर करने का निर्देश देगा।
सरकार का नज़रिया
इस पर सरकार के बिल में कोई प्रस्ताव नहीं है।
भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले की सुरक्षा
टीम अन्ना का नज़रिया
लोकपाल भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले को  सुरक्षा मुहैया कराएगा। अगर ऐसे लोग परेशान किए जाने की शिकायत करते हैं, तो तेजी से मामले की सुनवाई।
सरकार का नज़रिया
ऐसे लोगों को एक अलग कानून बनाकर सुरक्षा मुहैया कराई जाएगी।
झूठी शिकायत
टीम अन्ना 
जेल की सज़ा नहीं। सिर्फ आर्थिक जुर्माना। शिकायत कैसी है, इसका फैसला लोकपाल करेगा।

सरकारी लोकपाल
२ से ५ साल की सज़ा। जिस पर आरोप लगा है, वह आरोप लगाने वाले पर विशेष कोर्ट में शिकायत कर सकता है। ऐसे मामलों में सरकार वकील मुहैया कराएगी। मूल शिकायतकर्ता को देना होगा जुर्माना।
भ्रष्ट अफसरों की बर्खास्तगी
टीम अन्ना

जांच पूरी हो। कोर्ट में मामला दर्ज होगा। लोकपाल की एक बेंच इस बारे में सुनवाई करेगी और फैसला करेगी कि संबंधित अधिकारी को हटाना है या नहीं।
सरकारी राय संबंधित मंत्रालय के मंत्री इस का फैसला करेंगे कि भ्रष्ट अधिकारी को हटाना है या नहीं।
भ्रष्टाचार की सज़ा  
टीम अन्ना
अधिकतम सज़ा उम्रकैद। अधिकारी का स्तर जितना ऊपर होगा, सज़ा उतनी ही ज़्यादा होगी। अगर जिस पर आरोप लगा है, वह औद्योगिक घराने से जुड़ा है, तो जुर्माना ज़्यादा होगा। साथ ही उस औद्योगिक घराने को काली सूची में डाला जाएगा।
सरकार का पक्ष
अधिकतम सज़ा की सीमा १० साल। अन्य किसी भी बिंदु पर सहमति नहीं।
किसी भी मामले में आगे होने वाले भ्रष्टाचार के केस
टीम अन्ना
किसी भी मामले में आगे होने वाले घोटाले की जानकारी अगर लोकपाल के संज्ञान में लाए जाने पर वह सरकार को सिफारिशें करेगा। अगर सरकार सिफारिशें नहीं सुनती है तो लोकपाल हाई कोर्ट में अपील करेगा और जरूरी आदेश हासिल करेगा।
सरकारी नज़रिया
लोकपाल के पास ऐसी कोई शक्ति नहीं होगी।
क्या सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधी शाखा को लोकपाल में मिला दिया जाए?
टीम अन्ना की राय

हां, सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधी शाखा को पूरी तरह से स्वतंत्र किया जाए। यह लोकपाल की जांच टीम के तौर पर काम करेगी।
सरकारी नज़रिया
नहीं, सीबीआई केंद्र सरकार के तहत काम करेगा। सीबीआई भ्रष्टाचार से जुड़े मामले की जांच के लिए सरकार से इजाजत लेगी। अगर सुबूत पाए भी जाते हैं तो भी सरकार की इजाजत के बिना कोर्ट में मामला नहीं पेश किया जा सकता है।
लोकपाल किसको जवाबदेह होगा?
टीम अन्ना का नज़रिया

लोकपाल लोगों के प्रति जवाबदेह होगा। कोई भी व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट में लोकपाल के किसी सदस्य के खिलाफ शिकायत कर सकता है उसे हटाने की मांग कर सकता है।
सरकार का नज़रिया
लोकपाल सरकार के प्रति जवाबदेह होगा। केवल सरकार ही लोकपाल को हटा सकती है।
लोकपाल के सदस्यों का चुनाव
टीम अन्ना का नज़रिया

चुनाव समिति में चार जज,  दो नेता और दो नौकरशाह शामिल होंगे। संवैधानिक पदों से रिटायर हुए सदस्यों वाली स्वतंत्र समिति पहली सूची तैयार करेगी। पारदर्शी चयन प्रक्रिया। 
सरकार का नजरिया
चयन समिति में पांच नेता, दो जजों के अलावा सरकार की तरफ नियुक्त एक सम्मानित शख्स। यह समिति एक सर्च कमेटी बनाएगी। कोई चयन प्रक्रिया नहीं। सब कुछ चयन समिति पर निर्भर।
लोकपाल स्टाफ की निष्ठा
टीम अन्ना की राय

लोकपाल स्टाफ के खिलाफ शिकायत होने पर स्वतंत्र एजेंसी से जन सुनवाई। अगर शिकायत सही पाई जाती है तो यह अथॉरिटी मुकदमा चलाने की अनुमति देगी जो हाई कोर्ट के न्यायिक दायरे के तहत आएगा।
सरकारी राय
लोकपाल स्टाफ के खिलाफ शिकायत होने पर लोकपाल खुद इसकी जांच करेगा। अगर शिकायत सही पाई जाती है तो मुकदमा चलाने की इजाजत।
वित्तीय स्वतंत्रता
टीम अन्ना का नजरिया

देश के सरकारी खजाने से लोकपाल को फंड मिलेगा। फंड कितना होगा, इसका फैसला लोकपाल के सदस्य करेंगे (यह किसी भी स्थिति में कुल राजस्व के ०.२५ फीसदी से ज़्यादा नहीं होगा)।
सरकारी राय लोकपाल को सरकारी खजाने से फंड मिलेगा। लेकिन फंड कितना होगा, इसका फैसला वित्त मंत्रालय करेगा।
शक्तियों का बंटवारा
टीम अन्ना की राय

