सोमवार, 6 जुलाई 2020

ଖୋଜିବ ତୁମେ ଖୋଜିବ

ହଜିଯିବି ମୁଁ ଯେଦିନ
ଖୋଜିବ ସେଦିନ ମୋତେ ଖୋଜିବ II
ଅସ୍ତ ଯାଉଥିବା ସନ୍ଧ୍ୟାତାରା କୁ
ମୋ ଖବର ପଚାରି ବୁଝିବ,
ପ୍ରତିଛବିକୁ ମୋହର ଛାତିରେ ଚାପି
କାନ୍ଦିବ ତୁମେ କେତେ କାନ୍ଦିବ ll
ଖୋଜିବ ଯଦି କାନନ ଗିରି
ସାଗର ଆକାଶ ମଳୟ ଚିରି
ପାଗଳୀ ଭଳି ଘୁରିବ ll
ରାତି ଅଧରେ ସ୍ବପ୍ନ ଦେଖି
ଯେବେ ଚମକି ଉଠିବ
ତୁମ ଦେହ ସହ ମୋ ଦେହର
ପରଶ ତୁମେ ପାଇବ ll
ଶୁନ୍ୟ ଶର୍ଯ୍ୟା ମିଥ୍ୟା ସପନ
ଦେଖି ମନେ ମନେ ହେଜିବି
ବେଦନାରେ ତୁମେ ଅସ୍ଥିର ହୋଇ
ଖୋଜିବ ତୁମେ ଖୋଜିବ  ll
ଆଶ୍ଵିନ ମଳୟ ଶିଶିର ଛୁଆଁ ରାତ୍ରି
ପୁଣି ଯେବେ ଆସିବ
ରହିଥିବେ ସଭିଏଁ ନଥିବି ମୁହିଁ
ମରଣ ପଥର ଯାତ୍ରୀ ll
ପାଖରେ ଥିବେ ବନ୍ଧୁ ପରିଜନ
ପ୍ରିୟଜନ ଖାଲି ନଥିବ
ଆଖି ତୁମ ଖାଲି ଖୋଜି ବୁଲୁଥିବ
ମନେ ମନେ କେତେ ଖୋଜିବ ଲଲ
ଖୋଜିବ କେତେ ଖୋଜିବ .......

 ବିଦ୍ୟୁତ କୁମାର 

शनिवार, 30 जुलाई 2016

 विवेकानंद साहित्य, ३.३४५



उसीको मैं महात्मा मानता  हूँ , जिसका ह्रदय गरीवों के लिए द्रवीभूत होता है , अन्यथा वह दुरात्मा है।
                                                                               
     जव तक करोड़ों भूखे और अशिक्षित रहेंगे, तव तक मैं प्रत्येक उस आदमी को विश्वासघातक समझूंगा, जो  उनके खर्च पर शिक्षित हुआ है , परन्तु जो  उनपर तनिक भी ध्यान नहीं देता।
                                                                                         (  विवेकानंद साहित्य, ३.३४५ )
स्त्रियों की अवस्था को बिना सुधारे जगत  कल्याण की कोई सम्भावना नहीं है।
पक्षी के लिए एक पंख से उड़ना संभव नहीं है।
                                                                     ( विवेकानंद साहित्य, ४. ३१७ )
                                                                 
आज से एक साल पहले जो स्थिति देश में देश्द्रोहिओं का था आज भी है और आगे भी रहेगा 
                                                                  

शनिवार, 9 जुलाई 2016

सुप्रभात ........ सादर नमस्कार

तुम आर्य हो या  अनार्य, ऋषि संतान हो,ब्राह्मण हो या अत्यन्त नीच अत्यन्ज जाति के ही क्यों न हो, इस भारतभूमि के प्रत्येक निबासी  के प्रति तुम्हारे पूर्वपुरुषों का दिया हुआ एक महान आदेश है।  तुम सबके प्रति बस एक ही आदेश है कि चुपचाप बैठे रहने से काम न होगा।  निरन्तर उन्नति के लिए चेष्टा करते रहना होगा। ऊँची से ऊँची जाती से लेकर नीची से नीची जाती के लोगों को भी ब्राह्मण होने की चेष्टा करनी होगी।
                                                                                                               ( विवेकानंद साहित्य, ५.९४ )

बुधवार, 5 अगस्त 2015

स्वस्थ समाज निर्माण में व्यक्ति की भूमिका ............