लोकपाल सिर्फ वरिष्ठ नेताओं, नौकरशाहों या उन मामलों की जांच करेगा जिनमें बड़ी राशियां शामिल हैं।
सरकार की राय
सारे काम लोकपाल समिति के नौ सदस्य ही करेंगे।
हाई कोर्ट में विशेष बेंच
टीम अन्ना की राय
हाई कोर्ट विशेष बेंच का गठन करेगा ताकि भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों की तेजी से सुनवाई हो सके।
सरकारी लोकपाल
ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।
सीआरपीसी में बदलाव
टीम अन्ना की राय

अदालतों में भ्रष्टाचार निरोधी मामले काफी समय लेते हैं, जिसकी वजह से एजेंसियां केस हार जाती है। इसलिए सीआरपीसी में बदलाव की सिफारिशें।
सरकारी राय
ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।
फोन टैपिंग
टीम अन्ना की राय

लोकपाल की बेंच इसके लिए अनुमति देगी।
सरकारी राय
गृह सचिव इसके लिए इजाजत देगा।
एनजीओ
टीम अन्ना की राय

केवल सरकारी ग्रांट पाने वाले एनजीओ इसके दायरे में आएंगे।
सरकारी रायबड़े-छोटे सभी संगठन इसके दायरे में आएंगे चाहे वे रजिस्टर्ड हों या नहीं। 


ॐ  गणनाम   तवा  गणपति  गम  हवामहे
कविम्कवीना  मुपमाश्रवास्तामम
ज्येस्थाराजम  ब्रह्मानं  ब्रह्मनास्प्ता
आना  श्रुन्वानूतिभी  सीधासधानाम
महा  गणपतये  नमः 

भारत का सबसे काला कानून

         संप्रग सरकार एक नया विधेयक ”साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा रोकथाम पास करने जा रही है। इसका उद्देश्य साम्प्रदायिक, घटनाओं पर प्रभावी ढंग से अंकुश लगाना बताया जा रहा है। पर वास्तविकता में इस कानून का आशय है-हिन्दू आक्रामक है, तथा मुस्लिम ईसाई तथा दूसरे अल्पसंख्यक पीड़ित है। इस प्रस्तावित विधेयक में ऐसा मान लिया गया है कि दंगा सिर्फ हिन्दू करते है। मुसलमान, ईसाई तथा दूसरे लोग मात्र इसके शिकार होते है। उपरोक्त प्रस्तावित विधेयक में यह कहा गया है कि यदि किसी समूह की सदस्यता के कारण जानबूझकर किसी व्यक्ति के खिलाफ ऐसा कृत्य किया जावें, जो राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को नष्ट करने वाला हो। अब समूह से तात्पर्य किसी राज्य में धार्मिक, अथवा भाषाई अल्पसंख्यक या अनुसूचित जाति या जनजाति से है। हिन्दुओं को तो किसी समूह में माना ही नही गया है, इसलिए वह इससे प्रभावित हो ही नही सकते। अब काश्मीर घाटी में भले प्रताड़ित कर उसे हिन्दू-विहीन कर दिया गया हो, पर पूरे भारत में यह विधेयक लागू होगा, लेकिन जम्मू-काश्मीर में नही। जम्मू-काश्मीर में क्यो लागू नही होगा? उत्तर स्पष्ट है क्योकि हिन्दू वहां अल्पसंख्यक है और उनको किसी संरक्षण क्या सहानुभूमि तक की आवश्यकता नही है।
अब गौर करने की बात यह है कि अल्पसंख्यक समूह में मुस्लिम, ईसाई, सिख ही नही बल्कि अनुसूचित जाति एवं जनजातियों को भी माना गया है। अब यह तो लोगों को पता होगा कि अंग्रेजों के शासन काल में अंग्रेजो का ही ऐसा रवैया था। खास तौर पर अनुसूचित जनजातियों को वह हिन्दू नही मानने पर जोर देते थे। मुस्लिम लीग के लोग तो अनुसूचित जाति के लोगों को हिन्दुओं से अलग करने के लिए मुस्लिम-हरिजन भाई-भाई, बांकी जाति कहां से आई-ऐसा नारा लगाते थे। वो तो डॉ. अम्बेडकर की राष्ट्रवादी एवं व्यापक दृष्टि थी, जिसने देश को इस खतरे से बचा लिया। पर जहां तक इन समुदायों का प्रश्न है, वह जब क्रमश: हिन्दुत्व की धारा में समाहित हो रहे है, तो उनमें ऐसा अलगाववाद के बीज बोने की इस विधेयक के माध्यम से क्या आवश्यकता थी? यह राष्ट्रबोध से जुड़ें नागरिकों के लिए एक अहम चुनौती है।अब जब जन लोकपाल की बात आती है तो उसे संसद पर अतिक्रमण बता दिया जाता है, पर जब यह विधेयक सोनिया गॉधी की एन.एस.सी. की तरफ से आता है तो कोई प्रतिक्रिया ही नही होती।
रहा सवाल मुसलमानों का। असलियत भी यह है कि अवाम से कटी हुई यह सरकार मूलत: मुस्लिम तुष्टीकरण की दृष्टि से ही यह विधेयक ला रही है। इस विधेयक के अनुसार पहली बात तो यह कि मुस्लिम ऐसा समुदाय है, जो दंगें नही करता, हिंसा नही करता, सिर्फ पीड़ित समूह है। जबकि तथ्य यह है कि अंग्रेजों के समय से लेकर स्वतंत्र भारत में जितने दंगें हुए, उसकी शुरूआत करीब-करीब मुस्लिमों ने ही किया। अंग्रेजों की गुलामी के समय मोपला के दंगें अभी तक लोगों को जेहन में है, जिसमें हिन्दुओं पर अमानुषिक अत्याचार किए गए। यहां तक कि वर्ष 2002 के गुजरात दंगें भी जिनकी बहुत चर्चा अब तक की जाती है, वह भी गोधरा में 59हिन्दुओं को जिंदा जलाकर मार दिए जाने से भड़के। सच्चाई यह है कि यह यू.पी.ए. सरकार जबसे सत्ता में आई है, इसका एक मात्र एजेण्डा मुस्लिम-तुष्टीकरण और इस तरह से उन्हे वोट बैंक बनाना ही रहा है। इस सरकार ने सत्ता में आते ही मुस्लिम छात्रों के लिए जिनके परिवार की वार्षिक आय ढ़ाई लाख रूपयें तक है, उन्हे मेरिट के आधार पर कोर्स के लिए बीस हजार, स्कालरशिप के नाम पर दस हजार, हास्टल सुविधा के नाम पर पॉच हजार रूपयें दे रही है। जबकि एस.सी. एवं एस.टी. समुदाय के छात्रों की हालत ज्यादा बुरी होने पर भी उन्हे यह सुविधा नही दी जा रही है। यह भी उल्लेखनीय है कि एस.टी.,एस.सी. एवं पिछड़ें वर्ग के छात्रों को जहां आय प्रमाण पत्र सक्षम राजस्व अधिकारियों से प्राप्त करना पड़ता है, वहां मुस्लिम छात्र नान जुडीशियल स्टाम्प में स्वत: यह प्रमाण पत्र दे सकते है। इसी तुष्टिकरण की नीति के तहत देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कह चुके है कि देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है। इसी के तहत बजट में मुस्लिमों के लिए 15 प्रतिशत का प्रावधान अलग से किया जाता है।
असलियत यह है कि इसी तुष्टिकरण एवं वोट बैंक की राजनीति के चलते अफजल एवं कसाब जैसे लोगों को फांसी में नही लटकाया जाता। इसी नीति के तहत आंतकवाद से लड़ने के लिए टाडा एवं पोटा जैसे कानून निरस्त किए जाते है। इसी नीति के तहत राहुल गॉधी को लश्करे तोयबा या जेहादी आंतकवाद की तुलना में हिन्दू आंतकवाद ज्यादा खतरनाक दिखाई पड़ता है। इसी नीति के तहत खानदान के प्रवक्ता दिग्विजय सिंह जैसे लोग सर्वत्र हिन्दू आंतकवाद या भगवा आंतकवाद देखते है, उन्हे जेहादी आंतकवाद कही दिखायी ही नही पड़ता। जिसका नतीजा यह है कि देश को आंतकवाद से मुक्ति मिलना संभव नही दिखाई पड़ रहा है।
अब जब उपरोक्त प्रस्तावित विधेयक से धर्म निरपेक्ष ताने-बाने को नष्ट करने या किसी अल्पसंख्यक को मनोवैज्ञानिक नुकसान पंहुचाने से आशय है। ऐसी स्थिति में यदि बहुसंख्यक समाज को कोई व्यक्ति यह कहता है कि देश में कामन सिविल कोड मुसलमानों पर भी लागू होना चाहिए। काश्मीर में धारा 370 समाप्त होनी चाहिए, अथवा बांग्लादेशी घुसपैठियों को देश से बाहर करना चाहिए या राम जन्मभूमि में भव्य राममंदिर बनना चाहिए या आंतकवादियों को फांसी में लटका देना चाहिए। तो बहुत संभव है कि उपरोक्त प्रस्तावित विधेयक के आशय-अनुसार यह धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को नष्ट करने वाला हो। यदि ऐसा नही भी हो तो मुस्लिम समूह को एक बड़ें समुदाय को मनोवैज्ञानिक नुकसान पंहुचाने वाला तो मान ही लिया जाएगा। अब ऐसी स्थिति में ऐसे विचारों के पक्षधरों को जेल जाने की तैयारी अभी से कर लेनी चाहिए। हद तो यह है कि यह प्रस्तावित विधेयक संघीय ढांचे को भी नष्ट करने वाला है, क्योकि इससे केन्द्र सरकार को किसी भी राज्य सरकार पर हस्तक्षेप करने का अधिकार मिल जाएगा।एक अहम बात और इस प्रस्तावित विधेयक में यदि अल्पसंख्यकों समूहों के मध्य ही काई दंगा भड़कें या संघर्ष हो तो किसे आक्रमणकारी या किसे पीड़ित माना जाएगा-स्पष्ट नही है। जैसे यदि दंगा मुस्लिमों, अनुसूचित जनजाति या अनुसूचित जाति के मध्य भड़का तो ऐसी स्थिति में किसे आक्रामक माना जायेगा और किसे पीड़ित माना जायेगा, स्पष्ट नही है।
इसी तरीके से ”फूट डालों एवं राज करो” की नीति का अंग्रेजों ने इस्तेमाल कर देश में लम्बे समय तक राज किया। अब अंग्रेजों की उत्तराधिकारी कांग्रेस पार्टी भी यही सब कर रही है। प्रस्तावित विधेयक सामाजिक समरसता को छिन्न-भिन्न करने वाला, समाज को जोड़ने की जगह विभाजित करने वाला तो होगा ही। दुर्भाग्यवश यदि वह विधयेक अधीनियम का रूप ले लिया तो स्वतंत्र भारत के हिन्दू द्वितीय श्रेणी के नागरिक हो जाएगे और प्रकारान्तर से गुलामी के दौर में पंहुच जाएंगे।

शुक्रवार, 26 अगस्त 2011


Another lovely poem by Atal Ji. One more year has passed by and one can just observe and feel inside the emptiness of this uninterrupted yet repetitive stream of passage of time….Rajiv Krishna Saxena
Keywords: Another year has passed, introspection, taking account, liberation wish, lost love, hope, memories
 
 
 
 

गुरुवार, 25 अगस्त 2011

हिन्दू और कितना पिटेगा तू ? हिन्दू और कब जागेगा तू ? हिन्दू कब नींद से जागेगा तू ? क्या तेरा देश बर्वाद हो जाने के वाद ???????????