  महर्षि  व्यास कहते हैं - यह समाज एक खेत है  . ठीक मेहनत करने पर खेत में  अच्छी फसल आती है . परन्तु जमीन से जो लिया गया है , वह किसी न किसी मार्ग से जमीन को वापस करना ही होगा . उसमे लापरवाही अथवा कंजूसी करने से नहीं चलेगा . परन्तु समाज रुपी खेत ऐसा है कि उसमें हल चलाये बिना ही बीज डाला जाये तो भी वह वैसा ही पड़ा नहीं रहता . परन्तु अच्छी  फसल प्राप्त करने के लिए जो कांटेदार झाड़ झंकाड़ है उनको साफ़ करके, हल आदि चला कर, पर्याप्त म्हणत करके, अच्छा बीज बोया जाना चाहिए . परिश्रम व्यर्थ नहीं जायेगा, यह विशवास रखिये . खेत में खाद डालने से वह स्वयं ही नहीं खा जाएगा वह तो दुगुनी फसल आपको ही देगा . समाज समृद्ध होगा तो आपके परस्पर प्रेम और सहकार्य से ही होगा . जहां परस्पर प्रेम है, सहकार्य है, उद्योग है, वहां समाज की समृद्धि तथा प्रतिष्ठा का प्रत्येक व्यक्ति को  लाभ  होगा . जिस प्रकार बीज में से वृक्ष निर्माण होता है, उसी प्रकार व्यक्ति में से समाज निर्माण होता है . बीज की सफलता वृक्ष बनने और उसमे से सैकड़ों बीजों के रूप में प्रकट होकर, अमर अखंड परम्परा निर्माण करने में है . उसी प्रकार व्यक्ति जीवन की सफलता समष्टि रूप में अजर अमर और विराट रूप धारण करने में है . बीज के जीवन की सफलता तभी हो सकती है जबकि उसको जमीन से, हवा से, जल से पोषक द्रव्य प्राप्त हुए हैं, उनको उस पेड़ की जड़ों, शाखाओं, पत्तों, फूलों आदि का पोषण करने के लिए ही उपयोग में लाएगा . उस बीज के विकास का यह मार्ग प्रकृति ने ही निर्माण किया है . उस मार्ग से न जाने की दुराग्रह  अगर बीज करेगा तो क्या होगा ? स्पष्ट ही है कि या तो वह सड़ जाएगा, नहीं तो थोड़े समय पश्चात उसे कीड़ा लग कर उसका चुटकी भर छिलका हवा में उड़ जायेगा . उसका अस्तित्व ही नहीं बचेगा . मनुष्य के जीवन के विषय में भी ठीक ऐसा ही है . मनुष्य के जीवन के विकास का मार्ग भी प्रकृति ने ही निर्माण किया है . व्यक्ति के जीवन का विकास वास्तव में तब होता है, जब वह अपने को मिले हुए सुख, वैभव, सम्मान और प्रतिष्ठा में अपने प्रत्यक्षाप्रत्यक्ष सम्बंधित समाज घटको को हिस्सेदार बनाता है . इसी मार्ग से उसको और समाज को अपने बढ़ते हुए सुख, वैभव और सामर्थ्य का अनुभव होता है . अन्यथा यह मनुष्य का छोटा सा शरीर बढ़ेगा भी तो कहाँ तक बढ़ेगा ? और भोग करना भी चाहेगा तो कहाँ तक भोग सकेगा ?  उसके भोग को तो प्रकृति ने मर्यादित किया हुआ है . उसके शरीर में जो आत्मा है वह अमर्यादित है . उसका सामर्थ्य लाख गुना या इससे भी अधिक बढ़ सकता है .   .  
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शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2014

यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता:

नारी का सम्मान सदा होना चाहिए। संस्कृत में एक श्लोक है- 'यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता: (भावार्थ- जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं।) किंतु आज हम देखते हैं कि नारी का हर जगह अपमान होता चला जा रहा है। उसे 'भोग की वस्तु' समझकर आदमी 'अपने तरीके' से 'इस्तेमाल' कर रहा है।
नारी का सबसे पवित्र रूप मां के रूप में देखने में आता है। माता यानी जननी। मां को ईश्वर से भी बढ़कर माना गया है, क्योंकि ईश्वर की जन्मदात्री भी नारी ही रही है। मां देवकी (कृष्ण) तथा मां पार्वती (गणपति/ कार्तिकेय) के संदर्भ में हम देख सकते हैं इसे।
किंतु बदलते समय के हिसाब से संतानों ने अपनी मां को महत्व देना कम कर दिया है। यह चिंताजनक पहलू है। सब धन-लिप्सा व अपने स्वार्थ में डूबते जा रहे हैं। (सिर्फ) मेरी बीवी व मेरे बच्चे यही आजकल परिवार की परिभाषा रह गई है। फिर बुजुर्ग माता-पिता की सेवा कौन करे? यह सवाल आजकल यक्षप्रश्न की तरह चहुंओर पांव पसारता जा रहा है। नई पीढ़ी को आत्मावलोकन करना चाहिए।

सोमवार, 21 अक्टूबर 2013

अमेरिका के वॉशिंगटन डीसी इलाके में
नन की ट्रेनिंग पा रही एक लड़की पर
अपने नवजात बच्चे की गला घोंटकर
हत्या का आरोप
लगा है.सोसेफीना अमोआ नाम की इस
ट्रेनी नन को पुलिस ने बुधवार
को गिरफ्तार किया और अब उस पर
मुकदमा चल रहा है.
अमोआ 5 अक्टूबर को लिटिल सिस्टर्स
ऑफ द पुअर नाम की संस्था में नन
बनने के लिए दाखिल हुई.
उसका दर्जा ट्रेनी का था. नन ईसाई
धर्म की साध्वी की तरह होती हैं और
उन्हें ब्रह्मचर्य का पालन
करना होता है. मगर अमोआ यहां आने
से पहले ही गर्भवती थी और उसने अपने
अफेयर या इस बारे में
किसी को नहीं बताया. 10 अक्टूबर
को चर्च के ही बुजुर्गों की केयर करने
वाले सेंटर के एक कमरे में नन ने बेटे
को जन्म दिया. उसका नाम
रखा गया जोसेफ. अमोआ
को लगा कि जोसेफ के रोने की आवाज
से देर सवेर उसका भेद खुल जाएगा.
तो उसने एक दिन जोसेफ नाम के उस
बच्चे का गला ऊनी कपड़े से घोंट दिया.
फिर अगले दिन उसने अपनी एक
सहेली नन को बताया कि ये बच्चा हिल
डुल नहीं रहा है. नन ने देखा का शरीर
नीला और ठंडा पड़ा हुआ है. वे उसे
अस्पताल ले गए. यहीं से उसकी पोल
खुलनी शुरू हुई.

बुधवार, 9 अक्टूबर 2013

बीमारी = कंग्रेस

कंग्रेस और केन्सर
कंग्रेस और टीवी
कंग्रेस और डाइवेटिस
कंग्रेस और लेप्रोसी
कंग्रेस और किडनी फेयल्युर
कंग्रेस और हार्ट प्रोवलेम
कंग्रेस और लिवर प्रोवलेम
कंग्रेस और मलेरिया
कंग्रेस और फाइलेरिया
कंग्रेस और अन्यान्य बिमारियाँ....
जैसे उपरोक्त सभी बिमारियाँ मनुष्य शरीर को धिरे धिरे नष्ट कर देता है वैसे ही ये कंग्रेस रुपी बिमारी  देह रुपी देश को नष्ट कर रहा है... जैसे सतर्कता अवलम्बन करते हुए बिमारियों को दुर किया जा सकता है वैसे ही  यह कंग्रेस रुपी बिमारी को भी दूर किया जा सकता था लेकिन हम लोग सतर्कता अवलम्बन न करने के कारण उस बिमारी का फल भुगत रहे हैं... अभी भी समय है अगर अभी भी हम सतर्क हो जाएँगें तो कंग्रेस रुपी बिमारी से भारत माता को बचाया जा सकता है .... जागो मित्रों जागो । ।।