हिन्दू और कितना पिटेगा तू ?
हिन्दू और कब जागेगा तू ?
हिन्दू कब नींद से जागेगा तू ?
क्या तेरा देश बर्वाद हो जाने के वाद ??????????? 
विनोद बंसल 
अभी हाल ही में यूपीए अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद द्वारा एक विधेयक का मसौदा तैयार किया गया है। इसका नाम सांप्रदायिक एव लक्षित हिंसा रोकथाम (न्याय एवं क्षतिपूर्ति) विधेयक 2011 [‘Prevention of Communal and Targeted Violence (Access toJustice and Reparations) Bill,2011’] है। ऐसा लगता है कि इस प्रस्तावित विधेयक को अल्पसंख्यकों का वोट बैंक मजबूत करने का लक्ष्य लेकर, हिन्दू समाज, हिन्दू संगठनों और हिन्दू नेताओं को कुचलने के लिए तैयार किया गया है। साम्प्रदायिक हिंसा रोकने की आड़ में लाए जा रहे इस विधेयक के माध्यम से न सिर्फ़ साम्प्रदायिक हिंसा करने वालों को संरक्षण मिलेगा बल्कि हिंसा
के शिकार रहे हिन्दू समाज तथा इसके विरोध में आवाज उठानेवाले हिन्दू संगठनों का दमन करना आसान होगा। इसके अतिरिक्त यह विधेयक संविधान की मूल भावना के विपरीत राज्य सरकारों के कार्यों में हस्तक्षेप कर देश के संघीय ढांचे को भी ध्वस्त करेगा। ऐसा प्रतीत होता है कि इसके लागू होने पर भारतीय समाज में परस्पर अविश्वास और विद्वेष की खाई इतनी बड़ी और गहरी हो जायेगी जिसको पाटना किसी के लिए भी सम्भव नहीं होगा।

मजे की बात यह है कि एक समानान्तर व असंवैधानिक सरकार की तरह काम कर रही राष्ट्रीय सलाहकार परिषद बिना किसी जवाब देही के सलाह की आड़ में केन्द्र सरकार को आदेश देती है और सरकार दासत्व भाव से उनको लागू करने के लिए हमेशा तत्पर रहती है। जिस ड्राफ्ट कमेटी ने इस विधेयक को बनाया है, उसका चरित्र ही इस विधेयक के इरादे को स्पष्ट कर देता है। जब इसके सदस्यों और सलाहकारों में हर्ष मंडेर, अनु आगा, तीस्ता सीतलवाड़, फराह नकवी जैसे हिन्दू विद्वेषी तथा सैयद शहाबुद्दीन, जॉन दयाल, शबनम हाशमी और नियाज फारुखी जैसे घोर साम्प्रदायिक शक्तियों के हस्तक हों तो विधेयक के इरादे क्या होंगे, आसानी से कल्पना की जा सकती है। आखिर ऐसे लोगों द्वारा बनाया गया दस्तावेज उनके चिन्तन के विपरीत कैसे हो सकता है।
जिस समुदाय की रक्षा के बहाने से इस विधेयक को लाया गया है इसको इस विधेयक में 'समूह' का नाम दिया गया है। इस 'समूह' में कथित धार्मिक व भाषाई अल्पसंख्यकों के अतिरिक्त दलित व वनवासी वर्ग को भी सम्मिलित किया गया है। अलग-अलग भाषा बोलने वालों के बीच सामान्य विवाद भी भाषाई अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक विवाद का रूप धारण कर सकते हैं। इस प्रकार के विवाद
किस प्रकार के सामाजिक वैमनस्य को जन्म देंगे, इसकी कल्पना आसानी से की जा सकती है। विधेयक अनुसूचित जातियों व जनजातियों को हिन्दू समाज से अलग कर समाज को भी बांटने का कार्य करेगा। कुछ वर्गों में पारस्परिक असंतोष के बावजूद उन सबका यह विश्वास है कि उनकी समस्याओं का समाधान हिन्दू समाज के अंगभूत बने रहने पर ही हो सकता है।
यह विधेयक मानता है कि बहुसंख्यक समाज हिंसा करता है और अल्पसंख्यक समाज उसका शिकार होता है जबकि भारत का इतिहास कुछ और ही बताता है। हिन्दू ने कभी भी गैर हिन्दुओं को सताया नहीं, उनको संरक्षण ही दिया है। उसने कभी हिंसा नहीं की, वह हमेशा हिंसा का शिकार हुआ है। क्या यह सरकार हिन्दू समाज को अपनी रक्षा का अधिकार भी नहीं देना चाहती ? क्या हिन्दू की नियति सेक्युलर बिरादरी के संरक्षण में चलने वाली साम्प्रदायिक हिंसा से कुचले जाने की ही है ? किसी भी महिला के शील पर आक्रमण होना, किसी भी सभ्य समाज में उचित नहीं माना जाता। यह विधेयक एक गैर हिन्दू महिला के साथ किए गए दुर्व्यवहार को तो अपराध मानता है; परन्तु हिन्दू महिला के साथ किए गए बलात्कार को अपराध नहीं मानता जबकि साम्प्रदायिक दंगों में हिन्दू महिला का शील ही विधर्मियों के निशाने पर रहता है।

इस विधेयक में प्रावधान है कि 'समूह' के व्यापार में बाधा डालने पर भी यह कानून लागू होगा। इसका अर्थ है कि अगर कोई अल्पसंख्यक बहुसंख्यक समाज के किसी व्यक्ति का मकान खरीदना चाहता है और वह मना कर देता है तो इस अधिनियम के अन्तर्गत वह हिन्दू अपराधी घोषित हो जायेगा। इसी प्रकार अल्पसंख्यकों के विरुद्ध घृणा का प्रचार भी अपराध माना गया है। यदि किसी
बहुसंख्यक की किसी बात से किसी अल्पसंख्यक को मानसिक कष्ट हुआ है तो वह भी अपराध माना जायेगा। अल्पसंख्यक वर्ग के किसी व्यक्ति के अपराधिक कृत्य का शाब्दिक विरोध भी इस विधेयक के अन्तर्गत अपराध माना जायेगा। यानि अब अफजल गुरु को फांसी की मांग करना, बांग्लादेशी घुसपैठियों के निष्कासन की मांग करना, धर्मान्तरण पर रोक लगाने की मांग करना भी अपराध बन जायेगा।
दुनिया के सभी प्रबुध्द नागरिक जानते हैं कि हिन्दू धर्म, हिन्दू, देवी-देवताओं व हिन्दू संगठनों के विरुध्द कौन विषवमन करता है। माननीय न्यायपालिका ने भी साम्प्रदायिक हिंसा की सेक्युलरिस्टों द्वारा चर्चित सभी घटनाओं के मूल में इस प्रकार के हिन्दू विरोधी साहित्यों व भाषणों को ही पाया है। गुजरात की बहुचर्चित घटना गोधरा में 59 रामभक्तों को जिन्दा जलाने की प्रतिक्रिया के कारण हुई, यह तथ्य अब कई आयोगों के द्वारा स्थापित किया जा चुका है। अपराध करने वालों को संरक्षण देना और प्रतिक्रिया करने वाले समाज को दण्डित करना किसी भी प्रकार से उचित नहीं माना जा सकता। किसी निर्मम तानाशाह के इतिहास में भी अपराधियों को इतना बेशर्म संरक्षण कहीं नहीं दिया गया होगा।

भारतीय संविधान की मूल भावना के अनुसार किसी आरोपी को तब तक निरपराध माना जायेगा जब तक वह दोषी सिद्ध न हो जाये; परन्तु, इस विधेयक में आरोपी तब तक दोषी माना जायेगा जब तक वह अपने आपको निर्दोष सिद्ध न कर दे। इसका मतलब होगा कि किसी भी गैर हिन्दू के लिए अब किसी हिन्दू को जेल भेजना आसान हो जाएगा। वह केवल आरोप लगाएगा और पुलिस अधिकारी आरोपी हिन्दू को जेल में डाल देगा। इस विधेयक के प्रावधान पुलिस अधिकारी को इतना कस देते हैं कि वह उसे जेल में रखने का पूरा प्रयास करेगा ही क्योंकि उसे अपनी प्रगति रिपोर्ट शिकायतकर्ता को निरंतर भेजनी होगी। यदि किसी संगठन के कार्यकर्ता पर साम्प्रदायिक घृणा का कोई आरोप है तो उस संगठन के मुखिया पर भी शिकंजा कसा जा सकता है। इसी प्रकार यदि कोई प्रशासनिक अधिकारी हिंसा रोकने में असफल है तो राज्य का मुखिया भी जिम्मेदार माना जायेगा।
यही नहीं किसी सैन्य बल, अर्ध्दसैनिक बल या पुलिस के कर्मचारी को तथाकथित हिंसा रोकने में असफल पाए जाने पर उसके मुखिया पर भी शिकंजा कसा जा सकता है।

भारतीय संविधान के अनुसार कानून व्यवस्था राज्य सरकार का विषय है। केन्द्र सरकार केवल सलाह दे सकती है। इससे भारत का संघीय ढांचा सुरक्षित रहता है; परन्तु इस विधेयक के पारित होने के बाद अब इस विधेयक की परिभाषित 'साम्प्रदायिक हिंसा' राज्य के भीतर आंतरिक उपद्रव के रूप में देखी जायेगी और केन्द्र सरकार को किसी भी विरोधी दल द्वारा शासित राज्य में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप का अधिकार मिल जायेगा। इसलिए यह विधेयक भारत के संघीय ढांचे को भी ध्वस्त कर देगा। विधेयक अगर पास हो जाता है तो हिन्दुओं का भारत में जीना दूभर हो जायेगा। देश द्रोही और हिन्दू द्रोही तत्व खुलकर भारत और हिन्दू समाज को समाप्त करने का षडयन्त्र करते रहेंगे; परन्तु हिन्दू संगठन इनको रोकना तो दूर इनके विरुध्द आवाज भी नहीं उठा पायेंगे। हिन्दू जब अपने आप को कहीं से भी संरक्षित नहीं पायेगा तो धर्मान्तरण का कुचक्र तेजी से प्रारम्भ हो
जायेगा। इससे भी भयंकर स्थिति तब होगी जब सेना, पुलिस व प्रशासन इन अपराधियों को रोकने की जगह इनको संरक्षण देंगे और इनके हाथ की कठपुतली बन देशभक्त हिन्दू संगठनों के विरुध्द कार्यवाही करने के लिए मजबूर हो जायेंगे।

इस विधेयक के कुछ ही तथ्यों का विश्लेषण करने पर ही इसका भयावह चित्र सामने आ जाता है। इसके बाद आपातकाल में लिए गए मनमानीपूर्ण निर्णय भी फीके पड़ जायेंगे। हिन्दू का हिन्दू के रूप में रहना मुश्किल हो जायेगा। देश के प्रधान मंत्री श्री मनमोहन सिंह ने पहले ही कहा था कि देश के
संसाधनों पर मुसलमानों का पहला अधिकार है। यह विधेयक उनके इस कथन का ही एक नया संस्करण लगता है। किसी राजनीतिक विरोधी को भी इसकी आड़ में कुचलकर असीमित काल के लिए किसी भी जेल में डाला जा सकता है।

इस खतरनाक कानून पर अपनी गहरी चिन्ता व्यक्त करते हुए विश्व हिन्दू परिषद
की केन्द्रीय प्रबन्ध समिति की अभी हाल ही में सम्पन्न प्रयाग बैठक में भी एक प्रस्ताव पारित किया गया है। इस प्रस्ताव में कहा गया है कि विहिप इस विधेयक को रोलट एक्ट से भी अधिक खतरनाक मानती है। और सरकार को चेतावनी देती है कि वह अल्पसंख्यकों के वोट बैंक को मजबूत करने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए हिन्दू समाज और हिन्दू संगठनों को कुचलने के अपने कुत्सित और अपवित्र इरादे को छोड़ दे। यदि वे इस विधेयक को लेकर आगे बढ़ते हैं तो हिन्दू समाज एक प्रबल देशव्यापी आन्दोलन करेगा। विहिप ने देश के राजनीतिज्ञों, प्रबुध्द वर्ग व हिन्दू समाज तथा पूज्य संतों से अपील भी की है कि वे केन्द्र सरकार के इस पैशाचिक विधेयक को रोकने के लिए सशक्त प्रतिकार करें।
आइये हम सभी राष्ट्र भक्त मिल कर इस काले कानून के खिलाफ़ अपनी आवाज बुलन्द करते हुए भारत के प्रधान मंत्री व राष्ट्रपति को लिखें तथा एक व्यापक जन जागरण के द्वारा अपनी बात को जन-जन तक पहुंचाएं। कहीं ऐसा न हो कि कोई हमें कहे कि अब पछताये क्या होत है जब चिडिया चुग गई खेत?

पता : 329, संत नगर, पूर्वी कैलाश, नई दिल्ली - 110065 
Email vinodbansal01@gmail.com

बुधवार, 24 अगस्त 2011

भ्रष्टाचार से बढ़कर कोई अपराध नहीं,
भ्रष्टाचारी से बढ़कर कोई अपराधी नहीं

शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

दोस्ती अच्छी हो तो रंग लाती है,
दोस्ती गहरी हो तो सबको भाति है,
दोस्ती नादाँ  हो तो टूट  जाती है,
पर अगर दोस्ती अपने जैसी हो….
…. तो  इतिहास  बनाती  है !

गुरुवार, 11 अगस्त 2011

देश तरक्की कर रहा है, विकशित देशों की गिनती में आ रहा है.वाह वाह रे विकाश !! तरक्की का  यह एक नमूना है.ये आजाद देश का नागरिक है .
सब इनके लिए रोते हैं दिखावे का रोना.नेता लोग वोट की चक्कर में नौटंकी करने पहुँच जाते हैं.अफसर लोग नौकरी बनाये रखने के लीये फोटो खिंचवा लेते हैं.बन जाते हैं आम  आदमी  का नेता और अफसर. किसी गाँव की कच्ची सड़क पर चल देने से,किसी गाँव की चौपाल पर बैठ जाने से या किसी गरीव के घर जाकर दो टुकड़ा रोटी खाने से या भीड़ भरी ट्रेन की साधारण डिब्बा में एक दिन के लिए सफ़र कर देने से या भाषण में गरीवों के लिए कुछ कह देने से कोई गरीवों का मसीहा नहीं हो जाता.जिसने गरीवी झेला है वो ही जानता है गरीवी क्या है भूख क्या है.बाकि सब तो भइये नौटंकी वाले हैं."ये बेवकूफ जनता कुछ नहीं जानता", जितना भी और जैसे भी बेवकूफ बनाया जा सके बनाओ इनको. 

रविवार, 7 अगस्त 2011

क्यूँ रोऊँ, किसिलिये रोऊँ,किसके लिए रोऊँ, कब रोऊँ,कहाँ रोऊँ, कैसे रोऊँ, 
रोना तो रोना ही है चाहे क्यूँ भी,किसिलिये भी,किसीके लिए भी, कब भी,कहीं भी, और कैसे भी हो. 
कोई पेट के लिए रोता है,कोई पैसे के लिए रोता है.,
माँ बाप बच्चों के लिए रोते हैं,बच्चे माँ बाप के लिए,
भाई बहन के लिए बहिन भाई के लिए.
प्रेमी प्रेमिका के लिए प्रेमिका प्रेमी के लिए, 
पत्नी के लिए पति रोता है, पति के लिए पत्नी.
भूखा बच्चा दूध के लिए भूखी माँ रोटी के लिए,
शिर पर छत नहीं खाने को रोटी नहीं,
दाने दाने के लिए मोहताज आँखों में आंसू नहीं,
सेठ बड़ा सेठ होने के लिए लखपति कोरोड्पति होने के लिए,
नेता मंत्री बनने के लिए,मंत्री प्रधानमंत्री के लिए 
कम पदवी मिला उसके लिए बड़ी पदवी मिल गया उसके लिए,
पैसा नहीं है उसके लिए रोना, पैसा मिल गया उसके लिए भी रोना.
कोई पैदा हुआ रोना कोई मर गया रोना, 
खुशियों में रोना दुःख में भी रोना 
शादी में रोना विदाई में भी रोना.
घर बन गया तो रोना, घर उजाड़ गया तो भी रोना.
बच्चे का माँ के आगे रोना, माँ का पिता के आगे रोना 
पिता का अफसर के सामने रोना,अफसर का नेता के आगे रोना.
नेता का मंत्री के आगे रोना मंत्री प्रधानमंत्री के सामने रोना 
प्रधानमंत्री का जनता के सामने रोना रोना और रोना, 
चीखना चिल्लाना शिर पटकना फिर भी थमता नहीं ये रोना.  

गुरुवार, 4 अगस्त 2011

आम आदमी

सोनिया मैडम असुस्थ है.हम भगवान से प्रार्थना करते हैं की वे शीघ्रातिशीघ्र स्वस्थ हो जाये.क्यूंकि हम भारतीय इतना कोमल ह्रदय और दयालु है कि अगर किसी कुत्ता भी कहीं रास्ते मैं जख्मी पड़ा हो तो उसकी भी स्वस्थ होने की कामना करते हैं भगवान् से. लेकिन एक बात खटक रही है दिल में कि, आम आदमी की पार्टी की नेत्री की इलाज आम आदमी की हसपताल न करते हुए अमेरिका में क्यूँ करवा रहे हैं आम आदमी की नेता ? क्या उनकी पार्टी आम आदमी की श्लोगान शिर्फ़ दिखावे के लिए कर रही है ? क्या उनका युवराज कहीं पर मिटटी ढो लेते हैं क्या ये दिखावा है ? क्या भावी प्रधान मंत्री का लोकल ट्रेन में जाना शिर्फ़ दिखावा है ?क्या राहुल किसी गाँव की सभा में निचे बैठ जाता है ये दिखावा है ? आम आदमी की बात करना आसान है लेकिन जब खुद पर गुजरती है तो आम आदमी कि बात करने वाले अमेरिका जाओगे ये तो आम आदमी की नेता का पहचान नहीं है शिर्फ़ और शिर्फ़ ढोंग है.दूसरी वात कहीं ये तो नहीं कि, विदेशी नस्ल की प्राणी की इलाज शायद विदेश में ही हो ?    

बुधवार, 3 अगस्त 2011

अब समोसे पर भी फतवा !

अब समोसे पर भी फतवा !
क्या-क्या करेगा मुसलमान इस दुनियाँ में ?
क्या समोसा भी इस्लाम के विरुद्ध खड़ा हो सकता है ?

सोमालिया आजकल भयंकर सूखे की चपेट में है ! और इस कारण से यह देश कुपोषण और घरेलु हिंसा की दोहरी मार झेल रहा है ! ऐसे कठिन हालात में भी वहाँ के एक कट्टर मजहबी संगठन ''अल शबाब'' ने समोसे को इस्लाम के खिलाफ बताते हुए उस पर पाबन्दी लगा दी है ! ''अल शबाब'' की वहाँ तूती बोलती है और देश का एक बड़ा हिस्सा इसके प्रभाव क्षेत्र में है !

अब आखिर प्रश्न उठता है कि क्यों है ''अल सबाब'' को समोसे से चिढ ? वह इसलिए, क्योंकि इस मजहबी उन्मादी इस्लामी संगठन का मानना है कि समोसे के तीन कोने होते हैं ! और ये तीन कोने इसाई पंथ में वर्णित ''होली ट्रिनिटी'' की याद दिला सकते हैं मुसलमानों को ! इसाई पंथ के अनुसार, ''होली ट्रिनिटी'' माने ईश्वर के तीन रूप- पिता, बेटा और पवित्र आत्मा ! सोमालिया में समोसे में आलू, मटर, धनिया, मिर्च नहीं कीमा और सब्जियां भर कर समोसा बनाए जाने का रिवाज है ! वहाँ इस समोसे को बड़े चटखारे लेकर खाया जाता है ! परन्तु अब ''अल शबाब'' के कारिंदे वाहनों पर लौडीस्पीकर लगाकर उन इलाकों में समोसे पर पाबन्दी की मुनादियां करते फिर रहे हैं जहाँ उनका सिक्का चलता है ! परन्तु संगठन इस पाबन्दी की असली वजह आम जनता को नहीं बता रहा है !

जिस देश में एक करोड़ दस लाख लोग अकाल की मार झेल रहे हैं, वहाँ ''अल शबाब'' का मजहबी उन्माद सिर चढ़ कर बोल रहा है ! सूखे की मार झेल रहे कई हिस्सों के लोगों तक राहत इसीलिए नहीं पहुँच पा रही है क्योंकि वहाँ सरकारी और विदेशी राहत एजेंसियाँ ''अल शबाब'' के खौफ के कारण जा नहीं पा रही हैं !


अच्छा हुआ कि इन कट्टर पंथी मुल्लाओं को पता नहीं दक्ष्य प्रजापति जो कि भगवान शिवजी के शशुर है उनका सिर भी बकरे का है, जिस दिन ये बात इन कठमुल्लाओं को पता चल जायेगा तो शायद ये बकरीद पर भी फतवा जारी कर के मानना छोड़ देंगे. 
जूनून है देशभक्तों का 
राष्ट्र के लिए मर मिट जाने का.
हर जुबान पर एक ही नाम, 
भ्रष्टाचार मिटाना भा.ज.पा का काम. 
जब राष्ट्र की युवा जागेगा, 
तब देश में भा.ज.पा आएगा.
जब भा.ज.पा देश में राज करेगा,
तब नया सवेरा आयेगा.
जब राष्ट्र भक्त युवा जागेगा, 
तब देश से भ्रस्ष्टाचार भागेगा. 


मंगलवार, 2 अगस्त 2011

हिन्दू धर्म, हिन्दू संस्कृति, हिन्दू समाज,हिन्दू राष्ट्र

अपने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का बिचार है कि हिन्दुस्थान हिन्दूराष्ट्र है और अपने इस राष्ट्र को दुनिया में सर्वश्रेष्ठ स्थान दिलाना है | इस हेतु हमें हिन्दुराष्ट्र के मेरुदंड अर्थात हिन्दू समाज को संगठित कर बलसंपन्न बनाना है | वर्तमान में हिन्दू अंशतः जागृत हुआ है, वह करवट बदल रहा है , अभी संगठित हो रहा है | संक्ष्येप में हिन्दू एक शक्ति के रूप में प्रकट हो रहा है, तो दूसरी तरफ विरोधी शक्तियां प्रतिक्रियात्मक रूख अपना कर भिन्न-भिन्न विवाद उत्पन्न करती दिखाई देती है.|
हिंदुत्व मुख्य मुद्दा हो जाने के कारण आजकल हिन्दुराष्ट्र,हिन्दू संस्कृति,हिन्दू धर्म आदी शव्दों को लेकर अनेक प्रकार कि बहस चलती है | लेकिन इन शव्दों के संबंध में बहुत संभ्रम है | लोग अपने अपने ढंग से अर्थ लगाकर बोलते हैं उस कारण संभ्रम समाप्त होने के स्थान पर और अधिक बढ़ जाता है | जैसे राष्ट्र और राज्य के बिच क्या भेद है यह न समझने के कारण ही मा.अड़वानिजी के यह कहने पर कि "हिन्दुस्थान कभी पंथिक राज्य ( Theocretic state)नहीं बन सकता " को लिखा गया कि हिन्दुस्थान धर्म नियंत्रित राज्य नहीं बन सकता | ऐसा इसीलिए हुआ क्यूंकि Theocracy का अर्थ एक पंथ लगाया और पंथ को धर्म कह दिया | पंथ क्या है ? धर्म क्या है ? राष्ट्र क्या है ? राज्य क्या है ? संस्कृति क्या है ? sabhyata क्या है ? इन सारे शव्दों का अर्थ स्पस्ट न होने के कारण, इनके बारे में संभ्रम सब जगह विद्यमान है | इसीलिए आज जो बहस चलती है एक प्रकार से निरर्थक ही है | इसके साथ ही एक और बहस जुड़ गया कोमल हिंदुत्व और उग्र हिंदुत्व की | कुछ लोग कहते हैं कि हम हिन्दुइस्म को तो तो स्वीकार करते हैं किन्तु हिंदुत्व को नहीं | अब हिंदुत्व और हिन्दुइस्म में क्या अंतर है ? लेकिन आजकल इस बहस को जोरों से चलाया जा रहा है | एक दृष्टि से यह अच्छा है कि आज तक हम जिस विचार को प्रस्तुत कर रहे थे, उस पर सार्वजनिक बहस हो रही है | हमें इसका स्वागत ही करना चाहिये | इसके साथ ही हमारा जो विचार है उसे अधिक प्रभावी ढंग से प्रस्थापित करना चाहिये |किन्तु इसे प्रस्थापित करने के पूर्व हमारे मन में सभी शव्दों के अर्थ स्पस्ट हो जाना चाहिये | इसमे स्पष्टता न रही तो हम जो भी कहेंगे उससे लोगों के संभ्रम दूर होने के स्थान पर बढ़ेंगे ही |
अब हिन्दू शव्द को ही लें | लोग पूछते हैं हिन्दू शव्द कहाँ से लाया ? वेदों में अथवा उपनिषदों में तो हिन्दू शव्द
है नहीं | चूँकि हिन्दू शव्द २५०० साल पुराना है,इसीलिए इस शव्द का अस्तित्व उन ग्रंथो में नहीं है.
२५०० साल पहले इरान के सम्राट थे उनका नाम था दारायावहूँ | अंग्रेजी में उसे "डेरियस" कहते हैं | उनके समय का एक शिलालेख प्राप्त हुआ है |

सोमवार, 1 अगस्त 2011

Jihad a misinterpreted word


‘Jihad a misinterpreted word’

Abantika Ghosh, TNN Feb 3, 2011, 12.17am IST
NEW DELHI: Beleaguered Darul Uloom vice-chancellor Maulavi Ghulam Mohammed Vasantvi feels jihad -- a dirty word in the contemporary global security scenario -- has been misinterpreted for violence when it stands for striving for betterment.
As political upheavals across the Arab world make headlines, Maulavi Vastanvi feigns ignorance about the uprisings in Egypt and Tunisia.
"Mubarak is fighting a battle in Egypt, I am fighting my own in India,'' he says in jest.
The Darul VC has been in the eye of the storm following his comments on the 2002 Gujarat riots, having urged Muslims to move on from the incident. He is now on the verge of losing his job as the head of one of the world's most respected Muslim seminaries within days of his election.
A section of Urdu media has been gunning for his head since the controversy erupted. Observers say he is being targetted for breaking the stranglehold of certain families, who are keen to control the seminary.
Vastanvi puts ambiguity over the meaning of jihad in Indian perspective. "Jihad comes from an Arabic word, which means to try. It is every Muslim's duty to strive for betterment. Islam promotes peace. Jihad has been misinterpreted as fighting, and that view has been widely propagated," the VC said.
He told TOI that India is not a "darul harb" -- abode of infidels -- that can be converted to "darul Islam" by waging jihad.
"For instance, our Constitution gives us the right to follow the religion of our choice, where we can fast, offer prayers. Similarly, others can follow their religions in peace and harmony," he explained.
Vastanvi, an acclaimed educationist, who owns religious and professional institutions across several states, had courted controversy for his comment that minorities are not discriminated against in Gujarat. However, he does not have a similar view for the rest of the country.
"The Sacchar Committee report has clearly stated that discrimination exists. I strongly feel that only people who have good education can lead a good life," he said.
Deoband, he feels, cannot offer professional courses. "Its prestige rests on imparting religious education. This cannot be changed in any way," he added.